रविवार, 5 फ़रवरी 2012

लापरवाह पुलिस, बेपरवाह नेता


अजमेर की पुलिस यहां के नागरिकों के प्रति कितनी संजीदा और जिम्मेदार है, इसका पता लगा रविवार को बारहवफात के जुलूस के दौरान।
हुआ यूं कि बारहवफात का जुलूस जैसे ही सुभाष उद्यान की ओर आने लगा पुलिस ने सुभाष उद्यान की ओर जाने वाले सारे रास्ते सील कर दिए। कोटड़ा व पुष्कर की ओर से ऋषि घाटी की ओर जाने वाले चार पहिया वाहनों को रीजनल कॉलेज चौराहे और फॉयसागर पुलिस चौकी पर रोका जाने लगा और दुपहिया वाहनों को जाने की छूट दे दी गई। दुपहिया वाहन चालकों को ऋषि उद्यान के पास जाने पर पता लगा कि न केवल वैकल्पिक मार्ग को बंद किया गया है, अपितु गंज की ओर जाने वाला मार्ग भी सील है। कुछ देर तक तो उन्होंने इंतजार किया, मगर जब रास्ता नहीं खुला तो बहसबाजी हुई। आखिरकार पुलिस वालों ने व्यवस्था दी कि ये दोनों मार्ग चार बजे तक बंद रहेंगे, लिहाजा जिसे शहर में जाना है, वह रीजनल कॉलेज चौराहा व वैशाली नगर होते हुए जा सकता है। ऐसे में सभी पुलिस वालों को कोसने लगे कि अगर यहां पर रोकना ही था तो रीजनल कॉलेज चौराहे व फॉयसागर पुलिस चौकी पर ही क्यों नहीं रोक दिया गया। उन्हें कम से कम गोता तो नहीं खाना पड़ता। समय और पेट्रोल का नुकसान हुआ सो अलग। भिनभिनाते हुए वाहन चालक जब रीजनल कॉलेज चौराहे से मुड़ कर वैशाली नगर की ओर जाने लगे तो वहां भी जैन समाज के जुलूस के कारण रास्ता जाम हो रखा था।
सवाल ये उठता है कि क्या पुलिस को पहले से यह पता नहीं था कि बारहवफात व जैन समाज के जुलूस एक ही समय पर निकाले जाने हैं? जैन समाज का जुलूस तो चलो पंचकल्याणक के कारण इसी साल निकला, लेकिन बारहवफात का जुलूस तो हर साल निकलता है। यदि केवल जुलूस के दौरान ही यातायात बंद करने का विचार था, तब तो ठीक, मगर चार बजे तक बंद करने की योजना थी तो एक दिन पहले अखबारों के जरिए इसकी सूचना क्यों नहीं जारी की गई, जैसी कि दीपावली, 15 अगस्त, 26 जनवरी अथवा विशेष मौकों आदि के दौरान की जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस ने पहले से कुछ भी प्लानिंग नहीं की थी, तभी तो पहले वह वाहन चालकों को जुलूस को सुभाष उद्यान तक पहुंचने देने तक के लिए रोकती रही और बाद में यकायक नई व्यवस्था लागू करते हुए चार बजे तक का समय कर दिया गया। पुलिस की इस लापरवाही से आमजन को भारी परेशानी हुई। मगर लगता है कि पुलिस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। चर्चा ये भी थी कि यातायात के डीवाईएसपी जयसिंह राठौड़ जैसे संजीदा, सौम्य और बुद्धिजीवी पुलिस अफसर के होते हुए यातायात व्यवस्था कैसे चौपट हो गई? मगर कहा जाता है न कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। जयसिंह राठौड़ के साथ भी यह लागू हो गया लगता है। लगता ये भी है कि अपने महकमे के सिस्टम के आगे उन्होंने भी हथियार डाल दिए हैं।
बहरहाल, ये सारी अव्यवस्था इस कारण भी है, क्योंकि हमारी नेता मंडली कमजोर है। वरना क्या मजाल कि आम जनता से जुड़े मसले पर पुलिस उन्हें नजरअंदाज कर दे। और नजरअंदाज का तो सवाल तब उठता है न, जब नेताओं ने नजर डाली हो। कांग्रेसी सत्ता के मद में चूर हैं और भाजपाई बयानबाजी करने में व्यस्त। रास्ते बंद होने और यातायात जाम होने के दौरान कोई नजर नहीं आया। अफसोस कि राष्ट्र की अस्मिता और बजट जैसे मुद्दों पर तो लंबे चौड़े बयान जारी करने की उन्हें सुध है, मगर सीधे जनता से जुड़ मुद्दों का उन्हें ख्याल ही नहीं रहता।

ठेले वालों को बचा रहे हैं पुलिस कप्तान?


