रविवार, 25 जून 2017

नगर निगम के बाद एडीए में नियुक्यिों का इंतजार

अजमेर नगर निगम में लंबे इंतजार के बाद मनोनीत पार्षदों की घोषणा होने के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं को अजमेर विकास प्राधिकरण में प्रस्तावित बोर्ड के सदस्यों की घोषणा का इंतजार है।
जानकारी के अनुसार बोर्ड में एडीए अध्यक्ष शिवशंकर हेडा की पसंद के अतिरिक्त अजमेर उत्तर व दक्षिण, पुष्कर व किशनगढ़ के विधायकों की ओर से सिफारिश किए गए नेताओं को शामिल किया जाएगा, क्योंकि एडीए के क्षेत्र में अजमेर शहर के अतिरिक्त पुष्कर व किशनगढ़ भी आते हैं। अजमेर नगर निगम में जब मनोनीत पार्षदों के लिए स्थानीय दोनों विधायकों, जो कि राज्य मंत्री भी हैं, ने तीन-तीन नाम प्रस्तावित किए थे, तभी एडीए में भी अपनी पसंद के दो-दो नेताओं के नाम भी जयपुर भेजे दिए थे।
हालांकि सिद्धांत: यह तय है कि एडीए में बोर्ड गठित होगा, मगर उस पर कार्यवाही को लेकर अभी मंथन चल रहा है। सरकार यह विचार कर रही है कि क्या बाकी बचे डेढ़ साल के लिए नियुक्तियां करना उचित रहेगा या नहीं। असल में डर है कि यदि नियुक्तियां कर दी गईं तो जो नेता वंचित रह जाएंगे, उनमें असंतोष फैल जाएगा। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती, जिससे जमा हुआ पानी हिलने लग जाए। हालांकि स्थानीय नेता बोर्ड के गठित करने के लिए लगातार दबाव बना रहे हैं, क्योंकि उनके चहेते उनके पीछे पड़े हुए हैं, मगर सरकार कदम उठाने से पहले पूरी तरह से हालात को ठोक बजा लेना चाहती है। इसकी वजह ये है कि यदि अभी बोर्ड गठित हो जाने पर असंतोष बढ़ा तो उसे तुष्ट करने का कोई उपाय नहीं रहेगा, क्योंकि स्थानीय स्तर पर ऑब्लाइज करने का कोई उपाय नहीं है। ज्ञातव्य है कि बोर्ड में उन ही नेताओं की सिफारिश की गई है, जिनको निगम में एडजस्ट नहीं किया जा सका। उन्हें आश्वासन दिया हुआ है। सरकार का कार्यकाल खत्म होने की ओर अग्रसर है, इस कारण नियुक्ति के दावेदारों में उतावलापन है। उनका तर्क है कि जब निगम में नियुक्ति हो चुकी है तो एडीए  में क्यों अटका रखी है? उन्होंने अपने-अपने आकाओं की नींद हराम कर रखी है, मगर वे भी क्या करें, फैसला सरकार को करना है। समझा जाता है कि वे भी मन ही मन ये सोच रहे होंगे कि नियुक्ति न हो तो अच्छा। स्वाभाविक रूप से जितने नाम घोषित होने हैं, कम से उनसे दो या तीन गुना को लॉलीपोप दे रखी होगी। जैसे ही नियुक्ति हुई तो शेष बचे नेता उनके कपड़े फाड़ेंगे। चूंकि चुनाव में मात्र डेढ़ साल बाकी रह गया है और उन्हें फिर से टिकट की उम्मीद है, ऐसे में उन्हें असंतुष्ट नेताओं के बगावत या भीतरघात करने का खतरा है।
बहरहाल, फिलहाल मामला अधरझूल में है। यह केवल सरकार पर ही निर्भर है कि वह क्या फैसला करती है, स्थानीय नेताओं के हाथ में कुछ भी नहीं।
-तेजवानी गिरधर
7742076000

शनिवार, 24 जून 2017

किशनगढ़ एयरपोर्ट की वाहवाही लूटते हैं तो खैर-खबर भी लें

जिस किशनगढ़ एयरपोर्ट को स्थापित करने की आरंभिक सारी कवायद पूर्व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट ने की, उसका श्रेय स्थानीय भाजपा नेता ले तो रहे हैं, चूंकि आज केन्द्र व राज्य में भाजपा की सरकार है, मगर वे इसके लिए कितने प्रयासरत हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लग रहा है कि जुलाई से ट्रायल उड़ानें और अगस्त में शिड्यूल फ्लाइट्स शुरू होने को लेकर आशंकाएं जताई जा रही हैं।
भास्कर के तेजतर्रार रिपोर्टर अतुल सिंह की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अब तक न तो गृह मंत्रालय से एनओसी मिला और न ही डायरेक्ट्रेट जनरल सिविल एविएशन (डीजीसीए) से लाइसेंस। ऐसे में एयरपोर्ट का संचालन शुरू होने पर सवाल उठने ही हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि केन्द्र में अजमेर का प्रतिनिधित्व करने वाले इस ओर ध्यान ही नहीं दे रहे। जो कुछ हो रहा है, वह ब्यूरोक्रेट लेवल पर है।
जहां तक इस एयरपोर्ट में राज्य सरकार की भूमिका का सवाल है, बिजली, पानी और हाई-वे से रोड कनेक्टिविटी के काम भी कछुआ चाल से चल रहे हैं। क्या इसका यह अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए कि राज्य सरकार का हिस्सा बने अजमेर के भाजपाई जनप्रतिनिधि इन कामों को समय पर पूरा करवाने के लिए कोई निगरानी नहीं कर रहे। ऐसे में यह कहते हुए अफसोस ही होता है कि मात्र वाहवाही लेने के लिए संसदीय सचिव सुरेश रावत व किशनगढ़ के भाजपा विधायक भागीरथ चौधरी दिल्ली से यहां आए निजी कंपनी के चार्टर प्लेन को बाकायदा हरी झंडी दिखाने पहुंच जाते हैं। कैसी विडंबना है कि जिस एयरपोर्ट का औपचारिक व विधिवत शुभारंभ हुआ नहीं है, वहां एक प्राइवेट कंपनी का ट्रायल चार्टर प्लेन आने पर ऐसा माहौल बना दिया जाता है, मानो हवाई अड्डों की दुनिया में अजमेर भी शुमार हो गया है। जबकि हकीकत ये है कि इससे पहले भी चार्टर प्लेन लैंड कर चुके थे। बेशक, आज जब भाजपा की सरकार है तो शाबाशी भी वे ही लूटेंगे, मगर वहां पर रावत का बड़े अधिकारापूर्वक यह कहना कि किशनगढ़ एयरपोर्ट को जो सपना देखा था, वह आज पूरा हो गया, जल्द ही एयरपोर्ट से नियमित विमान सेवाएं शुरू होगीं, तो ऐसा प्रतीत होता है, मानो वे इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं। और वाकई कर रहे हैं तो ऐसी स्थिति क्यों बनती है कि जुलाई से ट्रायल उड़ानें और अगस्त में शिड्यूल फ्लाइट्स शुरू होने को लेकर मीडिया सवाल खड़े करता है। मीडिया सवाल खड़े करे न करे, धरातल का सच भी यही है कि निर्धारित शिड्यूल से काम नहीं हो रहा। ऐसे में क्या स्थानीय भाजपाई जनप्रतिनिधियों, जिनमें राज्य किसान आयोग के अध्यक्ष प्रो. सांवरलाल जाट, राजस्थान पुरा धरोहर संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत, शिक्षा राज्यमंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी, महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल, संसदीय सचिव शत्रुघ्न आदि शुमार हैं, का यह दायित्व नहीं बनता कि वे अजमेर की इस महत्वाकांक्षी योजना को गंभीरता से लें। अगर क्रेडिट लेने का हक आपका है तो उसको समय पर पूरा करने की जिम्मेदारी भी आप पर ही आयद होती है।
अजमेर के हितों के लिए वर्षों से संघर्षरत सिटीजंस कौंसिल के अध्यक्ष व दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक दीनबंधु चौधरी ने एक बार व्यक्तिगत चर्चा में बताया था कि अजमेर दर्द यही है कि जनप्रतिनिधि न तो अजमेर से संबंधित योजनाओं की पूरी स्टडी करते हैं और न ही फॉलोअप। इसी वजह से अजमेर का विकास धीमी गति से हो रहा है।
इसी संदर्भ में अगर स्मार्ट सिटी अजमेर की बात करें तो जब पहली बार अजमेर के नाम की घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की थी, तब भाजपा नेता वाहवाही लेने तो आगे आ गए, मगर उन्हें यह पता तक न था कि अजमेर का चयन किस प्रक्रिया के तहत हुआ। उन्हें यह जानकारी भी ठीक नहीं थी इसके तहत आखिर होगा क्या? तत्कालीन संभागीय आयुक्त ने भी खूब बेवकूफ बनाया। यदि मौजूदा जिला कलैक्टर गौरव गोयल इसमें व्यक्तिगत रुचि न लेते तो अजमेर का नाम सूची में अब तक भी नहीं आ पाता। इससे समझा जा सकता है कि अजमेर का पानी कैसे लाडलों का जन्म देता है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, 22 जून 2017

