शनिवार, 7 जुलाई 2012

लकीर के फकीर प्रशासन ने बंद करवाया संस्कृति द स्कूल

लकीर का फकीर की कहावत तो आपने सुनी ही होगी। यह गर्मियों में एक हफ्ता और स्कूल बंद रखने के प्रशासनिक फरमान के मामले में संस्कृति द स्कूल को बंद करवाने पर पूरी तरह से लागू होता है।
हुआ दरअसल ये कि सरकार के निर्देश पर जयपुर की तर्ज पर अजमेर के जिला कलेक्टर वैभव गालरिया ने भी गर्मी को देखते हुए कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों की छुट्टी घोषित कर दी थी। मगर स्कूल के प्रिंसिपल अमरेंद्र मिश्रा ने इस आदेश को यह कहते हुए कि दरकिनार कर दिया कि न केवल स्कूल पूरी तरह से एसी है, बल्कि बच्चों को स्कूल लाने वाली बसें भी एसी हैं। स्कूल प्रशासन ने कलेक्टर को भी स्कूल खुली रखने देने का आग्रह किया था, लेकिन उन्होंने कोई तवज्जो नहीं दी। ऐसे में डीईओ आफिस से आरटीई अधिकारी राजेश तिवारी व प्रवीण शुभम निरीक्षण के लिए संस्कृति स्कूल पहुंच गए और कलेक्टर के आदेशों का हवाला देते हुए कक्षा 1 से लेकर 8 वीं तक के बच्चों की छुट्टी रखने के निर्देश दिए। मजबूरी में स्कूल प्रशासन को स्कूल बंद करनी पड़ी और सभी अभिभावकों को बाकायदा यह लिख कर भी भिजवाना पड़ा कि स्कूल अब 9 जुलाई को ही खुलेगी।
यूं तो यह सामान्य सी बात है कि प्रशासनिक आदेश सभी पर एक समान लागू होता है, मगर यदि किसी के ठोस तर्क हो तो उसे स्वीकार करते हुए चाहें तो छूट भी दी जा सकती है। जब छुट्टी की ही गर्मी के कारण थी और यदि किसी स्कूल की बसें व पूरा स्कूल भवन एसी है तो उसे छूट देने में कोई बहुत बड़ा पहाड़ नहीं टूटने वाला था, मगर जिला व शिक्षा प्रशासन ने वैसा ही व्यवहार किया, जैसा लकीर का फकीर करता है।
दरअसल सरकार ने यह जिला कलेक्टरों पर छोड़ा था कि वे चाहें तो एक सप्ताह तक स्कूल बंद करने के आदेश जारी कर सकते हैं। अर्थात सरकार का ऐसा स्टेंडिंग आदेश नहीं था, जिसके लिए सरकार से मार्गदर्शन की जरूरत पड़ती। जिला कलेक्टर चाहते तो अपने स्तर पर छूट दे सकते थे। मगर हमारे यहां प्रशासनिक व्यवस्था है ही ऐसी कि कोई भी अधिकारी फालतू का पंगा मोल नहीं लेना चाहता। वो इस कारण भी कि या तो कुछ जिद्दी अभिभावक हल्ला करते या फिर शहर के हर मसले में दखल देने वाले संगठन विरोध कर देते। अजमेर शहर महिला कांग्रेस अध्यक्ष सबा खान ने तो जिला कलेक्टर को ज्ञापन देकर विरोध दर्ज भी करवा दिया। असल में किसी भी राजनीतिक दल के अग्रिम संगठन संबंधित वर्ग के हितों का ध्यान रखने व उनको संगठन से जोडऩे की खातिर बने होते हैं। सीधी सी बात है कि एनएसयूआई या अभाविप होते तो बात समझ में भी आती, मगर महिला कांग्रेस का तो स्कूल व्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी हमारे यहां चलन ऐसा हो गया है कि अग्रिम संगठन उन मसलों पर भी सक्रिय हो जाते हैं, जिनका उनसे कोई लेना देना नहीं है। यहां तक कि कई बार अपने मूल संगठन की इजाजत भी नहीं लेते। यानि कि उन्हें शहर के हर मसले पर बोलने का लाइसेंस मिला हुआ है।
बहरहाल, संस्कृति द स्कूल के मामले में तो यह भी महसूस होता है कि इसमें बड़े लोगों को उनकी हैसियत दिखाने की मंशा भी रही होगी। जाहिर सी बात है, कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो, जिला कलेक्टर से तो बड़ा नहीं हो सकता। आखिर वे जिले के मालिक हैं। वैसे, एक बात बता दें, इस मालिक वाले भाव को समाप्त करने की खातिर ही सरकार ने इस पद का नाम जिलाधीश से जिला कलेक्टर किया था, क्योंकि जिलाधीश नाम से अधिनायकवाद व सामंतशाही का आभास होता था। खैर, नाम भले ही बदल दिया गया हो, मगर अधिकार तो सारे वो ही हैं। ओर हैं तो उनका उपयोग भी होगा ही।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

