शनिवार, 30 जून 2012

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का शिविर : अब लकीर पीटने से क्या?

कैसी विडंबना है कि एक ओर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसरसंघ चालक मोहन राव भागवत सहित संघ के अन्य कार्यकर्ता हिंदुत्व की अनूठी परिभाषा पर प्रयोग करते हुए मुसलमानों को भी हिंदू मान रहे हैं, क्योंकि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू ही है, तो दूसरी ओर इसी सिलसिले में हिंदुओं की आस्था के केन्द्र तीर्थराज पुष्कर में आयोजित मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के शिविर को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है। एक ओर जहां दरगाह कमेटी के सदस्य इलियास कादरी व कुछ अन्य मुस्लिम नेताओं ने शिविर पर सवाल उठाते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से शिविर की गहन जांच की मांग की है, वहीं अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी ने पलट वार करते हुए शिविर पर अंगुली उठाने को चंद लोगों की बौखलाहट करार दे दिया है।
अव्वल तो पूर्व घोषित शिविर हो जाने के बाद उस पर सवाल उठाना सांप निकल जाने के बाद लकीन पीटने के समान है। अगर परेशानी इस बात पर थी कि दरगाह बम विस्फोट के कथित आरोपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने इसमें कैसे शिरकत की तो यह तो पहले से ही तय था कि वे इस शिविर को संबोधित करेंगे। तब किसी को कुछ नहीं सूझा और अब सवाल ये उठाया जा रहा है कि शिविर की अनुमति ली गई थी या नहीं। यदि ऐसा शिविर आयोजित करना कानूनन गलत था तो उस पर पहले ऐतराज किया जाना चाहिए था। हालांकि जिला कलेक्टर वैभव गालरिया ने यह कह कर कि पल्ला झाड़ लिया कि जांच के बाद ही बता पाऊंगा कि शिविर के लिए अनुमति ली गई या नहीं, मगर प्रो. देवनानी तो यह कह कर विरोधियों का मुंह बंद करने की कोशिश की ही है कि ऐसे शिविर हेतु प्रशासन से किसी प्रकार की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। शिविर कोई गोपनीय नहीं था, शिविर के संबंध में मीडिया को पूरी जानकारी थी तथा मीडिया ने शिविर में वक्ताओं द्वारा व्यक्त राष्ट्रवादी विचारों को प्रमुखता से छापा भी है।
वक्ताओं द्वारा गैर जिम्मेदाराना बयान एवं सामाजिक व धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले भाषण दिए जाने की बात सिर्फ कादरी ही कह रहे हैं। अखबारों में तो ऐसा कुछ नजर नहीं आया। इस मामले में देवनानी की यह बात सही है कि जब भी हिंदू-मुस्लिम एकता की बात होती है, चंद लोगों के पेट में मरोड़ उठने लगते हैं, जो मुस्लिमों को वोट बैंक के रूप में प्रयोग करते हैं और कट्टरता व धार्मिक उन्माद फैलाकर उनके विकास व उन्नति को अवरुद्ध करते हैं। मजहब के नाम पर आपस में बांटकर राजनीति करने वालों व कुछ स्वार्थी तत्वों को देश में भाईचारा बढ़ाने के लिए किए जा रहे अच्छे काम गले नहीं उतर रहे हैं। कादरी की यह बात जरूर सही है कि शिविर में कुछ अज्ञात मुल्लाओं व कुछ अजनबी मुसलमान चेहरों को एकत्रित किया गया था। इसमें स्थानीय मुसलमानों की मौजूदगी नगण्य ही थी।
रहा सवाल इंद्रेश कुमार का तो देवनानी के इस तर्क में जरूर दम है कि सरकार एवं जांच एजेंसियां उन पर लगाए गए किसी आरोप को सिद्ध नहीं कर पाई है, मगर कादरी की यह बात भी सही कि जांच एजेंसी व अदालत ने उन्हें अभी क्लीन चिट नहीं दी है। मीडिया को भी पता नहीं कि वे पाक साफ हैं, इस कारण जब मीडिया ने इस बारे में स्वयं इंद्रेश कुमार से सवाल किए तो वे बौखला गए और मीडिया से बात करने से ही मना कर दिया। बाद में बमुश्किल राजी हुए।
जहां तक शिविर के मकसद का सवाल है, अपुन को एक तो यही लगा था कि यह मुस्लिमों को संघ से जोडऩे की कवायद है और इसके लिए हिंदुओं के तीर्थस्थल पुष्कर को चुनना सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। दूसरा इसके बहाने शिविर संयोजक सलावत खान पुष्कर में चुनावी जमीन की तलाश कर रहे हैं। षडय़ंत्र जैसा कुछ नहीं। मगर कांग्रेस विचारधारा वाले मुस्लिमों के लिए यह षडय़ंत्र के समान ही है, क्योंकि उनकी झोली में पड़े मुस्लिमों में संघ सेंध मारने की कोशिश कर रहा है।
हां, इस पर जरूर मतभिन्नता हो सकती है कि संघ मुस्लिमों को भी हिंदू बता कर उन्हें मुख्य धारा में लाना चाहता है, इसमें पूरी ईमानदारी है या फिर केवल वोटों की राजनीति। ये सवाल महज इस कारण उठता है कि मुसलमानों को अपना भाई कहने में जुबान को कोई जोर नहीं आता, मगर धरातल का सच ये ही है कि दिल को बड़ी तकलीफ होती है। कम से कम संघनिष्ठ और हिंदूवादियों को। कदाचित हिंदू-मुस्लिम के बीच इस खटास का ही परिणाम है कि पूर्व सर संघ चालक कु सी सुदर्शन और इंद्रेश कुमार के साथ फोटो खिंचवाने पर खादिम सैयद अफशान चिश्ती का विरोध शुरू हो गया है। खादिमों ने अंजुमन मोईनिया फखरिया चिश्तिया खुद्दाम सैयद जादगान को पत्र लिख कर खादिम के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।
खैर, अब शिविर के मसले पर जो कुछ भी आरोप-प्रत्यारोप हो रहे हैं, वे लकीर पीटने के समान है और सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील अजमेर की सेहत के लिए तो अच्छा नहीं है। 

-तेजवानी गिरधर
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tejwanig@gmail.com

डटे हुए हैं डीएसओ गोयल, आखिर माजरा क्या है?


भारी विरोध और अनेक आरोपों के बाद भी अजमेर के जिला रसद अधिकारी हरिशंकर गोयल अपने पद पर डटे हुए हैं। यह आश्चर्यजनक इस कारण भी है कि कांग्रेस राज में कांग्रसियों के ही विरोध के बाद भी उनका बाल भी बांका नहीं हुआ है। अब तक तो उनकी शिकायत जिला कलेक्टर और मुख्यमंत्री से ही होती रही है, मगर अब तो खुले आम उनके मुंह पर ही उन्हें भ्रष्ट बताया जा रहा है। नए राशन कार्ड बनाने की प्रक्रिया के सिलसिले में नगर निगम सभागार में आयोजित बैठक में पार्षदों ने उन्हें खुले आम भ्रष्ट कहा गया और राशन वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार सहित कई अहम मुद्दों पर गोयल को आड़े हाथों लिया। एक पार्षद ने कहा कि विभाग द्वारा प्रत्येक राशन की दुकान से चार सौ रुपए प्रति माह की रिश्वत ली जाती है। पार्षद मोहनलाल शर्मा ने यह कहते हुए सनसनी फैला दी कि गोयल तो खुद भ्रष्ट हैं, यह राशि इनके पास भी तो जाती है। इस पर गोयल ने कहा कि यह आरोप झूठा है। किसी की सोच पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है।
बहरहाल सवाल ये है कि इतने विवादास्पद बनाए जाने के बावजूद वे बेपरवाह बने हुए हैं, तो इसका मतलब ये है कि या तो वे वाकई ईमानदार हैं और बेईमान होने के आरोप राजनीति का हिस्सा हैं और या फिर उच्चाधिकारियों व रसद विभाग के मंत्री बाबूलाल नागर तक उनकी पकड़ इतनी मजबूत है कि कोई कितना भी भौंके, वे मस्त हाथी तरह ही चल रहे हैं। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि जांको राखे साईयां, मार सके ना कोय।
ज्ञातव्य है कि गोयल की कार्यप्रणाली से सर्वप्रथम भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने नाराजगी दर्शायी थी। श्रीमती भदेल ने विधानसभा में यहां तक कह दिया था कि अजमेर में खाद्य मंत्री की नहीं बल्कि गोयल की चलती है। गोयल पर दूसरा प्रहार रसद विभाग की जिला स्तरीय सलाहकार समिति के सदस्य प्रमुख कांग्रेसी नेता महेश ओझा व शैलेन्द्र अग्रवाल ने किया था और आरोप लगाया कि गोयल समिति की उपेक्षा कर रहे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री को शिकायत भेज कर उनके खिलाफ कार्यवाही करने व स्थानांतरण करने की मांग की है। गोयल की शिकायत राज्यसभा सदस्य प्रभा ठाकुर ने भी मुख्यमंत्री से कर रखी है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि राशन की दुकानों के आवंटन की प्रणाली में धांधली बाबत अनेक शिकायतें सामने आई हैं। राशन वितरण संबंधी अनियमितताओं के कारण अजमेर की जनता परेशान है। जिले में गैस एजेंसियों की मनमानी व रसाई गैस की सरेआम कालाबाजारी के कारण उपभोक्ताओं को समय पर रसोई गैस नहीं मिलने की शिकायतें लगातार आ रही हैं। अनुरोध है कि जिला रसद अधिकारी का तत्काल स्थानांतरण किया जाए और उन्हें जनहित संबंधी जिम्मेदारी नहीं दी जाए।
इन सभी शिकायतों का गोयल पर कोई असर नहीं पड़ा। यहां तक जिन राशन वालों से रिश्वत लेने का आरोप है, उन पर भी उनकी गहरी पकड़ है। तभी तो महेश ओझा व शैलेन्द्र अग्रवाल पर पलट वार करते हुए अजमेर डिस्ट्रिक्ट फेयर प्राइज शॉप कीपर्स एसोसिएशन ने आरोप जड़ दिया कि वे राशन वालों से अवैध वसूली करते हैं। उन्होंने बाकायदा मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन जिला कलेक्टर को भी दिया। हालांकि इसे साबित करना कत्तई नामुमकिन है कि गोयल के कहने पर ही राशन की दुकान वाले आगे आए, मगर ये सवाल तो उठ ही गया कि यदि राशन की दुकान वाले सलाहकार समिति के सदस्यों से पीडि़त थे तो वे गोयल पर हमले से पहले क्यों नहीं बोले? गोयल की शिकायत होने पर ही उन्हें सलाहकार समिति के सदस्यों की करतूत याद कैसे आई?
जो कुछ भी हो, मगर इतना तय है कि गोयल ने अब तक किसी की भी परवाह किए बिना शुद्ध के लिए युद्ध सहित अवैध रसोई गैस की धरपकड़ के मामले में धूम मचा रखी है। भ्रष्ट व्यापारियों में उनका जबरदस्त खौफ है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि गोयल बेहद ईमानदार और कड़क अफसर हैं।  दूसरी ओर चर्चा ये भी है कि उनकी ईमानदारी इस कारण स्थापित है क्योंकि  कोई भी दुकानदार उनसे पंगा मोल नहीं लेना चाहता। वैसे भ्ी व्यापारी ले दे कर मामला सुलटाने में विश्वास रखते हैं। कदाचित इसी कारण आज तक एक भी मामले में गोयल के भ्रष्टाचार को साबित नहीं किया जा सका है।

