सोमवार, 27 जनवरी 2014

क्या रलावता का विकल्प तलाशा जाएगा?

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन के काबिज होने के बाद अजमेर शहर जिला कांग्रेस में भी बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। हालांकि मौजूदा अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता उनकी ही पसंद के हैं और उन्हें अध्यक्ष भी उन्होंने ही बनवाया था, इस कारण कई लोग यह मानते हैं कि कम से कम लोकसभा चुनाव तक तो उन्हें नहीं हटाया जाएगा, मगर शहर कांग्रेस की चरम पर पहुंची गुटबाजी के कारण शहर की दोनों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की बुरी तरह से हार के बाद सचिन पर दबाव बन सकता है कि वे संगठन को दुरुस्त करने के लिए अध्यक्ष को बदलें।
बताया जाता है कि हालांकि रलावता सचिन की पसंद रहे हैं, मगर विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर की सीट के टिकट के लिए अडऩा सचिन को अच्छा नहीं लगा बताया। सचिन किसी सिंधी को ही टिकट देना चाहते थे, मगर खींचतान के चलते पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती टिकट पाने में कामयाब हो गए। इसका परिणाम ये रहा कि कांग्रेस ने उत्तर की तो सीट खोयी ही, दक्षिण में भी सचिन की पसंद के हेमंत भाटी हार गए। बेशक कांग्रेस विरोधी लहर के कारण हार का अंतर ज्यादा रहा, मगर कांग्रेस के दोनों प्रत्याशियों की शिकायत है कि उन्हें संगठन का साथ नहीं मिला।
चर्चा है कि पायलट अपनी पसंद के ही किसी नए चेहरे को शहर अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे सकते हैं। पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती व पूर्व विधायक ललित भाटी से उनकी नाइत्तफाकी जगजाहिर है और पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल पर भी दाव खेले जाने की संभावना कम बताई जा रही है। ऐसे में पायलट के करीबी शहर कांग्रेस उपाध्यक्ष कैलाश झालीवाल का नंबर आ सकता है। वे तकरीबन तीस साल पुराने सक्रिय व जुझारू नेता हैं, मगर सवाल ये है कि क्या उनके लिए आम स्वीकार्यता बन पाएगी। इसी प्रकार विजय जैन के नाम की भी चर्चा है। अजमेर दक्षिण के कांग्रेस प्रत्याशी रहे हेमंत भाटी का नाम भी उभर कर आया है। वे पुराने दिग्गज कांग्रेसी स्वर्गीय सेठ श्री शंकर सिंह भाटी के परिवार के होने के कारण प्रतिष्ठित व्यवसायी व समाजसेवी तो हैं ही साधन संपन्न भी हैं। यदि सभी कांग्रेसी उन्हें स्वीकार कर लें तो संगठन चलाने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी। नया और ऊर्जावान चेहरा तो हैं ही। यूं पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग भी एक विकल्प हो सकते थे और उन्हें सरकारी नौकरी से सेवामुक्त होने के बाद सचिन ने ही उपाध्यक्ष बनवाया था, मगर अज्ञात गलतफहमियों के कारण उन्हें रलावता वाली कार्यकारिणी में नहीं रखा गया। ऐसे में सचिन से उनकी दूरी हो गई। दावेदार नगर निगम मेयर कमल बाकोलिया भी हो सकते थे, उनका संगठन के नेताओं को साथ ले कर चलने का उनका परफोरमेंस नजर नहीं आता। नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष नरेन शहाणी भी एक विकल्प हो सकते थे, मगर लैंड फॉर लैंड मामले में फंसने के बाद संभावना शून्य हो गई। सचिन से भी उनकी दूरी बताई जाती है। कुल मिला कर सचिन के लिए रलावता के मुकाबले नया चेहरा तलाशना कुछ मुश्किल काम है।

सचिन से भिडने को तैयार भाजपाई दावेदार

हालांकि अजमेर संसदीय क्षेत्र से मौजूदा कांग्रेस सांसद व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के दुबारा यहीं से चुनाव लडऩे अथवा केवल प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालने का निर्णय होना बाकी है, मगर भाजपा के सभी दावेदार यही मान कर कि सचिन ही सामने होंगे, टिकट मिलने पर चुनाव लड़ कर जीतने के आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। ज्ञातव्य है कि पिछली बार सचिन के सामने उपयुक्त स्थानीय दावेदार नहीं मिलने पर भाजपा ने भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती किरण माहेश्वरी को चुनाव मैदान में उतारा था और वे 76 हजार 135 मतों के भारी अंतर से हार गई थीं। इस कारण इस बार भाजपा के सामने सशक्त दावेदार तलाशने की समस्या थी, मगर विधानसभा चुनाव