यानि खादिमों के लिए केवल इंद्रेश कुमार ही अछूत हैं

इन दिनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य और भाजपा से मुसलमानों को जोडऩे की मुहिम के सेनापति इंद्रेश कुमार खादिमों के निशाने पर हैं। विवाद ये है कि उनकी जमात के एक युवक सैयद इफशान चिश्ती ने संघ के पूर्व सर संघ चालक के पी सुदर्शन और इंद्रेश कुमार के साथ फोटो कैसे खिंचवा ली, जबकि इंद्रेश कुमार पर दरगाह में बम विस्फोट की साजिश में शामिल होने का आरोप है। यानि की इंद्रेश कुमार खादिमों के दुश्मन नंबर वन हैं। और इसी वजह से खादिमों की रजिस्र्टड संस्था अंजुमन सैयद जादगान को भी शिकायत के आधार पर इफशान से जवाब तलब करना पड़ा।
दरअसल अंजुमन कई बार ऐसे धर्म संकट में इसलिए पड़ जाती है क्योंकि यह एक सामाजिक संस्था है और राजनीति से इसका कोई सीधा संबंध नहीं है। इस कारण संस्था यह तय नहीं कर सकती कि उसके सदस्य किस पार्टी से संबंध रखें और किस के साथ नहीं। और यही वजह है कि कुछेक खादिम हिंदूवादी पार्टी भाजपा के साथ जुड़े हुए हैं, मगर उस पर कभी ऐतराज नहीं होता। वे पार्टी के जिम्मेदार पदाधिकारी भी हैं। अमूमन वे ही भाजपा नेताओं को जियारत भी करवाते हैं। जायरीन व दुआगो का यह रिश्ता इसलिए कायम है क्योंकि दरगाह का दर हर मजहब को मानने वाले के लिए खुला है। इस मामले में कोई परहेज नहीं किया जाता। खादिमों के लिए हर जायरीन बराबर है। हकीकत तो यह भी मानी जाती है कि ख्वाजा साहब के दर पर सालभर में मुसलमान की तुलना में हिंदू कहीं अधिक आता है।
खैर, बात ताजा विवाद की। चूंकि विवाद में आए खादिम युवक सैयद इफशान चिश्ती भाजपा नेता के पुत्र हैं। ऐसे में जाहिर सी बात है कि उनके भाजपा के नेताओं से संबंध हैं। हाल ही जब तीर्थराज पुष्कर में राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का तीन दिवसीय शिविर हुआ तो भाजपा नेता और वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष सलावत खां के फोन पर बुलावे की वजह से वे पुष्कर पहुंचे। बकौल इफशान उन्हें नहीं मालूम था कि पुष्कर में आयोजित मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के सम्मेलन में कौन लोग आए थे। वहां कौन लोग मुख्य अतिथि अथवा विशिष्ट अतिथि थे, इसके बारे में भी उसे नहींं मालूम था। हालांकि बात हजम नहीं होती, मगर जब वे लिखित में कह रहे हैं तो उस पर यकीन करना ही होगा कि उन्होंने गफलत में सुदर्शन व इंद्रेश कुमार के साथ फोटो खिंचवा लिया। इस बयान के साथ ही विवाद खुद ब खुद समाप्त हो जाता है। वो इसलिए भी कि इस बयान के साथ ही यह बयान खुद ब खुद बयां हो गया है कि अगर उन्हें यह मालूम होता कि वहां दरगाह बम ब्लास्ट की साजिश के कथित आरोपी इंद्रेश कुमार भी आए हैं तो वे वहां नहीं जाते। कम से कम उनके साथ फोटो तो कत्तई नहीं खिंचवाते, जिसकी वजह से जमात में गलत संदेश चला गया। एक अर्थ में उन्होंने आम खादिम की इस भावना का सम्मान किया है कि इंद्रेश कुमार जैसों से जमात के लोगों को परहेज करना चाहिए। अलबत्ता उसी हिंदू मानसिकता वाली भाजपा से भले ही जुड़े रहें। यानि कि गुड़ भले ही खा लें, मगर गुलगुले से परहेज रखें। वजह साफ है। अंजुमन किसी भी खादिम को यह निर्देश नहीं दे सकती कि अमुक पार्टी से नाता रखें और अमुक से परहेज। उसके लिए सभी समान हैं। मगर चूंकि इंद्रेश कुमार का नाम सीधे तौर पर बम ब्लास्ट से जुड़ा हुआ माना जा रहा है तो आम खादिम की यही सोच है कि कम से कम उनसे तो परहेज रखें ही। इसी सोच को धार देने वाले पूर्व अंजुमन सचिव सैयद सरवर चिश्ती के दबाव में अंजुमन को इशफान की सुनवाई करनी पड़ी।
बात सही भी है। बम विस्फोट की साजिश के कथित आरोपी के साथ कोई खादिम फोटो खिंचवाएगा तो क्या संदेश जाएगा? अलबत्ता इंद्रेश कुमार के लिए यह बात उल्लेखनीय है कि सरकार व जांए एजेंसियां उन्हें जबरन फंसाने की कोशिश कर रही हैं, जबकि दरगाह के खादिमों के साथ तो उनके बेहतर रिश्ते हैं। 

-तेजवानी गिरधर
7742067000