शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

क्या पाक जायरीन का भी भाजपा विरोध करेगी?

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारत विरोधी और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जाने का विवाद चरम पर होने के चलते जैसे ही अजमेर लिटरेरी सोसायटी के बेनर तले गत दिनों लाहौर-पाकिस्तान के शायर प्रो. अब्बास ताबिश के कार्यक्रम शायरी सरहद से परे को भाजपा सहित अन्य हिंदूवादी संगठनों के विरोध की वजह से रद्द करना पड़ा, यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि कहीं इसी प्रकार का विरोध ख्वाजा साहब के आगामी सालाना उर्स के दौरान पाक जायरीन के आगमन को लेकर न खड़ा हो जाए। हालांकि अब तक भाजपा व हिंदूवादी संगठनों की ओर से इस प्रकार के संकेत नहीं आए हैं, मगर प्रशासन और गुप्तचर पुलिस इस मामले में सतर्क है।
असल में ये आशंका इस कारण उत्पन्न होती है क्योंकि इससे पहले भी भारत-पाक संबंधों में तनाव के चलते लगातार दो साल तक पाकिस्तानी जायरीन उर्स मेले में नहीं आए थे। ज्ञातव्य है कि पाक जेल में वर्ष 2013 में सरबजीत की हत्या के बाद भारत-पाक के संबंधों में तनाव हो गया था। देशभर में पाक का विरोध हुआ। उर्स मेले में पाक जत्थे के आने की सूचना जैसे ही सार्वजनिक हुई, यह विरोध चरम पर पहुंच गया। इसी विरोध के चलते पाक जत्था भारत नहीं आ सका। वर्ष 2014 में भी कई अन्य कारणों से भारत-पाक संबंधों में तनाव बरकरार था, इस वजह से पाक जत्था नहीं आया। विरोध का मसला केवल स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि सरकार के स्तर तक जा पहुंचा था। भारत सरकार की ओर से कहा गया था कि द्विपक्षीय घटनाओं के मद्देनजर भारत में जो सुरक्षा माहौल बना है, उसकी वजह से सरकार पाकिस्तानी जायरीनों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने की स्थिति में नहीं होगी। सरकार ने पाकिस्तान सरकार से बाकायदा सिफारिश भी की कि जायरीनों के अजमेर दौरे को रद्द किया जाए।
यहां बता दें कि हर उर्स में पाकिस्तान से जायरीन भारत सरकार के खास मेहमान बन कर जियारत के लिए अजमेर आते हैं। अटारी से उनके लिए स्पेशल ट्रेन चलती है, जो आईबी और विशेष सुरक्षा बलों की निगरानी में दिल्ली होते हुए अजमेर आती है। यहां अमूमन वे तीन-चार दिन ठहरते हैं तब तक ट्रेन विशेष सुरक्षा निगरानी में रहती है। उन्हें स्थानीय सेंट्रल गल्र्स स्कूल में ठहराया जाता है। कलेक्टर समेत राज्य के कई अफसर उनकी तीमारदारी में रहते हैं।
इस बार भी चूंकि जेएनयू का मसला बेहद गरम है, इस कारण आशंका है कि कहीं भाजपा व उसके सहयोगी संगठन फिर से विरोध के स्वर ऊंचे न कर दें। चूंकि पाक शायर प्रो. अब्बास ताबिश के मामले में तो भाजपा ने कार्यक्रम होने से ऐन पहले पूर्व संध्या पर ही विरोध किया, इस कारण आनन फानन में आयोजकों ने कदम पीछे कर लिए, मगर वीजा की औपचारिक मंजूरी होने सहित कार्यक्रम की अनुमति तक की औपचारिकता पूरी हो चुकी थी। यह दीगर बात है कि जवाहर रंगमंच के किराये से मुक्ति के लिए पंजीयन अन्य संस्था ने करवाया था।  
बहरहाल, उर्स मेले में ज्यादा दिन शेष नहीं हैं। आगामी अप्रैल माह के पहले सप्ताह में ही मेला शुरू होने वाला है। इसकी प्रशासनिक तैयारी बैठक भी हो चुकी है। यह कहना अभी मुश्किल है कि उर्स मेला शुरू होने तक माहौल में कुछ सुधार आ ही जाएगा। मगर यदि भाजपा अथवा सहयोगी संगठनों से अभी से इस मुद्दे को उठाया तो संभव है कि प्रशासन व सरकार को इस पर विचार करना पड़ जाए।
-तेजवानी गिरधर
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सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

प्रो. अब्बास ताबिश के कार्यक्रम के संदर्भ में प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं क्या?