देवनानी का अनिता के कार्यक्रम में जाना भी है एक खबर

कहते हैं न कि यदि कुत्ता आदमी को काट खाए तो कोई खबर नहीं बनती, मगर यदि आदमी कुत्ते को काट खाए तो वह खबर हो हो जाती है।  आपने ये भी देखा होगा कि अगर कोई किसी के साथ बेईमानी करे तो उसकी खबर मात्र इस कारण छपती है, क्योंकि एक घटना हुई है, लेकिन उस पर कोई खास गौर नहीं करता क्योंकि बेईमानी आम बात है, मगर यदि कोई किसी के खोए हुए रुपए या वस्तु ला कर उसके मालिक को दे तो ईमानदारी जिंदा है के शीर्षक से बॉक्स में खबर लगती है। कुछ ऐसा ही शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल को लेकर है। वे एक दूसरे के कार्यक्रम में नहीं जाएं तो चंद लाइनें छप जाती हैं, क्योंकि यह आम बात है, सब जानते हैं कि दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है, मगर यदि एक दूसरे के कार्यक्रम में पहुंच जाए तो वह बड़ी खबर हो जाती है, क्योंकि वह चौंकाने वाली है।
बीते दिन कुछ ऐसा ही हुआ। शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी व महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री अनिता भदेल दोनों एक भवन के लोकार्पण समारोह में साथ-साथ दिखाई दिए तो वह खबर मीडिया ने तुरंत हॉट केक की तरह उठा ली। असल में घटना इसलिए भी खास थी क्योंकि कार्यक्रम महिला एवं बाल विकास विभाग का था, जिसकी मंत्री खुद अनिता भदेल हैं। इसे श्रीमती भदेल की उदारता माना जाए या कुछ और, मगर यह कम बात नहीं कि लोकार्पण पट्टिका पर भी अनिता भदेल व वासुदेव देवनानी का नाम बराबर में लिखा था। एक टाइम वो भी था, जब दोनों में इस बात को लेकर खींचतान होती थी कि ऊपर किसका नाम आए और नीचे किस का। अधिकारियों को बड़ी मुश्किल होती थी।
खबर की बारीक बात ये है कि देवनानी कोई अनिता के खुद के आमंत्रण पर नहीं गए थे। अनिता ने तो महिला एवं बाल विकास विभाग की उप निदेशक अनुपमा टेलर को कहा था कि देवनानी को भी बुलावा भेजा जाए। एक अधिकारी मात्र के बुलावे पर उनका अनिता के कार्यक्रम में जाना वाकई चौंकाने वाला है। स्वाभाविक रूप से राजनीतिक हलकों में इस बात पर अचरज जताया जा रहा है कि देवनानी यकायक इतना कैसे बदल गए?  क्या कहीं से इशारा था?
इस कार्यक्रम में देवनानी के करीबी माने जाने वाले मेयर धर्मेंद्र गहलोत का भदेल द्वारा लगाए गए शिविर की जमकर तारीफ करना भी चौंकाने वाला माना गया। वैसे किसी के मुंह पर उसकी तारीफ करना एक सामान्य शिष्टाचार वाली बात है।
बहरहाल, इस वाकये जुड़ा एक दिलचस्प पहलु देखिए। देवनानी खुद भले ही अनिता के जुड़े किसी कार्यक्रम में चले जाएं, मगर देवनानी खेमे के नेता, पार्षद आदि ऐसा करने से पहले दस बार सोचते हैं। सोचते क्या, जाते ही नहीं हैं, क्योंकि देवनानी की नाराजगी का डर रहता है। देवनानी भी क्लास लिए बिना नहीं मानते। ठीक ऐसी ही स्थिति अनिता खेमे के नेताओं की है। ताजा कार्यक्रम में भी ऐसा ही हुआ। उपमहापौर संपत सांखला ने औपचारिकता के नाते देवनानी खेमे के नेताओं से भी कार्यक्रम में आने को कहा था, मगर कई इसी कारण नहीं गए कि बाद में देवनानी को पता लगा तो वे खिंचाई कर देंगे। बाद में उन्हें पता लगा तो यही सोचने लगे समरथ को नहीं दोष गुसाईं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

मंगलवार, 20 जून 2017

यातायात विभाग में दलालों का बोलबाला?

