रविवार, 30 अक्तूबर 2011

न्यास अध्यक्ष पद पर नियुक्ति की उलटी गिनती शुरू

आखिरी दौर में व्यवसायी खंडेलवाल के साथ हो रही है डॉ. बाहेती व डॉ. लाल के नामों पर चर्चा
अजमेर नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति होने के करीब बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि काउंट डाउन शुरू हो गया है और चंद दिन के भीतर नियुक्ति हो जाएगी। जानकारी ये है कि आखिरी चरण में व्यवसायी कालीचरण खंडेलवाल के साथ पूर्व विधायक व पूर्व न्यास अध्यक्ष डॉ. बाहेती व डिप्टी सीएमएचओ डॉ. लाल थदानी के नामों पर भी चर्चा हो रही है। हालांकि इस पद के सबसे सशक्त दावेदार और सर्वाधिक भागदौड़ करने वाले नरेन शहाणी भगत को पूरी उम्मीद है कि उन्हें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने वादे के मुताबिक निराश नहीं करेंगे।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि डॉ. बाहेती का नाम उनके अशोक गहलोत के करीब होने के कारण पैनल में है। अगर गहलोत अपने मन की कर पाए तो वे जरूर उन्हें ही अध्यक्ष बनाएंगे, इसी कारण पैनल में उनके नाम को रखा गया है, मगर समझा जाता है कि उनके नाम पर केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट ने अडंगा लगा रखा है। उनसे पायटल की नाइत्तफाकी जगजाहिर है। वे अपनी पसंद का ही न्यास अध्यक्ष चाहते हैं। हालांकि उनकी पहली पसंद पूर्व विधायक डॉ. के. सी. चौधरी ही थे, मगर अजमेर के स्थानीय वणिक वर्ग ने उन्हें बाहरी बता कर यह दबाव बनाया कि स्थानीय को ही मौका दिया जाए। इसमें अव्वल खंडेलवाल रहे। उन्हें वैश्य महासभा का पूर्ण समर्थन हासिल है। चर्चा तो यहां तक है कि वे एक बड़ी राशि पार्टी फंड को देने को तैयार हैं। सच्चाई क्या है ये तो पता नहीं, मगर ये आम चर्चा है कि अब रेट चार से बढ़ कर सात करोड़ तक हो गई है। हालांकि सच्चाई ये भी है कि जैसे ही उनका नाम उभरा था, अनेक अन्य दावेदारों ने उनके खिलाफ पुलिंदे के पुलिंदे ऊपर पहुंचा दिए। बताते हैं कि उनको आरएसएस के करीब बता कर उनको इस पद से नवाजे जाने का विरोध किया गया है। इन शिकायतों को कितना गंभीरता से लिया जाता है, कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि ये भाजपा नहीं, कांगे्रस है, जहां पार्टी कैडर का अतिक्रमण भाजपा की तुलना में आसानी से कर दिया जा सकता है। संभव है आगामी विधानसभा चुनाव में वैश्य महासभा को शांत करने के मकसद से उनके नाम पर मोहर लगा दी जाए। उनके नाम पर अशोक गहलोत व सचिन पायलट ने तो सहमति दी ही है, दिग्गज कांग्रेसी नेता मोतीलाल वोरा का भी उन पर वरदहस्त है। और अगर वोरा अड़ गए तो उन्हें अध्यक्ष बनने से कोई नहीं रोक पाएगा।
बहरहाल, जहां तक डॉ. लाल थदानी का सवाल है, यद्यपि वे शुरू से यही कहते रहे हैं और गहलोत से भी कह चुके हैं कि फिलहाल उनकी कोई रुचि नहीं है, क्योंकि वे सरकारी नौकरी में हैं, मगर इसके बावजूद उनका नाम पैनल में डाला गया है, जो कि रहस्यपूर्ण ही है। इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि वे सिंधी समाज के दिग्गज नेता स्वर्गीय किशन मोटवाणी के करीब रहे और उन्हीं की बदौलत राजस्थान सिंधी अकादमी के अध्यक्ष भी बने। वे काफी चतुर व तेज-तर्रार हैं। सामाजिक क्षेत्र में भी उन्होंने लंबे समय तक कार्य किया। मीडिया फ्रेंडली होने के कारण अक्सर अखबारों में छाये रहते हैं। भले ही वे न्यास अध्यक्ष बनने में कोई रुचि न रखते हों, मगर उनके लिए यह सुखद ही है कि उनकी गिनती सिंधी समाज के प्रमुख कांग्रेसी नेताओं में शुमार की जा रही है। वे लाख मना करें, मगर उनकी एक्टिविटी के कारण मीडिया को यकीन ही नहीं होता कि वे इस दौड़ में नहीं हैं। कदाचित वे भी यही चाहते हैं, ताकि बाद में नौकरी के लिए जरूरी सेवाकाल पूरा करके सक्रिय राजनीति में उतर सकें।
बात न्यास अध्यक्ष की हो तो नरेन शहाणी भगत का नाम आना लाजिमी है। जब से उन्हें विधानसभा के टिकट से वंचित किया गया है, बताते हैं कि गहलोत ने उन्हें आश्वस्त कर रखा है कि वे उन्हें जरूर कहीं समायोजित करेंगे। हालांकि उनका पूरा जोर न्यास अध्यक्ष पद के लिए है, मगर कोई अड़चन आई तो उन्हें सिंधी अकादमी का अध्यक्ष बनने के लिए राजी करने की कोशिश की जा सकती है। ये भी हो सकता है कि उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट देने का आश्वासन भी दे दिया जाए। हां, इतना पक्का है कि उन्हें कुछ न कुछ तो जरूर दिया जाएगा, क्योंकि वर्तमान में वे सर्वाधिक सक्रिय सामाजिक नेता हैं।