शुक्रवार, 29 जून 2012

नसीम अखतर के खाते में खास उपलब्धि दर्ज

गहलोत ने दिए सावित्री स्कूल को अधिग्रहित करने के निर्देश
अजमेर। अजमेर जिले के पुष्कर विधानसभा क्षेत्र की कांग्रेस विधायक और राज्य की शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर के प्रयास आखिर रंग लाए। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अजमेर की सावित्री सीनियर सेकंडरी स्कूल को राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहित करने की स्वीकृति प्रदान कर दी। नसीम अख्तर बधाई पात्र हैं। बधाई के पात्र नए जिला कलेक्टर वैभव गालरिया भी हैं, जिनके ताजा कार्यकाल के शुरू में ही एक ऐतिहासिक निर्णय हुआ है। अतिरिक्त जिला कलेक्टर मोहम्मद हनीफ स्वाभाविक रूप से शाबाशी के हकदार हैं, जिन्होंने स्कूल प्रशासक होने के नाते अपनी इच्छा शक्ति दिखाते हुए स्कूल को अधिग्रहीत करने का सटीक प्रस्ताव बना कर सरकार को भेजा। इसमें कोई दोराय नहीं कि स्कूल का वजूद बचाने की खातिर शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता, पूर्व विधायक डा. श्रीगोपाल बाहेती सहित अन्य सभी राजनीतिक नेताओं के साथ राजस्थान शिक्षक संघ राधाकृष्णन के प्रदेशाध्यक्ष विजय सोनी ने भी पूरा दबाव बनाया और मीडिया ने भी सामाजिक सरोकार के दिशा में सक्रिय भूमिका अदा की। उन सभी का भी शुक्रिया अदा किया जाना चाहिए, जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्क्ष रूप से इस मुहिम में सहयोग किया। और सबसे ज्यादा बधाई की पात्र हैं, वे दो हजार छात्राएं और उनके अभिभावक, जिनकी दुआओं ने असर दिखाया है।
बेशक अजमेर के अजमेर के तकरीबन सौ साल पुराने व प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान सावित्री कन्या सीनियर सेकंडरी स्कूल का वजूद कायम रहने से सभी अजमेरवासियों को खुशी होगी। यहां उल्लेखनीय है कि इस स्कूल सभी सुविधाओं से परिपूर्ण है। स्कूल के पास रसायन विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, भौतिक विज्ञान एवं गृह विज्ञान की आधुनिक संसाधनों से सुसज्जित प्रयोगशालाओं सहित उच्च कोटि की अन्य सुविधाएं भी हैं। परिणाम की दृष्टि से भी स्कूल का बेहतरीन रिकार्ड रहा है। इस वर्ष बोर्ड की सभी परीक्षाओं में विद्यालय की छात्राओं ने जिला मेरिट में जगह बनाई है। स्कूल के खाते में तकरीबन 3 करोड़ से अधिक की राशि मौजूद है। इसके अलावा करोड़ों रुपए मूल्य के विद्यालयों के भवन, बस व अन्य चल-अचल संपत्ति मौजूद है। कुल मिला कर स्कूल में संसाधन पूरे हैं। इसे चलाने के लिए सरकार को अपने स्तर पर बस स्टाफ की व्यवस्था करनी होगी। आज जब कि महिला शिक्षा पर सर्वाधिक जोर दिया जा रहा है, ऐसे बेहतरीन स्कूल को बचा कर सरकार ने अपने दायित्व का भलीभांति निर्वहन किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही स्कूल में स्टाफ की तैनाती कर इसे नए शिक्षण सत्र में अध्ययन-अध्यापन कार्य सुचारू रूप से शुरू हो जाएगा।

-तेजवानी गिरधर
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tejwanig@gmail.com

बुधवार, 27 जून 2012

क्या सलावत पुष्कर से चुनाव की तैयारी कर रहे हैं?


भाजपा नेता सलावत खां की ओर से मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के बैनर तले तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने को जहां संघ की ओर से मुसलमानों को अपने साथ जोडऩे की कवायद माना जा रहा है, वहीं आयोजन के लिए पुष्कर का चयन करने को आयोजन संयोजक सलावत खान की पुष्कर विधानसभा सीट से चुनाव लडऩे की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है।
तीर्थराज पुष्कर के होटल न्यू पार्क में आयोजित शिविर की महत्ता इसी से जाहिर हो जाती है कि इसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सरसंघ चालक कु. सी. सुदर्शन व मंच के मार्गदर्शक इंद्रेश कुमार ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई, वहीं देशभर से करीब डेढ़ सौ प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इंद्रेश कुमार वे ही हैं, जो कि मुसलमानों को संघ के जोडऩे की कार्ययोजना के थिंक टैंक हैं और जिन पर दरगाह बम ब्लास्ट मामले में शामिल होने के आरोप लग चुके हैं। जाहिर सी बात है शिविर आयोजित करवाने में उनकी अहम भूमिका रही है और सुदर्शन को लाने का श्रेय भी उन्हीं के खाते में जाता है। शिविर के लिए पुष्कर का चयन उन्हीं की सोची समझी रणनीति नजर आती है। मगर चूंकि शिविर के संयोजक की भूमिका सलावत खान ने अदा की, इस कारण राजनीतिक हलकों में यही माना जा रहा है कि वे पुष्कर से चुनाव लडऩे की योजना बना रहे हैं।
आइये, जरा ये समझ लें कि पुष्कर से चुनाव लडऩे की उनकी रणनीति का गणित क्या हो सकता है। उल्लेखनीय है कि सलावत की पुष्कर सीट पर नजर काफी समय से रही है। हिंदुओं के सर्वोच्च तीर्थस्थल को अपने आंचल में समेटे इस सीट से पूर्व में भी पूर्व मंत्री स्वर्गीय रमजान खान विधायक रह चुके हैं। पूर्व में भाजपा रमजान के पुष्कर से जीतने को इस रूप में भुना चुकी है कि मुसलमानों की भाजपा से दूरी की मान्यता गलतफहमी है। अकेले यही गिनाने के लिए कि भाजपा के पास भी अच्छे मुस्लिम नेता हैं, रमजान खां को मंत्री भी बनाया गया। रमजान खान यहां से 1985, 1990 व 1998 में चुनाव जीते थे। 1993 में उन्हें विष्णु मोदी ने और उसके बाद 2003 में डा. श्रीगोपाल बाहेती ने परास्त किया। मोदी से हारने की वजह ये रही कि उनका चुनाव मैनेजमेंट बहुत तगड़ा था। हार जीत का अंतर कुछ अधिक नहीं रहा। मोदी (34,747) ने रमजान खां (31,734) को मात्र 3 हजार 13 मतों से पराजित किया था।
डा. बाहेती से रमजान इस कारण हारे कि भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा ने निर्दलीय रूप से मैदान में रह कर तकरीबन तीस हजार वोटों की सेंध मार दी थी। बाहेती (40,833) ने रमजान खां (33,735) को 7 हजार 98 मतों से पराजित किया था, जबकि पलाड़ा ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 29 हजार 630 वोट लिए थे। स्पष्ट है कि रमजान केवल पलाड़ा के मैदान में रहने के कारण हारे थे। यदि पलाड़ा नहीं होते तो रमजान को हराना कत्तई नामुमकिन था।
कुल मिला कर यह सीट भाजपा मुस्लिम प्रत्याशी के लिए काफी मुफीद रहती है। एक तो उसे मुस्लिमों के पूरे वोट मिलने की उम्मीद होती है, दूसरा भाजपा व हिंदू मानसिकता के वोट भी स्वाभाविक रूप से मिल जाते हैं। इसी गणित के तहत रमजान तीन बार विधायक रहे और दो बार निकटतम प्रतिद्वंद्वी। हालांकि एक फैक्टर ये भी है कि रमजान पुष्कर के लोकप्रिय नेता थे। गांव-गांव ढ़ाणी-ढ़ाणी उनकी जबदस्त पकड़ थी। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उसके मुस्लिम प्रत्याशी के लिए यह सीट उपयुक्त नहीं है, फिर भी पिछली बार श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ (42 हजार 881) ने भाजपा प्रत्याशी पलाड़ा (36 हजार 347) को 6 हजार 534 मतों से हरा दिया। वजह ये रही कि भाजपा के बागी श्रवणसिंह रावत 27 हजार 612 वोट खा गए।
बहरहाल समझा जाता है कि सलावत खान ने बहुत सोची समझी रणनीति के तहत ही मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित करवाया। अब उनके लिए भाजपा की टिकट की दावेदारी आसान हो जाएगी। हालांकि पलाड़ा की दावेदारी अब भी मजबूत है, मगर उनके पास केकड़ी व अजमेर का भी विकल्प है। इस विधानसभा क्षेत्र में रावतों की बहुलता के कारण शहर भाजपा अध्यक्ष व पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत भी संभावित दावेदारों की गिनती में आते हैं। इसी प्रकार नगर निगम के उप महापौर सोमरत्न आर्य भी यहां अपनी जमीन तलाश रहे हैं।

-तेजवानी गिरधर
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क्यों नहीं हो रहा कृषि उपज मंडी के अध्यक्ष का चुनाव?

अजमेर की कृषि उपज मंडी समिति के अध्यक्ष श्री सिरोनारायण मीणा के निधन को सात माह से भी ज्यादा का वक्त बीत चुका है, मगर उनके स्थान पर नए अध्यक्ष का चुनाव नहीं कराया जा रहा है। समिति की उपाध्यक्ष श्रीमती शहनाज ही कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में काबिज हैं।
नियमानुसार किसी भी सदस्य अथवा पदाधिकारी का निधन होने पर उपचुनाव छह माह के भीतर हो जाना चाहिए। वह समयावधि भी बीत चुकी है, मगर कृषि विपणन निदेशालय ने चुप्पी साध रखी है। कायदे से मीणा के स्थान पर नए अध्यक्ष का चुनाव कराने से पहले उस वार्ड नंबर का उपचुनाव कराया जाना जरूरी है, जहां से कि पूर्व अध्यक्ष सिरोनारायण निर्वाचित हुए थे। यह वार्ड अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है और अध्यक्ष का पद भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
ज्ञातव्य है कि मीणा ने गत 29 सितंबर 2011 को अध्यक्ष पद संभाला था, मगर दुर्भाग्य से 6 नवंबर 2011 को उनका निधन हो गया। इस पर 18 नवंबर को उनके स्थान पर उपाध्यक्ष श्रीमती शहनाज ने कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाल लिया। मंडी प्रशासन ने 1 दिसंबर 2011 को निदेशालय को पत्र लिख कर अध्यक्ष मीणा के निधन की जानकारी देते हुए मार्गदर्शन मांगा। इस पर 13 दिसंबर को संयुक्त निदेशक ने मंडी सचिव को पत्र लिख कर कहा कि कृषक निर्वाचन क्षेत्र के रिक्त हुए पद का उपचुनाव संपन्न होने के बाद ही अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा। अत: उक्त पद के उपचुनाव का प्रस्ताव बना कर भेजा जाए। मंडी प्रशासन ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की। इस पर मंडी समिति की 17 जनवरी 2012 को हुई आम बैठक में बाकायदा प्रस्ताव पारित किया गया कि वार्ड संख्या दो के उपचुनाव के लिए प्रस्ताव निदेशलय को भेजा जाए। इसके बाद भी जब प्रस्ताव नहीं भेजा गया तो यही समझा जा रहा था कि कार्यवाहक अध्यक्ष श्रीमती शहनाज के दबाव की वजह से मंडी सचिव इसमें रुचि नहीं ले रहे हैं। रुचि न लेने की वजह ये बताई जा रही थी कि अगर चुनाव हुए तो स्वाभाविक रूप से दुबारा जो अध्यक्ष बनेगा वह अनुसूचित जनजाति का ही होगा, वह चाहे वार्ड दो से चुना गया सदस्य हो अथवा अनुसूचित जनजाति की हगामी देवी। उल्लेखनीय है कि अनुसूचित जनजाति के लिए एक ही वार्ड नंबर दो आरक्षित है, जबकि हगामी सामान्य वार्ड से जीत कर आई हैं। चुनाव होने पर शहनाज को अध्यक्ष पद छोडऩा पड़ता, इस कारण यही माना गया कि उनकी प्रस्ताव भेजने में रुचि नहीं है, लेकिन बाद में प्रस्ताव भेज दिया गया तो यह संशय समाप्त हो गया। अब स्थिति ये है कि उस प्रस्ताव को निदेशालय ने दबा रखा है। इसमें शहनाज का कोई दबाव है अथवा राज्य स्तरीय राजनीति की दखलंदाजी, कुछ नहीं कहा जा सकता। कुल मिला कर उप चुनाव समय पर न होने से जहां नियम की अवहेलना हो रही है, वहीं मंडी का कामकाज भी प्रभावित हो रहा है। 