न जाने कितनी बार यह तय हुआ है कि यातायात विभाग के दफ्तर में जा कर कर्मचारियों से दलाल सीधे नहीं मिलेंगे, मगर आज भी हालत ये है कि वहां दलालों का ही बोलबाला है। आम आदमी तो निर्धारित खिड़कियों पर लाइन लगा कर धक्के खाता है, जबकि दलाल सीधे अंदर जा कर संबंधित कर्मचारियों से काम करवाते हैं।
असल में जो लोग दलालों की बजाय खुद ही वहां काम करवाने जाते हैं, उन्हें कर्मचारी धक्के खिलवाते हैं। सच बात तो ये है कि उनसे सीधे मुंह बात ही नहीं की जाती। चाहे लाइसेंंस बनवाना हो या रिन्यू करवाना हो, या फिर कोई और काम हो, आम आदमी को दलाल से ही संपर्क करने की राय दी जाती है। अगर कोई कहता है कि वह दलाल के पास नहीं जाएगा तो उसे कम से कम तीन-चार चक्कर लगवाए जाते हैं। शहर से दूर होने के कारण आम लोगों को इतने चक्कर लगाने पर बहुत परेशानी होती है, इस कारण तंग आ कर लोग दलालों के पास ही जाते हैं। दलाल अपने मन मुताबिक कमीशन लेते हैं। ऐसा इस कारण भी होता है कि निर्धारित फार्म भरना आम आदमी के बस की बात नहीं होती। उसे यह भी पता नहीं होता कि किसी काम के लिए कौन कौन से दस्तावेज साथ अटैच करने होते हैं। कर्मचारी उसे बताते नहीं और दलाल के पास ही जाने की सलाह देते हैं। हालत ये है कि निर्धारित फार्म भी महकमा उपलब्ध नहीं करवाता, वे बाहर दलालों के पास ही मन मुताबिक रेट पर मिलते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि दफ्तर में ही फार्म आदि मिलें और ऐसे कर्मचारियों को बैठाया जाए, जो वे आम आदमी का मार्गदर्शन करें, ताकि उसे दलाल के पास जाने की जरूरत ही नहीं रहे। मगर ऐसा महकमा क्यों करने वाला है? यदि दलाल नहीं कमाएंगे तो कर्मचारियों का भरण पोषण कैसे होगा?
इस मुद्दे पर न जाने कितनी बार मीडिया में खबरें आ चुकी हैं। कई बार जयपुर के बड़े अधिकारियों की मौजूदगी में तय हो चुका है कि दलाल प्रथा को हतोत्साहित किया जाए और दलालों का दफ्तर में प्रवेश वर्जित हो। कुछ दिन तो इस पर अमल होता है, मगर बाद में फिर वही ढर्ऱा शुरू हो जाता है। ऐसा नहीं है कि यहां बैठे अफसरों का इस सिस्टम के बारे में जानकारी नहीं, मगर वे चुप्पी साधे बैठे हैं।
यातायात महकमे के अफसर कितने लाचार हैं, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट बनाने वाली एजेंसी निर्धारित शुल्क से कई गुना अधिक वसूल रही है। अनेकानेक शिकायतें हो चुकी हैं, शिकायतों की पुष्टि भी हो कर जयपुर प्रेषित की जा चुकी है, कई बार मंत्री महोदय की जानकारी में लाया जा चुका है, मगर आज तक लूट जारी है। जब स्थानीय अधिकारियों से पूछा जाता है तो वे यही कहते हैं कि वे तो रिपोर्ट बना कर ऊपर भेज चुके हैं, वहीं से कार्यवाही होगी, हम कुछ नहीं कर सकते।
कुल मिला कर अजमेर के यातायात महकमे से आम आदमी बेहद त्रस्त है, मगर उसका समाधान न तो आज तक निकल पाया है और न ही कोई उम्मीद लगती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

सोमवार, 19 जून 2017

अब क्यों नौटंकी कर रही है यातायात पुलिस?

अजमेर में यातायात पुलिस का ढर्ऱा अरसे से बिगड़ा हुआ है। न तो किसी पुलिस अधीक्षक ने इस पर ध्यान दिया और न ही जनप्रतिनिधियों ने पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाया। जब-जब भी कोई हादसा होता है तो पुलिस यकायक मुस्तैद होने का नाटक करती है, मगर चंद दिन बाद फिर वही पहले वाला ढर्ऱा शुरू हो जाता है।
भाजपा पार्षद अनीश मोयल के पुत्र सर्वज्ञ की ट्रैक्टर से कुचलने से हुई मौत के बाद जिला पुलिस ने ट्रैक्टर चालकों के खिलाफ सख्ती बरतना शुरू कर दिया। एक ही दिन में 9 ट्रैक्टर चालकों के खिलाफ यातायात पुलिस ने कार्रवाई की, इनमें से 6 को जब्त किया गया, शेष 3 के खिलाफ नो पार्किंग का चालान बनाया गया। सख्ती का सिलसिला कुछ दिन और चल सकता है। मगर सवाल ये उठता है कि पुलिस हादसा होने के बाद ही क्यों चेतती है? ऐसा नहीं है कि यातायात पुलिस कोसे जाने लायक है, इस कारण कोसी जाती है, हकीकत भी यही है। पूरे शहर में कहीं भी चले जाइये, हर जगह आपको ओवर लोडेड वाहन मिल जाएंगे। ऑटो रिक्शाओं में निर्धारित संख्या से ज्यादा बच्चे मिलते हैं। सिटी बसों में यात्री भेड़-बकरियों की तरह भरे जाते हैं। सिटी बस व टैम्पो वाले अंटशंट स्पीड से चलते हैं। ट्रैक्टर भी निर्धारित गति से ज्यादा स्पीड से चलाए जाते है, जिसकी वजह से ताजा दर्दनाक हादसा हुआ। हर मुख्य चौराहे पर यातायात पुलिस के कर्मचारी तैनात तो होते हैं, मगर वे कितने मुस्तैद होते हैं, इसको बताने की जरूरत इसलिए नहीं है कि पूरे शहर का यातायात अस्त व्यस्त है। अगर वे वाकई कार्यवाही करते तो ये हालात नहीं होते। अर्थात दाल में कुछ काला है। सबको दिख रहा है कि क्या माजरा है, मगर किसी को कोई लेना-देना नहीं। न पुलिस अधिकारियों को और न ही जनप्रतिनिधियों को। ऐसे में अगर आप उम्मीद करें कि यातायात सुव्यवस्थित रहेगा तो वह बेमानी है।
आपको याद होगा कि पूर्व में भी जब किसी ओवर लोडेड ऑटो रिक्शा के पलटने से स्कूल बच्चे चोटिल हुए हैं तो प्रशासन यकायक मुस्तैद हो जाता है। यातायात समिति की बैठकें होती हैं। नए सिरे से निर्देश जारी होते हैं, मगर नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात वाला नजर आता है।
इस बार भी जब हादसे के बाद प्रिंट, इलैक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया ने पुलिस पर तंज कसे तो पुलिस अधीक्षक राजेन्द्र सिंह ने मुस्तैदी दिखाई। यह स्थिति भी इस कारण आई कि हादसे का शिकार एक भाजपा पार्षद का मासूम पुत्र हुआ था। अगर आम बच्चा होता तो इतनी चर्चा ही नहीं होती।
कितनी अफसोसनाक बात है कि हादसे के बाद पुलिस अधीक्षक कह रहे हैं कि यातायात थाना पुलिस ट्रैक्टरों के बेकाबू रफ्तार पर लगाम लगाने के लिए विशेष अभियान शुरू कर रही है। तेज रफ्तार से ट्रैक्टर दौड़ाने वाले, शराब पीकर ट्रैक्टर चलाने वाले, ओवर लोडिंग के अलावा प्राइवेट लाइसेंस पर ट्रैक्टर का कॉमर्शियल इस्तेमाल करने वाले चालकों के खिलाफ पुलिस सख्ती से पेश आएगी। पुलिस के इंटरसेप्टर वाहन मुस्तैदी से तैनात हैं, तेज रफ्तार से वाहन दौड़ाने वालों पर शिकंजा कसेगा। यह सब हादसे से पहले क्यों नहीं होता?
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शनिवार, 17 जून 2017

ऐसे शिविरों को रोक क्यों नहीं दिया जाता?

