बुधवार, 31 जुलाई 2013

पक्का न मान कर चलिए अनिता भदेल का टिकट

अजमेर उत्तर में भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी के विधानसभा टिकट में तो संशय इस कारण है कि भाजपा एक धड़ा उनका जमकर विरोध कर रहा है, मगर बताया जाता है कि अजमेर दक्षिण की विधायक श्रीमती अनिता भदेल के टिकट में भी रगड़ा पड़ सकता है।
हालांकि आम धारणा यही है कि श्रीमती भदेल के टिकट में कोई संकट नहीं है, क्योंकि एक तो प्रत्यक्षत: उनका कोई विरोध नहीं है, दूसरा देवनानी विरोधी लॉबी सपोर्ट कर रही है, तीसरा जिले में एक महिला को तो टिकट देना ही है, जबकि अन्य किसी सीट पर कोई दमदार महिला उभर नहीं पाई है। और चौथा एक विपक्षी विधायक के नाते ओवरऑल परफोरमेंस भी ठीक बताई जाती है। बावजूद इसके अंदरखाने की खबर है कि उनके टिकट को पक्का नहीं माना जाना चाहिए। बताया जाता है कि अजमेर नगर निगम के महापौर पद के प्रत्याशी रहे डॉ. प्रियशील हाड़ा खुल कर तो नहीं, मगर अंदर की अंदर उनका जम कर विरोध कर रहे हैं। इसकी वजह ये बताई जाती है कि श्रीमती भदेल ने उनका सहयोग नहीं किया, इस कारण वे हार गए। वरना केंडीडेट तो वे कांग्रेस के कमल बाकोलिया से बेहतर ही थे। यह बात सबके गले आसानी से उतरती भी है, क्योंकि कोई भी नेता पार्टी में अपनी ही समाज के किसी दूसरे नेता को काहे को जड़ें जमाने देगा। कहने की जरूरत नहीं है कि वे भी उसी कोली समाज से हैं, जिस समाज के नाते श्रीमती भदेल को लगातार दो बार टिकट दिया जाता रहा है। डॉ. हाड़ा का विरोध तो अपनी जगह है ही, बताया जाता है कि संघ में भी उनके प्रति सर्वसम्मति अब नहीं रही है। एक फैक्टर ये भी है कि लगातार दो टर्म तक विधायक रहने वाले नेता के अनेक स्वाभाविक दुश्मन भी बन जाते हैं, जिनके कि निजी अथवा सार्वजनिक काम नहीं हुए होते हैं। ऐसे लोग उनके व्यवहार को लेकर शिकायतें कर रहे हैं। रहा सवाल खुद के दमखम का तो यह साफ है कि श्रीमती भदेल जो कुछ भी हैं, संघ और भाजपा के दम पर हैं। उनका अपना कोई खास वजूद नहीं रहा है। अब भी नहीं है। न सामाजिक, न ही आर्थिक। यह एक सच्चाई भी है कि आमतौर पर संघ और भाजपा में व्यक्ति पार्टी की तुलना में गौण होता है। असली ताकत संगठन की ही होती है। संगठन को अहसास है कि वह चाहे जिसे खड़ा करे, जितवा कर ला सकता है। ऐसे एक नहीं, अनेक उदाहरण मौजूद हैं, जो कि केवल संगठन के दम पर ही नेता रहे, जैसे ही संगठन ने मुंह फेरा, वे जमीन पर आ गए। जैसे पूर्व राज्य मंत्री श्रीकिशन सोनगरा, पूर्व विधायक नवलराय बच्चानी, पूर्व विधायक हरीश झामनानी। आज उनको कौन पूछता है। ये सब ऐसे नेता हैं, जिन्हें संगठन ने ही नेता बनाया, वरना वे भी आम आदमी ही थे। और हटने के बाद भी आम हो गए। अनिता भदेल भी उनकी श्रेणी की नेता हैं। उन्हें जमीन से आसमान तक लाने में रोल ही संगठन का है। बहरहाल, संघ लॉबी में चर्चा है कि चेहरा बदलने के लिहाज से श्रीमती भदेल का टिकट काटा जा सकता है। हालांकि यह बात आसानी से हजम नहीं होती, मगर संघ कब क्या करता है, पता नहीं चलता। वह कहता कुछ नहीं, और करता सब कुछ है। बड़े-बड़े तीसमारखां भी संघ के आगे नतमस्तक होते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अजमेर उत्तर की तरह दक्षिण की सीट भी संघ कोटे की है। अगर वाकई संघ ने उन्हें टिकट न देने की ठानी तो फिर वसुंधरा भी हथेली नहीं लगा सकतीं।

