शुक्रवार, 16 मई 2014

देखिए, किस विधायक का रहा कैसा परफोरमेंस

क्या देवनानी को मिलेगा सर्वाधिक बढ़त हासिल करने का फायदा?
अब जब कि अजमेर संसदीय क्षेत्र के चुनाव परिणाम के विस्तृत आंकड़े आ चुके हैं, तो यह सवाल उठता है कि क्या अपने अजमेर उत्तर क्षेत्र में भाजपा को सर्वाधिक बढ़त दिलवाने वाले विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी को उसका फायदा मिलेगा?
ज्ञात रहे कि राज्य मंत्रीमंडल में जगह पाने के लिए संसदीय क्षेत्र के विधायकों में अधिक से अधिक बढ़त दिलवाने की प्रतिस्पद्र्धा रही, विशेष रूप से लगातार तीन बार जीते अजमेर उत्तर के प्रो. वासुदेव देवनानी व अजमेर दक्षिण की श्रीमती अनिता भदेल के बीच। अन्य विधायकों में पुष्कर के सुरेश रावत, मसूदा की श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा, केकड़ी के शत्रुघ्न गौतम, दूदू के डॉ. प्रेमचंद बैरवा पहली बार विधायक बने हैं, इस कारण इनका दावा कुछ कमजोर है। हां, अलबत्ता किशनगढ़ के भागीरथ चौधरी जरूर गंभीर दावेदार हो सकते हैं, जो कि दो बार जीते हैं। जाट कोटे से केबीनेट मंत्री बने प्रो. सांवरलाल जाट के सांसद बनने के बाद इसी कोटे में वे दावा कर सकते हैं। किशनगढ़ में उन्होंने भाजपा को 32 हजार 984 की बढ़त भी दिलवाई है। विधानसभा क्षेत्र किशनगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के सांवर लाल जाट को 99 हजार 685 मत मिले, जबकि कांगे्रस के सचिन पायलट को 66 हजार 701 मत मिले। चौधरी के लिए यह बात जरूर बाधा बनेगी कि क्या भाजपा जाट कोटे से प्रो. जाट को केन्द्र में मंत्री बनवाने के बाद उसी कोटे से चौधरी को राज्य मंत्रीमंडल में स्थान देगी?
बात अगर अजमेर उत्तर की करें तो यहां भारतीय जनता पार्टी के सांवर लाल जाट को 79 हजार 243 मत मिले, जबकि कांगे्रस के सचिन पायलट को 43 हजार 465 मत मिले। अर्थात मतांतर 35 हजार 778 का हुआ, जो कि संसदीय क्षेत्र में सर्वाधिक है। यहां आपको बता दें कि विधानसभा चुनाव में खुद ने 20 हजार 479 मतों की बढ़त हासिल की थी। देवनानी को 68 हजार 461 मत मिले, जबकि कांग्रेस के डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को 47 हजार 982 मत मिले। ऐसे में लोकसभा चुनाव में मिली बढ़त उल्लेखनीय है। बेशक यह मोदी लहर का ही असर है, मगर इसी आधार पर यहां के विधायक प्रो. देवनानी का दावा मजबूत होता है। मगर उनके साथ दिक्कत ये है कि इस बार सिंधी जाति के श्रीचंद कृपलानी व ज्ञानदेव आहूजा भी जीत कर आए हैं, जो वसुंधरा के लिए विकल्प उपलब्ध करवा रहे हैं।
अजमेर दक्षिण की बात करें तो यहां भी मतांतर विधानसभा चुनाव की तुलना में बढ़ा है। लोकसभा चुनाव में अजमेर दक्षिण में सांवर लाल जाट को 77 हजार 236 मत मिले, जबकि सचिन पायलट को 48 हजार 476 मत मिले। अर्थात मतांतर 28 हजार 760 रहा। विधानसभा चुनाव में अनिता भदेल ने कांग्रेस के हेमन्त भाटी को 23 हजार 158 मतों से हराया था। अनिता भदेल को 70 हजार 509 मत मिले, जबकि हेमन्त भाटी को 47 हजार 351 मत मिले थे। यानि कि यहां भाजपा की लीड 5 हजार 602 बढ़ी है। यानि कि श्रीमती भदेल की परफोरमेंस में भी उल्लेखनीय इजाफा हुआ है। इस नाते उनका मंत्री पद का दावा मजबूत हुआ है। कहने की जरूरत नहीं है कि वे लगातार तीन बार जीतने के अतिरिक्त अनुसूचित जाति की महिला होने के नाते मंत्री पद की प्रबल दावेदार हैं। उनका प्लस पाइंट ये भी है कि स्थानीय भाजपाइयों का बड़ा धड़ा उनके साथ है।