-तेजवानी गिरधर
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सोमवार, 25 जून 2012

ये मुबारक नहीं, नसीम व इंसाफ की प्रतिष्ठा का सवाल है

कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के शहर जिलाध्यक्ष पद पर मुबारक खान की नियुक्ति पर हो रहे विवाद से मुबारक की प्रतिष्ठा पर असर पड़े न पड़े, उनके भाई इंसाफ अली व भाभी शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ पर जरूर पड़ रहा है। जहां तक मुबारक का सवाल है, वे तो अब तक निर्विवाद थे ही, इंसाफ व नसीम भी अल्पसंख्यकों में निर्विवाद नेता के रूप में स्थापित थे। अगर कहीं विरोध था भी तो वह मुखर नहीं था। किसी ने न तो अब तक हिम्मत जुटाई थी और न ही किसी को विवाद करने का मौका मिला था। लेकिन मुबारक के नियुक्त होते ही यह उजागर हो गया है कि कांग्रेस में कई अल्पसंख्यक उनके खिलाफ हैं।
असल में जहां तक मुबारक की नियुक्ति का सवाल है तो यह साफ जाहिर है कि वे अपने भाई-भाभी के दम पर ही अध्यक्ष बन कर आए हैं। ऐसे में विरोध हो रहा है तो यह केवल उनका ही नहीं, बल्कि नसीम व इंसाफ का भी कहलाएगा। अगर वे अपने बूते ही बन कर आए हैं तो भी यही माना जाएगा कि वे भाई-भाभी की सिफारिश पर बने हैं। उनका विरोध करने वाले साफ तौर पर कह रहे हैं कि मुबारक की नियुक्ति व्यक्तिगत संबंधों को तरजीह देकर की गई है। यह उन कार्यकर्ताओं के साथ कुठाराघात है, जो बरसों से कांग्रेस के अल्पसंख्यक वर्ग के साथ सच्चे सिपाही की तरह काम कर रहे हैं।
शहर कांग्रेस उत्तर ब्लाक ए के अध्यक्ष आरिफ हुसैन, शहर कांग्रेस के सचिव मुख्तार अहमद नवाब, एनएसयूआई अध्यक्ष वाजिद खान, युवक कांग्रेस उत्तर विधानसभा अध्यक्ष सैयद अहसान यासिर चिश्ती, अल्पसंख्यक विभाग के संयोजक एसएम अकबर, सैयद गुलाम मोइनुद्दीन, गुलाम हुसैन तथा जहीर कुरैशी ने पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, केंद्रीय संचार राज्यमंत्री सचिन पायलट तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. चंद्रभान को शिकायत की है और विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष इमरान किदवई आरोप लगाया कि इस तरह नियुक्ति देकर वे पार्टी को कमजोर करने की कार्रवाई कर रहे हैं। उन्होंने किदवई को पद से हटाने की मांग के साथ ही मुबारक की नियुक्ति को भी निरस्त करने की मांग की है। उनका कहना है कि मुबारक देहात से जुड़े रहे हैं, इनके भाई इंसाफ अली देहात कांग्रेस में उपाध्यक्ष हैं और भाभी नसीम अख्तर इंसाफ शिक्षा राज्यमंत्री हैं। ऐसे में मुबारक को शहर में नियुक्ति दे दी गई, जबकि संगठन से जुड़े कई कर्मठ कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर दी गई है।
अव्वल तो मुबारक को यह पद हासिल करने की जरूरत ही नहीं थी। उनकी चवन्नी पहले से ही चल रही थी। यह पद पा कर अनावश्यक रूप से विवाद में आ गए। हालांकि वे केवल अपने भाई-भाभी की वजह से राजनीति में वजूद नहीं रखते, अपितु खुद भी लंबे समय से सक्रिय राजनीति में हैं, मगर इस नियुक्ति से खुद तो विवाद में आए ही, अपने निर्विवाद भाई-भाभी पर भी एक बारगी भाई-भतीजावाद का आरोप लगवा बैठे। रहा सवाल इस पद पर नियुक्ति का तो यह तो वे ही जान सकते हैं कि इसके पीछे का गणित और भावी रणनीति क्या है?
बहरहाल, अब जब कि नियुक्ति हो गई है तो उस पर कायम रहना भी जरूरी है, क्योंकि उनकी नियुक्ति का विरोध हो रहा है और उसे उनके भाई-भाभी से भी जोड़ा जा रहा है। यानि कि उनकी प्रतिष्ठा भी जुड़ गई है। जाहिर सी बात है कि अब वे भी मुबारक को पद पर कायम रखवाने के लिए पूरा जोर लगाएंगे। खुद मुबारक को भी अपना दमखम दिखाना होगा। नियुक्ति का विरोध होते ही उनके स्वागत में जनसेवा समिति की ओर से आयोजित समारोह को इसी कड़ी से जोड़ कर देखा जा सकता है। वैसे एक बात तो है मुबारक की नियुक्ति पर विरोध के बहाने से ही सही, इंसाफ अली व नसीम अखतर को तो यह तो पता लग गया कि कौन-कौन उनके खिलाफ हैं।


-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

गालरिया साहब, ऐसी ही सख्ती की दरकार है मातहतों को

नवनियुक्त जिला कलेक्टर वैभव गालरिया ने आते ही अपने मातहत अफसरों पर सख्ती दिखा कर यह संकेत दे दिया है कि वे सरकारी योजनाओं व कार्यक्रमों में किसी प्रकार की कोताही बर्दाश्त नही करेंगे। सबसे पहले उन्होंने नंबर लिया राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना के तहत निर्माणाधीन पुष्कर (कपिल कुंड) फीडर निर्माण कार्य का। चूंकि वे इस परियोजना के डायरेक्टर रह चुके हैं, इस कारण उन्हें पहले से जानकारी थी कि यहां संबंधित अफसरशाही पूरी लापरवाही बरत रही है, इस कारण भिड़ते ही उनका नंबर लिया। अजमेर वासियों के लिए यह एक सुखद संकेत है।
सब जानते हैं कि पुष्कर फीडर व खरेखड़ी फीडर का काम कितना महत्वपूर्ण है। यह काम पवित्र पुष्कर सरोवर के वजूद को कायम रखने के लिए हुए अब तक हुए और हो रहे कामों में से एक है। इसके बावजूद सरोवर में यदि कुंड बना कर स्नान की व्यवस्था करनी पड़ रही है, तो इसका मतलब यह है कि जितनी भी योजनाएं बनीं और जितना भी पैसा आया, वह सब पानी में चला गया। कदाचित इसी वजह से आमजन में यह भावना भी घर कर गई है कि सरकार हिंदू तीर्थस्थल के रखरखाव पर तो ध्यान देती नहीं और तुष्टिकरण के तहत दरगाह के विकास और उर्स मेले पर पूरा ध्यान देती है।
ज्ञातव्य है कि गालरिया ने परियोजना की नोडल एजेंसी यूआईटी सचिव पुष्पा सत्यानी, एईएन केदार शर्मा व ठेकेदार के प्रतिनिधियों की जम कर क्लास ली अैर यूआईटी सचिव को ठेकेदार द्वारा फीडर निर्माण की गति तेज नहीं करने पर ठेका निरस्त कर यूआईटी स्तर पर फीडर का काम पूरा करने के निर्देश दिए हैं। इसी प्रकार खरेखड़ी फीडर से सटी नाग पहाड़ी क्षेत्र में परियोजना के तहत मनमाने तरीके से बनाए गए गैबियन स्ट्रक्चर की दीवारों को तोड़कर पाइप नहीं लगाने पर पंचकुंड नर्सरी के वनपाल को फटकार लगाई तथा डीएफओ को तत्काल प्रभाव से ऐसे गैबियन स्ट्रक्चर को चिह्नित कर पाइप लगाने के निर्देश दिए जहां गैबियन की वजह से पहाड़ी से बहकर आने वाला बरसाती पानी रुक रहा है। साथ ही सरोवर किनारे व फीडरों में से जमा मिट्टी हटाने के निर्देश दिए। दौरे के दौरान श्री ब्रह्मा गायत्री तीर्थ विकास संस्थान के अध्यक्ष राकेश पाराशर, सचिव अरुण पाराशर, एनएलसीपी की जिला निगरानी समिति के सदस्य गोविंद पाराशर, समाजसेवी जगदीश कुर्डिया आदि ने ब्रह्मा मंदिर में चढ़ावे की राशि का दुरुपयोग रोकने, उर्स की तर्ज पर पुष्कर मेले के लिए अतिरिक्त बजट दिलाने, खरेखड़ी में अरावली पहाड़ी में हो रहे अवैध खनन पर प्रतिबंध लगाने, बूढ़ा पुष्कर-बाड़ी घाटी तक बाईपास का निर्माण मेले से पहले कराने सहित अनेक सुझाव दिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि गालरिया तीर्थराज पुष्कर की धार्मिक व ऐतिहासिक महत्ता को ध्यान में रखते हुए इन मामलों में भी सख्ती बरतेंगे।
सब जानते हैं कि पुष्कर के सरकारी अस्पताल के क्या हाल हैं और उसने कितना नाम कमाया है। गालरिया ने वहां का भी औचक दौरा किया, मगर उसकी मुखबिरी हो जाने के कारण चिकित्सा स्टाफ पूरी तरह से मुस्तैद हो गया। उन्होंने सारी व्यवस्थाएं ऐसी दुरुस्त कर दीं मानों वे सदैव रहती हों। इसी कारण गालरिया को कोई खास कमी नजर नहीं आई। कैसी विडंबना है कि चिकित्साकर्मी मुख्य गेट पर कलेक्टर के स्वागत के लिए हाथों में माला लेकर ऐसे खड़े हो गए, मानों वहां कलेक्टर का अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया हो। अच्छा हुआ कि उन्होंने मालाएं नहीं पहनीं।
यदि यही रवैया उन्होंने रखा तो कोई आश्चर्य नहीं कि बदहाल आनासागर झील संरक्षण, कछुआ छाप सीवरेज सिस्टम, दुर्घटना जोन बना गौरव पथ सहित बिगड़ी यातायात व्यवस्था को अपनी नियती समझ चुके अजमेर वासियों को अहसास हो जाएगा कि अदिति मेहता जैसे और अफसर भी हैं आईएएस जमात में। 

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

क्या पुलिस की मिलीभगत से हो रही हैं चोरियां, लूट व ठगी?