सरकार ही क्यों नहीं रोक देती ऐसे कार्यक्रम

इसमें कोई दोराय नहीं कि जब दिल्ली के जेएनयू विश्वविद्यालय में भारत विरोधी और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जाने का विवाद चरम पर है, पूरे देश में गरमागरम बहस छिड़ी हुई है, उसका राजनीतिकरण भी हो चुका है, ऐसे में किसी पाकिस्तानी शायर का यहां कार्यक्रम होता तो उससे माहौल बिगड़ सकता था। यह अलग बात है कि लाहौर-पाकिस्तान के शायर प्रो. अब्बास ताबिश, जो कि उर्दू अदब के वैश्विक चेहरा माने जाते हैं, के जवाहर रंगमंच पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम शायरी-सरहद से परे का भाजपा, विश्व हिंदू परिषद और भाजपा युवा मोर्चा ने मुखर विरोध किया, नतीजतन आयोजक संस्था अजमेर लिटरेरी सोसायटी को कार्यक्रम रद्द करना पड़ा, वरना कार्यक्रम के दौरान देशभक्ति से ओतप्रोत कोई व्यक्ति भी हुड़दंग कर सकता था। वजह साफ है कि भारत और पाकिस्तान के संबंध ठीक नहीं हैं और आम भारतीय में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा भरा हुआ है। विशेष रूप से इन दिनों। कदाचित समन्वयक और लाफ्टर चैलेंज फेम रास बिहारी गौड़ के पास सांस्कृतिक आदान-प्रदान के तर्क हो सकते हैं, वह बहस का एक विषय भी हो सकता है, मगर श्रद्धा और भावना के आगे कोई तर्क नहीं टिकता।
अजमेर में कायम शांति बरकरार रखने के लिए कार्यक्रम का स्थगित होना उचित ही है, मगर सवाल ये उठता है कि जिस दल की वर्तमान में केन्द्र व राज्य में सरकार है, उसके होते हुए क्यों ऐसे कार्यक्रम की अनुमति दी गई। देश के हालात को देखते हुए खुद सरकार को ही सांस्कृतिक आदान-प्रदान से जुड़े ऐसे कार्यक्रमों पर रोक लगा देनी चाहिए। कम से कम अति संवेदनशील अजमेर सरीके शहरों में तो विशेष सावधानी बरती ही जा सकती है। विहिप के महामंत्री शशिप्रकाश इंदौरिया इस बयान में दम है कि पठानकोट एयरबेस पर हमले के बाद पाक की दोगली चालें सामने आई थीं और ऐसे में पाक के कलाकारों को भारतीय मंच देना यहां की जनता और आतंकियों से लोहा लेते शहीद हुए जवानों के परिवारों के दिलों पर आघात करने जैसा है। आयोजकों को यह सोचना चाहिए कि देश में पाक के खिलाफ माहौल होने के बावजूद उन्हें कार्यक्रम का न्योता क्यों दिया जाए। मगर सवाल ये है कि सरकार खुद ही ऐसे न्यौतों को नामंजूर क्यों नहीं करती। अगर शायर प्रो. अब्बास ताबिश के भारत आगमन और