पिछले कितने दिनों से मीडिया में लगातार यह खबर सुर्खी में है कि मुख्यमंत्री शहरी जन कल्याण शिविर नाकामयाब हैं, मगर प्रशासन तो लकीर के फकीर की तरह कवायद किए जा रहा है और सरकार भी है कि ऐसे शिविरों को निरंतर जारी रखे हुए हैं, मानों डाक्टर ने कहा हो या किसी पंडित ने सलाह दी हो।
कितने अफसोस की बात है कि मीडिया यह तथ्य लिख लिख कर नहीं  थक रहा कि मुख्यमंत्री शहरी जन कल्याण शिविर पूरी तरह से फ्लॉप शो साबित हो रहे हैं, आम जनता भी इस खबर को पढ़ पढ़ का ऊब गई है, मगर सरकार व प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही।
असल में इन शिविरों की नामकामयाबी की मुख्य वजह कच्ची बस्ती में पट्टे नहीं दिए जाने और सरकारी भूमि का नियमन नहीं होना है। खुद सरकार ही इस मामले में असमंजस में रही। पहले कच्ची बस्ती पट्टे एवं सरकारी भूमि पर नियमन की बात कही गई, लेकिन जैसे ही शिविर शुरू हुए सरकार ने दोनों अहम मुद्दे हटा लिए। नतीजा ये रहा कि आम आदमी की रुचि इन शिविरों में समाप्त हो गई। असल में ऐसे शिविरों को इंतजार इसीलिए रहता है कि इनमें पट्टे व नियमन इनमें आसानी से हो जाते हैं। सबको पता है कि पट्टे जारी करने व नियमन के मामले इतने कॉम्प्लीकेटेड होते हैं कि फाइलों को एक सीट से दूसरी सीट तक खिसकने में कछुआ चाल की याद आ जाती है। लोगों की जूतियां दफ्तर के चक्कर लगाते लगाते घिस जाती हैं।  बरसों लग जाते हैं। शिविर में चूंकि संबंधित सभी अफसर व कर्मचारी मौजूद होते हैं और उन्हें पता होता है कि उन्हें यही काम करना है, इस कारण वहां ऐसे मामले निपट जाते हैं। बाकी के काम तो रुटीन में चलते ही हैं। उनके लिए शिविर की जरूरत ही नहीं होती। मगर सरकार को ये बात समझ में ही नहीं आई।
हालत ये है दिनभर अधिकारी एवं कर्मचारी लोगों के इंतजार में बैठे नजर आते हैं। जो कार्य आम दिनों में दफ्तरों में संपादित होते हैं, वही कार्य शिविर में हो रहे हैं, जिनमें से प्रमुख रूप से जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, विवाह पंजीयन, भामाशाह कार्ड वितरण, एसबीएम के तहत व्यक्तिगत शौचालयों के लिए राशि का वितरण आदि हैं। शिविरों में आवक न होने की खबरें लगातार आ रही हैं, मगर प्रशासन व सरकार ढर्रे पर ही चल रहे हैं। अनुमान लगाइये कि जिन शिविरों से कोई लाभ नहीं हो रहा, उन पर टेंट, कुर्सियां, कूलर व अन्य इंतजामात पर कितना खर्च हो रहा है। इसके अतिरिक्त जो कर्मचारी दफ्तर में कुछ काम भी कर लेता, वह शिविर में आ कर निठल्ला बैठा है। इसका कितना नुकसान हो रहा है, इसको देखने वाला कोई नहीं है। ऐसा हो सकता है कि शिविर समापन पर प्रशासन व सरकार ऐसे आंकड़े देने की कोशिश करें कि देखो शिविर कितने कामयाब रहे, मगर जब बारीकी से देखा जाएगा तो यही सामने आएगा कि आम जन के वे काम ही हो पाए हैं, जो कि आम दिनों में आसानी से होते हैं। उनके लिए शिविर की जरूरत ही नहीं थी।
सबसे अफसोसनाक बात ये है कि सरकार को यह परवाह भी नहीं कि उसकी भद पिट रही है। उसकी छवि खराब हो रही है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आम जनता का भरोसा सरकार पर रह ही नहीं गया। मगर नीति निर्धारक हैं कि उनकी नींद ही नहीं खुल रही। कदाचित ऐसी स्थिति को ही किसी जमाने में पोपा बाई का राज की उपमा दी गई होगी, जो कि कहावत बन गई।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शुक्रवार, 16 जून 2017

भाजपा मानसिकता के व्यापारी अब कोस रहे हैं सरकार को

जीएसटी का विरोध बढ़ता ही जा रहा है। व्यापारी त्रस्त है। अब तो भाजपा मानसिकता के व्यापारी भी सरकार की इस नीति के खिलाफ खुसरफुसर कर रहे हैं। कुछ व्यापारी तो खुल कर विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं। गत दिवस राजस्थान कपड़ा व्यापार महासंघ जी.एस.टी. संघर्ष समिति के आह्वान पर अजमेर वस्त्र व्यापारिक संघ के सभी कपड़ा व्यापारी सदस्यों ने अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों को बन्द करके कपड़े पर जी.एस.टी 5 प्रतिशत लगाने के विरोध में हड़ताल कर प्रदर्शन किया। इसमें अधिसंख्य भाजपा मानसिकता के व्यापारी थे। उन्होंने चेताया कि आगामी 26 जून तक यदि भारत सरकार ने कपड़े से जी.एस.टी. नहीं हटाया तो कपड़ा व्यवसायी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जायेंगे। समझा जा सकता है उनका दर्द कितना गहरा है।
ज्ञातव्य है कि आमतौर पर व्यापारी वर्ग भाजपा मानसिकता का माना जाता है। अब जब कि केन्द्र में भाजपा की सरकार है तो उन्हें इस बात का मलाल है कि आजादी के बाद 70 वर्ष में किसी भी सरकार ने कपड़े पर कोई भी टैक्स नहीं लगाया, जबकि मौजूदा सरकार इस पर आमादा है।
संघ की ओर से जारी विज्ञप्ति से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि इस हड़ताल में किस प्रकार भाजपा मानसिकता के व्यापारियों ने हिस्सा लिया। जरा उन नामों पर गौर कर लीजिए:- मुख्य कार्यकारिणी अध्यक्ष सुरेशचन्द गुप्ता, सचिव प्रवीनचन्द जैन, भगवान चन्दीराम, मुकेश सेठी, राजकुमार गर्ग, अशोक राठी, मुकेश गोयल, कमलेश शर्मा, सुन्दर भाई, किशन गोपाल गुप्ता, कैलाश अग्रवाल, शिवशंकर बाड़मेरा, रमेश शर्मा, मुकेश जैन, सुनिल गदिया, ललित अग्रवाल, किशोर सतरानी, दुर्गेष सन्तूमल, परमानन्द, सन्देश मॉयल साडी। कम से कम व्यापारी वर्ग तो जानता है कि इनमें कितने भाजपा मानसिकता के हैं।
ज्ञातव्य है कि इससे पहले नमकीन व्यापारियों ने विरोध जताया था, जिनमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अजमेर महानगर प्रमुख सुनील दत्त जैन आगे की पंक्ति में खड़े थे।
इसी प्रकार अन्य वस्तुओं का व्यापार करने वाले भी कसमसा रहे हैं। आपसी बातचीत में वे केन्द्र सरकार को कोस रहे हैं। उन्हें इस बात का ज्यादा अफसोस है कि जब केन्द्र में कांग्रेस सरकार जीएसटी को लाना चाहती थी, तब भाजपा ने उनकी पैरवी करते हुए इसका विरोध किया था और जब भाजपा सत्ता में है तो इसे लागू करने पर अड़ी हुई है।
जाहिर सी बात है कि आज जब भाजपा मानसिकता के व्यापारी परेशान हैं तो कांग्रेसी मानसिकता के लोग इस मुद्दे को हाथोंहाथ लपक रहे हैं। राष्ट्रीय सोनिया गांधी ब्रिगेड कांग्रेस अजमेर के शहर अध्यक्ष राजकुमार गर्ग, राजस्थान प्रदेश यूथ फेडरेशन के प्रदेश संयोजक कमल गंगवाल, सीए प्रकोष्ठ के अध्यक्ष विकास अग्रवाल एवं पूर्व विधि प्रकोष्ठ अध्यक्ष एडवोकेट विवेक पाराशर और वरिष्ठ कांग्रेस नेता शिव बंसल, नीरु दोसाई, असलम खान, सीताराम सांखला, सुनीता सांखला, विभूति जैन, जीनत बानो, विनीता अग्रवाल, शांति लश्कार, आशा कच्छावा, अनुपम शर्मा, अरुणा कच्छावा, राजेश जैसवाल, नीरु गर्ग, अभिलाषा विश्नोई ने तो बाकायदा संयुक्त विज्ञप्ति जारी कर कपड़े पर प्रस्तावित टैक्स से मुक्त किये जाने की मांग को लेकर चल रहे विरोध का समर्थन कर दिया। विरोध के यज्ञ में आहुति देते हुए उन्होंने कहा कि व्यापारी वर्ग नोटबन्दी की वजह से परेशान है, व्यापार ठप्प पड़ा हुआ है, नोटबन्दी के बाद बाजार में अभी तब उठाव आया ही नहीं था कि सरकार जीएसटी जैसा जटिल टैक्स लागू कर रही है, जिसने व्यापारियों की कमर ही तोड़ दी है।
अब देखने वाली बात ये है कि क्या सरकार देशहित का ख्याल रखती है या फिर वोट बैंक खिसकने के डर से पैर पीछे खींचती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