चोरी की कोई वारदात होती है तो स्वाभाविक रूप से सभी अखबारों में यही सुर्खियां होती हैं कि पुलिस नकारा हो गई है, पुलिस सुस्त, चोरी सुस्त, पुलिस का मुखबिर तंत्र नाकामयाब हो गया है, पुलिस अपराधियों से मिली हुई है, इत्यादि इत्यादि। आखिर माजरा क्या है? क्या वाकई इसके लिए पूरी तरह से पुलिस ही जिम्मेदार है या फिर लुटेरे पुलिस से ज्यादा शातिर हैं? या फिर निचले स्तर पर अपराधी पुलिस कर्मियों से मिले हुए हैं?
यदि पुलिस की मानें तो यह बात आसानी से गले उतर जाती है कि जब लुटेरे सक्रिय हैं तो आखिर क्यों महिलाएं सोने के गहने पहन कर निकलती हैं, क्या एक-एक महिला के साथ एक-एक पुलिस कर्मचारी तैनात किया जाए? इसी प्रकार जब महिलाओं व वृद्धों को बेवकूफ बना की लुटेरे या ठग अपने काम को अंजाम देते हैं तो भी पुलिस का यह तर्क होता है कि वे लालच में आ कर बेवकूफ बनते ही क्यों हैं, क्या एक-एक घर में पुलिस तैनात की जाए? बात तो बिलकुल ठीक ही है। मगर तस्वीर का दूसरा पहलु कुछ और ही बयां करता है।
अचानक किसी बाहरी गिरोह के सक्रिय होने की बात अलहदा है, मगर असल में पुलिस का ताना-बाना और बीट प्रणाली बनाई ही इस प्रकार गई है कि हर थाने व चौकी के पुलिस कर्मियों को अपने-अपने इलाके में सक्रिय बदमाशों की पूरी जानकारी होती है। पुलिस को पता होता है या पता होना ही चाहिए कि वारदात किसने अंजाम दी होगी। वह चाहे तो तुरंत संबंधित अपराधी तक पहुंच सकती है। पहुंचती भी है। ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे कि चोरी अगर किसी प्रभावशाली के यहां हुई तो चोर पकड़ा ही जाता है। वजह क्या है? वजह ये है कि पुलिस उस मामले में अपने तंत्र को वाकई सख्ती से अंजाम देती है और चोर तक पहुंच जाती है और माल की बरामदगी भी हो जाती है। अर्थात अगर पुलिस चाहे तो कम से कम लूट व चोरी की वारदातों पर तो काबू पा ही सकती है। अगर इच्छाशक्ति हो। मगर एक के बाद एक वारदातें होने और उनका खुलासा न होने से यह साफ है कि पुलिस तंत्र विफल हो चुका है। चाहे इसके लिए उसके मुखबिर तंत्र की विफलता को कारण माना जाए अथवा निचले स्तर पर अपराधियों की पुलिस कर्मियों से मिलीभगत को, इन दोनों कारणों के बिना इस प्रकार की वारदातें हो ही नहीं सकतीं।
आम तौर पर यही कहा जाता है कि पुलिस का खौफ समाप्त हो गया है, इसी कारण चोर-उचक्के मुस्तैद हैं। इसमें काफी हद तक सच्चाई है। असल में अपराधियों में खौफ तभी खत्म होता है, जबकि वे निचले स्तर पर मिलीभगत करके चलते हैं। ऐसा तभी होता है, जबकि निचले स्तर पर कांस्टेबल अपराधियों के लिए मुखबिरी का काम करते हैं। यही कारण है कि कई बार वांटेड अपराधियों की तलाशी सरगरमी से करने की दुहाई दी जाती है, मगर निचले स्तर अपराधियों को दबिश की पूर्व सूचना होने के कारण वे भाग जाते हैं। अर्थात यदि यह कहा जाए कि पुलिस की मिलीभगत से ही चोरी और लूट होती है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हालांकि इसका मतलब ये नहीं कि पुलिस लूट, ठगी या चोरी करवाने में सहयोगी होती है या वही करवाती है, मगर यह जरूर सच है कि अपराधी निचले स्तर पर पुलिस वालों को संतुष्ट किए रहते हैं, इस कारण पुलिस अफसरों को अपराधियों तक पहुंचने में सफलता नहीं मिलती। अब सवाल ये उठता है कि निचले स्तर पर एक कांस्टेबल इस प्रकार मिलीभगत करने का साहस कैसे कर लेता है, उसका जवाब है कि जब वह देखता है कि उसका अफसर ही तोड़-बट्टे करता है तो वह क्यों न करे। हर कोई अपने अपने पद और कद के मुताबिक फायदा उठाता ही है।
इसी संदर्भ में अगर हम हाल ही गिरफ्तार आईएएस अजय सिंह की बात करें तो उनके सारे मातहतों को पता होगा कि अजय सिंह कहां-कहां तोड़बट्टा कर रहे हैं, मगर चूंकि वे अधीनस्थ होते हैं और पुलिस में कथित रूप से अनुशासन है, इस कारण वे कुछ बोल नहीं पाते। ऐसे में वे भी मौके का फायदा उठाते हैं और निचले स्तर पर छोटी-मोटी बदमाशी करते रहते हैं। अजय सिंह के प्रकरण में तो बड़ अफसरों तक को पता था, मगर वे शायद पाप का घड़ा भरने का इंतजार कर रहे थे। यानि कि यह साफ है कि पुलिस के अफसर यदि वाकई सख्त हों तो क्या मजाल है कि उनके मातहत बेईमानी करें या अपराधियों की क्या मजाल कि इस प्रकार बेखौफ एक के बाद एक वारदातें करते रहें।
यूं तो हाल ही चेन स्नेचिंग व ठगी की एकाधिक वारदातें हुई हैं और इसकी वजह से पुलिस को शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है, मगर गत दिवस जब फर्जी पुलिस बनकर शातिरों ने एक सीनियर आरएस अफसर की वृद्ध मां को ही लूट लिया तो मीडिया ने पुलिस की जम कर मजम्मत की।
जिस प्रकार लगातार ऐसी वारदातें होती जा रही हैं और उन पर काबू नहीं पाया जा पा रहा है, इससे तो यही प्रतीत होता है कि पुलिस केवल बेईमानी कर रही है और अपराध पर अंकुश की उसकी इच्छाशक्ति कम होती जा रही है। एक दूसरी वजह भी समझ में आती है। वो ये कि पिछले दो माह में हुए एक दर्जन से ज्यादा वारदातों में शातिरों ने अमूमन वृद्धों को ही शिकार बनाया है, यानि कि शातिर अपराधियों का कोई गिरोह सक्रिय है, जिसने कि आदर्शनगर, रामगंज, क्रिश्चियन गंज और सिविल लाइंस इलाकों को अपना वारदात स्थल बना रखा है। अगर कोई नया गिरोह भी है तब भी उसे पकडऩे की जिम्मेदारी पुलिस की ही है। हमारे पुलिस कप्तान राजेश मीणा को इसका अहसास होगा ही। अगर अब भी पुलिस ने मुस्तैदी दिखा कर इन वारदातों पर काबू नहीं पाया तो आमजन का पुलिस पर से विश्वास खत्म हो जाएगा, जिसके लिए पुलिस कप्तान मीणा सहित पूरा बेड़ा ही जिम्मेदार होगा। वैसे हाल ही अजमेर रेंज के सभी पुलिस अधिकारियों की बैठक के दौरान आईजी अनिल पालिवाल ने सभी थाना अधिकारियों सहित सर्किल आफिसर्स से पुलिस स्टेशनों की कार्य प्रणाली को दुरुस्त करने और मुस्तैद रहने को कहा है। देखते हैं उनके निर्देश का कितना असर होता है।
आखिर में एक बात और। पुलिस की नाकामी एक वजह ये भी मानी जाती है कि आज के दौर में सामान्य कानून-व्यवस्था बनाने से लेकर वीआईपी विजिट, अतिक्रमण हटाने और कोर्ट की बढ़ती पेशियों इत्यादि अनेकानेक कामों के बोझ तले पुलिस पूरी तरह से पिस रही है। पुराने मामलों की जांच पूरी हो ही नहीं पाती कि नई वारदातें हो जाती हैं। जरूरत के मुताबिक नफरी न होने के कारण पुलिस कर्मियों को छुट्टी नहीं मिलती और वे धीरे-धीरे नौकरी के प्रति लापरवाह व उदासीन होते जा रहे हैं। अगर इस प्रकार की मनोवृत्ति बढ़ रही है तो यह बेहद घातक है। इस पर सरकार को गौर करना ही होगा। 

-तेजवानी गिरधर
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शुक्रवार, 22 जून 2012

आईपीएस ने पोत दी पुलिस के चेहरे पर कालिख

अब तक तो चोर और उठाईगिरे ही आए दिन वारदातों को अंजाम देकर पुलिस के चेहरे पर कालिख पोत रहे थे, मगर अब एक आईपीएस अफसर ने ही यह काम अंजाम दे दिया है। अपने रीडर रामगंज थाने में एएसआई प्रेमसिंह के हाथों घूस मंगवाने के आरोप में गिरफ्तार आईपीएस अफसर अजय सिंह को घर भरने की इतनी जल्दी थी कि नौकरी की शुरुआत में ही लंबे हाथ मारना शुरू कर दिया। अफसोनाक बात ये है कि उनकी कारगुजारियों की चर्चाएं बाजार में तो आम थीं, मगर अजमेर के पुलिस कप्तान राजेश मीणा ने आंखें मूंद रखी थीं। परिणाम ये रहा कि पाप का घड़ा जल्द ही फूट गया। आश्चर्य तो इस बात का है कि एक आईपीएस के मामले में एसीडी ने इतनी मुस्तैदी कैसे दिखाई। बेशक इसके लिए वह बधाई की पात्र है।
हालांकि अजय सिंह रिश्वत के केवल एक ही मामले में पकड़े गए हैं, मगर सरकार ठीक से विधिवत जांच करवाए तो पता लग सकता है कि ऐसे ही कितने और मामलों में वे तोड़बट्टा कर रहे थे। जानकारी के अनुसार आईपीएस अजयसिंह जिस मार्स बिल्ड होम एंड डवलपर्स की मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनी की जांच कर रहे थे, उसमें आरोपियों के साथ-साथ गेनर्स पर भी नजर रखे हुए थे। उनका इतना खौफ था कि कई गेनर्स अंडरग्राउंड हो गए कि कहीं उन्हें भी झूठा न फंसा दिया जाए। जाहिर सी बात है कि उनसे भी तोड़बट्टे की बातें चल रही होगी। बेहतर तो यही होगा कि केवल रिश्वत के एक ही मामले तक सीमित न रह कर उनके पास चल रही सभी जांचों की भी पड़ताल करवाई जाए। वरना इन आईपीएस अफसर ने तो ऐसी कालिख पोती है, जिसे साफ करना आसान काम नहीं होगा।
आईपीएस अजय सिंह कितने बेखौफ थे, इसका अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि वे अपने भाई हेमंत कुमार के साथ जिस गाडी में जाते हुए पकड़े गए, उसमें अवैध शराब की दो पेटियां व 47 हजार रुपए पाए गए। इस पर कानोता थाने में मामला दर्ज कर हेमंत कुमार को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
ऐसा नहीं है कि अजय सिंह की वर्दी पर यह पहला दाग लगा है। इससे पहले भी वे विवादों में रहे हैं। जानकारी के अनुसार अलवर के शिवाजी पार्क थाने में वर्ष 2009 में एक युवती ने छेड़छाड़ व मारपीट का मामला दर्ज कराया था। जांच में अजयसिंह और उनके दोस्त का नाम भी सामने आया, लेकिन इस बीच अजय सिंह का आईपीएस में चयन होने के कारण मामले में एफआर लगा दी गई थी।
इसी प्रकार अजय सिंह को प्रोबेशन पीरियड के दौरान जोधपुर कमिश्नरेट से प्रशिक्षण पूरा होने से पहले ही हटाया गया था। गत वर्ष अप्रैल में झंवर में एसएचओ लगाया गया था, मगर वहां तीन माह पूरे होने से पहले ही ग्रामीणों की शिकायत पर हटा दिया गया। अजमेर में एलआईसी अधिकारी लक्ष्मण मीणा को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी अधिकारी के बी चौधरी को वीआईपी ट्रीटमेंट देने का भी उन पर आरोप है। आरोप है कि उन्होंने अजमेर के कोटड़ा में जोधपुर के एक बुजुर्ग के भूखंड पर कब्जे के मामले में पीडि़त को एक लाख रुपए लेकर भूखंड छोडऩे केलिए धमकाया था। इसी प्रकार शांतिनगर के एक मकान को धोखाधड़ी से बेचने के मामले में जेल में रहते हुए एक आरोपी जुल्फिकार उर्फ जुल्फी पर बाहर से पावर आफ अटार्नी बनाने का गंभीर आरोप है। इसी प्रकार दहेज प्रताडऩा के एक मामले में हस्तक्षेप कर जबरन महिला थाने में मुकदमा दर्ज करवाया। उच्चधिकारियों की अनुमति के बिना ही कांस्टेबल राजाराम व जयपालसिंह को एसी का रिटर्न टिकिट देकर मुंबई में से दहेज प्रताडऩा के आरोपी रणजीतसिंह को गिरफ्तार करने भेज दिया। दोनों शातिर पुलिसकर्मियों ने मुंबई में बीयर बार, होटलों व बीच पर मौज-मस्ती कर मुकदमे से आरोपी और उसके परिवार के अन्य लोगों का नाम बाहर कराने के लिए लाखों की रिश्वत मांगी थी। बाद में आरोपी को अजमेर लाकर तीन दिनों तक एक होटल में बंधक बना कर रखा और पीडि़ता को पांच लाख रुपए दिलवा कर एक लाख रुपए कांस्टेबल ने वसूलेे। इसकी खबरें अखबारों में सुर्खियों में छपीं।
कुल मिला कर सच ये है कि पूरे पुलिस प्रशासन को उनकी करगुजारियों की जानकारी थी, मगर उसने आंखें मूूंद रखी थीं। अगर ऐसा नहीं है तो यह और भी दुर्भाग्यपूर्ण है। एक कहावत है न कि अफसर अफसर का मुंह सूंघता है। इस मामले में कदाचित ऐसा ही हो रहा था। वैसे भी आईएएस व आईपीएस लोबियों इतनी तगड़ी हैं कि एकाएक किसी आईएएस व आईपीएस के खिलाफ कार्यवाही नहीं होती। ये तो गनीमत है कि रिश्वत के ताजा मामले में पीडि़त ने एसीडी का दरवाजा खटखटाया और उसने भी पूरी मुस्तैदी के साथ कार्यवाही को अंजाम दिया, वरना अजय सिंह अब तक न जाने कितने और कारनामे करते। 

