बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

गनीमत है कि पीडि़ता के साथ जयपाल हैं


पत्रकारों से बात करती पीडित छात्रा
पत्रकारों से बात करती पीडित छात्रा
ये गनीमत है कि भगवंत यूनिवर्सिटी के चेयरमैन अनिल सिंह ने कथित रूप से जिस छात्रा के साथ दुराचार का प्रयास किया, उसने स्थानीय स्तर पर पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल का सहारा ले लिया, वरना उसे कभी का चुप करवा दिया जाता।
अनिल सिंह कितने ताकतवर हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि उन्होंने मामले से बचने के लिए कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी। यह अलग बात है कि कोई चारा नहीं बचने पर आखिर सरंडर कर दिया, मगर इससे पहले लंबे समय तक अंडरग्राउंड बने रहे। सिंह के हाथ लंबे होने का संकेत इस बात से भी मिलता है कि मामला मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जानकारी में आने बाद भी पुलिस खुद उनको पकड़ नहीं पाई। वे आर्थिक रूप से कितने संपन्न हैं, इसका अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि उनकी ओर से छात्रा से कथित रूप से मिले लेक्चरर आशीष कुलश्रेष्ठ ने मामला रफा-दफा करने की एवज में एक करोड़ रुपए तक की पेशकश की। इतना ही नहीं अजमेर आना नहीं चाहे तो बाकी के सभी पेपर घर बैठ कर दिलाने की व्यवस्था करने व विदेश में नौकरी भी दिलवाने तक का चुग्गा डाला। साथ ही वे कितने बाहुबली हैं, इसका संकेत इसी बात से लगता है कि उनकी ओर से छात्रा को बात न मानने पर कथित रूप से जान से मारने की धमकी के एसएमएस व ईमेल किए गए। इतने दबाव में कोई भी लड़की या तो लालच में आ जाती या फिर डर कर सरंडर हो जाती, मगर चूंकि पीडि़त छात्रा ने डॉ. जयपाल का आश्रय लिया, इस कारण उसके मन में तनिक भी डर नहीं समाया। गलती से किसी और का सहारा लेती तो वह अनिल सिंह के बाहुबल व धनबल के आगे कदाचित पीछे हट जाता।
प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद डा जयपाल, रमेश सेनानी, कुलदीप कपूर व अन्य
प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद डा जयपाल, रमेश सेनानी, कुलदीप कपूर व अन्य
यहां उल्लेखनीय है कि भगवंत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. वी. के. शर्मा ने छात्रा की फीस माफ न करने पर झूठे मुकदमे में फंसाने और जयपाल व अनिल सिंह के बीच किसी जमीन विवाद की ओर इशारा किया था। अगर उनकी बात सही मान भी ली जाए तो भी ये स्पष्ट है कि अनिल सिंह से टक्कर लेने का माद्दा डॉ. जयपाल में ही है, चाहे निजी मकसद की वजह से ही सही। छात्रा के साथ डॉ. जयपाल नहीं होते तो अनिल सिंह कभी के मामले को सैट कर लेते।
ज्ञातव्य है कि अनिल सिंह को कोर्ट के आदेश पर पंद्रह दिन तक न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया है। सिंह ने एडीजे संख्या-5 महेंद्र सिंह के समक्ष समर्पण कर दिया था। बाद में उसे कार्यवाहक न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या-3 की अदालत में पेश कर एक दिन के रिमांड पर क्रिश्चियन गंज थाना पुलिस को सौंप दिया गया था।
-तेजवानी गिरधर