लगे हाथ आपको बता दें कि विधानसभा क्षेत्र पुष्कर में सांवर लाल जाट को 75 हजार 852 मत मिले, जबकि सचिन पायलट को 62 हजार 707 मत मिले। यानि मतांतर 13 हजार 145 रहा। विधानसभा चुनाव में भाजपा के सुरेश रावत ने कांग्रेस की नसीम अख्तर इंसाफ को 41 हजार 290 मतों से हराया था। सुरेश रावत को 90 हजार 13 वोट मिले, जबकि नसीम को 48 हजार 723 मत। यहां मतांतर कम होने की वजह कदाचित श्रवण सिंह रावत बने, जो कि पायलट के करीबी हैं। विधानसभा चुनावों में समधी सुरेश रावत के मैदान में होने के कारण कांग्रेस का साथ नहीं दिया था।
खुद सांवरलाल जाट के विधानसभा क्षेत्र नसीराबाद  में उन्हें 72 हजार 482 मत मिले, जबकि सचिन पायलट को 61 हजार 490 मत मिले। मतांतर 10 हजार 992 रहा। चौंकाने वाला तथ्य ये कि विधानसभा चुनाव में उन्होंने 28 हजार 900 मतों की बढ़त हासिल की थी। सांवर लाल को 84 हजार 953 मत मिले, जबकि महेन्द्र सिंह गुर्जर को 56 हजार 53 मत मिले थे। यानि कि खुद के ही विधानसभा क्षेत्र में वे पिछली बार की तुलना में पिछड़ गए।
विधानसभा क्षेत्र मसूदा में सांवर लाल जाट को 79 हजार 27 मत मिले, जबकि सचिन पायलट को 70 हजार 59 मत मिले। मतांतर 8968 रहा। विधानसभा चुनाव में भाजपा की सुशील कंवर पलाड़ा ने कांग्रेस के ब्रह्मदेव कुमावत को 4475 मतों से पराजित किया था। सुशील कंवर पलाड़ा को 34 हजार 11  मत मिले, जबकि कुमावत को 29 हजार 536 मत मिले थे। हालांकि यहां चुनाव बहुकोणीय था। बसपा के गोविन्द को 2098, निर्दलीय नवीन शर्मा को 22 हजार 186, निर्दलीय भंवर लाल बूला को 8433, कांग्रेस के बागी निर्दलीय रामचन्द्र चौधरी को 28447, निर्दलीय वाजिद चीता को 20690, निर्दलीय शान्ति लाल को 10622 मत मिले।
विधानसभा क्षेत्र केकड़ी में सांवर लाल जाट को 73 हजार 270 मत मिले, जबकि सचिन पायलट को 59 हजार 407 मत मिले। मतांतर 13 हजार 863 का रहा। विधानसभा चुनाव में भाजपा के शत्रुघ्न गौतम ने कांग्रेस के डॉ. रघु शर्मा को 8 हजार 867 मतों से हराया था। अर्थात मतांतर बढ़ा है,  इसकी वजह ये रही होगी कि विधानसभा चुनाव में एनसीपी के बैनर पर लड़े कांग्रेस के बागी पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां पिछले दिनों भाजपा में शामिल हो गए। उन्हें 17 हजार 35 मिले थे। हांलाकि वे उतने ही वोटों का इजाफा तो नहीं दिलवा पाए, मगर उनकी वजह से भाजपा को मिले फायदे के चलते उनका कद बढ़ेगाद्ध
इसी प्रकार विधानसभा क्षेत्र दूदू में सांवर लाल जाट को 79 हजार 195 मत मिले, जबकि सचिन पायलट को 52 हजार 767 मत मिले। मतांतर 26 हजार 428 का रहा।
-तेजवानी गिरधर