अजमेर के हितों के लिए गठित अजमेर फोरम की पहल पर बाजार के व्यापारियों की एकजुटता से एक ओर जहां शहर के सबसे व्यस्ततम बाजार मदारगेट की बिगड़ी यातायात व्यवस्था को सुधारने का बरसों पुराना सपना साकार रूप ले रहा है, वहीं नगर निगम की अरुचि और पुलिस कप्तान राजेश मीणा के रवैये के कारण नो वेंडर जोन घोषित इस इलाके को ठेलों से मुक्त नहीं किया जा पा रहा है।
अंदरखाने की जानकारी यही है कि निगम व पुलिस में एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालने के कारण ही ठेले वाले नहीं हटाए जा पा रहे। एक-दूसरे की देखादेखी के चलते परिणाम ये है कि लोहे का सामान बेचने वाली औरतें आज तक नहीं हटाई जा सकी हैं। लोहे के जंगले में सीमित की गई सब्जी वालियां भी यदाकदा जंगले से बाहर आ जाती हैं। खतरा ये है कि कहीं व्यापारी अपनी पहल पर खुद को ठगा सा महसूस न करने लग जाएं।
बताया जा रहा है कि पुलिस कप्तान राजेश मीणा यह कह कर ठेले वालों को हटाने में आनाकानी कर रहे हैं कि पहले निगम इसे नो वेंडर जोन घोषित करे और पहल करते हुए इमदाद मांगे, तभी वे कार्यवाही के आदेश देंगे। उनका तर्क ये भी बताया जा रहा है कि पहले वेंडर जोन घोषित किया जाए, तब जा कर ठेले वालों को हटाया जाना संभव होगा। उधर निगम भी पंगा मोल नहीं लेना चाहता, वरना अब तक तो नो वेंडर जोन के बोर्ड लगा दिए जाते। असल बात ये है कि संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में गठित समिति मदार गेट को नो वेंडर जोन घोषित कर चुकी है। मीणा के तर्क के मुताबिक उसे निगम की ओर से नए सिरे से नो वेंडर जोन घोषित करने की जरूरत ही नहीं है। पुलिस को खुद ही कार्यवाही करनी चाहिए। रहा सवाल मीणा के पहले वेंडर जोन घोषित करने का तो स्वाभाविक रूप से जो इलाका नो वेंडर जोन नहीं है, वहीं वेंडर जोन है। अव्वल तो उनका इससे कोई ताल्लुक ही नहीं है कि ठेले वालों को नो वेंडर जोन से हटा कर कहां खड़ा करवाना है। उनके इस तर्क से तो वे ठेले वालों की पैरवी कर रहे प्रतीत होते हैं।
सब जानते हैं कि अजमेर शहर में विस्फोटक स्थिति तक पहुंच चुकी यातायात समस्या पर अनेक बार सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर चिन्ता जाहिर की जाती रही है। प्रयास भी होते रहे हैं, मगर इस दिशा में एक भी ठोस कदम नहीं उठाया जा सका। जब भी कोशिश की गई, कोई न कोई बाधा उत्पन्न हो गई। इस बार अजमेर फोरम की पहल पर व्यापारी आगे आए तो उन्होंने तभी आशंका जाहिर कर दी थी कि वे तो खुद अस्थाई अतिक्रमण हटा देंगे, मगर ठेले वाले तभी हटाए जा सकेंगे, जबकि प्रशासन इच्छा शक्ति दिखाएगा। आशंका सच साबित होती दिखाई दे रही है। प्रशासनिक इच्छाशक्ति के अभाव में मदारगेट पर ठेले कुकुरमुत्तों की तरह उगे हुए हैं। कहने वाले तो यह तक कहते हैं कि पुलिस के सिपाही ठेलों से मंथली वसूल करते हैं। यदि वे ठेलों को हटाते हैं तो उसकी मंथली मारी जाती है। कदाचित यह जानकारी पुलिस कप्तान को भी हो। देखते हैं इस आरोप से मुक्त होने के लिए ही सही, क्या वे कोई कार्यवाही करते हैं या नहीं?