गोरान को दी गई क्लीन चिट अभी अधूरी है

dr. habib khan goran 2पुलिस थानों से मंथली लेने के मामले में गिरफ्तार अजमेर के एसपी राजेश मीणा ने यह कह कर कि दलाल रामदेव ठठेरा थैला लेकर राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष हबीब खान गोरान के घर भी गया था, उन पर संदेह की सुई इंगित करने की कोशिश की, मगर एसीबी के कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह ने गोरान को यह कह कर क्लीन चिट दे दी कि उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला है। बात बिलकुल ठीक है। जब साक्ष्य मिला ही नहीं तो कार्यवाही होती भी क्या, मगर ठठेरा का गोरान के घर जाने का खुलासा ही अपने आप में कई सवाल खड़े करता है।
अव्वल तो जब गोरान के घर पर ठठेरा के जाने को यदि सामान्य मुलाकात ही माना गया है, तो एसीबी को जरूरत ही क्या पड़ी कि उसने प्राथमिकी में इसका जिक्र किया। जब गोरान व ठठेरा के बीच कुछ गलत हुआ ही नहीं तो उसका जिक्र करना ही नहीं चाहिए था। चलो, एससीबी की इस बात को मान लेते हैं कि उनको गोरान के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला है, मगर क्या इतना कहने भर से बात समाप्त हो जाती है। बेहतर ये होता कि वे इस बारे में ठठेरा ने क्या स्पष्टीकरण दिया, इसका खुलासा करते, ताकि उनकी बात पर यकीन होता। फरार आरपीएस लोकेश सोनवाल के घर निकलते समय वह बैग लेकर गोरान के घर गया और बाहर निकला तो बैग उसके हाथ में नहीं था, तो सवाल ये उठता है कि उस बैग में क्या था? क्या उसने आगरा गेट सब्जीमंडी से सब्जी खरीद कर गोरान के घर पहुंचाई थी? इसके अतिरिक्त अजीत सिंह ने यह भी नहीं बताया कि क्या उन्होंने इस बारे में गोरान से भी कोई पूछताछ की थी? यदि पूछताछ की थी तो उन्होंने ठठेरा के आने की क्या वजह बताई? अजीत सिंह की यह बात यकीन करने लायक है कि मंथली प्रकरण में गोरान की कोई लिप्तता नहीं पाई गई है, मगर एसपी मीणा को मंथली देने जाते समय बीच में उसका गोरान के घर थैला लेकर जाना संदेह तो पैदा करता ही है।
बेशक अजीत सिंह ने अपनी ओर से गोरान को क्लीन चिट दे कर एक अध्याय समाप्त करने की कोशिश की है, वरना आयोग अध्यक्ष जैसे बड़े संवैधानिक पद व आयोग जैसी बड़ी संस्था की कार्यप्रणाली पर संदेह बना ही रहता। मगर इस प्रकरण में उठ रहे चंद सवालों का भी खुलासा होना चाहिए, ताकि एसीबी की तरह आम जनता की ओर से भी गोरान को पूरी क्लीन चिट मिल जाए।
-तेजवानी गिरधर