कार्यक्रम की मंजूरी की प्रक्रिया के दौरान ही रोक लगा दी जाती तो ऐसी नौबत ही नहीं आती। समझा जा सकता है कि किसी भी कार्यक्रम की तैयारी में कितना श्रम और अर्थ व्यय होता है। सरकार व प्रशासन के स्तर पर मंजूरी मिल जाने के बाद उसे रद्द करने के लिए दबाव बनाना नीतिगत दृष्टि से गलत ही कहा जाएगा। बेहतर तो ये रहे कि खुद भाजपा संगठन सरकार में बैठे नुमाइंदों पर दबाव बनाए कि मौजूदा हालात में इस प्रकार के कार्यक्रमों को स्वीकृति नहीं दी जाए। ऐसा करना भाजपा के लिए कठिन भी नहीं है। केन्द्र व राज्य, दोनों ही सरकारें भाजपा इकलौते दम पर चला रही है। माहौल बिगडऩे का जो खतरा भाजपा संगठन के नेताओं का नजर आता है, वो सरकार में बैठे भाजपा नेताओं भी समझ में आता होगा। मगर अफसोस कि ऐसा हुआ नहीं। जो काम सरकार व प्रशासन को करना चाहिए था, वह संगठन को करना पड़ा। गर कूटनीतिक संबंधों की वजह से सरकार ऐसे कार्यक्रमों पर रोक लगाने में असमर्थ है तो, कम से कम कानून व्यवस्था के लिहाज से प्रशासन का दायित्व तो बनता ही है। यहां सवाल प्रशासन और पुलिस की इंटेलीजेंसी पर भी उठता है। क्या उसे अनुमान नहीं था कि ऐसे कार्यक्रम की स्वीकृति देने से माहौल बिगड़ सकता है? अजमेर में शांति बनी रहे, इसकी जिम्मेदारी सीधे तौर पर प्रशासन की बनती है, न कि भाजपा व उसके सहयोगी संगठनों की। ये तो अच्छा हुआ कि उन्होंने समय से पहले ही कार्यक्रम रद्द करवा लिया, वरना बाद में अगर कुछ हंगामा होता तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होता? होना तो यह भी चाहिए कि भाजपा को जिला कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक की ऊपर से खिंचाई करवानी चाहिए, जिन्होंने यहां कायम अमन की चिंता किए बगैर कार्यक्रम रोकने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया।
बहरहाल, ताजा घटनाक्रम से अजमेर को आए दिन बेहतरीन सांस्कृतिक कार्यक्रम देने वाले रास बिहारी गौड़ निरुत्साहित होंगे, वहीं शहर जिला भाजपा अध्यक्ष अरविंद यादव को पहली बार दमदार उपस्थिति दर्ज करने का मौका मिला है। थोड़ा हट कर बात करें तो गौड़ के भाजपा के स्थानीय नेताओं से अच्छे संपर्क हैं, उन्हें मित्रता के नाते भी यह कार्यक्रम न करने की सलाह दी जा सकती थी। ऐसी नौबत ही नहीं आती।
-तेजवानी गिरधर
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रविवार, 21 फ़रवरी 2016