टिकट ले भी आए तो देवनानी को हराने की तैयारी

कानाफूसी है कि अजमेर उत्तर के मौजूदा भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी की विरोधी लॉबी अव्वल तो उनको टिकट नहीं दिए जाने के लिए एडी चोटी का जोर लगा रही है, गर वे जोड़-तोड़ कर टिकट ले आए तो उन्हें जीतने के लाले पड़ सकते हैं।
जानकारी यही है कि भाजपा की ओर से अब तक आए ज्ञात व अज्ञात पर्यवेक्षकों को यह साफ कर दिया गया है कि देवनानी का पार्टी में भारी विरोध है। अगर उसके बाद भी पार्टी ने गलती की तो उसे उसका खामियाजा भुगतना होगा। संभव ये भी है कि देवनानी विरोधी एकजुट हो कर यह कह दें कि भले ही आप देवनानी को टिकट दे दीजिए, मगर जिताने की जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी। भाजपा हाईकमान भी अब समझ तो गया है कि देवनानी की भाजपा कार्यकर्ताओं में क्या स्थिति है, मगर उसकी यह सोच भी है कि इस प्रकार का विरोध तो पिछली बार भी था, बावजूद इसके वे जीत कर आ गए। हाईकमान यह आकलन करने में लगा है कि देवनानी का जितना विरोध भाजपा में है, क्या उतना आम कार्यकर्ता व आम जनता में भी है। कहीं यह विरोध प्रोजेक्टेड तो नहीं है। कुल मिला कर लगता यही है कि देवनानी विरोधी उन्हें किसी भी सूरत में टिकट नहीं लेने देंगे। अगर ले भी आए तो निपटा देंगे।
जानकार सूत्रों के अनुसार अजमेर उत्तर के अधिकतर वार्डों में देवनानी की टीम की टक्कर में टीमें गठित हो रखी हैं, जो चुनाव के दौरान देवनानी की जड़ों में म_ा डालने का काम करेंगी। इन टीमों में वे कार्यकर्ता हैं, या तो सीधे देवनानी से खफा हैं या फिर गैर सिंधीवाद की मुहिम में शामिल हैं। उदाहरण के तौर निर्दलीय पार्षद ज्ञान सारस्वत देवनानी के धुर विरोधी हैं। उनका एक मात्र लक्ष्य ही देवनानी को निपटाना है। जाहिर है उन पर देवनानी विरोधी लॉबी ने हाथ रख रखा है। कहा तो यहां तक जाता है कि देवनानी को टिकट मिलने पर वे केवल उन्हें हराने के लिए ही निर्दलीय रूप से खड़े हो जाएंगे। अगर चुनाव न लडऩे का मूड हुआ तो भी वे देवनानी की फिश प्लेटें गायब करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे। उनकी अपने वार्ड के अतिरिक्त सटे हुए दो वार्डों में जबरदस्त पकड़ है। यानि कि अगर उन्होंने देवनानी की कारसेवा की तो उन्हें तगड़ा झटका लगेगा। देवनानी के पास फिलहाल उनका कोई तोड़ नहीं है। अन्य वार्डों में भी कमोबेश यही स्थिति है, मगर चूंकि वहां अंडरग्राउंड काम चल रहा है, इस कारण उनके नाम उजागर करना फिलहाल उचित नहीं होगा। ऐसा नहीं है कि अपनी कारसेवा होने का देवनानी को पता नहीं है। वे भलीभांति जानते हैं, इस कारण उन्होंने भी अपनी टीमों को तैयार करना शुरू कर दिया है। वे कितने कामयाब हो पाते हैं, ये तो वक्त ही बताएगा।

ऐसा था स्वतंत्र अजमेर राज्य

राजपूताना का 1909 का वह नक्शा, जिसमें अजमेर मेरवाड़ा को दर्शाया गया है
कांग्रेस के पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने एक बार फिर अलग अजमेर राज्य का मुद्दा उठाया है। इस मौके पर यह बताना प्रासंगिक होगा कि स्वतंत्र अजमेर राज्य कैसा था। पेश है मेरी पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस का  एक आलेख:-