क्या एनसीपी के सांवरलाल को मिला नाम का फायदा?

अजमेर संसदीय क्षेत्र के चुनाव में जिस प्रकार नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार सांवरलाल को 12 हजार 149 वोट मिले हैं, उस पर कानाफूसी  है कि कहीं उन्हें अपने नाम का तो फायदा नहीं मिला, क्योंकि उनका नाम ईवीएम मशीन पर भाजपा के प्रो. सांवरलाल जाट के ठीक नीचे था?
ज्ञातव्य है कि अजमेर में मुख्य मुकाबला कांग्रेस व भाजपा के बीच ही था। हालांकि अन्य राष्ट्रीय दल भी मैदान में थे, मगर उनका अजमेर संसदीय क्षेत्र में कोई खास असर नहीं माना जाता, ऐसे में सांवरलाल को 12 हजार से ज्यादा वोट मिलना चौंकाता तो है ही। जहां तक बहुजन समाज पार्टी का सवाल है, उसको चाहने वाले जरूर कुछ संख्या में हैं, इसी कारण इस पार्टी के प्रत्याशी जगदीश को 7 हजार 974 वोट मिलना गले उतरता है, मगर नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का न तो यहां कोई असर है और न ही सांवरलाल कोई जाना पहचाना नाम है, फिर भला उन्हें 12 हजार 149 वोट कैसे मिल गए? यहां बता दें कि अखिल भारत हिन्दू महासभा के मुकुल मिश्रा को एक हजार 869, अखिल भारतीय आमजन पार्टी के रामलाल को 1 हजार 40,  निर्दलीय अनिता जैन को 910, कृष्ण कुमार दाधीच को 1 हजार 15, जगदीश सिंह रावत को 1 हजार 374, नारायण दास सिंधी को 3 हजार 518, भंवर लाल सोनी को 4 हजार 970 तथा निर्दलीय सुरेन्द्र कुमार जैन को 5 हजार 184 मत मिले। इन सब में से सांवरलाल ही ऐसे हैं, जिनको सबसे ज्यादा वोट हासिल हुए हैं। ऐसे में यह कानाफूसी होना लाजिमी है कि कहीं प्रो. सांवरलाल जाट के नाम के ठीक नीचे सांवरलाल का नाम होने के कारण मतदाता को कन्फ्यूजन तो नहीं हुआ? ये तो गनीमत रही कि प्रो. जाट मोदी लहर पर सवार होने के कारण एक लाख 71 हजार 983 वोटों से जीते हैं, अगर मतांतर कम होता तो सांवरलाल को मिले वोट उनके लिए दिक्कत पैदा कर सकते थे।
-तेजवानी गिरधर

हारने के बाद सचिन पायलट की भूमिका क्या होगी?

अजमेर संसदीय क्षेत्र से हारने के साथ प्रदेश की सभी 25 सीटों पर कांग्रेस की करारी हार के बाद अब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की क्या भूमिका रहेगी? क्या उन्हीं के नेतृत्व में प्रदेश की कांग्रेस को नया अध्याय शुरू करने का मौका मिलेगा या फिर किसी और वरिष्ठ नेता को यह जिम्मेदारी दी जाएगी? क्या इस हार के लिए सीधे तौर पर सचिन को ही जिम्मेदार माना जाएगा कि वे अपेक्षा पर खरे नहीं उतरे?
हालांकि सचिन विरोधियों का यही मानना है कि अब ये जिम्मेदारी उनसे ले ली जाएगी क्योंकि वे अपनी सीट तक नहीं बचा पाए, मगर सचिन समर्थकों का तर्क ये है कि इस करारी हार के लिए सचिन अकेले जिम्मेदार नहीं हैं क्योंकि उन्हें जिस हालत में कांग्रेस संगठन का काम सौंपा गया और चंद माह बाद ही लोकसभा चुनाव थे, इस कारण उनसे बेहतर परिणाम की अपेक्षा करना बेमानी है। उन्हें इतना भी वक्त नहीं मिला कि अपनी नई टीम गठित कर पाते, ऐसे में पुरानी टीम, जो कि कहीं न कहीं अन्य वरिष्ठ नेताओं के इशारों पर चल रही थी, ने सहयोग नहीं किया और विधानसभा चुनाव जैसे ही परिणाम सामने आ गए। एक तर्क ये भी है कि राजस्थान ही क्या, पूरे देश में ही कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया है, ऐसे कांग्रेस विरोधी माहौल में वे कर भी क्या सकते थे। अत: उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहरा कर कांग्रेस में जान फूंकने का मौका मिलना ही चाहिए। उनके तर्क में दम है। सचिन को हटाया जाना इस कारण भी गले नहीं उतरता क्योंकि वे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी हैं और बहुत सोच विचार ही उन्हें जिम्मा सौंपा गया था। सचिन समर्थक तो यहां तक कहते हैं कि असल में राहुल गांधी ने सचिन को जिम्मेदारी यह सोचते हुए दी थी कि राजस्थान में करारी हार के बाद चेहरा बदलना जरूरी था, ताकि कुछ तो असर पड़े। उनसे बहुत अपेक्षा की भी नहीं गई थी। मगर दूसरी ओर समझा ये जाता है कि चूंकि पूरे देश में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है, ऐसे में संभव है कांग्रेस हाईकमान नए सिरे से सारे पत्ते फैंटे, संगठन में आमूलचूल परवर्तन किया जाए, केन्द्रीय कार्यकारिणी में नए चेहरे लाए जाएं और प्रदेशों में भी व्यापक परिवर्तन हो। ऐसे में यह भी हो सकता है कि राजस्थान के बारे में भी नए सिरे से विचार किया जाए।
-तेजवानी गिरधर