सोमवार, 12 जून 2017

अब योग के जरिए जमीन पर पकड़ मजबूत करेंगे देवनानी

जैसे महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल अपने अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में क्रिकेट प्रतियोगिता करके जमीन पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कवायद कर चुकी हैं, ठीक उसी तरह अब शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी भी अजमेर उत्तर में योग शिविर लगा कर कार्यकर्ताओं को लामबंद करने जा रहे हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्मशती समारोह के तहत उत्तर विधानसभा क्षेत्र के प्रत्येक वार्ड में दस दिवसीय योग शिविर आगामी 14 से 23 जून तक आयोजित किए जाएंगे। यह शिविर सुबह 5.30 बजे से 7 बजे तक होंगे।
बकौल देवनानी आज संपूर्ण विश्व योग के महत्व को जानने लगा है तथा इसकी विरासत को आमजन तक पहुंचाने के उद्देश्य से यह शिविर आयोजित होंगे, मगर इसे यदि राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो यह आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी पूर्वाभ्यास है। इससे जहां कार्यकर्ता मोबलाइज होगा, वहीं आम जनता में भी पकड़ बनेगी। शिविर की कामयाबी सुनिश्चित ही समझी जानी चाहिए, क्योंकि अजमेर नगर निगम मेयर धर्मेन्द्र गहलोत खुद इसके संयोजक हैं। रहा सवाल सह संयोजक सुभाष काबरा व सोमरत्न आर्य का तो स्पष्ट है कि उनका उपयोग मैनेजमेंट के लिए किया जा रहा है।  आम जन तक योग और देवनानी की पहुंच बनाने का गणित भी बनाया गया है, जिसके तहत आयोजन समिति में पार्षदों सहित 31 व्यक्तियों को शामिल गया गया है और योग शिविरों के जरिए लगभग 3000 लोगों को जोड़ा जाएगा।
यहां गौरतलब बात ये है कि इस बार शहर भाजपा अध्यक्ष अरविंद यादव को आपत्ति नहीं होगी, जैसी कि उनको अनिता भदेल के मात्र अजमेर दक्षिण में क्रिकेट प्रतियोगिता करने पर हुई थी। स्वाभाविक भी है, जब अनिता केवल अपने इलाके में क्रिकेट प्रतियोगिता करवाती हैं तो देवनानी ने भी अगर केवल अजमेर उत्तर में योग शिविर का आयोजन किया है तो उस पर आपत्ति क्यों होनी चाहिए? लेकिन इससे एक संदेश जरूर जाता है कि भाजपा अजमेर उत्तर व अजमेर दक्षिण में बंटी हुई थी, है और रहेगी। उनको कोई एक नहीं कर पाएगा। शायद ऊपर वालों की मंशा भी यही है कि वे आपस में लड़ते रहें। इससे एक फायदा ये होगा कि दोनों अपने-अपने इलाके में बिजी रहेंगे तो कम से कम से एक-दूसरे के इलाके में टांग नहीं फंसा पाएंगे। यह बात दीगर है कि इससे कार्यकर्ता जरूर असमंजस में रहता है और अपनी अपनी सीमा रेखा में रहने को मजबूर होता है, जबकि शहर एक ही है, चुनाव के लिहाज से जरूर बंटा हुआ है, मगर कार्यकर्ता व जनता तो गुंथे हुए ही हैं। किसी का मकान अजमेर उत्तर में और दुकान अजमेर दक्षिण में है तो किसी का मकान दक्षिण व दुकान उत्तर में है। वो भला उत्तर दक्षिण को अलग-अलग करके कैसे देख सकता है?
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शनिवार, 10 जून 2017

हासानी होंगे अजमेर उत्तर की टिकट के गंभीर दावेदार

हालांकि आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस में इस वक्त लगभग चुप्पी छायी हुई है, मगर गुपचुप तैयारी तो हर कोई दावेदार कर रहा है। अगर अजमेर उत्तर की बात करें तो यूं तो एकाधिक दावेदार गंभीर रूप से सामने आने वाले हैं, मगर जो सर्वाधिक दमदार दावेदारी करेंगे, उनका नाम है दीपक हासानी। आप जान ही गए होंगे कि ये कौन हैं? माया मंदिर वाले। राजनीतिक गलियारों से छन-छन कर जो जानकारी आ रही है, उसके मुताबिक हासानी टिकट हासिल करने के लिए साम दाम दंड भेद, सभी हथियार आजमाने की स्थिति में हैं।
असल में वे एक अच्छे लाइजनर हैं। न केवल कांग्रेस, अपितु भाजपा के भी बड़े-बड़े नेताओं से उनके संपर्क हैं। प्रदेश के कई बड़े अधिकारियों से भी उनके घनिष्ठ संबंध हैं। बड़े व्यवसायी होने के कारण उनके संबंध अजमेर के प्रमुख व्यापारियों से हैं। जयपुर से लेकर दिल्ली तक उनके लिए जैक लगाने वाले अनेक हैं। इसके अतिरिक्त सबसे बड़ी बात ये है कि वे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत के खासमखास दोस्त हैं। स्थानीय स्तर पर पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती का उन पर वरदहस्त है। समझा जा सकता है कि अगर उन्होंने तय ही कर लिया कि टिकट लाना है, उनके पास कितनी साधन-संपन्नता है। जानकारी के अनुसार उन्होंने ग्राउंड पर भी चुनावी नजरिये से लोगों से संपर्क बनाना शुरू कर दिया है। फिलवक्त जमीनों संबंधी कुछ मसलों को सुलझाने में लगे हैं, मगर समझा जाता है कि जल्द ही जाजम बिछाएंगे।
ऐसा नहीं कि वे पहली बार दावेदारी कर रहे हैं। इससे पूर्व भी उनकी महत्वाकांक्षा रही है। पिछली कांग्रेस सरकार में तो वे नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष बनने के बहुत करीब पहुंच चुके थे।
यूं गैर सिंधियों में शहर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता एक मात्र प्रबल दावेदार हैं, मगर चूंकि इस बार ऐसा माना जाता है कि कांग्रेस किसी सिंधी को ही टिकट देगी, इस कारण यहां केवल सिंधी दावेदारों की चर्चा की जा रही है। अगर अन्य दावेदारों की बात करें तो कर्मचारी नेता व सामाजिक कार्यकर्ता हरीश हिंगोरानी, पूर्व पार्षद रश्मि हिंगोरानी, पूर्व पार्षद सुनील मोतियानी सरीखे भी खम ठोक कर टिकट मांगने वाले हैं। पुराने दावेदार राजस्थान सिंधी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. लाल थदानी व युवा कांग्रेस नेता नरेश राघानी  भी दावेदारी कर सकते हैं, मगर फिलवक्त कुछ पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वे अपने पत्ते नहीं खोल रहे। इसी प्रकार रेलवे कर्मचारी नेता मोहन चेलानी का नाम भी चलाया जा रहा है। एक नाम बंटी जयसिंघानी का भी बताया जाता है। उनके पास भी टिकट लाने की जुगत बताई जाती है। राज दरबार अगरबती वाले राजकुमार लुधानी भी पिछली बार की तरह ऐन वक्त पर भागदौड़ कर सकते हैं। मॅस्काट स्कूल वाले गुलाब मोतियानी का नाम भी तैर रहा है। ऐसे ही कुछ और नाम भी हो सकते हैं। यानि कि इस बार टिकट के दावेदारों की फेहरिश्त काफी लंबी हो सकती है। कई धनपति भी हाथ आजमा सकते हैं। असल में यह सब इस कारण हो रहा है कि सभी को मैदान खाली लग रहा है। पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत कांग्रेस छोड़ चुके हैं और अभी रिश्वत प्रकरण से जूझ रहे हैं, वरना उनके मुकाबले का दावेदार एक भी नहीं है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शुक्रवार, 9 जून 2017