नवम्बर, 1956 में राजस्थान में विलय से पहले अजमेर एक स्वतंत्र राज्य था। केन्द्र सरकार की ओर से इसे सी स्टेट के रूप में मान्यता मिली हुई थी। आइये, इससे पहले यहां की सामन्तशाही व्यवस्था पर नजर डाल लें:-
सामन्तशाही व्यवस्था
अजमेर राज्य 2 हजार 417 वर्ग मील क्षेत्र में फैला हुआ था और सन् 1951 में इसकी जनसंख्या 6 लाख 93 हजार 372 थी। केकड़ी को छोड़ कर राज्य का दो तिहाई हिस्सा जागीरदारों व इस्तमुरारदारों (ठिकानेदार) के पास था, जबकि केकड़ी का पूरा इलाका इस्तमुरारदारों के कब्जे में था। सरकारी कब्जे वाली खालसा जमीन नाम मात्र को थी। पूर्व में ये ठिकाने जागीरों के रूप में थी और इन्हें सैनिक सेवाओं के उपलक्ष्य में दिया गया था। इन ठिकानों के कुल 277 गांवों में से 198 गावों से फौज खर्च वसूल किया जाता था। ब्रिटिशकाल से पहले सामन्तशाही के दौरान यहां सत्तर बड़े इस्तमुरारदार और चार छोटे इस्तमुरारदार थे। ये ठिकाने विभिन्न समुदायों में बंटे हुए थे। कुल 64 ठिकाने राठौड़ समुदाय के, 4 चीता समुदायों और 1-1 सिसोदिया व गौड़ के पास थे। इनको भी राजपूत रियासतों के जागीरदारों के बराबर विशेष अधिकार हासिल थे। सन् 1872 में ठिकानेदारों को सनद दी गई और 1877 में अजमेर भू राजस्व भूमि विनियम के तहत इनका नियमन किया गया।
इस्तमुरारदारों को तीन श्रेणी की ताजीरें प्रदान की हुई थीं। जब कभी किसी ठिकाने के इस श्रेणी के निर्धारण संबंधी विवाद होते थे तो चीफ कमिश्रर की रिपोर्ट के आधार पर वायसराय उसका समाधान निकालते थे। ब्रिटिश काल में जब कभी कोई इस्तमुरारदार दरबार में भाग लेता था तो चीफ कमिश्नर की ओर से उसका सम्मान किया जाता था। हालांकि इस्तमुरारदार राजाओं की श्रेणी में नहीं आते थे, लेकिन इन्हें विशेष अधिकार हासिल थे।
अजमेर राज्य में कुल नौ परगने शाहपुरा, खरवा, पीसांगन, मसूदा, सावर, गोविंदगढ़, भिनाय, देवगढ़ व केकड़ी थे। केकड़ी जूनिया का अंग था। जूनिया, भिनाय, सावर, मसूदा व पीसांगन के इस्तमुरारदार मुगल शासकों के मंसबदार थे। भिनाय की सर्वाधिक प्रतिष्ठा थी तथा इसके इस्तमुरारदार राजा जोधा वंश के थे। प्रतिष्ठा की दृष्टि से दूसरे परगने सावर के इस्तमुरारदार ठाकुर सिसोदिया वशीं शक्तावत राजपूत थे। इसी क्रम में तीसरे जूनिया के इस्तमुरारदार राठौड़ वंशी थे। पीसांगन के जोधावत वंशी राठौड़ राजपूत व मसूदा के मेड़तिया वंशी राठौड़ थे। अजमेर राज्य में जागीरदारी व माफीदार व्यवस्था भी थी। धार्मिक व परमार्थ के कार्यों के लिए दी गई जमीन को जागीर कहा जाता था। इसी प्रकार माफी की जमीन भौम के रूप में दी जाती थी। भौम चार तरह के होते थे। पहले वे जिनकी संपत्ति वंश परम्परा के तहत थी और राज्य की ओर से स्वामित्व दिया जाता था। दूसरे वे जिनकी संपत्ति अपराध के कारण दंड स्वरूप राज्य जब्त कर लेता था, तीसरे वे जिनकी संपत्ति जब्त करने के अतिरिक्त राजस्व के अधिकार छीन लिए जाते थे और चौथे वे जिन पर दंड स्वरूप जुर्माना किया जाता था। इस्तमुरारदार ब्रिटिश शासन को भू राजस्व की तय राशि वार्षिक लगान के रूप में देते थे। जागीरदार अपने इलाके का भू राजस्व सरकार को नहीं देते थे। आजादी के बाद शनै: शनै: जागीरदारी व्यवस्था समाप्त की जाती रही। 