क्या अजमेर के भी अच्छे दिन आएंगे?

देश भर में चली मोदी सुनामी लहर के चलते अजमेर सहित राजस्थान की सभी सीटों पर भाजपा की जीत के बाद अच्छे दिन आने वाले हैं का नारा अजमेर में भी फलित होगा, इस पर हर अजमेर वासी की नजर है। समझा जा सकता है कि अजमेर के अच्छे दिन तभी आ सकते हैं, जबकि भाजपा के बैनर तले जीते राज्य के जलदाय मंत्री सांवरलाल जाट को केन्द्र में मंत्री पद हासिल हो। ज्ञातव्य है कि जाट से पराजित कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष व निवर्तमान सांसद सचिन पायलट पहले ऐसे सांसद थे, जिन्होंने आजादी के बाद पहली बार केन्द्रीय मंत्रीमंडल में अजमेर का प्रतिनिधित्व किया। इससे पांच बार सांसद बने प्रो. रासासिंह रावत के उपलब्धिशून्य  कार्यकाल से निराश आमजन में उम्मीदें जागीं और सचिन उन पर खरे भी उतरे। ये उनके ही प्रयासों का फल है कि अजमेर में हवाई अड्डे के निर्माण में आ रही सारी बाधाएं दूर हो गईं व अब निर्माण कार्य प्रगति पर है। उन्होंने केन्द्रीय विश्वविद्यालय आरंभ करवाया। अनेक नई ट्रेनें शुरू करवाईं। अजमेर के इतिहास में पहला मेगा मेडिकल कैंप आयोजित करवाया। उनकी इन उपलब्धियों को भाजपाई भी स्वीकार करते हैं।
खैर, अब जब कि केन्द्र में भाजपा अपने दम पर सरकार बनाने जा रही है और प्रदेश में भी प्रचंड बहुमत वाली भाजपा सरकार है, यह उम्मीद की जा रही है कि पायलट को हराने वाले मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के खास सिपहसालार प्रो. जाट को केन्द्र में मंत्री बनने का मौका मिलेगा। उनके नाम की चर्चा एक्जिट पोल सर्वे के साथ ही शुरू हो गई थी। जब उन्हें राज्य का केबीनेट मंत्री होने के बावजूद लोकसभा चुनाव लडऩे भेजा गया तो भी यही अनुमान था कि वे इसी शर्त पर तैयार हुए होंगे कि अगर वे जीते और केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें मंत्री बनवाया जाएगा, एक आम सांसद बने रहने का तो कोई भी मतलब नहीं। यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि प्रो. रासासिंह रावत इस कारण मंत्री नहीं बन पाए थे क्योंकि या तो केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी या फिर भाजपा नीत गठबंधन की सरकार थी तो उसमें भाजपा को अन्य दलों को मौका देना पड़ा और रावत वंचित रह गए।  बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पहल पर प्रो. जाट को मंत्री बनने का मौका  मिलेगा ताकि अजमेर के भी अच्छे दिन आएं।
-तेजवानी गिरधर