-तेजवानी गिरधर
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tejwanig@gmail.com

अब आप पर उम्मीदें टिकी हैं गालरिया साहब

यह एक सुखद बात है कि अजमेर नए जिला कलेक्टर वैभव गालरिया अजमेर जिले से सुपरिचित हैं, साथ ही वे स्वयं भी महसूस करते हैं कि उन्हें यहां काम करने में आसानी रहेगी। असल में वे यहां वर्ष 2001 में ब्यावर के उपखंड अधिकारी और वर्ष 2009 में राजस्थान लोक सेवा आयोग के सचिव रह चुके हैं। राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना के निदेशक रहने के दौरान पुष्कर में झील संरक्षण का कामकाज भी देख चुके हैं। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि वे अजमेर जिले की समस्याओं के समाधान व यहां के विकास के लिए गंभीरता दिखाएंगे। उनके लिए सुविधाजनक बात ये भी है कि अजमेर के संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा भी अजमेर के हैं और उनकी अजमेर के प्रति गहरी रुचि है। यूं उम्मीद तो पूर्व कलेक्टर मंजू राजपाल से भी बहुत थी, मगर कुछ स्थानीय गंदी राजनीति के कारण और कुछ उनके अक्खड़पन की वजह से उनका कार्यकाल कुछ खास उपलब्धि वाला नहीं रहा। देखना ये होगा कि दोनों तालमेल बैठा कर तो राजनीतिक दखलंदाजी का उपयोग अजमेर के लिए कैसे कर पाते हैं।
गालरिया जी भलीभांति जानते होंगे कि यूं तो तीर्थराज पुष्कर व दरगाह ख्वाजा गरीब नवाज और किशनगढ़ की मार्बल मंडी के कारण अजमेर जिला अन्तरराष्ट�्रीय मानचित्र पर अंकित है, मगर आज भी प्रदेश के अन्य बड़े जिलों की तुलना में इसका उतना विकास नहीं हो पाया है, जितना की वक्त की रफ्तार के साथ होना चाहिए था। यूं तो मौटे तौर पर गालरिया जी को विकास से जुड़े मुद्दों की जानकारी होगी, फिर भी उनकी जानकारी के लिए यहां कुछ बिंदुओं पर चर्चा कर लेते हैं, जिन पर राजनीतिक दल व सामाजिक व स्वयंसेवी संस्थाएं भी दबाव बना सकती हैं।
1. हवाई अड्डा:-
पर्यटन की दृष्टि से विश्व मानचित्र पर अहम स्थान बना चुके अजमेर शहर के लिये यह विडम्बना की ही बात है कि यहां अभी तक हवाई अड्डा नहीं बन पाया है। किशनगढ़ में स्थान चिन्हित हो जाने के बावजूद चयनित भूमि के कानूनी विवाद में पड़ जाने के कारण यह कार्य फिर से अटक गया है। उम्मीद है कि गालरिया इस मसले का भी कोई वैकल्पिक हल निकलवाने में अपनी भूमिका का निर्वाह करेंगे।
2. बीसलपुर से नहीं बुझी अजमेर की प्यास:-
मूलत: अजमेर जिले के लिए ही बीसलपुर पेयजल योजना बनाई गई थी, जिसका उपयोग अब जयपुर सहित अन्य स्थानों के लिए भी किया जा रहा है। इसका परिणाम ये है कि अजमेर जिले के अनेक गांव अब भी फ्लोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर हैं। पानी के कमी से अवरुद्ध औद्योगिक विकास कैसे हो, यह आज भी एक बड़ी समस्या है। ऐसे में पूर्व उप मंत्री ललित भाटी व पूर्व विधायक डा. श्रीगोपाल बाहेती चंबल का पानी लाए जाने पर लगातार दबाव बनाए हुए हैं। सुझाव ये है कि चंबल के सरप्लस पानी को भैंसरोडगढ़ या अन्य किसी उपयुक्त स्थल से अजमेर तक पहुंचाया जा सकता है। जानकारी है कि मुख्यमंत्री अशेाक गहलोत भी सिद्धांत: इससे सहमत हैं। अगर गालरिया जी प्रयास करें तो उनके लिए यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। इससे न केवल पूरे जिले की प्यास बुझेगी, अपितु औद्योगिक विकास का रास्ता भी खुल जाएगा।
3. यातायात एक बड़ी समस्या:-
अजमेर की यातायात समस्या बहुत ही विकट है, जिससे एक लंबे अरसे से यहां के नागरिक पीडि़त हैं। अव्यवस्थित व अनियंत्रित यातायात को दुरुस्त करने के लिए यातायात मास्टर प्लान की जरूरत है। इसके लिए आनासागर चौपाटी से विश्राम स्थली या ग्लिट्ज तक फ्लाई ओवर बनाया जा सकता है, इससे वैशालीनगर रोड, फायसागर रोड पर यातायात का दबाव घटेगा। झील का संपूर्ण सौन्दर्य दिखाई देगा। उर्स मेले व पुष्कर मेले के दौरान बसों के आवागमन में सुविधा होगी और बी.के. कौल नगर, हरिभाऊ उपाध्याय नगर, फायसागर क्षेत्र के निवासियों को शास्त्रीनगर, सिविल लाइन्स, कलेक्टे्रट के लिए सिटी बस, पब्लिक ट्रांसपोर्ट सुविधा मिल सकेगी।
इसी प्रकरण से जुड़ा हुआ एक मुख्य बिंदु पार्किंग स्थलों के विकास करने का है। प्रयास किए जाएं तो इन स्थानों पर इनको विकसित किया जा सकता है:- 1. खाईलैण्ड मार्केट से लगी हुई नगर निगम की वह भूमि, जिस पर पूर्व में अग्नि शमन कार्यालय था, 2. नया बाजार में स्थित पशु चिकित्सालय की भूमि, जहां अंडर ग्राउण्ड पार्किंग संभव है, 3. मदार गेट स्थित गांधी भवन के पीछे स्कूल की भूमि, 4. कचहरी रोड स्थित जीआरपी/सीआरपी ग्राउण्ड, जहां अंडर ग्राउण्ड पार्किंग संभव है, 5. केसरगंज स्थित गोल चक्कर में अंडर ग्राउण्ड पार्किंग और 6. मोइनिया इस्लामिया स्कूल के ग्राउंड में अंडर ग्राउण्ड पार्किंग।
4. पुष्कर व आनासागर झील संरक्षण:-
तीर्थराज पुष्कर के पवित्र सरोवर और आनासागर झील के संरक्षण की हालत क्या है, यह गालरिया जी से छुपी हुई नहीं है। वे स्वयं झील संरक्षण के लिए हो रहे कार्य के प्रति असंतोष जाहिर कर चुके हैं। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि करोड़ों रुपए खर्च करके भी तीर्थराज पुष्कर में पवित्र स्नान के लिए कुंडों का ही सहारा लिया जा रहा है। इसी प्रकार आनासागर झील एक ऐतिहासिक धरोहर है। इसकी दुर्दशा से हर कोई वाकिफ है। प्रयास भी हुए हैं, मगर आज तक समुचित समाधान नहीं निकाला जा सका है।
4. विकास में बाधा बना हुआ है रेलवे:-
रेलवे को सदैव से अजमेर की धरोहर माना जाता रहा है, किन्तु रेलवे को स्वयं अभी यह बात साबित करनी शेष है। अजमेर शहर के लगभग एक तिहाई भू भाग पर रेल विभाग का अधिकार है। होना यह चाहिये था कि रेलवे के कुशल प्रबन्धन की बदौलत अजमेर का यह भाग अजमेर वासियों के लिये सुविधा का एक आधार बनता, मगर रेल विभाग ने कई स्थानों पर बैरिकेटिंग कर, रास्तों को रुकावट में बदल दिया है। शहर की विशेष भौगोलिक बनावट के कारण पूरे शहर को जोडऩे के लिये फिलहाल सिर्फ एक मार्ग स्टेशन रोड उपलब्ध है। इस मार्ग से यातायात का दबाव कम करने के लिये लम्बे समय से एक वैकल्पिक मार्ग की जरूरत महसूस की जाती रही है, मगर रेल विभाग के असहयोग के कारण ही यह मार्ग नहीं बन पा रहा है। प्रशासन अगर थोड़ा सा तालमेल करे तो रास्ता निकल सकता है। जहां तक स्टेशन रोड पर बने फुट ओवर ब्रिज का सवाल है, उसे हाल ही प्लेटफार्म से जोडऩे के निर्देश रेल राज्य मंत्री दे चुके हैं, मगर यह भी तभी होगा, जबकि प्रशासन रुचि दिखाए।
5. ठंडे बस्ते में पड़ी दरगाह विकास योजना:-
केन्द्र सरकार की पहल पर कुछ समय पूर्व दरगाह विकास के लिए 300 करोड़ रुपये की एक महत्वाकांक्षी परियोजना बनाई गई थी, मगर अजमेर से दिल्ली तक वाया जयपुर महज फाइलें ही आती-जाती रहीं। कई बैठकें भी हुईं, मगर वह मूर्त रूप नहीं ले सकी। हाल ही राज्य सरकार के मुख्य सचिव सी. के. मैथ्यू ने कहा था कि वह योजना अब भी अस्तित्व में है, मगर अमल करने में देरी हो रही है। गालरिया जी रुचि लें तो इस योजना के जरिए अजमेर का कायाकल्प हो सकता है।
6. औद्योगिक विकास:-
अजमेर में औद्योगिक विकास को नए आयाम देने के लिए स्पेशल इकोनोमिक जोन की जरूरत है। विशेष रूप से इन्फोर्मेशन टेक्नोलोजी का स्पेशल इकोनोमिक जोन बनाया जा सकता है। अजमेर के सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट इस दिशा में सतत प्रयत्नशील हैं। जिला प्रशासन को भी रुचि लेनी चाहिए। इसी प्रकार खनिज आधारित स्पेशल इकोनोमिक जोन भी बनाया जा सकता है। जिले में खनिज पर्याप्त मात्रा में मौजूद है। 7. पर्यटन विकास:-
जहां तक पर्यटन के विकास की बात है, यहां धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की भरपूर गुुंजाइश है। धार्मिक पर्यटकों का अजमेर में ठहराव दो-तीन तक हो सके, इसके लिए यहां के ऐतिहासिक स्थलों को आकर्षक बनाए जाने की कार्ययोजना तैयार की जानी चाहिए। इसके लिए अजमेर के इतिहास व स्वतंत्रता संग्राम में अतुलनीय योगदान एवं भूमिका पर लाइट एण्ड साउंड शो तैयार किए जा सकते हैं। आनासागर की बारादरी, पृथ्वीराज स्मारक, और तीर्थराज पुष्कर में उनका प्रदर्शन हो सकता है। इसी प्रकार ढ़ाई दिन के झोंपड़े से तारागढ़ तथा ब्रह्म�ा मंदिर से सावित्री मंदिर पहाड़ी जैसे पर्यटन स्थल पर 'रोप-वे परियोजना भी बनाई जा सकती है। साथ ही पर्यटक बस, पर्यटक टैक्सियां आदि उपलब्ध कराने पर कार्य किया जाना चाहिए। 

-तेजवानी गिरधर
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सोमवार, 18 जून 2012

क्या भागवत के कन्हैया सोनी के घर रुकने के कोई मायने हैं?