कुछ खास उत्साह नजर नहीं आया मनोनीत पार्षदों के शपथ ग्रहण में

लंबी प्रतीक्षा के बाद अजमेर नगर निगम में मनोनीत छह पार्षदों के शपथ ग्रहण समारोह में कुछ खास उत्साह नजर नहीं आया। हालांकि शपथ ग्रहण संक्षिप्त और सादा सा था, मगर भाजपा पार्टी कार्यकर्ताओं में जैसा उत्साह नजर आना चाहिए था, वैसा कुछ नजर नहीं आया। कुल जमा डेढ़ सौ से ज्यादा की भीड़ नहीं थी। नारेबाजी भी फीकी ही थी। अधिसंख्य पार्टी पदाधिकारी इस मौके पर मौजूद नहीं थे। कुछ एक पार्षदों के अतिरिक्त मनोनीत पार्षदों के व्यक्तिगत समर्थक ही आए। गिनाने लायक नाम शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी, नगर निगम महापौर धर्मेन्द्र गहलोत, उपमहापौर संपत सांखला, पार्षद नीरज जैन, जे. के. शर्मा, भागीरथ जोशी, जिला महामंत्री रमेश सोनी, जयकिशन पारवानी, महेंद्र जादम, अनीश मोयल, चन्द्रेश सांखला, संदीप गोयल, राजू साहू, महेंद्र जैन मित्तल, धर्मेंद्र शर्मा, रचित कच्छावा, अनिल नरवाल, मोहन ललवानी, रंजन शर्मा, दुर्गाप्रसाद शर्मा, प्रकाश बंसल, अमित यादव आदि महेन्द्र जादम इत्यादि थे। चूंकि महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल बाहर हैं, इस कारण उनकी अनुपस्थिति रही। देवनानी समय पर आ गए, मगर मनोनीत पार्षद एक-एक करके आए। शहर अध्यक्ष यादव को विलंब हो गया। देवनानी ने उनका इंताजार करने को कहा। उनके आने के बाद मनोनीति पार्षदों को शपथ दिलवाई गई।
असल में मनोनीत पार्षदों में भी कुछ खास खुशी इस कारण भी नहीं थी कि लंबे इंतजार के बाद उनके नामों की घोषणा हुई। नामों की सूची छह माह पहले ही सरकार को भेजी जा चुकी थी। नाम भी फाइनल ही थे, मगर किसी न किसी कारण से घोषणा अटकी हुई थी। अब उनके पास काम करने को तकरीबन डेढ़ साल ही बचा है। अगर विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा सरकार रिपीट हुई तो संभव है उन्हें तीन साल का कार्यकाल पूरा करने का मौका मिल जाए। अगर कांग्रेस सरकार आई तो निर्वाचित निगम बोर्ड तो यथावत रह जाएगा, मगर मनोनीत पार्षदों को हटा दिया जाएगा।
ज्ञातव्य है कि मनोनीत पार्षदों में तीन प्रो. देवनानी व तीन श्रीमती अनिता भदेल की सिफारिश पर नियुक्त हुए हैं। देवनानी खेमे के बलराम हरलानी, सुरेश गोयल व धर्मेन्द्र चौहान और श्रीमती अनिता भदेल की अनुशंसा पर सोहनलाल शर्मा, मोहन राजोरिया व राजेश घाटे को मनोनीत पार्षद बनाया गया है।
यहां बता दें कि शहर की प्रतिष्ठित फर्म दुर्गा ऑयल मिल के प्रोपराइटर बलराम हरलानी कृषि उपज मंडी समिति (अनाज) के उपाध्यक्ष रहे हैं और वर्तमान में डायरेक्टर हैं। वे शहर भाजपा पुरुषार्थी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष एवं बैंकिंग प्रकोष्ठ के संयोजक भी रहे हैं। हालांकि अजमेर उत्तर में देवनानी की दावेदारी के रहते अथवा उनके इशारे के बिना कभी अजमेर उत्तर से टिकट की दावेदारी नहीं करेंगे, मगर आने वाले समय के लिए तैयार हो रही खेप के चुनिंदा लोगों में जरूर शामिल हो गए हैं। अजमेर विद्युत वितरण निगम से सेवानिवृत्त सुरेश गोयल भाजपा के मीडिया प्रकोष्ठ संयोजक स्वर्गीय शरद गोयल के पिता हैं। धर्मेंद्र चौहान भाजपा खनन प्रकोष्ठ के संयोजक हैं। इसी प्रकार सोहन लाल शर्मा पूर्व पार्षद रहे हैं और वर्तमान में आदर्श मंडल अध्यक्ष हैं। मोहन राजोरिया और राजेश घाटे शहर भाजपा में जिला मंत्री हैं।
जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में सिंधी, बनिया और राजपूत समाज को प्रतिनिधित्व मिला है, जबकि दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण, कोली और महाराष्ट्रियन राजपूत को मौका मिला है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

मंगलवार, 6 जून 2017

पुष्कर घाटी में सुरंग के पीछे क्यों पड़ा है एडीए?