में चली कांग्रेस विरोधी लहर में अजमेर जिले के ब्यावर विधानसभा क्षेत्र को छोड़ कर अजमेर संसदीय क्षेत्र में शामिल सभी सातों विधानसभा क्षेत्र और जयपुर जिले के दूदू विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की जीत ने भाजपा के हर किसी दावेदार में सचिन को हरा देने का उत्साह भर दिया है। अब किसी भी दावेदार को सचिन से भिडऩे में कोई डर नहीं है। उलटे वे यह सोच रहे हैं कि टिकट मिलने पर न केवल उनकी जीत सुनिश्चित है, अपितु प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पर काबिज सचिन जैसे दिग्गज कांग्रेसी नेता को हराने का श्रेय अलग हासिल होगा। यह सोच इसलिए तर्कसंगत नजर आती है क्यों कि संसदीय क्षेत्र के सभी आठों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा व कांग्रेस को मिले मतों में 1 लाख 91 हजार 943 का भारी अंतर है। इस खाई को पाटना आसान काम नहीं। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा खेमे में सरगरमी तेज है।
उधर कांग्रेस खेमे में हलचल इसलिए नहीं है कि उसमें यही माना जा रहा है कि उनकी ओर से प्रत्याशी सचिन ही होंगे, तो दिमाग काहे को लगाएं। यूं भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद अन्य दावेदारों में कोई उत्साह नहीं है। हां, अगर सचिन के पास जर्जर हो चुकी कांग्रेस का जीर्णोद्धार करने का जिम्मा है और उन्हें प्रदेश की सभी पच्चीस सीटों पर कांग्रेस को जिताने की मशक्कत करनी होगी, इस कारण यदि यह विचार बना कि वे लोकसभा चुनाव न लड़ें, उसी स्थिति में ही दावेदार उभर कर सामने आएंगे, यूं दावा भले ही कोई भी जताता रहे।
भाजपा के पास हैं कई विकल्प, जाट प्रत्याशी पर हो रहा है विचार
बात अगर भाजपा की करें तो उसके पास दावेदारों की कमी नहीं है। उसके पास सबसे दमदार विकल्प है किसी जाट को चुनाव मैदान में उतारना। इसकी वजह ये है कि परिसीमन के बाद इस संसदीय क्षेत्र में जाटों के वोट तकरीबन दो लाख माने जाते हैं। हालांकि यह विकल्प भाजपा के पास पिछली बार भी था, मगर चूंकि नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र से हारे दिग्गज भाजपा नेता व तत्कालीन जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट, जो कि वर्तमान में भी जलदाय मंत्री हैं, का मानस बना नहीं और सचिन के मुकाबले कोई अन्य जाट नेता मिला नहीं, इस कारण इस हाई प्रोफाइल चुनाव में भाजपा ने भी अपनी दिग्गज श्रीमती माहेश्वरी को उतार दिया। भाजपा खेमा यह मान कर चलता है कि इस बार जाट प्रत्याशी सचिन को टक्कर देने की स्थिति में हो सकता है। इसका आधार ये है कि दो लाख जाटों के अतिरिक्त भाजपा मानसिकता के दो लाख वैश्य, सवा लाख रावत, एक लाख सिंधी व एक लाख राजपूत मतदाता जाट प्रत्याशी को जितवा सकते हैं। इसी संभावना के मद्देनजर कुछ रिटायर्ड जाट अधिकारी भाग्य आजमाने की सोच रहे हैं। इनमें प्रमुख रूप से राजस्थान लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष सी. आर. चौधरी व अजमेर में कलेक्टर रह चुके महावीर सिंह का नाम सामने आ रहा है। पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गैना के ससुर सी. बी. गैना का नाम भी चर्चा में है। एक अन्य जाट सज्जन भी बताए जा रहे हैं, जिन्होंने वसुंधरा राजे की सुराज संकल्प यात्रा के दौरान अहम भूमिका निभाई बताई।
फिर मैदान में आ सकती हैं किरण माहेश्वरी
भाजपा चाहे तो एक बार फिर वैश्य पर दाव लगा सकती है। हालांकि पिछली बार श्रीमती माहेश्वरी हार गई थीं, मगर इस बार स्थिति उलट है, इस कारण साहस जुटा सकती हैं। यदि उन्हें राज्य मंत्रीमंडल में स्थान नहीं मिलता तो कदाचित वे कोरा विधायक रहना पसंद न करें। उनके हाईकमान तक रसूखात भी हैं, इस कारण टिकट लाना उनके लिए कठिन नहीं होगा।
बात अगर अन्य वैश्य दावेदारों की करें तो इस सिलसिले में स्थानीय वैश्य दावेदारों का मानना है कि वे स्थानीयता के नाम पर बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। इनमें पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा, नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन व पूर्व शहर भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा के नाम शामिल हैं। पहाडिय़ा ने गुपचुप तैयारी भी शुरू कर दी थी, मगर उन्हें टोंक-सवाईमाधोपुर का लोकसभा चुनाव प्रभारी बनाए जाने के बाद संभावना कम हो गई है। कारण ये है कि प्रदेश अध्यक्ष वसुंधरा राजे ये स्पष्ट कर चुकी हैं कि लोकसभा चुनाव प्रभारी चुनाव नहीं लड़ेंगे, क्योंकि उनके जिम्मे लोकसभा क्षेत्र में सारा समन्वय, सम्मेलन, बूथ मैनेजमेंट सिस्टम आदि का काम रहेगा।