1 अगस्त, 1955 को अजमेर एबोलिएशन ऑफ इंटरमीडियरी एक्ट के तहत इस्तमुरारदार खत्म किये गये। इसी प्रकार दस अक्टूबर, 1955 में जागीरदार व छोटे ठिकानेदारों को खत्म किया गया। इसके बाद 1958 में भौम व माफीदारी की व्यवस्था को भी खत्म कर दिया गया। राज्य के पुनर्गठन के संबंध में 1 नवंबर, 1956 को राज्य पुनर्गठन अधिनियम प्रभाव में आया और अजमेर एकीकृत हुआ और राजस्थान में शामिल कर लिया गया। 1 दिसम्बर, 1956 को जयपुर जिले का हिस्सा किशनगढ़ अजमेर में शामिल कर दिया गया। किशनगढ़ में उस वक्त चार तहसीलें किशनगढ़, रूपनगढ़, अरांई व सरवाड़ थी। 15 जून, 1958 से राजस्थान का भूमि राजस्व अधिनियम 1950, खातेदारी अधिनियम 1955 अजमेर पर लागू कर दिए गए। 1959-60 में तहसीलों का पुनर्गठन किया गया और अरांई व रूपनगढ़ तहसील समाप्त कर जिले में पांच तहसीलें अजमेर, किशनगढ़, ब्यावर, केकड़ी व सरवाड़ बना दी गई। केकड़ी तहसील का हिस्सा देवली अलग कर टोंक जिले में मिला दिया गया।
ऐसा था स्वतंत्र राज्य का ढांचा
सन् 1946 से 1952 तक अजमेर राज्य के संचालन के लिए चीफ कमिश्नर को राय देने के लिए सलाहकार परिषद् बनी हुई थी। इस में सर्वश्री बालकृष्ण कौल, किशनलाल लामरोर व मिर्जा अब्दुल कादिर बेग, जिला बोर्ड व अजमेर राज्य की नगरपालिकाओं के सदस्यों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि, संसद सदस्य मुकुट बिहारी लाल भार्गव, कृष्णगोपाल गर्ग, मास्टर वजीर सिंह और पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधि के रूप में सूर्यमल मौर्य मनोनीत किया गया था।
भारत विभाजन के बाद कादिर बेग पाकिस्तान चले गए व उनके स्थान पर सैयद अब्बास अली को नियुक्त किया गया। चीफ कमिश्नर के रूप में श्री शंकर प्रसाद, सी. बी. नागरकर, के. एल. मेहता, ए. डी. पंडित व एम. के. कृपलानी रहे। सन् 1952 में प्रथम आम चुनाव के साथ ही यहां लोकप्रिय शासन की स्थापना हुई।
अजमेर विधानसभा को धारा सभा के नाम से जाना जाता था। इसके तीस सदस्यों में से इक्कीस कांग्रेस, पांच जनसंघ (दो पुरुषार्थी पंचायत)और चार निर्दलीय सदस्य थे। मुख्यमंत्री के रूप में श्री हरिभाऊ उपाध्याय चुने गए। गृह एवं वित्त मंत्री श्री बालकृष्ण कौल, राजस्व व शिक्षा मंत्री ब्यावर निवासी श्री बृजमोहन लाल शर्मा थे। मंत्रीमंडल ने 24 मार्च, 1952 को शपथ ली।  विधानसभा का उद्घाटन 22 मई, 1952 को केन्द्रीय गृह मंत्री डॉ. कैलाश नाथ नायडू ने किया। विधानसभा के पहले अध्यक्ष श्री भागीरथ सिंह व उपाध्यक्ष श्री रमेशचंद भार्गव चुने गए। बाद में श्री भार्गव को अध्यक्ष बनाया गया और उनके स्थान पर सैयद अब्बास अली को उपाध्यक्ष बनाया गया। विरोधी दल के नेता डॉ. अम्बालाल थे। विधानसभा प्रशासन संचालित करने के लिए 19 कानून बनाए। सरकार के कामकाज में मदद के लिए  विकास कमेटी, विकास सलाहकार बोर्ड, औद्योगिक सलाहकार बोर्ड, आर्थिक जांच बोर्ड, हथकरघा सलाहकार बोर्ड, खादी व ग्रामोद्योग बोर्ड, पाठ्यपुस्तक राष्ट्रीयकरण सलाहकार बोर्ड, पिछड़ी जाति कल्याण बोर्ड, बेकारी कमेटी, खान सलाहकार कमेटी, विक्टोरिया अस्पताल कमेटी, स्वतंत्रता आंदोलन इतिहास कमेटी और नव सुरक्षित वन जांच कमेटी का गठन किया गया, जिनमें सरकारी व गैर सरकारी व्यक्तियों को शामिल किया गया।