कामयाब रहा जैन व राठौड़ का पहला शो

शहर जिला कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष विजय जैन व देहात जिलाध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह राठौड़ के खाते में पहला ही शो कामयाबी के साथ दर्ज हो गया है। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के विरुद्ध बायतू के भाजपा विधायक कैलाश चौधरी द्वारा की गई टिप्पणी को लेकर चौधरी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग पर जैन के नेतृत्व में जो विरोध प्रदर्शन किया गया, उसमें जिस प्रकार वरिष्ठजन ने भागीदारी निभाई और युवाओं ने उत्साह दिखाया, उससे इस बात के संकेत मिलते हैं कि कांग्रेसी नेताओं व कार्यकर्ताओं को यह बात ठीक से समझ आ गई है कि एकजुटता के बिना आगामी विधानसभा चुनाव जीतने का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकेगा।
यह शो इसलिए भी कामयाब रहा कि मात्र फुसफुसा प्रदर्शन और ज्ञापन देने की औपचारिक रस्म अदायगी न हो कर बाकायदा पुलिस के साथ झड़प और बहसबाजी भी हुई। इतना ही नहीं, कार्यकर्ता नारेबाजी करते हुए भाजपा विधायक चौधरी के खिलाफ अजमेर में एक और एफआईआर दर्ज करवाने पर अड़े, जिसे पुलिस मानने को राजी नहीं हुई। इस पर गरमागरमी होनी ही थी। बेशक प्रदेश मुख्यालय से उन्हें केवल विधायक की गिरफ्तारी की मांग करने का निर्देश था, मगर मुकदमा दर्ज करने की जिद की वजह से जो जद्दोजहद हुई, उससे यह शो हाईलाइट हो गया। राजनीति में इसी प्रकार कुछ पंगेबाजी से ही नेता कामयाब होते हैं। हालांकि राठौड़ दायरे में ही रहे, मगर जैन की अति उत्साही टीम के कुछ हट कर करने की पूरी संभावना थी। बहरहाल, जैन व राठौड़ के खाते में पहला शो कामयाबी के साथ दर्ज हो गया।
असल में संयोग से हालात ही ऐसे बने हैं कि वरिष्ठ नेताओं को सरवाइव करने के लिए साथ देना पड़ रहा है तो युवाओं में अतिरिक्त उत्साह है। कुछ पद की लालसा में बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे हैं तो कुछ जैन के व्यवहार की वजह से जुड़ रहे हैं। यहां तक कि जिन को जैन व राठौड़ का अध्यक्ष बनना अच्छा नहीं लगा, उनकी भी मजबूरी है कि साथ दें। अगर व्यक्तिगत नाराजगी के चलते पीछे हटते हैं तो पूरी तरह से पीछे धकेल दिए जाने की आशंका है। ट्रेन के रवाना होने के बाद भी जो चढऩे की जहमत नहीं उठाएगा, वह छूट ही जाना है। जैसी कि कांग्रेसियों को आशा है कि अगली सरकार उनकी ही होगी, तो कोई भी क्यों कर मैदान से पूरी तरह से बाहर हो जाना चाहेगा।
-तेजवानी गिरधर
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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