सौ सुनार की, एक लुहार की


एक कहावत है-सौ सुनार की, एक लुहार की। इसे साबित कर दिखाया अजमेर दक्षिण की भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने। इसी माह शुरू होने वाले राजस्थान के आगामी बजट सत्र से पहले पिछली बजट घोषणाओं को पूरा न किए जाने के मसले पर महत्वपूर्ण प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उन्होंने अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी से बाजी मार ली। वरना हर मसले पर बयान जारी करने में देवनानी अग्रणी रहते हैं।
असल में अपने आपको सक्रिय बनाए रखने या जताने के लिए देवनानी शहर व राज्य से जुड़े हर मुद्दे पर तुरंत बयान जारी कर देते हैं। इसके लिए उन्होंने बाकायदा सेटअप बना रखा है। खबर बनाते हैं और तुरंत अखबारों को मेल कर देते हैं। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि किसी मसले पर भाजपा की ओर से विज्ञप्ति जारी हुई और उसमें देवनानी का भी नाम था, मगर उन्होंने अपनी ओर से व्यक्तिगत विज्ञप्ति अलग से जारी कर दी। ऐसा प्रतीत होता रहा है मानो अनिता से ज्यादा देवनानी सक्रिय हैं। इस मामले में अनिता अमूमन फिसड्डी साबित हो जाती हैं। हां, अलबत्ता किसी प्रमुख मुद्दे पर जरूर अपने तीखे तेवर दिखाती हैं, जैसे पिछले दिनों के यूआईटी की तोडफ़ोड़ की कार्यवाही के विरोध में आसमान सिर पर उठा लिया। नतीजतन उनके खिलाफ राजकार्य में बाधा का मुकदमा दर्ज हो गया। बहरहाल, ऐसा प्रतीत होता है कि अनिता ने भी अब कमर कस ली है। वे किसी भी मामले में देवनानी से पीछे नहीं रहना चाहतीं। वैसे भी उन दोनों के बीच शुरू से ऐसी प्रतिस्पद्र्धा रही है, जैसी किसी कांग्रेस व भाजपा नेता के बीच होती है। यह तब से शुरू हुई, जब अनिता पिछले कार्यकाल में मंत्री बनते-बनते रह गईं। परिणाम ये रहा कि पूरे पांच साल तक रस्साकस्सी चलती रही।
खैर, अनिता को यकायक ख्याल आया कि आगामी बजट सत्र के मद्देनजर सरकार को घेरा जा सकता है और उन्होंने तुरत-फुरत में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दी। सवाल भी काफी अहम उठाए। उन्होंने जो बयान जारी किया, उससे यही प्रतीत हुआ कि उन्होंने पूरी मेहनत करके उसे बनाया है। उसे अखबारों में तरजीह भी अच्छी मिली। दमदार बात ये रही कि उन्होंने प्रेस कॉन्फेंस को व्यक्तिगत रूप से आयोजित करने की बजाय पार्टी मंच पर आयोजित किया। अस्वस्थ होने के कारण शहर जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत की गैर मौजूदगी में वरिष्ठ उपाध्यक्ष अरविंद यादव और अन्य पदाधिकारियों ने भी अपनी उपस्थिति दिखाई। पार्टी बैनर के तले बजट जैसे महत्वपूर्ण विषय पर आयोजित प्रेस कॉफ्रेंस में शहर के ही दूसरे विधायक देवनानी की गैर मौजूदगी चौंकाने वाली थी। जाहिर तौर पर उन्हें नहीं बुलाया गया होगा अथवा बुलाया गया भी होगा तो देवनानी ने व्यस्तता बता दी होगी। भले ही पार्टी स्तर पर देवनानी को न बुलाने का कोई कारण विशेष न हो और यह एक सामान्य बात हो, मगर इससे आशंका यही उत्पन्न होती है कि कहीं उन्हें हाशिये पर लाने की कोशिश तो नहीं की जा रही है। खैर, यह पार्टी के अंदर का मामला है, अपुन को क्या?