राजस्थान में विलय से पहले अजमेर राज्य से लोकसभा के लिए व राज्यसभा के लिए एक सदस्य चुने जाने की व्यवस्था थी। लोकसभा के लिए अजमेर व नसीराबाद क्षेत्र से श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा और केकड़ी व ब्यावर क्षेत्र से श्री मुकुट बिहारी लाल भार्गव और राज्यसभा के लिए श्री अब्दुल शकूर चुने गए। सन् 1953 में अजमेर राज्य से राज्यसभा के लिए कोई सदस्य नहीं था, जबकि 1954 में श्री करुम्बया चुने गए। अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के साथ ही मंत्रीमंडल व सभी समितियों का अस्तित्व समाप्त हो गया। राजस्व व शिक्षा मंत्री श्री बृजमोहन लाल शर्मा को राजस्थान मंत्रीमंडल में लिया गया।
यहां उल्लेखनीय है कि गृहमंत्री सरदार वल्लभाई पटेल के नीतिगत निर्णय के तहत 11 जून 1956 को श्री सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित राजस्थान केपिटल इन्क्वायरी कमेटी की सिफारिश पर अजमेर के महत्व को बरकरार रखते हुए 1 नवंबर, 1956 को राजस्थान लोक सेवा आयोग का मुख्यालय अजमेर में खोला गया। 4 दिसम्बर 1957 को पारित शिक्षा अधिनियम के तहत माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय अजमेर रखा गया। 22 जुलाई, 1958 को राजस्व मंडल का अजमेर हस्तांतरण किया गया।
अजमेर राज्य विधानसभा के सदस्य, उनके निर्वाचन क्षेत्र और पार्टी
1. श्री अर्जुनदास अजमेर दक्षिण पश्चिम जनसंघ
2. श्री बालकृष्ण कौल अजमेर पूर्व कांग्रेस
3. श्री परसराम अजमेर (सुरक्षित) जनसंघ
4. श्री हरजी लाल अजमेर (सुरक्षित) कांग्रेस
5. श्री रमेशचंद व्यास अजमेर (कालाबाग) कांग्रेस
6. श्री अम्बालाल अजमेर (नया बाजार) जनसंघ
7. श्री भीमनदास अजमेर (टाउन हाल) कांग्रेस
8. श्री सैयद अब्बास अली (ढ़ाई दिन का झौंपड़ा) कांग्रेस
9. श्री बृजमोहन लाल शर्मा ब्यावर (उत्तर) कांग्रेस
10. श्री जगन्नाथ ब्यावर (दक्षिण) कांग्रेस
11. श्री कल्याण सिंह भिनाय जनसंघ
12. श्री शिवनारायण सिंह पुष्कर (उत्तर) कांग्रेस
13. श्री जयनारायण पुष्कर (दक्षिण) कांग्रेस
14. श्री महेन्द्र सिंह पंवार नसीराबाद निर्दलीय
15. श्री लक्ष्मीनारायण नसीराबाद (सुरक्षित) कांग्रेस
16. श्री जेठमल केकड़ी कांग्रेस
17. श्री सेवादास केकड़ी (सुरक्षित) कांग्रेस
18. श्री छगन लाल देवलिया कलां कांग्रेस
19. श्री हिम्मत अली देराठू कांग्रेस
20. श्री किशनलाल लामरोर गगवाना कांग्रेस
21. श्री चिमन सिंह जवाजा निर्दलीय
22. श्री भागीरथ सिंह जेठाना कांग्रेस
23. श्री नारायण जेठाना (सुरक्षित) कांग्रेस
24. श्री सूर्यमल मौर्य मसूदा (सुरक्षित) कांग्रेस
25. श्री नारायण सिंह मसूदा निर्दलीय
26. श्री गणपत सिंह नया नगर जनसंघ
27. श्री लक्ष्मण सिंह सावर निर्दलीय
28. श्री वली मोहम्मद श्यामगढ़ कांग्रेस
29. श्री हरिभाऊ उपाध्याय श्रीनगर कांग्रेस
30. श्री प्रेमसिंह टाटगढ़ कांग्रेस

-तेजवानी गिरधर
7742067000

डॉ. बाहेती ने उठाया अजमेर राज्य का मुद्दा

अलग तेलंगाना राज्य पर यूपीए और कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मुहर लगने के साथ ही 12 और नए राज्यों की मांग तेज होने का अनुमान है। पश्चिम बंगाल को बांट कर अलग गोरखालैंड में तो आंदोलन तेज भी हो गया है, जहां एक युवक ने मंगलवार को आत्मदाह कर लिया। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के प्रमुख बिमल गुरुंग ने चेतावनी दी है कि आने वाले समय में उग्र आंदोलन होगा। वहीं अलग विदर्भ के लिए विलास मुत्तेमवार ने सोनिया गांधी को पत्र लिख दिया है।