विजय जैन के साथ शहर कांग्रेस का एक नए युग में प्रवेश

शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद से नवाजे गए विजय जैन के पद ग्रहण समारोह में जिस प्रकार लगभग सभी प्रमुख नेताओं की मौजूदगी नजर आई, उससे उनकी पारी के अच्छे आगाज के संकेत मिलते हैं। हालांकि कार्यकारिणी  गठित होने तक उन्हें खूब खींचतान से गुजरना होगा, सब को साथ लेकर चलना इतना आसान नहीं है, मगर अहम बात ये है कि उन्हें किसी प्रकार के विरोध अथवा नाराजगी का सामना नहीं करना पड़ा। उनकी अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के प्रति जिस प्रकार कांग्रेसी नेताओं में स्वीकार्यता  दिखाई दी, उससे लगता है कि वे संगठन की नैया बहुत आसानी से नहीं तो थोड़ी बहुत मान-मनुहार करके चला ही लेंगे। हालांकि निवर्तमान अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता के पद ग्रहण करते समय के हालात कुछ और किस्म के थे, मगर जिस प्रकार जैन को स्वीकार किया गया है, कदाचित इतना तो रलावता को भी स्वीकार नहीं किया गया था। उसकी वजह ये रही कि रलावता परिवर्तन के संक्रमण काल में आए, जिसमें पुराने स्थापित नेताओं को वे आसानी से गले नहीं उतरे, मगर चूंकि अब हालात बदल गए हैं, इस कारण पुराने नेताओं ने समझ लिया है कि अब नए युग का सूत्रपात हो चुका है, लिहाजा जैसा हो रहा है, उसे स्वीकार कर लिया जाए। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि जैन के साथ ही अजमेर में कांग्रेस के एक नए युग का आरंभ होने जा रहा है।
विजय जैन के पक्ष में एक बात और है कि पिछले दशक में तैयार हुआ नया युवा कार्यकर्ता यकायक उनके साथ जुड़ गया है। इसकी बानगी पद ग्रहण के दौरान साफ महसूस की गई। उसके पीछे बड़ी वजह है जैन का लो-प्रोफाइल होना। वे कार्यकर्ताओं के साथ बराबरी का दर्जा दे कर हिले मिले हुए हैं। एक बात और। कार्यकर्ता गुजबाजी से त्रस्त रहे हैं, उन्हें लगता है कि जैन के नेतृत्व में गुटबाजी का पैनापन कुछ कम होगा। यदि तुलना की जाए तो रलावता के समय में देश और प्रदेश में कांग्रेस का ग्राफ विभिन्न कारणों से गिर रहा था, जबकि जैन जब पद संभाल रहे हैं, तब लोगों में आशा है कि अगली राज्य सरकार कांग्रेस की होगी, क्योंकि वसुंधरा सरकार का परफोरमेंस कुछ खास नहीं रहा है। ऐसे में कार्यकर्ताओं में उत्साह कुछ बढ़ा हुआ है। जैन के इर्दगिर्द जुट रही भीड़ इस बात के भी संकेत हैं कि हर कोई, कोई न कोई पद चाहता है। बस, यहीं जैन की चतुराई की परीक्षा होनी है कि वे कैसी टीम गठित कर पाते हैं। किस प्रकार सभी गुटों के ऊर्जावान कार्यकर्ताओं को जोड़ते हैं। चूंकि वे कूल मांइडेड हैं, इस कारण उम्मीद की जा सकती है कि वे ठंडे दिमाग से अपना रास्ता सुगम कर लेंगे।
जैन के लिए एक बड़ी चुनौती कांग्रेस का दफ्तर खोलना है। फिलहाल उन्होंने अपने प्रॉपर्टी कारोबार के दफ्तर को इसके उपयोग में लेने के संकेत दिए हैं, जिस पर कुछ लोग नुक्ताचीनी कर सकते हैं, मगर सीधी सीधी बात ये है कि यह उनका अपना दफ्तर है, जिस पर आपत्ति करना बेमानी है। आखिर आदमी के पास जो दफ्तर होगा, उसे ही तो काम में लेगा। फिर प्रॉपर्टी का कारोबार कोई ऐसा धंधा नहीं है कि उसे राजनीति के लिहाज से हेय अथवा परहेज की दृष्टि से देखा जाए। जल्दबाजी में उन्होंने अपने दफ्तर को ही सुपुर्द किया है, मगर उम्मीद की जानी चाहिए कि कोई ऐसा दफ्तर स्थापित करेंगे, जो कि सार्वजनिक स्थान पर हो। कहने की जरूरत नहीं है कि कांग्रेस के पास कुछ समय पूर्व तक अपना किराये का दफ्तर था, मगर वह मुकदमेबाजी के बाद हाथ से निकल गया। कांग्रेस के पास जैसा भी दफ्तर था, था तो सही, सत्तारूढ़ भाजपा के पास तो वो भी नहीं है, जबकि वर्तमान में केन्द्र, राज्य सहित अजमेर में उसकी सरकार है।
लब्बोलुआब, आशा की जा रही है कि जैन अपने संजीदा व्यवहार से इस गरिमापूर्ण पद की मर्यादा बरकरार रख पाएंगे। खतरा सिर्फ ये है कि कहीं उनको गलत सलाहकार न मिल जाएं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000, 8094767000

