सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

पांच दिन पहले ही उजागर कर दिया था प्रो. रावत का नाम


शहर भाजपा अध्यक्ष पद पर काबिज प्रो. रासासिंह रावत का नाम च्न्याय सबके लिएज् ने पांच दिन पहले उजागर कर दिया था कि काफी विचार-विमर्श और दावों-प्रतिदावों के बाद आखिरकार पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत को ही शहर भाजपा अध्यक्ष पद के काबिल माना गया है और उनकी नियुक्ति की घोषणा होना मात्र शेष रह गया है। उसके बाद जा कर अन्य समाचार पत्रों ने इस खबर को शाया किया, मगर वह भी संभावना जताते हुए।
वस्तुत: जैसे ही च्न्याय सबके लिएज् में यह खबर उजागर हुई, संघ प्रमुख मोहन भागवत की अजमेर में मौजूदगी का लाभ उठाते हुए एक बार फिर प्रो. बी. पी. सारस्वत के लिए पूरी ताकत लगा दी गई। ऐसा होते देख पूर्व सांसद औंकार सिंह लखावत के कान खड़े हो गए और सभी लोगों को समझाने लगे कि प्रो. रावत के नाम पर लंबी खींचतान के बाद समहति बनाई जा सकी है, इस कारण अब घोषणा से पहले खलल न डालें। प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी भी जानते थे कि संघ का दबाव आ जाएगा, तुरंत प्रो. रावत सहित अन्य शहर अध्यक्षों की घोषणा कर दी, ताकि कोई फेरबदल की स्थिति न आए। शहर में चल रहे संघ के जलसे का लाभ उठाते हुए विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी भी प्रो. सारस्वत के समानांतर पूर्व महापौर धर्मेन्द्र गहलोत का नाम फिर से उछाल दिया। मगर इस मुहिम को कामयाबी हासिल नहीं हुई। अब वे उन्हें शहर महामंत्री बनाने की जुगत करेंगे।
हालांकि यह सही है कि छत्तीस का आंकड़ा बने प्रो. देवनानी व विधायक श्रीमती अनिता भदेल के प्रो. रावत के प्रति सहमति देने के कारण दोनों ही गुटों में तालमेल बैठाया जाएगा, मगर अंतत: शहर भाजपा पर प्रो. देवनानी विरोधी लॉबी हावी रहेगी। देवनानी को कमजोर करने के लिए लखावत सहित अन्य सभी नेता लामबंद हो जाएंगे। कदाचित इस बात का अहसास देवनानी को भी हो, मगर उनके पास कोई चारा नहीं बचा था।
भाजपा और मजबूत, कांग्रेस बेपरवाह
हाल ही पंचायतीराज उप चुनाव में भाजपा को मिली सफलता के बाद शहर भाजपा अध्यक्ष के रूप में पांच बार सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत की नियुक्ति के साथ ही भाजपा और मजबूत हो गई है। यह स्थिति कांग्रेस के लिए चिंताजनक है, मगर वह बेपरवाह बनी हुई है। कांग्रेस की यह बेपरवाही काफी दिन से चल रही है। लोकसभा चुनाव में भले ही मजबूरी में सभी कांग्रेसी एक हुए और सचिन पायलट जीत गए, मगर उसके बाद स्वयं पायलट ने ही संगठन पर ध्यान नहीं दिया। इसका परिणाम ये हुआ कि जिला परिषद पर भाजपा का कब्जा हो गया। जिला परिषद सदस्य के लिए हाल ही हुए चुनाव में भी उन्होंने रुचि नहीं ली, इसका परिणाम ये हुआ भाजपा के ओमप्रकाश भड़ाणा जीत गए, जबकि उनकी छाप ले कर घूम रहे सौरभ बजाड़ को हार का मुंह देखना पड़ा। इससे जिला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा और मजबूत हुए हैं। आने वाले दिनों वे अपने नेटवर्क को और भी मजबूत कर लेंगे। भाजपा ने शहर में भी ऐसा अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है, जिसे कि दोनों की गुटों का समर्थन है। स्वयं प्रो. रावत भी काफी अनुभवी हैं और विपक्षी नौटंकी में माहिर हैं। वैसे भी वे फुल टाइम पॉलिटीशियन हैं। ऐसे में उसकी तुलना में मौजूदा कांग्रेस संगठन कमजोर प्रतीत होता है। संयोग से सचिन पायलट व संगठन के बीच भी कोई खास तालमेल नहीं बैठ पाया है। तालमेल क्या शहर कांग्रेस पर काबिज गुट तो उनके खिलाफ ही चलता है। ऐसे में आगे चल कर पायलट के लिए दिक्कत पेश आ सकती है।