सोमवार, 3 जून 2013

एसपी श्रीवास्तव भी रहे नकारा, अजमेर फोरम के प्रयासों पर फिरा पानी

जब अजमेर के पुलिस बेड़े की कमान कड़क कहे जाने वाले गौरव श्रीवास्तव ने संभाली थी तो उन्होंने कहा था कि वे ईमानदारी की मिसाल पेश करेंगे, मगर उनका यह बयान आज उनको ही चिढ़ा रहा है। उनके कार्यभार संभालने को तीन माह से भी अधिक हो गया है, मगर निचले स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार की जद में शहर हृदयस्थल मदारगेट बेतरतीब यातायात व अस्थाई अतिक्रमणों के कारण सिसक रहा है। स्थिति से पहले से भी बदतर हो गई है। और इसी के साथ अजमेर फोरम की पहल पर वहां के दुकानदारों के साझा प्रयास पर भी पानी फिर गया है।
ज्ञातव्य है कि अजमेर के हितों के लिए गठित अजमेर फोरम की पहल पर बाजार के व्यापारियों की एकजुटता दिखाते हुए अपने अतिक्रमण इसी उम्मीद में हटाए थे कि वहां अवैध रूप से जमे ठेले हटा दिए जाएंगे। तत्कालीन एसपी राजेश मीणा ने इस पहल का स्वागत किया तो यह लगने लगा था कि शहर के इस सबसे व्यस्ततम बाजार की बिगड़ी यातायात व्यवस्था को सुधारने का बरसों पुराना सपना साकार रूप ले लेगा, मगर खुद मीणा के रवैये के कारण ही नो वेंडर जोन घोषित इस इलाके को ठेलों से मुक्त नहीं किया जा पाया। मीणा यह कह कर ठेले वालों को हटाने में आनाकानी कर रहे थे कि पहले निगम इसे नो वेंडर जोन घोषित करे और पहल करते हुए इमदाद मांगे, तभी वे कार्यवाही के आदेश देंगे। उनका तर्क ये था कि पहले नया वेंडर जोन घोषित किया जाए, तब जा कर ठेले वालों को हटाया जाना संभव होगा। असल बात ये है कि संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में गठित समिति मदार गेट को पहले से ही नो वेंडर जोन घोषित कर चुकी है। मीणा के तर्क के मुताबिक उसे निगम की ओर से नए सिरे से नो वेंडर जोन घोषित करने की जरूरत ही नहीं। पुलिस को खुद ही कार्यवाही करनी चाहिए थी। रहा सवाल मीणा के पहले वेंडर जोन घोषित करने का तो स्वाभाविक रूप से जो इलाका नो वेंडर जोन नहीं है, वही वेंडर जोन है। अव्वल तो उनका इससे कोई ताल्लुक ही नहीं था कि ठेले वालों को नो वेंडर जोन से हटा कर कहां खड़ा करवाना है। उनके इस तर्क से यह साफ  हो गया कि वे तो ठेले वालों की पैरवी कर रहे थे। इसकी वजह ये थी कि इस बाजार से ट्रेफिक पुलिस कर्मी अच्छी खासी मंथली वसूलते हैं। यदि ठेले हटाए जाते तो उनकी मंथली मारी जाती।
खैर, मीणा तो खुद की मंथली लेने के मामले में जेल के अंदर चले गए, मगर उनके बाद आए श्रीवास्वत भी नकारा साबित हुए। अब हालात ये है कि मदार गेट फिर अतिक्रमण से घिर गया है। भलमनसाहत में आ कर दुकानदारों ने तो अतिक्रमण हटा कर अपने वाहन फुट ओवर ब्रिज के पास बने पार्किंग स्थल पर खड़े करने शुरू दिए और अपनी दुकानों के व्हाइट लाइन तक खिंचवा दी। मगर पुलिस वालों की मिलीभगत से ठेले वाले अपनी आदत से बाज नहीं आए। इस कारण बाजार में आम आदमी के चलने की जगह कम और अतिक्रमियों का कब्जा ज्यादा नजर आता है। अफसोसनाक बात है कि फोरम के कहने पर जीव सेवा समिति के सचिव जगदीश वच्छानी ने वहां लगी ठंडे पानी की प्याऊ भी हटवा दी, आज उसी स्थान पर ठेले व लुहारनियों ने कब्जा कर रखा है। पूरे मदारगेट को खूबसूरत बनाने के लिए तब सारी दुकानों पर एक ही आकार-प्रकार व रंग के बोर्ड लगाने का संकल्प भी हवा हो गया है।
-तेजवानी गिरधर