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

जैन पर कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का भार

षहर कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष विजय जैन को एक ओर जहां इस पद पर पहुंचने की खुषी होगी, उससे कहीं अधिक जो जिम्मेदारी मिली है, उसका निर्वहन कैसे करना है, यह भार उन के कंधों पर आ गया है। नगर निगम चुनाव से जरूर यह साबित हो गया है कि धरातल पर भी कांग्रेस का भाजपा के बराबर वजूद है, मगर संगठन के लिहाज से जो मुर्दनी छायी है, उसे दूर करना उनकी सबसे बडी जिम्मेदारी है।
असल में पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय के कारण कांग्रेस कार्यकर्ता का मनोबल गिरा है। कहने को संगठन का ढांचा तो है, मगर कार्यकर्ता बिखर गया है। पुराने कार्यकर्ता घर जा कर बैठ गए हैं तो नए जुडने की रफ्तार कम है। हालांकि पिछले नगर निगम चुनाव में कांग्रेस का परफोरमेंस बेहतर रहने की वजह से कार्यकर्ता उत्साहित है, मगर अब भी उसे सांगठनिक नजरिये से एकजुट करने की जरूरत है। विषेश रूप से अजमेर उत्तर में। अजमेर दक्षिण में तो हेमंत भाटी ने काफी अच्छी पकड बना ली है, मगर उत्तर में कई क्षत्रप होने के कारण कार्यकर्ता बिखरा हुआ है।
वैसे एक बात जरूर है कि जैन को आगामी विधानसभा चुनाव से पहले तैयारी का काफी वक्त मिल गया है। वे चाहें तो संगठन का ढांचा नए सिरे से खडा कर चुनाव की व्यूह रचना अभी से बना सकते हैं। पर्याप्त वक्त है। उनकी नियुक्ति से भी कार्यकर्ता में उर्जा का संचार हुआ है। कई पुराने कार्यकर्ता फिर से सक्रिय हुए हैं। जैन का व्यवहार भी सभी बडे नेताओं से ठीक ठाक रहा है, इस कारण ढंग की कार्यकारिणी बनाने में उन्हें दिक्कत नहीं आनी चाहिए। यूं अन्य दावेदारों को जरूर तकलीफ हुई है, मगर उनका कुछ खास विरोध कहीं नजर नहीं आता। ऐसे माहौल में यदि उन्होंने एक संतुलित कार्यकारिणी बनाई तो वह ठीक से काम कर सकती है।
जैन के लिए एक अनुकूल बात ये है कि केन्द्र व राज्य की भाजपा सरकारों का परफोरमेंस कुछ खास न होने के कारण आम जन का भाजपा से मोहभंग हो रहा है और मोदी का जादू भी कम होता नजर आ रहा है। राजनीति के जानकार समझ रहे हैं कि यदि भाजपा की यही हालत रही तो कोई आष्चर्य नहीं कि आगामी विधानसभा चुनाव में फिर से कांग्रेस की सरकार बन जाए। अर्थात जैन के लिए अनुकूल धरातल तैयार है। जरूरत है तो सिर्फ ये कि सभी गुटों में सामंजस्य बना कर उर्जावान टीम बनाएं। चूंकि कूल माइंड हैं, इस कारण उम्मीद की जा सकती है कि वे इसमें कामयाब होंगे। मगर सब कुछ इस पर निर्भर करेगा कि उनके इर्दगिर्द कैसे सलाहकार जुटते हैं और कार्यकर्ताओं में जोष भरने के लिए कैसे कार्यक्रम दे पाते हैं।
तेजवानी गिरधर
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शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

कहां खो गई ओबामा-मोदी द्वारा घोषित अजमेर स्मार्ट सिटी?