सिंधुपति महाराजा दाहरसेन के बलिदान दिवस पर आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में अजमेर आए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत कार्यक्रम के अतिरिक्त कहां ठहरेंगे, इसको लेकर अनेक प्रकार के कयास लगाए जा रहे थे। कोई कह रहा था कि संघ पृष्ठभूमि के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी कोशिश रहेगी कि वे उन्हें अपने यहां ले जाएं ताकि उनके खिलाफ एकजुट हो चुके भाजपाइयों को झटका दिया जा सके। कुछ लोगों की तो बाकायदा इस पर नजर भी थी कि देवनानी के घर व गली की रंगाई-पुताई तो नहीं हुई है या सुरक्षा इंतजाम तो नहीं किए गए हैं। कदाचित कुछ ऐसे भी हों, जिन्होंने प्रयास भी किए हों कि भावगत उनके घर न जाएं।
कोई कह रहा था कि वे किसी भी ऐसे स्वयंसेवक के घर जाएंगे, जिसका राजनीति से सीधा कोई वास्ता न हो। अगर ऐसा है तो यह वाकई विडंबनापूर्ण है कि अपने ही राजनीतिक चेहरे भाजपा से संघ कैसे दूर रहना चाहता है। अर्थात इस परिवार में दो दर्जे के लोग हैं। एक वे जो सीधे संघ से जुड़े हुए हैं और एक वे जो कभी संघ की शाखाओं में नहीं गए, मगर हैं भाजपा में। जाहिर तौर जो संघ पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ नहीं है, वह संघ की नजर में दोयम दर्जे का है। खैर, बात चल रही थी भागवत के ठहरने की। कोई कह रहा था कि वे ऐसे स्वयंसेवक के घर ठहरेंगे, जो बहुत जाना पहचाना चेहरा न हो, कहीं वह इसको भुना न ले। कई तरह की बातें थीं, मगर संघ के चंद प्रमुख कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त किसी को जानकारी नहीं थी कि वे आखिर कहां ठहरेंगे।
बहरहाल, आखिरकार वे हरिभाऊ उपाध्याय नगर विस्तार में दाहरसेन स्मारक से कुछ ही दूर संघ के कार्यकर्ता कन्हैया सोनी के यहां ठहरे। यूं तो इसके कोई मायने नहीं हैं कि वे वहां क्यों ठहरे, मगर चूंकि संघ की चाल ढ़ाई घर वाली होती है, इस कारण स्थानीय राजनीतिक हलकों में इसकी चर्चा जरूर शुरू हो गई है। आपको बता दें कि ये कन्हैया सोनी निहायत सज्जन हैं और उनकी भाजपा की सक्रिय राजनीति में कुछ खास रुचि नहीं है। ये वे ही हैं, जो पिछली बार भाजपा शासनकाल के दौरान नगर सुधार न्यास के ट्रस्टी बनाए गए थे। अपने कार्यकाल के दौरान दाहरसेन स्मारक की खैर खबर लेते रहे, मगर इस वजह से राजनीतिक रूप से चर्चा में नहीं रहे। कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी वे अखबारों की सुर्खियों में नहीं रहे। लेकिन अब जब कि वे भागवत के जजमान बने तो चर्चा में आ गए हैं। हालांकि विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं और भाजपा का टिकट किसे मिलेगा, इसका कुछ अता-पता नहीं, मगर कुछ प्रमुख दावेदारों में उनका नाम भी शुमार हो गया है। तर्क सिर्फ ये है कि संघ का कुछ पता नहीं, ऐन वक्त पर किस पर हाथ रख दे, जिसकी कि भले ही राजनीतिक पृष्ठभूमि अथवा अनुभव न रहा हो। अजमेर के इतिहास में ऐसे एकाधिक उदाहरण हैं। प्रमाण है नवलराय बच्चानी, हरीश झामनानी, वासुदेव देवनानी, अनिता भदेल, श्रीकिशन सोनगरा, के नाम। और संघ उनको जिनवा भी लाता है। एक तथ्य ये भी माना जाता है कि अजमेर की दोनों सीटें संघ के खाते में हैं।
ज्ञातव्य है कि लगातार दो बार विधायक रहे प्रो. वासुदेव देवनानी का दावा सबसे प्रबल माना जाता है, मगर चूंकि भाजपा का एक बड़ा धड़ा उनकी कार सेवा कर रहा है, इस कारण कुछ संशय पैदा होता है। पिछली बार भी उन्हें बड़े पापड़ बेलने पड़े थे। उनके अतिरिक्त प्रमुख रूप से उभरने वालों में स्वामी समूह के एमडी कंवलप्रकाश किशनानी का नाम आता है। भामस नेता महेन्द्र तीर्थानी भी पंक्ति में बताए जाते हैं। रहा सवाल पूर्व शहर महामंत्री तुलसी सोनी का तो उन्होंने देवनानी के चक्कर में पार्षद का चुनाव हार कर खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। ऐसी ही गलती जाने-माने वकील अशोक तेजवानी से हो गई। नाम तो प्रमुख समाजसेवी जगदीश वच्छानी का भी लेने में कोई हर्ज नहीं है, मगर बताते हैं कि उन्हें गुरू स्वामी हिरदाराम जी महाराज मना कर गए कि सक्रिय राजनीति में मत जाना।
अव्वल तो भाजपा किसी गैर सिंधी को शायद ही टिकट दे, मगर बाइ द वे ऐसा होता है तो फिर कई की लार टपक सकती है। प्रमुख रूप से लाला बन्ना के नाम से चर्चित पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत का नाम सबसे ऊपर है। वो तो देवनानी का संघ वाला हथियार चल गया, वरना वे तो पिछली बार ही प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर से घनिष्ठ संबंधों के चलते टिकट हासिल कर चुके थे। बड़े नामों में आप पूर्व शहर भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेडा व पूर्णाशंकर दशोरा, पूर्व न्यास अध्यक्ष धर्मेश जैन, संघ के महानगर प्रमुख सुनील जैन, पूर्व नगर निगम मेयर धर्मेद्र गहलोत व पूर्व डिप्टी मेयर सोमरत्न आर्य, सतीश बंसल आदि को शुमार कर सकते हैं। माफ कीजिएगा, कोई नाम रह गया हो तो मेहरबानी करके बुरा न मानिये, अगली बार उनका भी जिक्र कर दिया जाएगा। पार्षद ज्ञान सारस्वत भी दावेदारी की तैयार कर रहे हैं। उन्होंने तो बाकायदा जमीन पर काम भी शुरू कर रखा है। एक और पार्षद जे. के. शर्मा की भी बड़ी इच्छा है कि साफ सुथरी छवि के आधार पर उनको मौका मिलना चाहिए। अब ये देखने वाली बात होगी होता क्या है?

-तेजवानी गिरधर
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tejwanig@gmail.com

रविवार, 17 जून 2012

सिंध और महाराजा दाहरसेन पर अद्वितीय पुस्तक प्रकाशित


सिंधुपति महाराजा दाहरसेन के बलिदान दिवस के मौके पर अजमेर में दाहरसेन स्मारक पर गत 16 जून, 2012 को आयोजित विशाल श्रद्धांजलि समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत सहित अन्य अतिथियों के हाथों विमोचित पुस्तक संसार का सिरमौर सिंध और महाराजा दाहरसेन, सिंध और दाहरसेन बाबत लिखी गई अब तक की सभी पुस्तकों से भिन्न और तथ्यों के संकलन की दृष्टि से अद्वितीय है। यह अमूल्य कृति प्रखर वक्ता, कुशल राजनीतिज्ञ एवं सरस्वती पुत्र पूर्व सांसद श्री औंकार सिंह लखावत द्वारा सिंध और महाराजा दाहरसेन पर किए गए गहन शोध का साक्षात लिपिबद्ध स्वरूप है।
पुस्तक का अध्ययन करने से स्पष्ट प्रतीत होता है कि विषय के बारे में विस्तृत, गूढ़ व गहन जानकारी के लिए उन्होंने न केवल सिंध के इतिहास से संबंधित अनेकानेक प्राचीन ग्रंथ, दस्तावेज व पुस्तकों का अध्ययन-मनन किया है, अपितु अनेक विषय विशेषज्ञों से गहन चर्चा कर इतिहास के उस सत्य को उद्घाटित करने, उभारने व पुनस्र्थापित करने की कोशिश की है, जो कि या तो लुप्त प्राय: हो चुका था अथवा जिसे निहित स्वार्थी तत्वों ने तोड़-मरोड़ कर भावी पीढ़ी को दिग्भ्रमित करने की कोशश की।
इस अनुपम पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसमें सिंध और महाराजा दाहरसेन से जुड़े वास्तविक तथ्यों को तर्क की कसौटी पर कस कर तथ्यों को सिलसिलेवार और सहज पठनीय भाषा में प्रस्तुत किया गया है। इतना ही नहीं, इस पुस्तक से हमें महान सिंधु घाटी की सभ्यता और महाराजा दाहरसेन की महानता का भान होता है, जो कि हमारे लिए अत्यंत ही गौरवपूर्ण व प्रेरणास्पद है। इसके अतिरिक्त अनेक प्रसिद्ध व प्रतिष्ठित इतिहासकार, समाजसेवी, साहित्यकार व राजनीतिज्ञों के सिंध व महाराजा दाहरसेन संबंधी कथनों का संकलन इस पुस्तक को और अधिक संग्रहणीय बनाता है।
वस्तुत: यह एक पुस्तक मात्र नहीं, अपितु महान सिंधु नदी से निकली एक धारा है, जिसका पान कर न केवल शोधार्थियों की जिज्ञासा तृप्त होगी, अपितु हमारी भावी पीढ़ी के लिए एक प्रकाश स्तंभ का कार्य करेगी। धरती पर गंगा की तरह इस धारा को हमारे पास लाने का भगीरथी प्रयास करने वाले श्री लखावत कोटि-कोटि साधुवाद के पात्र हैं। पुस्तक का प्रकाशन तीर्थ पैलेस प्रकाशन, 125, हैलोज रोड, पुष्कर की ओर से किया गया है और इसका मूल्य मात्र एक सौ रुपए रखा गया है।
यहां उल्लेखनीय है कि श्री लखावत इससे पूर्व जय आवड़ आसापुरा, बाहरठ नरहरिदास, हिंगलाज शक्तिपीठ, बोल सांसद बोल : युग चारण बोल, राजल अकबर का नवरोज दियो छुड़ाय आदि पुस्तकें लिख चुके हैं।
जहां तक श्री लखावत के व्यक्तित्व और कृतित्व का सवाल है, सब जानते हैं कि वे राज्यसभा सदस्य व अजमेर नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रह चुके हैं। न्यास के अध्यक्षीय काल में ही उन्होंने दाहरसेन स्मारक सहित सम्राट पृथ्वीराज चौहान स्मारक, लव-कुश उद्यान, मनीषि समरथदान पत्रकार भवन सहित अनेकानेक स्थाई और दर्शनीय स्थानों का निर्माण करवाया। वे अजमेर में स्थित चारण साहित्य शोध संस्थान के अध्यक्ष भी हैं और भक्तिधाम की स्थापना उन्हीं की देन है।
राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष रहने के दौरान उन्होंने बूढ़ा पुष्कर जीर्णोद्धार, गोगामेड़ी में गोगाजी चौहान स्मारक, खानुआ में राणा सांगा स्मारक, भरतपुर में महाराजा सूरजमल स्मारक, मेड़ता में मीराबाई स्मारक, मानगढ़ धाम, बांसवाड़ा में गोविंद गुरू स्मारक, सलूम्बर में हाड़ी रानी स्मारक, खरनाल में तेजीजी स्मारक, पींपासर में जाम्भाजी स्मारक, चूरू में गुरू गोविंद सिंह स्मृति साहवा सरोवर, सीलू-जालौर में नर्मदेश्वर धाम, टहला में नरहरिदास बारहठ स्मारक, आउवा में सत्याग्रह उद्यान, अर्णवराज एवं मीरा उद्यान आदि के निर्माण करवाया। पेशे से वे वकालत करते हैं।
श्री लखावत का जन्म 1 अप्रैल, 1949 को नागौर जिले के टहलां गांव में श्री आसकरण लखावत के घर हुआ। प्रारंभिक शिक्षा कड़ेल व थांवला में अर्जित करने के बाद बीए की डिग्री नागौर जिले के डीडवाना कस्बे में प्राप्त की। वहां भारत सेवक समाज के उपाध्यक्ष और प्रांतीय मंत्री रहे। इसके पश्चात अजमेर चले आए। यहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अजमेर विभाग के मंत्री व उपाध्यक्ष रहे। आजीविका के लिए माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में लिपिक की नौकरी की। इसी दौरान राजकीय महाविद्यालय से एलएलबी की और वकालत प्रारंभ कर दी। इस दौरान युवा अभिभाषक परिषद के मंत्री रहे।
अध्ययनकाल के दौरान ही साहित्यिक कार्यों व पत्रकारिता में रुचि रही और वकालत करने के साथ सन् 1969 में समाचार एजेंसी हिंदुस्तान समाचार के जिले के संवाददाता बने। इसी दौरान उनकी रुचि राजनीति में भी हुई और। सन् 1996 में उनको अजमेर नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष बनाया गया। सन् 1998 में उनको राज्यसभा सदस्य के रूप में चुना गया। भाजपा संगठन में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही और प्रदेश महामंत्री रहे। वर्तमान में प्रदेश उपाध्यक्ष पद पर हैं।