 उसी कड़ी में कांग्रेस के पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने भी कमोबेश अलग अजमेर राज्य का मुद्दा उठा दिया है। बुधवार की सुबह जब सारे अखबार अलग तेलंगाना की खबर सुर्खियां पा रही थीं तो दूसरी ओर डॉ. बाहेती की मित्र मंडली के मोबाइलों पर अलग अजमेर राज्य से संबंधित एसएमएस चमक रहा था। उन्होंने सवाल उठाया है कि 1956 में तेलंगाना का विलय आंध्रप्रदेश में हुआ, 1952 में अजमेर का विलय राजस्थान में हुआ, तेलंगाना पुन: स्वतंत्र, अजमेर का क्या? विचारें। इसका सीधा सा अर्थ है कि वे अजमेर राज्य के स्वतंत्र अस्तित्व की बात कह रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि आज जब तेलंगाना चर्चा में है, इस कारण उन्होंने अलग अजमेर राज्य की बात उठाई है, इससे पहले भी वे समय-समय पर यह मुद्दा उठाते रहे हैं। विशेष रूप से तब-तब, जब-जब अजमेर के हितों के साथ खिलवाड़ होता दिखा है। बीसलपुर के पानी के बंटवारे का मसला हो या फिर राजस्व मंडल अथवा राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के विखंडन का, उन्होंने अजमेर के साथ अन्याय होने से दु:खी हो कर यही कहा है कि इससे तो बेहतर है कि हमें अपना अजमेर राज्य अलग से दे दीजिए। इसके पीछे उनका ठोस तर्क भी रहता है कि अजमेर को महत्वपूर्ण राज्य स्तरीय सरकारी विभाग दिए ही इसके राजस्थान में विलय की एवज में गए थे।
आइये, जरा आपको इस मौके पर यह भी बताते चलें कि अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के समय क्या स्थिति थी:-
राजस्थान में विलय से पहले अजमेर राज्य से लोकसभा के लिए व राज्यसभा के लिए एक सदस्य चुने जाने की व्यवस्था थी। लोकसभा के लिए अजमेर व नसीराबाद क्षेत्र से स्वर्गीय श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा और केकड़ी व ब्यावर क्षेत्र से स्वर्गीय श्री मुकुट बिहारी लाल भार्गव और राज्यसभा के लिए स्वर्गीय श्री अब्दुल शकूर चुने गए। सन् 1953 में अजमेर राज्य से राज्यसभा के लिए कोई सदस्य नहीं था, जबकि 1954 में श्री करुम्बया चुने गए। अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के साथ ही मंत्रीमंडल व सभी समितियों का अस्तित्व समाप्त हो गया। राजस्व व शिक्षा मंत्री श्री बृजमोहन लाल शर्मा को राजस्थान मंत्रीमंडल में लिया गया। अजमेर राज्य विधानसभा में कुल तीस सीटें हुआ करती थीं।
यहां उल्लेखनीय है कि गृहमंत्री सरदार वल्लभाई पटेल के नीतिगत निर्णय के तहत 11 जून 1956 को श्री सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित राजस्थान केपिटल इन्क्वायरी कमेटी की सिफारिश पर अजमेर के महत्व को बरकरार रखते हुए 1 नवंबर, 1956 को राजस्थान लोक सेवा आयोग का मुख्यालय अजमेर में खोला गया। 4 दिसम्बर 1957 को पारित शिक्षा अधिनियम के तहत माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय अजमेर रखा गया। साथ ही 22 जुलाई, 1958 को राजस्व मंडल का अजमेर हस्तांतरण किया गया।