जानकारी के अनुसार पुष्कर घाटी में सुरंग बनाने की योजना के सिलसिले में कंसल्टेंट सेवाओं के लिए अजमेर विकास प्राधिकरण ने एक बार फिर मशक्कत शुरू कर दी है। सुरंग के सर्वे के लिए कंसल्टेंट तय करने के लिए निविदा जारी की गई है। इसके लिए प्री बिड मीटिंग 13 जून को रखी गई है। ऑनलाइन बिड सबमिट करने की तारीख 21 जून तय की गई है और 23 जून को टेक्निकल बिड खोली जाएगी।
यह एक अच्छी बात है कि यात्रियों की सुविधा के लिए प्राधिकरण सजग है, मगर सवाल ये उठता है कि जब बहुत पहले ही यह तथ्य सामने आ चुका है कि इस घाटी में सुरंग बनाना खतरे से खाली नहीं है तो आखिर क्यों इसको बनाने की कवायद की जा रही है?
आपको बता दें कि इस सुरंग की बात पहले भी कोई चौदह साल पहले आई थी। सन् 1990 में तत्कालीन पुष्कर विधायक व भेड़ ऊन राज्यमंत्री रमजान खान ने सुरंग की मांग उठाई थी। इसके बाद 1998 से 2003 तक भी यहां के विधायक रहते उन्होंने फिर दबाव बनाया। भाजपा के वरिष्ठ नेता औंकार सिंह लखावत ने भी भरपूर कोशिश की। इस पर वन विभाग, सार्वजनिक निर्माण विभाग और राजस्व विभाग ने सर्वे किया। सर्वे में नौसर स्थित माता मंदिर से पुष्कर रोड स्थित चमत्कारी बालाजी मंदिर तक के मार्ग का सुरंग बनाने के लिए चयन किया गया। इसमें नौसर से बालाजी के मंदिर तक पहाड़ी को काटते हुए सुरंग बनाने का प्रस्ताव तैयार किया गया। इस मार्ग की कुल लंबाई महज आधा किलोमीटर आई, जबकि घाटी से चलने पर यह रास्ता करीब ढाई किलोमीटर का होता है। सर्वे में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई थी कि अजमेर व पुष्कर को अलग करने वाली पहाड़ी इतनी मजबूत व सख्त नहीं है कि वहां सुरंग खोदी जा सके। अगर सुरंग खोदी गई तो वह कभी भी ढ़ह सकती है। सुरंग के व्यावहारिक धरातल पर संभव न होने की वजह से ही अजमेर को पुष्कर से जोडने के लिए रेल लाइन के प्रस्ताव पर काम किया गया, जिसमें औंकार सिंह लखावत ने अहम भूमिका निभाई थी। ऐसे में जाहिर तौर पर सुरंग का प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया।
एडीए में शिवशंकर हेड़ा की अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के बाद सुरंग बनाने की योजना पर फिर कार्रवाई शुरू हुई। इस बाबत एडीए की 1 दिसंबर 2016 को हुई बोर्ड बैठक में प्रस्ताव भी पारित हो गया और सर्वे के लिए निविदा आमंत्रित की गई। पहले तो सर्वे के लिए कंसलटेंट फर्म ही नहीं मिली। दूसरी बार एडीए ने दस लाख रुपए की निविदा निकाली तो एक कंपनी ने केवल फिजिबिलिटी और सर्वे पर ही साढ़े चार करोड़ रुपए खर्च बता दिया। इसे निरस्त करने के बाद एडीए प्रशासन फिर से सुरंग के लिए सर्वे रिपोर्ट तैयार करने में जुट गया है।
सवाल ये उठता है कि जब पुष्कर घाटी में सुरंग बनाना उचित नहीं है तो प्राधिकरण क्यों इसके पीछे पड़ा है? पूर्व में इस कवायद पर 15 लाख रुपए पूरे हो चुके हैं, क्या प्राधिकरण कुछ और राशि बर्बाद करके ही मानेगा?
एक सवाल ये भी है कि सुरंग की बात तब आई थी, जब कि वैकल्पिक मार्ग नहीं था, अब तो रेलवे मार्ग के अतिरिक्त बाईपास भी है, फिर क्यों घाटी के सौंदर्य के साथ छेड़छाड़ की जा रही है?
-तेजवानी गिरधर
7742067000

अपनी सरकार के निर्णय के विरुद्ध ही आना पड़ा देवनानी व जैन को

केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को ज्ञापन देते सुनील दत्त जैन
प्रदेश के शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व अजमेर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख सुनील दत्त जैन को अपनी ही पार्टी की केन्द्र सरकार के निर्णय के खिलाफ आगे आना पड़ गया। मुद्दा ये है कि सरकार ने हाल ही जीएसटी लागू करने का जो निर्णय किया है, उसकी वजह से नमकीन के सभी प्रकार के उत्पाद पर 5 प्रतिशत वेट की बजाय 12 प्रतिशत टैक्स लगा दिया गया है। यह निर्णय आगामी 1 जुलाई से लागू होगा।
असल में इस सिलसिले में राजस्थान के प्रमुख नमकीन कारोबारियों की एक बैठक हुई। इसमें राजस्थान नमकीन महासंघ बनाया गया, जिसमें हालांकि जैन ने कोई बड़ा जिम्मेदार पद नहीं लिया, मगर समझा जा सकता है कि उनका जो कद है, उसके मद्देनजर महासंघ में उनकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होगी। यह कम बात नहीं कि नमकीन कारोबारियों की बैठक में राज्य सरकार के राज्य मंत्री प्रो. देवनानी भी मौजूद रहे। समझा जा सकता है कि वे किसके कहने पर बैठक में पहुंचे। यह सर्वविदित ही है कि जैन भी अजमेर के एक प्रमुख नमकीन कारोबारी हैं। इस कारण जीएसटी की वजह से इस कारोबार पर पडऩे वाले असर पर उनकी बारीक पकड़ होगी ही।
जैन सहित सभी नमकीन कारोबारियों का तर्क है कि राजस्थान शुष्क प्रदेश है, इस कारण यहां नमकीन का उपयोग सब्जी के बतौर भी किया जाता है। अर्थात यह आम उपयोग की वस्तु है। अकेले राजस्थान में टैक्स बढ़ाने से 10 लाख लोग प्रभावित होंगे। राज्य में नमकीन का कारोबार कुटीर उद्योग की तरह हैं। हजारों परिवारों की आजीविका इस उद्योग पर निर्भर है। यदि 12 प्रतिशत टैक्स वसूला गया तो टैक्स चोरी की संभावना भी बढ़ जाएगी। उनकी बात में दम है। इस प्रकार का असर अन्य उद्योगों पर भी पड़ रहा होगा, मगर चूंकि खुद जैन नमकीन कारोबारी हैं, इस कारण उन्हें अपनी जमात की खातिर सरकार के निर्णय के विरुद्ध आगे आना पड़ा।
बहरहाल, असल मुद्दा ये भी है कि क्या केन्द्र सरकार ने राजस्थान के हालात का सर्वे किए बिना ही नमकीन पर टैक्स बढ़ाने का निर्णय कर लिया। स्पष्ट है कि इस प्रकार का निर्णय सरकारी कारिंदों ने एसी चैंबर में बैठ कर किया है, जिस पर सरकार ने बिना सोचे मुहर लगा दी। कदाचित इसके पीछे एक सोच ये भी रहती होगी कि एक बार तो निर्णय सुना दो, फिर जिसको जो तकलीफ होगी, वह सामने आएगा, और तब उस पर विचार किया जाएगा। मगर ऐसा भी तो हो सकता था कि निर्णय लागू करने से पहले संबंधितों से भी चर्चा की जाती, ताकि टैक्स घोषित करने और उसके बाद विशेष परिस्थिति के मद्देनजर वापस या कम करने की कवायद नहीं करनी पड़ती।
अव्वल तो अभी ये देखने वाली बात है कि क्या सरकार राजस्थान नमकीन महासंघ के तर्क से सहमत होती भी है या नहीं? अगर इसी प्रकार अन्य उद्योगों के व्यवसायी अथवा अन्य राज्यों के लोग भी किसी अन्य उत्पाद को लेकर टैक्स कम करने की मांग करने लगेंगे तो बात कहां तक जाएगी। खैर, महासंघ ने मांग रखी है। देवनानी मुख्यमंत्री और जीएसटी काउंसिल की सदस्य श्रीमती वसुंधरा राजे से बात करेंगे। अगर वे सहमत हो भी गईं तो उन्हें जीएसटी काउंसिल पर दबाव बनाना होगा। इसमें कितना समय लगेगा, तब तक तो टैक्स लागू करने की तारीख 1 जुलाई आ ही जाएगी। कुल मिला कर यह अच्छी बात है कि नमकीन कारोबारियों ने भले ही अपने हित की खातिर मुद्दा उठाया है, उसका लाभ अंतत: आम आदमी को ही मिलेगा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शनिवार, 3 जून 2017

