बुधवार, 17 मई 2017

एकजुट नहीं हुए तो देवनानी व अनिता, दोनों के टिकट काटने होंगे

हालांकि लगातार तीन बार जीतने की वजह से शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल काफी मजबूत माने जाते हैं, इसके अतिरिक्त दोनों मंत्री भी हैं, इस कारण उनके टिकट आगामी विधानसभा चुनाव में काटना निहायत कठिन काम है, मगर दोनों के बीच जिस तरह की खींचतान मची हुई है, उसे देखते हुए लगता यही है कि दोनों सीटें जीतने के लिए भाजपा हाईकमान को उन्हें टिकट देने से पहले सौ बार सोचना पड़ेगा। जमीन पर कार्यकर्ता इतना बंट चुका है कि उसे एकजुट करना अब बेहद मुश्किल है।
असल में दोनों नेताओं के बीच पहली बार जीतने के साथ ही छत्तीस का आंकड़ा हो गया था। अनुसूचित जाति की महिला विधायक होने के नाते श्रीमती भदेल का मंत्री बनना तय माना जा रहा था, मगर देवनानी सिंधी कोटे में मंत्री बन गए। तभी से दोनों के बीच नाइत्तफाकी आरंभ हुई। देवनानी के मंत्री बनने से अजमेर भाजपा के भीष्मपितामह औंकार सिंह लखावत को भी तकलीफ हुई। शनै: शनै: वह गुटबाजी में तब्दील हो गई। भाजपा का एक बड़ा गुट लखावत व अनिता के साथ हो गया, मगर संघ के दम पर देवनानी मजबूत बने रहे। पिछले चुनाव में तो हालत ये थी कि चाहे गैर सिंधीवाद के नाम से, चाहे गुटबाजी व व्यक्तिगत कारणों से, भाजपा के अधिसंख्य नेता देवनानी के खिलाफ थे। टिकट कटने की नौबत तक आ गई, संघ के वीटो से टिकट ले आए। धरातल पर हालत ये थी कि उन्हें हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी गई। उधर श्रीमती भदेल के दाहिने हाथ रहे उद्योगपति हेमंत भाटी को कांग्रेस का टिकट मिल गया और वे अनिता के सामने ही खड़े हो गए। जाहिर तौर पर वे भी कमजोर थीं। कुल मिला कर देवनानी व अनिता दोनों ही पिछले चुनाव में हार के करीब थे, मगर मोदी लहर ऐसी चली कि दोनों अच्छे वोटों से जीत गए। ऐसे में उन्हें यह भ्रम है कि वे अजेय हो गए हैं। तीसरी बार जीतने पर संघ के दबाव में देवनानी तो मंत्री बनाना जरूरी था तो वसुंधरा ने बैलेंस करने के लिए अनिता को भी मंत्री बना दिया। अब दोनों के बीच आए दिन भिड़ंत होती रहती है। प्रशासन भी परेशान है।
दो साल पहले नगर निगम चुनाव में भाटी ने अपनी हार का बदला ले लिया और दिखा दिया कि अनिता जमीन पर कमजोर हो गई हैं। मेयर चुनाव में उनके दूसरे सिपहसालार सुरेन्द्र सिंह शेखावत भी छिटक गए। ऐसे में उनके पास चुनाव जीतने के काबिज ताकत नहीं रह गई है। हालांकि सिंधी व माली वोट बैंक अब भी उनकी ताकत बना हुआ है, मगर देवनानी गुट के लोगों के भीतरघात करने व एंटी इंकंबेंसी के चलते उनको दिक्कत पेश आएगी। यद्यपि हाल ही उन्होंने अजमेर दक्षिण क्षेत्र के सभी वार्डों की क्रिकेट प्रतियोगिता करवा कर जमीन पर पकड़ बनाई है, मगर यह आयोजन भी संगठन के स्तर पर विवाद का शिकार हो गया है।
बात अगर देवनानी की करें तो हालांकि उन्होंने निगम चुनाव में अपनी ताकत दिखा दी है, आज भी उनकी टीम मजबूत है, मगर जमीन पर हालात बहुत अच्छे नहीं रहे हैं। चलते रस्ते ब्राह्मणों को भी नाराज कर बैठे हैं। लखावत-अनिता खेमा भी उन्हें हराने को तैयार बैठा है। इस बार तो अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिव शंकर हेडा उनकी टिकट में बड़ी बाधा बन कर आ सकते हैं। उन्होंने भी अपनी सेना सजाना शुरू कर दिया है। इस प्रकार शहर भाजपा में तीन गुट हो गए हैं। खींचतान इतनी है कि शहर भाजपा अध्यक्ष बदलने तक का फैसला अटका हुआ है। कुल मिला कर गुटबाजी इतनी चरम पर पहुंच गई है कि सुलह होना नामुमकिन है। भाजपा हाईकमान इस बात से बेखबर नहीं है। हाल ही स्वायत्त शासन मंत्री श्रीचंद कृपलानी भी हालात देख कर गए हैं। ऐसे में भाजपा को यह अच्छी तरह से समझ आ गई होगी कि अगर दोनों सीटें जीतनी हैं तो दोनों मौजूदा विधायकों के टिकट काटने ही होंगे। चुनाव अभी दूर हैं। इस बीच अगर कोई सुलह हो पाती है तो ठीक, वरना इन दोनों को टिकट देने से पहले हाईकमान को गंभीरता से विचार करना होगा। ऐसा नहीं है कि भाजपा संगठन या कार्यकर्ता कमजोर हुआ है, आज भी भाजपा अजमेर में मजबूत स्थिति में है, जातीय समीकरण के लिहाज से और मोदी फोबिया के कारण, मगर केवल गुटबाजी पार्टी को लेकर बैठ सकती है।
-तेजवानी गिरधर
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