डॉ. गोखरू पर आरोपों से भाजपाइयों की बोलती बंद

पति के कारनामे की वजह से चर्चा में आईं डा कमला गोखरू 
अजमेर संभाग के सबसे बड़े अस्पताल जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय के हृदयरोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. आर के गोखरू पर दवाओं के गोरखधंधे में शामिल होने के आरोप लगने से वे खुद तो मुसीबत में हैं ही, उनसे भी ज्यादा भाजपाइयों की परेशानी बढ़ गई है। उनकी तो बोलती ही बंद है। कहने की जरूरत नहीं है कि डॉ. गोखरू की धर्मपत्नी डॉ. कमला गोखरू भाजपा महिला मोर्चा की बड़ी नेता हैं और विधानसभा चुनाव में टिकट की दावेदार भी। हालांकि इस गोरखधंधे से डॉ. कमला गोखरू का संबंध जोडऩा बेमानी है, मगर लोग पति के कृत्य से पत्नी को तो जोड़ कर देखते ही हैं। इसी का परिणाम है कि निशुल्क दवा योजना की आलोचना करने वाली भाजपा के नेता अपने राजनीतिक परिवार की नेत्री के पति के सरकारी योजना की आड़ में गोरखधंधा करने के कथित कृत्य पर कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं। इससे इस बात की तो पुष्टि होती ही है कि कमीशनखोर व भाजपा मानसिकता से जुड़े डॉक्टर इस योजना को विफल बनाने में जुटे हुए हैं। और फिर भाजपा ही उसे मुद्दा बना रही है।
दैनिक भास्कर ने तो पूरा सच ही इन पंक्तियों में उगल दिया कि गोरखधंधा यह बताता है कि राज्य सरकार की निशुल्क दवा और निशुल्क जांच योजना कमीशनखोर डॉक्टर्स को कितनी अखर रही है। इसीलिए तो फ्री इंजेक्शन उपलब्ध होने पर भी 30-30 हजार रुपए कीमत के महंगे इंजेक्शन लिखे जा रहे हैं। ताजा प्रकरण साबित करता है कि कुछ डॉक्टर्स सरकार की योजना को किसी न किसी तरह से फेल करने पर आमादा हैं। वे अस्तपताल प्रशासन पर कितने हावी हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. पी के सारस्वत पूर्व में तीन बार डॉ. गोखरू व अन्य को हिदायत दे चुके हैं कि सरकार ने जो व्यवस्था कर रखी है, उसी के अनुरूप दवाएं लिखें व दें, लेकिन कोई मान नहीं रहा। सरकार की ओर से निशुल्क इंजेक्शन उपलब्ध के बावजूद जो महंगे इंजेक्शन लिखे जा रहे हैं, वे सिर्फ डॉ. आर के गोखरू के भाई परमचंद के मेडिकल स्टोर पर मिलना इस बात का प्रमाण है कि जम कर चांदी कूटी जा रही है। बाजार में जिस साल्ट का इंजेक्शन ढ़ाई से तीन हजार रुपए में उपलब्ध है, वही तीस हजार का मंगवाया जा रहा है। ऐसे में साफ है इंजेक्शन पर कम से कम 25 से 27 हजार रुपए का मोटा कमीशन मिलता है।
हालांकि यह जांच से ही स्पष्ट हो पाएगा कि अब तक कितना भ्रष्टाचार हुआ है, मगर फिलहाल कांग्रेस को भ्रष्टाचार के मामले में घेर रही भाजपा के नेता इस मामले में चुप्पी साधे बैठे हैं। यहां तक कि इस बारे में पूछने पर भी कोई बयान देने को तैयार नहीं हैं। जाहिर है वे डॉ. गोखरू की आलोचना कर उनकी पत्नी को नाराज नहीं करना चाहते।
आपको ख्याल होगा कि डॉ. कमला गोखरू जब सक्रिय राजनीति में आईं तो आते ही अजमेर पश्चिम जो कि अब अजमेर उत्तर है, वहां से चुनावी टिकट की प्रबल दावेदार बन गईं। वे भाजपा कार्यकाल में अजमेर नगर सुधार न्यास की ट्रस्टी भी रही हैं। बताया जाता है कि फिलहाल वे मसूदा से भाजपा टिकट की दावेदार हैं। जहां तक डॉ. आर के गोखरू का सवाल है, पत्नी की वजह से भले ही उन पर राजनीतिक विचारधारा विशेष का आरोप लगे, मगर वे इतने प्रभावशाली हैं कि कांग्रेस राज में भी अजमेर में जमे हुए हैं। एक सच ये भी है कि डॉ. गोखरू राजस्थान के गिने-चुने अच्छे हृदयरोग विशेषज्ञों में शुमार हैं और डॉ. एस. आर. मित्तल के रिटायर्ड होने के बाद अजमेरवासियों को उनकी सेवाओं की बेहद जरूरत रहती है।
-तेजवानी गिरधर