सात साल पहले की थी ऐसे एलिवेटेड रोड की कल्पना

काफी जद्दोजहद के बाद आज जिस बहुप्रतीक्षित व बहुअपेक्षित एलिवेटेड रोड को बनाए जाने का रास्ता खुला है, उसका सपना बहुत पुराना है। दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी ने सिटीजंस कौंसिल के माध्यम से सबसे पहले इसकी मांग पुरजोर तरीके से उठाई थी। अन्य स्वयं सेवी संगठनों व सामाजिक संस्थाओं ने भी इस पर जोर दिया। करीब सात साल पहले प्रकाशित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस में स्वामी समूह के सीएमडी श्री कंवल प्रकाश किशनानी ने अपने आलेख में इसकी जरूरत प्रतिपादित की। इतना ही नहीं, उन्होंने एलिवेटेड रोड का एक काल्पनिक चित्र भी आलेख के साथ दिया। दिलचस्प बात है कि उस चित्र में रेलवे स्टेशन परिसर में कुछ बहुमंजिला इमारतें दर्शाईं तो लोगों ने कहा कि ऐसा भले कैसे संभव हो सकता है। मगर आज आप देखिए बिलकुल वैसी की एक बहुमंजिला इमारत इस वक्त निर्माणाधीन है, जो श्री किशनानी के स्वप्र दृष्टा होने का आभास कराती है। आपको ख्याल होगा कि ये वही शख्स है, जिसने अजमेर की महानगरीय दिशा में कदम उठाते हुए शहर को पहला व्यावसायिक कॉम्पलैक्स, स्वामी कॉम्पलैक्स दिया था।

शुक्रवार, 2 जून 2017

स्मार्ट सिटी के साथ स्मार्ट हो रही हैं अनिता भदेल

जैसे जैसे अजमेर स्मार्ट सिटी बनने की ओर बढ़ रहा है, यहां की कई चीजें, बातें, रोड, लुक आदि,  सभी बदल रहे हैं। ऐसे में भला हमारे की यहां की राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल कैसे पीछे रह सकती हैं। उनके फेसबुक अकाउंट से अजमेर वासियों ने जाना वे इन दिनों पेरिस में हैं। चौंकाया उनके पेरिस में होने ने नहीं, बल्कि उनके बदले बदले अंदाज ने। उस अंदाज का वर्णन बेमानी है, खुद आप ही देख लीजिए। सहसा आपको यकीन ही नहीं होगा कि क्या ये भोली भाली, सीधी सादी, सादगीपसंद अनिता भदेल ही हैं। उनके इस लुक की अजमेर वासियों में दिन भर चर्चा रही। यह ठीक है कि वे मंत्री हैं, इस कारण उन्हें अपनी वेशभूषा, अंदाज आदि का पूरा ख्याल रखना होता है। मगर आखिर उनका भी नारी मन है। पेरिस में जाने पर अपनी पर आ गया। बहरहाल, जो कुछ भी हो, वे लग बेहद खूबसूरत रही हैं।

गुरुवार, 1 जून 2017

कलैक्टर साहब, क्या ऐसे लोकतंत्र की हत्या नहीं हो जाएगी?

सम्मानीय कलैक्टर साहब,
आपने हाल ही आदेश जारी किए हैं कि सरकारी कर्मचारियों के साथ अभद्रता होने पर पुलिस तुरंत मुकदमा दर्ज करेगी। आपने ऐसा इसलिए किया ताकि कर्मचारी भयमुक्त हो कर कार्य कर सकें। असल में आपने ऐसा राजकार्यों के निवर्हन के दौरान असामाजिक व्यक्तियों द्वारा व्यवधान किए जाने के संदर्भ में कहा है। बेशक आपका आदेश सराहनीय है। ऐसा होना ही चाहिए।
सच तो ये है कि यह व्यवस्था पहले से ही है। बाकायदा कानून बना हुआ है। आपने कोई नया आदेश जारी नहीं किया है। आपने रिपीट मात्र किया है। मगर जितना जोर देकर कहा है, उसके दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। कहीं ऐसा न हो कि आपका कर्मचारी निरंकुश हो जाए? अव्वल तो यह कैसे तय मान लिया जाए कि हर कर्मचारी ईमानदार है? एक बारगी मान भी लिया जाए, मगर वह जिस पर कार्यवाही कर रहा है, उसकी भी कोई अपेक्षा हो सकती है। क्या हर बार जनता का व्यक्ति गलत ही होता है और कर्मचारी हर बार सही? मान लो किसी व्यक्ति के साथ कोई कर्मचारी ज्यादती कर रहा है, तो उसे कौन तय करेगा कि वह ठीक कर  रहा है? फिर अभद्रता का पैरामीटर क्या है? बेशक कर्मचारी के साथ हाथापाई करना राजकाज में बाधा है, मगर केवल विरोध दर्ज करने मात्र को भी तो कर्मचारी राजकाज में बाधा मान कर पुलिस को शिकायत कर सकता है। हो सकता है कि आपका तर्क ये हो कि मौके पर कर्मचारी जो कर रहा है, उसे करने दिया जाए, अगर शिकायत है तो उच्च अधिकारी से कहा जाए। मगर जिस तरह का आदेश है, उसे देखते तो यही लगता है कि आम आदमी की सुनवाई उच्च अधिकारी भी करने वाला नहीं है, वह अपने कर्मचारी का ही पक्ष लेगा।
उदाहरण के तौर पर कर्मचारी किसी का कथित अतिक्रमण हटा रहा है। अगर दूसरे पक्ष के पास दस्तावेजी सबूत हैं कि वह अतिक्रमण नहीं है, या फिर कोर्ट का स्थगनादेश है, तो क्या वह इस डर से कि अगर विरोध करूंगा तो मेरे खिलाफ मुकदमा दर्ज हो जाएगा, वह चुपचाप रह जाए? कर्मचारी तो तोडफ़ोड़ करके चला जाएगा, यह बाद की बात है कि कोर्ट की अवमानना साबित होने पर कोर्ट कर्मचारी के खिलाफ फैसला करेगा। मगर तब तक तो जो तोडफ़ोड़ हुई है, उसका नुकसान तो आम आदमी ही भुगतेगा ना? ऐसे अनेक मामले सामने आते रहे हैं, जबकि जबरन कार्यवाही के दौरान गेहूं के साथ घुन भी पिस गया, बाद में जा कर कर्मचारी को कोर्ट की फटकार लगी।
ऐसे अनेक प्रकार के मामले हो सकते हैं। कम से कम आमजन को मौके पर अपना पक्ष रखने का अधिकार तो होना ही चाहिए। विरोध जताने का भी अधिकार होना चाहिए। यदि कोई विरोध स्वरूप अपनी बात कह रहा है और आपके कर्मचारी ने उसे अभद्रता मान लिया तो पुलिस तो आम आदमी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लेगी।
काश, आपने जरा इसका भी ख्याल कर लिया होता कि आखिरकार हम लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं, जिसमें जनता व जनहित ही सर्वोपरि है। राजकाज करने वालों को पूरी निष्पक्षता के साथ काम करने की छूट होनी ही चाहिए, मगर वे निरंकुश न हो जाएं, इसको लेकर आपने एक भी शब्द नहीं कहा, जिससे एक बारगी ऐसा आभास होने लगा मानो हम प्रजातंत्र में नहीं बल्कि राजतंत्र में जी रहे हों। अजमेर के कार्यकाल में आपने जो निष्पक्षता, कर्मठता से जनहित के काम में आ रही बाधाओं को तुरंत हटाया है, उससे आपकी छवि एक सख्त अफसर की भी बनी है। कहीं ऐसा न हो कि आपकी इसी छवि की आड़ में भ्रष्ट व बेईमान कर्मचारी आपके आदेश का दुरुपयोग न करने लगें?
-तेजवानी गिरधर
7742067000