रविवार, 2 सितंबर 2012

शर्मा का बोया हुआ हबीब खान को काटना होगा

रिटायर्ड आईपीएस हबीब खान के लिए राजस्थान लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बनना बेशक अत्यंत प्रतिष्ठापूर्ण है, मगर यह पद उतना ही चुनौतिपूर्ण और कांटों भरा भी है, क्योंकि हाल ही सेवानिवृत्त हुए प्रो. बी एम शर्मा उनके लिए ऐसी समस्याएं छोड़ गए हैं, जिनसे आयोग की प्रतिष्ठा धूमिल होती जा रही है।
हालांकि प्रो. शर्मा ने सेवानिवृत्त होते वक्त मीडिया के सामने बाकायदा अपनी उपलब्धियां गिनवाईं, मगर संभवत: सच यह है कि उनके कार्यकाल में प्रश्नपत्रों के जितने मामले कोर्ट में गए, उतने कभी नहीं गए। 1 जुलाई 2011 से 31 अगस्त 2012 तक के छोटे से कार्यकाल में आयोग की प्रतिष्ठा और गिरी। आरजेएस व एपीपी जैसी महत्वपूर्ण परीक्षा के मामले कोर्ट में गए, जो कि एक बहुत ही गंभीर बात है। इसके अतिरिक्त आरएएस, लेखाकार-कनिष्ठ लेखाकार, पीआरओ, एपीआरओ आदि की परीक्षाओं में प्रश्नपत्रों में अनेक आपत्तियां आईं। आरएएस प्री का भौतिकी विषय का प्रश्न पत्र तो आयोग को दोबारा ही करना पड़ गया। आरजेएस की 21 दिसम्बर 2011 को हुई परीक्षा में 26 प्रश्नपत्रों पर आपत्तियां थीं, जिनमें से 14 को तो आयोग ने भी माना। इतना ही नहीं हबीब खान के कार्यभार संभालने के ठीक दूसरे ही दिन आयुर्वेद विभाग में विवेचक पदों पर भर्ती के लिए ली गई संवीक्षा परीक्षा पर भी सवालिया निशान लग गया। अभ्यर्थियों ने प्रश्न-पत्र के 120 सवालों में से 46 प्रश्नों में गड़बड़ी की शिकायत की है। अब आयोग प्रबंधन उत्तर कुंजी जारी कर अभ्यर्थियों से आपत्तियां मांगेगा। इसके बाद ही इन सवालों के संबंध में निर्णय लिया जा सकेगा।
कुल मिला कर अभ्यर्थियों की इस प्रकार की नियमित शिकायतों से आयोग की पूरी कार्यप्रणाली पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है। आयोग भले ही इसके लिए प्रश्न पत्र बनाने वाले को दोषी बताए, मगर जिम्मेदारी तो आयोग की है। और इस जिम्मेदारी नए अध्यक्ष हबीब खान को निपटना होगा।
प्रो. शर्मा जाते-जाते आगाह कर गए कि आयोग के सिस्टम के बारे में अनेक अफवाहें चलती हैं, जिनसे अभ्यर्थियों को बचना होगा। जाहिर है कि आयोग के अंदरखाने से ही इस प्रकार की अफवाहें उठती हैं, जिनको रोकना भी हबीब खान के लिए बहुत मुश्किल काम है।
ये तो हुआ आयोग की कार्यप्रणाली से जुड़ी चुनौती, मगर जिस तरह से उनकी नियुक्ति को लेकर मीडिया में जानकारियां आई हैं, उन पर इस संवैधानिक पद की गरिमा बनाए रखने की महती जिम्मेदारी भी आ गई है। मीडिया का आकलन है कि सरकार ने उनकी नियुक्ति कांग्रेस विचारधारा के अनुकूल होने के कारण की है। अर्थात पद संभालते ही उन पर कांग्रेसी पृष्ठभूमि का ठप्पा लग गया है। ऐसे में निष्पक्ष बने रहना एक अहम जिम्मेदारी है। चूंकि अभी उनकी आयु करीब 56 वर्ष है, इस कारण आयोग में उन्हें पूरे छह साल तक काम करने का मौका मिलेगा। अगर अगली सरकार कांग्रेस की हुई तो अलबत्ता ज्यादा परेशानी नहीं आएगी, लेकिन भाजपा की सरकार आई तो उससे तालमेल बैठाना कुछ कठिन होगा। हालांकि आयोग का अध्यक्ष पद संवैधानिक है, इस कारण उन्हें हटाया तो नहीं जा सकेगा, मगर भाजपा सरकार उन्हें परेशान तो कर ही सकती है।
हबीब खान के लिए एक और जिम्मेदारी ये भी आ पड़ी है कि वे अपने ऊपर समाज विशेष का होने की धारणा के चलते ऐसी गतिविधियों से बचें, जो कि उनको समाज विशेष से जोड़ती हैं, ताकि उनकी निष्पक्षता बरकरार रहे। जैसे ही उनकी नियुक्ति हुई, समाज विशेष ने उनका विशेष इस्तकबाल किया, जो कि स्वाभाविक रूप वे किसी भी समाज के लिए गौरव की ही बात है, मगर हबीब खान के लिए यह उतनी ही दिक्कत वाली बात। यूं वे काफी सुलझे हुए अधिकारी माने जाते रहे हैं और उन पर कोई दाग नहीं है, मगर चूंकि आयोग अध्यक्ष पर लाखों निगाहें होती हैं, इस कारण उन्हें उतना ही बच कर चलना होगा।
-तेजवानी गिरधर