उनका संपर्क सूत्र है:-
1. 24-ए, मोहन कालोनी, स्वेज फार्म, सोडाला, जयपुर
दूरभाष : 09414007610, 0145-2290629
ईमेल : oslakhawat@gmail.com
2. करणी कुंज, कचहरी रोड, अजमेर
दूरभाष : 0145-2422610

गुरुवार, 14 जून 2012

अजमेर-पुष्कर रेल मार्ग : न था तो दुख, और है तो बेकार

जब तक अजमेर-पुष्कर रेल मार्ग शुरू नहीं हो रहा था तो इस बात का हल्ला था कि इसमें लेट लतीफी क्यों हो रही है और अब जब शुरू हो गया है तो तकलीफ ये है कि यह बेकार और अनुपायोगी है। कैसी विडंबना है? कैसा विरोधाभास है?
आपको याद होगा कि जब अजमेर-पुष्कर रेल मार्ग की महत्वाकांक्षी योजना पर केन्द्र और राज्य सरकार के बीच तालमेल की कमी के चलते धीमी गति से अमल हो रहा था तो यह कहा जा रहा था कि नियत अवधि से यह न केवल तीन साल पिछड़ गया है, अपितु इसकी लागत भी तकरीबन चार करोड़ बढ़ गई है। जहां 88 करोड़ लगने थे, वहां लागत 92 करोड़ को भी पार कर गई। इस रेल मार्ग का काम 1 जनवरी 2006 को शुरू हुआ था। यदि सब कुछ ठीकठाक चलता रहता तो इसको दो साल में पूरा कर लिया जाता, लेकिन लेटलतीफी के कारण इसे कुल चार साल में पूरा होने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। शुरुआत से ही इसकी राह में रोड़े आ रहे थे। सबसे पहले तो जो रूट तय किया गया, उस पर आने वाली वन भूमि मिलने में देरी हुई। वन महकमे ने पूरा डेढ़ साल खराब कर दिया। रेलवे बार-बार आग्रह करता रहा, लेकिन वन महकमे ने इसकी गंभीरता को ही नहीं समझा। केन्द्र व राज्य सरकार में समन्वय न होने के कारण भी काम ठप्प पड़ा रहा। इसके लिए राजनीतिकों को गालियां भी पड़ती थीं कि वे क्षेत्र के विकास पर ध्यान नहीं देते। वो तो बाद में केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट ने रुचि ली, तब जा कर काम ने तेजी पकड़ी और आखिर यह रूट शुरू हो गया। अब जब कि यह शुरू हो गया है तो पता लग रहा है कि ये बेकार ही है। प्रतिदिन पुष्कर-अजमेर-ब्यावर के बीच केवल साठ-सत्तर यात्री ही इसमें सफर करते हैं। पुष्कर-अजमेर के बीच करीब चार माह पहले शुरू हुए इस मार्ग की लंबाई 28 किलोमीटर है। पुष्कर के लिए ब्यावर वाया अजमेर कुल दस डिब्बों की स्पेशल ट्रेन चलाई जा रही है। अर्थात करीब छह सौ यात्री क्षमता की इस ट्रेन के केवल साठ-सत्तर लोग ही उपयोग कर रहे हैं। जाहिर सी बात है कि जब इस ट्रेन से आमदनी नहीं है तो रेलवे महकमे ने भी न तो स्टेशन पर पर्याप्त स्टाफ रखा है और न ही यात्री सुविधाओं पर कोई ध्यान दे रहा है। स्टेशन में गंदगी की भरमार है। सफाई के लिए केवल एक कर्मचारी लगाया गया है, वो भी हफ्ते में मात्र दो दिन आता है।
सवाल ये उठता है कि नियत समय से करीब चार साल बाद शुरू होने पर भी यात्री भार मात्र साठ-सत्तर है तो समय पर शुरू हो जाता तो क्या हाल होता? कोई दस-बारह ही यात्रा करते। यूं मांग तो करीब पंद्रह-बीस साल पुरानी थी, इसे शुरू करने की। बाहर से आने वाले यात्रियों को पुष्कर जाने के लिए ट्रेन की सुविधा देने के मकसद से स्थानीय राजनीतिक दल प्रयास करते रहे और बड़ी जद्दोजहद के बाद इसको मंजूरी मिली। तत्कालीन लोकसभा सदस्य प्रो. रासासिंह रावत और राज्यसभा सदस्य डा. प्रभा ठाकुर व औंकार सिंह लखावत ने भी खूब जोर लगाया। ऐसे में प्रश्न ये उठता है कि ऐसे अनुपयोगी विकास कार्यों के लिए हम आखिर क्यों जोर लगाते हैं? केवल वोटों की खातिर या फिर सरकारों के पैसा है तो उसे कहीं तो ठिकाने लगवाना है। क्या हमें पता नहीं था कि यह रेल मार्ग शुरू होने पर इसका हश्र क्या होगा? मगर मानसिकता विशेष की तुष्टि के लिए जिद कर रहे थे। इस योजना पर भी करीब एक सौ करोड़ का खर्चा आ चुका है और अब भी यह घाटे का सौदा ही साबित हो रही है, तो क्या यह हमारी ही गाढ़ी कमाई का दुरुपयोग नहीं है, जो कि हमारी जिद के कारण किया गया है और किया जा रहा है?
अजमेर-पुष्कर रेल मार्ग ही क्यों, बूढ़ा पुष्कर के जीर्णोद्धार कार्य का भी कमोबेश यही हश्र है। राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत के भगीरथी प्रयासों से करोड़ों रुपए लगा कर बूढ़ा पुष्कर पर शानदार घाट व मंदिर बना दिए गए, तो जाहिर तौर इस ऐतिहासिक कार्य के लिए उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई। होनी भी चाहिए। मगर उसका उपयोग क्या है? आज न तो वहां तीर्थ यात्री जाता है और न ही पुष्कर के पुरोहितों की वहां जा कर पूजा-अर्चना करवाने में रुचि है। एक बड़ी वजह ये है कि भाजपा शासन काल में शुरू हुए इस कार्य को कांग्रेस सरकार ने आते ही ठप कर दिया। उस प्राधिकरण पर ही ताले लगा दिए। यदि कांग्रेस सरकार इस पर ध्यान देती तो कदाचित इसका विकास भी होता और तीर्थ यात्रियों का भी पैर वहां पड़ता। मगर चिंता किसे है? विधानसभा में पुष्कर का प्रतिनिधित्व करने वाली शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ की भी इसमें कोई खास रुचि नहीं है। अब केवल संतोष यह कह कर किया जा सकता है कि चलो एक ऐतिहासिक काम तो हो गया, अभी नहीं तो बाद में आबाद हो जाएगा।
अजमेर-पुष्कर रेल मार्ग के बारे में भी इसी प्रकार का संतोष किया जा सकता है कि हमारे जनप्रतिनिधियों की प्रयासों से शुरू तो हुआ, जब इसे जब मेड़ता तक जोड़ा जाएगा और पुष्कर से हरिद्वार की ट्रेन शुरू की जाएगी तो उपयोगी हो जाएगा। प्रसंगवश हवाई अड्डे की भी बात कर लें। इसकी मांग भी बहुत पुरानी है और राजनीतिक जागरूकता के अभाव और सशक्त नेतृत्व की कमी का उलाहना देते हुए आज हमें शिकायत है कि वह शुरू नहीं हो पा रहा, मगर जैसे हालत हैं, वह भी जब शुरू होगा तो विमानों में यात्री बैठाने को ही नहीं होंगे, मगर हम कम से कम गर्व से कह तो सकेंगे कि हमारे यहां हवाई अड्डा भी है।
लब्बोलुआब अपना सिर्फ इतना कहना भर है कि विकास कार्य होने चाहिए, मगर ऐसे, जिनका लाभ वास्तव में आम लोगों को मिले, न कि वे गिनाने भर को हों व स्मारक की भांति खड़े शोभा बढ़ाएं। 

-तेजवानी गिरधर
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नसीम अख्तर ने डाला फच्चर, बाकोलिया के वजूद पर सवाल

शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर के रेलवे स्टेशन रोड स्थित किंग एडवर्ड मेमोरियल के मामले में फच्चर डालने से नगर निगम के सीईओ सी आर मीणा के गले की हड्डी तो बाहर निकल गई, मगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया के वजूद पर सवालिया निशान लग गया है। ज्ञातव्य है कि बाकोलिया ने मेमोरियल का कब्जा लेने को कहा था, मगर चूंकि इसके अध्यक्ष जिला कलेक्टर और प्रशासक उपखंड अधिकारी हैं, इस कारण मीणा कार्यवाही करने को लेकर असमंजस में थे। इसी बीच नसीम अख्तर ने बाकोलिया से बात करने की बजाय सीधे मीणा को तलब कर लिया, नतीजतन मेमोरियल को अपने कब्जे में लेने के मामले में निगम शिथिल हो गया है। एक तरह से मामले की फाइल ठण्डे बस्ते में ही डाल दी गई है।
जानकारी ये है कि मेमोरियल के कर्मचारियों ने रोजी रोटी का हवाला देते हुए शिक्षा राज्यमंत्री से गुहार की थी, इस पर उन्होंने फोन पर ही मीणा से बात की और स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल से विस्तृत चर्चा करने की कह कर फिलहाल शांत रहने की हिदायत दे दी। इससे मीणा को बड़ी राहत मिल गई, वरना उन्हें मेयर के आदेश मानने के चक्कर में प्रशासन से टकराव मोल लेना पड़ता। सब जानते हैं कि जिला प्रशासन की मेमोरियल का कब्जा निगम को सौंपने में कभी रुचि नहीं थी। जिला प्रशासन हर बार कोई न कोई बहाना बना कर इसे रोक देता था, लेकिन अब तो खुद मंत्री ने ही दखल करके हस्तांतरण रुकवा दिया है।
बेशक मंत्री का ओहदा मेयर से बड़ा है और अजमेर जिले की होने के कारण उनका भी अजमेर के विकास में दखल देने का पूरा अधिकार है, मगर उन्होंने जिस तरह बाकोलिया को दरकिनार कर सीधे मीणा से बात कर मामला लंबित करवाया, उससे बाकोलिया के वजूद पर तो सवाल उठ ही गया है। साथ ही निगम की स्वायत्तता पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया है। दरअसल निगम अपनी आय बढ़ाने के लिए मेमोरियल का कब्जा लेना चाहता है। निगम की मंशा है कि शहर के बीचों बीच स्थित इस बेशकीमती सम्पत्ति का उपयुक्त इस्तेमाल हो, जिससे निगम की आय में इजाफा हो। निगम मेमोरियल की जमीन पर फाइव स्टार होटल, पार्किंग, व्यावसायिक भवन सहित अन्य निर्माण कराना चाहता है।
जहां तक नसीम अख्तर के सीधे दखल देने का सवाल है, उनका खुद का कहना है कि मेमोरियल कर्मचारी यूनियन के पदाधिकारी उनसे मिले, इस वजह से उन्होंने मीणा से बात की थी। वैसे उनकी इस मामले में कोई रुचि नहीं है फिर भी शहर हित को ध्यान में रखकर जगह का उपयोग होना चाहिए। सवाल उठता है कि अगर शहर के हित का ही इतना ख्याल है तो यह बाकोलिया से बात करके भी हो सकता था, इस प्रकार अधिकारियों से सीधे बात करने से एक तो राजनेताओं की फूट सड़क पर आ गई है, जिसका अधिकारी वर्ग जम कर फायदा उठायेगा। संभव है नसीम व बाकोलिया के बीच कोई मतभेद हो, मगर कम से कम शहर के विकास के लिए तो मतभेदों को त्याग देना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हो सकता तो जनता ये सवाल पूछेगी कि कांग्रेस की कड़ी से कड़ी जोडऩे की दलील दे कर निगम चुनाव में उनके वोट हासिल क्यों किए थे? ताजा प्रकरण में तो साफ तौर पर ये कड़ी टूटी हुई ही नजर आती है। 

-तेजवानी गिरधर
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बुधवार, 13 जून 2012

अदिति मेहता बनने ही नहीं दिया मंजू राजपाल को

झाडू लगातीं मंजू और ऊपर बेशर्मी से बैठा दुकानदार
अजमेर। जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल अजमेर से चली गईं। वे अपनी पसंद से दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर पंचायतीराज विभाग में डिप्टी सेके्रटरी के पद पर गई हैं। उनका कार्यकाल खास उपलब्धि वाला नहीं रह पाया। आखिर में तो हालत ये हो गई कि बार अध्यक्ष राजेश टंडन ने खुले आम उनको नकारा और नेगेटिव कलेक्टर कहना शुरू कर दिया और मांग की कि उन्हें हटा दिया जाए। उर्स मेले के दौरान भी उन्हें कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी की चादर के दौरान मिस मैनेजमेंट के कारण सांसद डा. प्रभा ठाकुर के हाथों जलील होना पड़ा। उससे भी बड़ी जलालत ये रही कि कांग्रसी नेताओं व प्रशासन के बीच टकराव के मद्देनजर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चादर सकुशल चढ़ाने के लिए संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा की छुट्टी रद्द कर बुलवाना पड़ा।
आप को याद दिला दें, ये वे ही मंजू राजपाल हैं, जिनके भीलवाड़ा से अजमेर आने पर अनुमान लगाया जाता था कि वे पूर्व लोकप्रिय कलेक्टर स्टील लेडी श्रीमती अदिति मेहता बन कर दिखाएंगी। तब कुछ का ख्याल था कि अजमेर में चूंकि कपड़ा फाड़ राजनीति है, इस कारण उन्हें दिक्कत आएगी तो कुछ मानते थे कि चूंकि यहां कपड़ा फाड़ राजनीति है, सिर्फ इसी कारण उनको अजमेर सूट करेगा। कुछ ऐसे भी थे, जिनकी सोच थी कि अजमेर को मंजू राजपाल और मंजू राजपाल को अजमेर सूट करेगा।
हालांकि मंजू राजपाल का भीलवाड़ा का कार्यकाल लुंजपुज ही रहा, मगर अजमेर में आते ही उन्होंने अपना मिजाज बदल लिया। उन्होंने नगर निगम के नौसीखिये मेयर कमल बाकोलिया का डुलमुल रवैया देख कर फटेहाल निगम के कामकाज में टांग फंसाने का साहस कर दिखाया। हालांकि इससे कुछ घाघ कांग्रेसी पार्षदों को बड़ी तकलीफ हुई और वे इसे निगम की स्वायत्तता पर हमला बता रहे थे, लेकिन मंजू राजपाल ने भी तय कर लिया था कि शहर की यातायात व्यवस्था और अतिक्रमणकारी दुकानदारों को दुरुस्त करके ही रहेंगी। अजमेर वासी होने के नाते संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा भी उनकी मदद कर रहे थे। यह एक आदर्श स्थिति थी। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही थी कि वे अदिति मेहता को भी पीछे छोड़ देंगी। मगर अफसोस कि ऐसा हो नहीं पाया।
जहां तक उनके जज्बे का सवाल है, तो वह कितना था यह इसी से साबित होता है कि उनकी पहल पर जिला प्रशासन ने राजस्थान दिवस पर सफाई के लिए एक अनूठे तरीके से संदेश दिया। न केवल मंजू राजपाल ने झाडू लगाई, अपितु उनके साथी अफसरों, नगर निगम के महापौर कमल बाकोलिया ने भी उनका साथ दिया। तब एक दृश्य तो ऐसा उत्पन्न हो गया था, जिसमें मंजू राजपाल तो झाडू लगा रही थीं, जबकि उनके ठीक ऊपर दुकान को आगे बढ़ा कर अस्थाई अतिक्रमण किए दुकानदार बेशर्मी से बैठे हुआ था। इस मुद्दे को उठाते हुए अजमेरनामा ब्लाग में लिखा था कि दुकानदार को उसे तनिक भी अहसास नहीं कि जिले की हाकिम खुद झाडू हाथ में लेकर खड़ी हैं, और वह आराम से हाथ पर हाथ धरे बैठे ताक रहा था, मानो कोई सफाई कर्मचारी सफाई कर्मचारी सफाई करने को आई है। उसे ये भी ख्याल नहीं कि झाडू लगाना कलेक्टर का काम नहीं है। वे तो संदेश दे रही हैं। आज अजमेर में हैं, कल कहीं और चली जाएंगी।
कहने का तात्पर्य ये कि वह दृश्य यह बताने को काफी था कि आम अजमेरवासी कितना उदासीन सा है। आम नागरिक ही क्यों, हमारे जनप्रतिनिधि भी सफाई के प्रति कितने जागरूक हैं, यह इसी से साबित होता है कि जिला कलेक्टर ने नगर निगम के सभी पार्षदों को भी इस अभियान की शुरुआत में साथ देने का न्यौता दिया था, मगर शहर वासियों की सेवा करने के नाम पर वोट मांगने वाले अधिसंख्य पार्षद इसमें शरीक नहीं हुए। क्या कांग्रेस के, क्या भाजपा के। शहर के विकास में कंधे से कंधा मिला कर चलने की वादा करने वाले उप महापौर अजित सिंह राठौड़ भी नदारद थे। तब अपुन ने लिखा था कि ऐसे में एक क्या हजार मंजू राजपालें आ जाएं, हमें कोई नहीं सुधार सकता।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि ऐसी जज्बे वाली अफसर नाकामयाब हो गई? असल में अकेले वे ही नहीं, उनका साथ दे रहे संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा का भी यही हाल रहा। वे भी अजमेर के लिए कुछ करना चाहते हैं, मगर साथ ही दुर्भाग्य ये भी है कि वे कई बार मजबूत होने के बाद भी राजनीतिक कारणों से मजबूर साबित हुए हैं। हालत ये है कि अब वे उनसे मिलने जाने वालों के सामने राजनीतिज्ञों व आम जनता का सहयोग न मिलने का रोना रोते दिखाई देते हैं। उन्हें बड़ा अफसोस है कि वे अपने पद का पूरा उपयोग करते हुए अजमेर का विकास करना चाहते हैं, मगर जैसा चाहते हैं, वैसा कर नहीं पाते। आपको याद होगा कि दोनों अधिकारियों के विशेष प्रयासों से शहर को आवारा जानवरों से मुक्त करने का अभियान शुरू हुआ, मगर चूंकि राजनीति में असर रखने वालों ने केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट का दबाव डलवा दिया, इस कारण वह अभियान टांय टांय फिस्स हो गया। अतिक्रमण हटाने व यातायात व्यवस्था सुधारने के मामले में भी राजनीति आड़े आ गई। यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए वन-वे करने का निर्णय उसी राजनीति की भेंट चढ़ गया। पशु पालन की डेयरियों को अजमेर से बाहर ले जाने की कार्यवाही शुरू करने का ऐलान को भी राजनीति जीम गई।
इसी प्रकार यातायात व्यवस्था सुधारने के लिए जवाहर रंगमंच के बाहर बनी गुमटियों को दस साल की लीज समाप्त होने के बाद हटाया गया तो शहर के नेता यकायक जाग गए। कांग्रेसी पार्षदों ने वोटों की राजनीति की खातिर गरीबों का रोजगार छीनने का मुद्दा बनाते हुए जेसीबी मशीन के आगे तांडव नृत्य कर बाधा डालने की कोशिश की, वहीं भाजपा दूसरे दिन जागी और कांग्रेसी पार्षदों पर घडिय़ाली आंसू बहाने का आरोप लगाते हुए प्रशासन को निरंकुश करार दे दिया। गुमटियां तोडने पर इस प्रकार उद्वेलित हो कर नेताओं ने यह साबित करने की कोशिश की कि प्रशासन तो जन-विरोधी है, जबकि वे स्वयं गरीबों के सच्चे हितैषी। विरोध करने वालों को इतना भी ख्याल नहीं आई कि अगर वे इस प्रकार करेंगे तो प्रशासनिक अधिकारी शहर के विकास में रुचि क्यों लेंगे। केवल नौकरी ही करेंगे न। और यही हुआ। बाद में मंजू राजपाल ने भी तय कर लिया कि वे अब सिर्फ नौकरी ही करेंगी।
मंजू राजपाल का नकारात्मक पहलु ये रहा कि वे रिजर्व नेचर की हैं। इस कारण हंसने की जगह भी मुस्करा भर देती हैं। उनका यह मिजाज अजमेर की प्रभारी मंत्री श्रीमती बीना काक का पसंद नहीं आया। उन्होंने गणतंत्र दिवस समारोह के नीरस होने पर तो यहीं नाराजगी जताई और जयपुर जा कर इस बात पर भी अफसोस जताया कि श्रीमती राजपाल हंसती नहीं हैं। दिलचस्प बात ये है कि उनके इस न हंसने की प्रवृत्ति पर भी बड़ी चर्चा हुई। जिले के तीन विधायक उनकी ढाल बनने की कोशिश करते हुए उनके व्यवहार की तरफदारी कर रहे थे। हालांकि बाद में मंजू राजपाल ने जैसे तैसे बीना काक को राजी किया और पिछले गणतंत्र दिवस समारोह में उनकी शाबाशी हासिल कर ली। खैर, कुल मिला कर उनका रूखा और रिजर्व व्यवहार की उनके लिए परेशानी का कारण बन गया। अधिकतर नेता इसी कारण नाखुश हो गए थे कि वे किसी से सीधे मुंह बात नहीं करती थीं। ऐसे में टंडन को उनके खिलाफ मोर्चा खोलना पड़ा।
लब्बोलुआब, जब मंजू राजपाल रिलीव हुईं तो किसी को कोई मलाल नहीं था। अंदर ही अंदर सभी खुश थे। केवल चंद अधिकारियों ने उन्हें औपचारिक विदाई दे कर छुट्टी पाई।

-तेजवानी गिरधर
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