थोड़ा सा विस्तार में देखिए- आजादी और अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के बाद राज्य के लिए एक ही राजस्व मंडल की स्थापना नवंबर 1949 में की गई। पूर्व के अलग-अलग राजस्व मंडलों को सम्मिलित कर घोषणा की गई कि सभी प्रकार के राजस्व विवादों में राजस्व मंडल का फैसला सर्वोच्च होगा। खंडीय आयुक्त पद की समाप्ति के उपरांत समस्त अधीनस्थ राजस्व विभाग एवं राजस्व न्यायालय की देखरेख एवं संचालन का भार भी राजस्व मंडल पर ही रखा गया। इसका कार्यालय जयपुर के हवा महल के पिछले भाग में जलेबी चौक में स्थित टाउन हाल, जो कि पहले राजस्थान विधानसभा भवन था, में खोला गया। बाद में इसे राजकीय छात्रावास में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद एमआई रोड पर अजमेरी गेट के बाहर रामनिवास बाग के एक छोर के सामने यादगार भवन में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद इसे जयपुर रेलवे स्टेशन के पास खास कोठी में शिफ्ट किया गया। सन् 1958 में राव कमीशन की सिफारिश पर अजमेर में तोपदड़ा स्कूल के पीछे शिक्षा विभाग के कमरों में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद 26 जनवरी 1959 को जवाहर स्कूल के नए भवन में शिफ्ट किया गया। इसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री मोहनलाल सुखाडिय़ा ने किया।
इसी प्रकार कमेटी की सिफारिश पर अजमेर के महत्व को बरकरार रखते हुए 4 दिसम्बर 1957 को पारित शिक्षा अधिनियम के तहत माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय अजमेर रखा गया। यह प्रदेशभर के सेकंडरी व सीनियर सेकंडरी के छात्रों की परीक्षा आयोजित करता है।
बात अगर लोक सेवा आयोग की करें तो आजादी से पहले देशी रियासतों में प्रशासनिक तथा न्यायिक अधिकारियों के पदों पर रजवाड़ों के अधीन जागीरदार या बड़े पदों पर आसीन अधिकारियों की संतानों को ही लगाने की प्रथा थी। स्वाधीनता प्राप्ति से कुछ ही पहले के सालों में देशी रियासतों में राज्य सेवा में भर्ती के लिए लोक सेवा आयोग अथवा चयन समिति का गठन किया था। सन् 1939 में जोधपुर, 1940 में जयपुर, 1946 में बीकानेर में लोक सेवा आयोग व 1939 में उदयपुर में चयन समिति स्थापित की गई थी। आजादी के बाद देशी रियासतों का एकीकरण किया गया और सभी वर्गों में से स्वतंत्र रूप से योग्य व्यक्तियों के चयन के लिए 16 अगस्त, 1949 को राजस्थान लोक सेवा आयोग का गठन किया गया। तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री सरदार वल्लभाई पटेल के नीतिगत निर्णय के तहत राव की अध्यक्षता में गठित राजस्थान केपिटल इन्क्वायरी कमेटी की सिफारिश पर अजमेर के महत्व को बरकरार रखते हुए राजस्थान लोक सेवा अयोग का मुख्यालय अजमेर में रखा गया। अगस्त, 1958 में इसे अजमेर स्थानांतरित कर दिया गया। पूर्व में यह रवीन्द्र नाथ टैगोर मार्ग पर स्थित भवन में संचालित होता था, जबकि अब यह जयपुर रोड पर घूघरा घाटी के पास स्थित है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले इसका विखंडन कर अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड गठन कर दिया गया, लेकिन कांग्रेस सरकार ने उसे भंग कर दिया गया।
बहरहाल, बात अगर डॉ. बाहेती की करें तो उनके दिल में भी अलग अजमेर राज्य की आग वर्षों से सुलग रही है। अब देखना ये है कि डॉ. बाहेती अन्य राज्यों की तरह अजमेर को अलग राज्य बनाने की मांग को कहां तक आगे ले जाते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000