सोमवार, 24 मार्च 2014

चुनाव लडऩे के लिए कैसे मान गए सांवर लाल जाट?

अजमेर संसदीय क्षेत्र से भाजपा के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरे प्रो. सांवर लाल जाट किन हालात में चुनाव लडऩे को राजी हुए, ये सवाल राजनीतिक हलके में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह सवाल उठना स्वाभाविक भी है क्योंकि वे वर्तमान में राज्य सरकार में जलदाय मंत्री हैं और उन्होंने लोकसभा टिकट की इच्छा जताई भी नहीं थी। अलबत्ता उनके पुत्र रामस्वरूप लांबा की दावेदारी जरूर सामने आई थी। जाहिर सी बात है कि जो नेता अभी काबिना मंत्री हो, वह क्यों कर सांसद बनना चाहेगा। प्रसंगवश आपको बता दें कि परिसीमन के बाद जाटों के वोट दो लाख से ज्यादा हो जाने के बाद उनकी दावेदारी पिछली बार भी काफी प्रबल मानी गई थी, मगर या तो उन्होंने रुचि नहीं दिखाई या फिर पार्टी ने उन्हें उपुयुक्त नहीं माना और भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती किरण माहेश्वरी को चुनाव लड़वाया गया था।
कानाफूसी है कि प्रो. जाट ने चुनाव लडऩा इसी शर्त पर मंजूर किया है कि अगर वे जीतते हैं तो उनकी नसीराबाद सीट पर उनके ही पुत्र लांबा को टिकट दिया जाएगा। शर्त ये भी हो सकती है कि अगर केन्द्र में भाजपा नीत सरकार बनी तो उन्हें भी मंत्री बनने का मौका दिया जाएगा।

27 मार्च को नहीं है अजमेर का स्थापना दिवस

हालांकि आगामी 27 मार्च को नव संवत्सर की प्रतिपदा के दिन सरकारी स्तर पर अजमेर विकास प्राधिकरण की ओर से अजमेर का 902वां स्थापना दिवस समारोह मनाया जा रहा है, मगर इसके अब तक कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं कि अजमेर की स्थापना 902 वर्ष पहले नव संवत्सर की प्रतिपदा को ही हुई थी। आपको याद होगा कि इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हैरिटेज इंटेक के महेंद्र विक्रम सिंह की ओर से आज दो साल पहले यह बताते हुए कि अजमेर की स्थापना चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन 1112 को अजयराज चौहान ने की थी, तत्कालीन कलैक्टर श्रीमती मंजू राजपाल व अन्य अधिकारियों को मैनेज कर लिया और स्थापना दिवस मनाने की क्रम शुरू हुआ था, तब भी मैने यह मुद्दा उठाया था कि पुख्ता सबूत के बिना स्थापना दिवस का दिन घोषित नहीं किया जाना चाहिए। एक बार फिर उसी मुद्दे को जिंदा करते हुए सुझाव है कि इतिहास के जानकारों की आमराय व सबूतों के आधार पर ही अजमेर का स्थापना दिवस मनाया जाना चाहिए।
इस सिलसिले में उल्लेखनीय है कि जब मैंने यह मुद्दा उठाया था तब राजकीय संग्रहालय के तत्कालीन अधीक्षक मरहूम जनाब सैयद आजम हुसैन ने भी माना था कि यह स्थापना दिवस की शुरुआत मात्र है, अजमेर की स्थापना के बारे में अगर कहीं लिखित प्रमाण मिलेंगे तो उन पर अमल करते हुए इस तिथि में फेरबदल कर दिया जाएगा। हिंदू मान्यता के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को नव संवत्सर को आरंभ किया जाता है, इस कारण इस वर्ष नव संवत्सर की प्रतिपदा को समारोह मनाने की परंपरा आरंभ की जा रही है। इसका सीधा सा अर्थ ये है कि अजमेर की स्थापना का दिवस अब तक ज्ञात नहीं है और यूं ही अनुमान के आधार पर यह तिथि तय की गई है।
मैने पहले भी इस कॉलम में लिखा था कि अजमेर की स्थापना दिवस का कुछ अता-पता नहीं है। अब तक एक भी स्थापित इतिहासकार ने इस बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कहा है। अजमेर के इतिहास के बारे में कर्नल टाड की सर्वाधिक मान्य और हरविलास शारदा की सर्वाधिक विश्वसनीय पुस्तक में भी इसका कोई उल्लेख नहीं है। स्थापना दिवस मनाने के इच्छुक भाजपा नेता व नगर निगम के उप महापौर सोमरत्न आर्य व पूर्व उप मंत्री ललित भाटी ने भी खूब माथापच्ची की थी, मगर उन्हें स्थापना दिवस का कहीं प्रमाण नहीं मिला। अजमेर के अन्य सभी मौजूदा इतिहासकार भी प्रमाण के अभाव में यह कहने की स्थिति में नहीं हैं कि अजमेर की स्थापना कब हुई। इतिहासकार शिव शर्मा का मानना है कि स्थापना दिवस के बारे में कहीं कुछ भी अंकित नहीं है। उन्होंने अपनी पुस्तक में अजमेर की ऐतिहासिक तिथियां दी हैं, जिसमें लिखा है कि 640 ई. में अजयराज चौहान (प्रथम) ने अजयमेरू पर सैनिक चौकी स्थापित की एवं दुर्ग का निर्माण शुरू कराया, मगर स्थापना दिवस के बारे में कुछ नहीं कहा है।
मैने तब भी सवाल उठाए थे कि क्या इस मामले में जिला कलैक्टर श्रीमती मंजू राजपाल को अंधेरे में रख कर उनसे अजमेर का स्थापना दिवस घोषित कर लिया गया? क्या उन्हें यह जानकारी दी गई कि पुख्ता प्रमाण तो नहीं हैं, मगर फिलहाल शुरुआत तो की जाए, बाद में प्रमाण मिलने पर फेरबदल कर लिया जाएगा? क्या प्रस्ताव इस रूप में पेश किया जाता तो जिला कलेक्टर उसे सिरे से ही खारिज कर देतीं? लगता है कहीं न कहीं गडबड़ है। बेहतर तो ये होता कि जिला कलेक्टर इससे पहले बाकायदा अजमेर के इतिहासकारों की बैठक आधिकारिक तौर पर बुलातीं और उसमें तय किया जाता, तब कम से कम इतिहासकारों का सम्मान भी रह जाता और विवाद भी नहीं होता।
जिला कलेक्टर की घोषणा के वक्त ही शहर के बुद्धिजीवियों में चर्चा हो गई थी कि आखिर उन्होंने किस आधार पर यह मान लिया कि अजमेर की स्थापना नव संवत्सर की प्रतिपदा को हुई थी। मैने इसी कॉलम में सवाल उठाये थे कि क्या जिला कलैक्टर ने संस्था और सिंह के प्रस्ताव पर इतिहासकारों की राय ली है? यदि नहीं तो उन्होंने अकेले यह तय कैसे कर दिया? क्या ऐतिहासिक तिथि के बारे में महज एक संस्था के प्रस्ताव को इस प्रकार मान लेना जायज है? संस्था के प्रस्ताव आने के बाद संबंधित पक्षों के विचार आमंत्रित क्यों नहीं किए गए, ताकि सर्वसम्मति से फैसला किया जाता।
-तेजवानी गिरधर
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