श्रीवास्तव जी, कई चुनौतियां हैं आपके सामने

gaurav shrivastav 1भ्रष्टाचार के मामले में दो आईपीएस अधिकारियों की गिरफ्तारी और एक आरपीएस अधिकारी की फरारी के चलते हतोत्साहित अजमेर जिला पुलिस के नए कप्तान गौरव श्रीवास्तव भले ही यह कह कर कि पूर्व के मामलों पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे, विवाद से बचने की कोशिश करें, मगर जनता में पुलिस के प्रति जो विश्वास डगमगाया है, उसे कायम करना उनके लिए बेहद जरूरी होगा। बेशक ये बहुत मुश्किल काम है, मगर श्रीवास्तव को रूटीन के अपराध से निपटने के अलावा कुछ ऐसा कर दिखाना होगा, जिससे यह लगे कि पुलिस फिर से मुस्तैद हो गई है। हालांकि पूरे भ्रष्ट तंत्र के चलते अकेले पुलिस को भ्रष्टाचार से मुक्त करना नितांत असंभव है, मगर श्रीवास्तव को कुछ ऐसा करना होगा, जिससे आम जनता को लगे कि पीडि़त की वाकई सुनवाई होती है और अपराधी पुलिस से खौफ खाने लगे हैं। पदभार संभालने के साथ ही उनका यह कथन कि वे एक कप्तान के रूप में ईमानदारी की मिसाल पेश करेंगे, इसे वास्तव में चरितार्थ करना श्रीवास्तव की अहम जिम्मेदारी होगी।
पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार से हट कर बात करें तो भी नए पुलिस कप्तान श्रीवास्तव के सामने अनेक चुनौतियां मुंह बाये खड़ी हैं। सबसे बड़ी जिम्मेदारी है विश्वविख्यात तीर्थ स्थल पुष्कर व दरगाह शरीफ की सुरक्षा की। वो इसलिए क्योंकि आमतौर पर पाया गया है कि दावे भले ही कुछ भी किए जाएं, मगर कई बार ऐसा साफ दिखाई देता है कि इनकी सुरक्षा रामभरोसे ही चलती है। पुलिस ने कई बार बाहर से आने वाले लोगों पर निगरानी के लिए गेस्ट हाउसों में आईडी प्रूफ की अनिवार्यता पर जोर दिया है, मगर आए दिन बिना आईडी प्रूफ के लोगों के ठहरने के एकाधिक मामले प्रकाश में आ चुके हैं। आम लोगों की छोडिय़े, बेंगलुरू सीरियल बम ब्लास्ट के मास्टर माइंड व इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकी उमर फारुख सहित कई अन्य संदिग्धों के बिना पहचान पत्र के ठहरने के सनसनीखेज खुलासे हो चुके हैं। पुलिस के चौकन्ने होने पर तब सबसे बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ था, जब मुंबई ब्लास्ट का मास्टर माइंड व देश में आतंकी हमले करने का षड्यंत्र रचने का आरोपी डेविड कॉलमेन हेडली बड़ी चतुराई से पुष्कर में रेकी कर गया, मगर पुलिस को हवा तक नहीं लगी। इसके अतिरिक्त दरगाह में बम विस्फोट भी पुलिस की नाकामी का ज्वलंत नमूना है।
श्रीवास्तव के लिए एक बड़ी चुनौती अजमेर-पुष्कर के मादक पदार्थों का ट्रांजिट सेंटर होना है। हालांकि बरामदगी भी होती रहती है, लेकिन हरियाणा मार्का की शराब का लगातार अजमेर में आना साबित करता है कि कहीं न कहीं मिलीभगत है। जिले में अवैध कच्ची शराब को बनाने और उसकी बिक्री की क्या हालत है और इसमें पुलिस की भी मिलीभगत होने का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि शराब तस्करों को छापों से पूर्व जानकारी देने की शिकायत के आधार पर दो पुलिस कर्मियों को लाइन हाजिर करना पड़ा।
पुलिस की नाकामी के खाते में पिछले कुछ सालों में हुए कई सनसनीखेज हत्याकांड भी शामिल हैं, जिनका आज तक राजफाश नहीं हो पाया है। आशा व सपना हत्याकांड जैसे कुछ कांड तो भूले-बिसरे हो गए हैं, जिन्हें पुलिस ने अपनी अनुसंधान सूची से ही निकाल दिया है। अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि जेल में बंद होने के बाद भी वे अपनी गेंगें संचालित करते हैं। पूर्व एसपी हरिप्रसाद शर्मा ने तो यह तक स्वीकार किया कि जेल में कैद अनेक अपराधी वहीं से अपनी गेंग का संचालन करते हुए प्रदेशभर में अपराध कारित करवा रहे हैं और इसके लिए बाकायदा जेल से ही मोबाइल का उपयोग करते हैं। न्यायाधीश कमल कुमार बागची ने जेल में व्याप्त अनियमितताओं पर तो टिप्पणी ही कर दी कि अजमेर सेंट्रल जेल का नाम बदल कर केन्द्रीय अपराध षड्यंत्रालय रख दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
पिछले कुछ सालों में चैन स्नेचिंग के मामले तो इस कदर बढ़े हैं, महिलाएं अपने आपको पूरी तरह से असुरक्षित महसूस करने लगी हैं। वाहन चोरी की वारदातें भी लगातार बढ़ती जा रही हैं। रहा सवाल जुए-सट्टे का तो वह पुलिस थानों की नाक के नीचे धड़ल्ले से चल रहा है। इसी प्रकार नकली पुलिस कर्मी बन कर ठगने के मामले असली पुलिस को चिढ़ा रहे हैं। रहा सवाल चोरियों का तो उसका रिकार्ड रखना ही पुलिस के लिए कठिन हो गया है। अब तो केवल बड़ी-बड़ी चोरियों का जिक्र होता है।
कुल मिला कर नए एसपी गौरव श्रीवास्तव के लिए अनेक चुनौतियां हैं, देखते हैं वे उनसे कैसे पार पाते हैं।
-तेजवानी गिरधर