यह एक कटु सत्य है कि जिस स्मार्ट सिटी के सब्जबाग हमें दिखाए गए, जिसकी कल्पना मात्र से हमें खुशी का सुखद अहसास होता था, वह धरातल पर नहीं है। ज्ञात रहे कि इसकी घोषणा अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा व भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की थी। उस घोषणा मात्र से हर शहर वासी के मन में रोमांच का सैलाब हिलोरे ले रहा था। उसी के दम पर सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं ने नगर निगम चुनाव में जीत दर्ज की थी। हाल तक उसी की दुहाई देते नहीं थक रहे थे भाजपा नेता। मगर अफसोस, वह घोषणा, वह योजना, जिस पर पूर्व संभागीय आयुक्त धर्मेन्द्र भटनागर ने मेराथन बैठकें कीं, चंद चहेतों को पुरस्कृत कर उपकृत किया, उसका कहीं अता पता नहीं है। उसे जमीन निगल गई या आसमान खा गया, कुछ पता नहीं।
असल में संशय तो तभी उत्पन्न हो गया था, जब ओबामा की ओर से अजमेर सहित तीन शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए अमेरिकी मदद के ऐलान के बाद केन्द्र सरकार ने देश के एक सौ शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की, जिसकी कवायद में अजमेर भी शामिल किया गया। यदि अजमेर को नई घोषणा से अलग रखा जाता तो यकीन किया जा सकता था कि अमेरिकी मदद से होने वाले काम धरातल पर हैं। हालांकि पूर्व संभागीय आयुक्त धर्मेन्द्र भटनागर ने इस दिशा में कवायद भी शुरू कर दी, मगर जैसे ही एक सौ शहरों को स्मार्ट सिटी में शुमार किया गया और उसके पहले चरण के बीस शहरों की कवायद आरंभ हुई, तो शक होने लगा कि ओबामा की घोषणा हवा हो चुकी है। अफसोस की बात ये रही कि अजमेर का प्रतिनिधित्व करने वाले मंत्रियों ने पड़ताल ही नहीं कि आखिर ओबामा की ओर से घोषित मदद का क्या हुआ?
अब हालत ये है कि 28 जनवरी को केन्द्रीय नगरीय विकास मंत्री वेकैंया नायडु ने देश के जिन 20 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की है, उसमें अजमेर शामिल नहीं है। इस सूची में राजस्थान के जयपुर और उदयपुर शहर को ही शामिल किया गया है। जयपुर तीसरे नम्बर पर तथा उदयपुर 16वें नम्बर पर आया है। जबकि अजमेर स्मार्ट सिटी के मापदंडों पर फिलहाल खरा नहीं उतरा है। जानकारी के अनुसार राज्य सरकार ने जयपुर, उदयपुर के साथ-साथ अजमेर और कोटा को भी स्मार्ट सिटी बनाने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा था, लेकिन केन्द्र सरकार ने अजमेर और कोटा को पहले चरण में शामिल नहीं किया है। केन्द्र सरकार की घोषणा के मुताबिक स्मार्ट सिटी के लिए जो भौगोलिक स्थिति और संसाधन चाहिए, उससे जयपुर और उदयपुर ही खरे उतरते हैं। अजमेर और कोटा में वे हालात नहीं है, जिनके अंतर्गत इन शहरों को स्मार्ट सिटी बनाया जाए। ऐसे में अहम सवाल ये उठता है कि जब ओबामा ने अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए वित्तीय मदद की ऐलान किया तो उसका आधार क्या था?
बहरहाल, केन्द्र सरकार की स्मार्ट सिटी की सूची में अजमेर का नाम नहीं आने का कारण अजमेर की राजनीतिक कमजोरी माना जा रहा है। एक ओर यह कितना सुखद है कि अजमेर में इस समय सत्तारुढ़ भाजपा नेताओं की स्थिति बहुत मजबूत है, लेकिन दुखद बात है कि जिले के किसी भी नेता में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अथवा केन्द्रीय नगरीय विकास मंत्री वैंकेया नायडु के समक्ष अपनी बात को दमदार तरीके से रख सकें। ज्ञातव्य है कि भाजपा के 7 विधायकों में से 3 राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त है। वासुदेव देवनानी स्कूली शिक्षा मंत्री, अनिता भदेल महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री हंै, जबकि पुष्कर के विधायक सुरेश सिंह रावत को हाल ही में संसदीय सचिव बनाया गया है। इसी प्रकार अजमेर के श्री औंकार सिंह लखावत राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष हैं, जबकि अजमेर में पले श्री भूपेन्द्र सिंह यादव भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री व राज्यसभा सांसद हैं। इसके अतिरिक्त अजमेर के सांसद प्रो. सांवरलाल जाट केन्द्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री है। संभवत: यह पहला मौका है, जबकि अजमेर राजनीतिक दृष्टि से इतना मजबूत है, फिर भी स्मार्ट सिटी की दौड़ में अजमेर का विफल हो जाना बेहद शर्मनाक है।
जानकारी के अनुसार स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल नहीं होने पर मेयर श्री धर्मेन्द्र गहलोत का कहना है कि अब नगर निगम अपने संसाधनों से ही अजमेर को स्मार्ट बनाएगा, मगर सवाल ये है कि अजमेर नगर निगम के पास इतने संसाधन कहां से जुटाए जाएंगे?
तेजवानी गिरधर
7742067000, 8094767000