पूर्व सांसद रासासिंह रावत भी करेंगे दमदार दावेदारी
अजमेर के पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत भी दावेदारी के पक्के मूड में हैं। उन्हें पुष्कर से विधानसभा चुनाव का टिकट नहीं मिला तो यह सोच कर चुप रह गए थे कि लोकसभा चुनाव में दावेदारी करेंगे। दावा तो उनका पिछली बार भी था, मगर परिसीमन की वजह से अजमेर संसदीय क्षेत्र का रावत बहुल मगरा इलाका कट जाने पर उन पर पार्टी ने दाव खेलना मुनासिब नहीं समझा। रावतों के वोट कम होने के बाद भी तकरीबन सवा लाख रावत तो हैं ही, जिनके दम पर वे दावा ठोकेंगे। उनके पास कहने को ये तर्क भी है कि वे यहां से पांच बार सांसद रहे हैं, इस कारण उनकी पकड़ अच्छी है। साथ ही उन्हें स्थानीयता व सहज उपलब्धता का भी लाभ मिलेगा। जिले में पुष्कर व ब्यावर से रावत प्रत्याशियों के जीतने से उत्साहित रावत महासभा राजस्थान की ओर से अजमेर संसदीय क्षेत्र से समाज के योग्य व्यक्ति को टिकट देने की मांग से भी उनको बल मिला है।
वसुंधरा की पुत्रवधु पर भी है कयास
बताया जाता है कि मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की पुत्रवधू व झालावाड़ के भाजपा सांसद दुष्यंत सिंह की धर्म पत्नी श्रीमती निहारिका राजे को भी दावेदार माना जाता है। इसके पीछे एक तर्क ये है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र में तकरीबन डेढ़ लाख गुर्जर मतदाता हैं और श्रीमती निहारिका भी गुर्जर समाज की बेटी हैं। जातीय समीकरण के लिहाज से वे परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ रहने वाले गुर्जर समुदाय में सेंध मार सकती हैं।
युवा नेता पलाड़ा कर चुके हैं अघोषित दावेदारी
आगामी चुनाव के लिए एक और सशक्त दावेदार भी उभर कर आए हैं। वे हैं युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा, जो कि पूर्व जिला प्रमुख व मौजूदा मसूदा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति हैं। पिछले दिनों उनकी पहल पर आयोजित पंचायतीराज सशक्तिकरण सम्मेलन में हालांकि उन्होंने खुल कर दावेदारी तो नहीं की, मगर उनके हाव-भाव और मिजाज ऐसा ही नजर आ रहा था। श्रीमती पलाड़ा के विदाई समारोह का रूप लिए इस समारोह में विधानसभा चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत का जिक्र करते हुए पलाड़ा ने अपनी हुंकार में कहा कि अभी तो लोकसभा का फाइनल बाकी है, उसे उनकी भाजपा के लिए खाली पड़ी लोकसभा सीट की दावेदारी के रूप में लिया गया। असल में इसकी तैयारी उन्होंने अपनी जिला प्रमुख पत्नी के कार्यकाल में बेहतरीन कार्य करवा कर कर ली थी। जहां तक टिकट लाने का सवाल है, उनके पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से संबंध जगजाहिर हैं, इस कारण ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी। सचिन के मुकाबले साधन-संपन्नता के मामलें में भी वे कमजोर नहीं पड़ेंगे।
अजमेर जिले के भाजपा सदस्यता प्रभारी रहे प्रो. बी. पी. सारस्वत भी इस बार दावेदारी करने के मूड में हैं, मगर पहले उन्हें नागौर का लोकसभा प्रभारी बनाया गया और फिर देहात जिला भाजपा अध्यक्ष का जिम्मा भी सौंप दिया गया। ऐसे में उनकी दावेदारी में रोड़ा पड़ गया है।
ऐसी चर्चा भी है कि अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी या निम्बाहेड़ा के भाजपा विधायक श्रीचंद कृपलानी को लोकसभा चुनाव लड़ाने पर पार्टी हाईकमान विचार कर रहा है। इसकी प्रमुख वजह ये बताई जा रही है कि सिंधी कोटे में ये दोनों ही मंत्री बनने की कतार में हैं। दोनों की दावेदारी मजबूत है, मगर दोनों को मंत्री बनाया नहीं जा सकता। पिछली बार सिंधी विधायक के रूप में अकेले देवनानी जीते थे, इस कारण उन्हें मंत्री बनाने में दिक्कत नहीं आई। इस बार देवनानी के अतिरिक्त कृपलानी व ज्ञानदेव आहूजा भी जीत कर आ गए। इसी कारण समस्या उत्पन्न हुई है। ऐसे में देवनानी व कृपलानी में से किसी एक को मंत्री बना कर दूसरे को लोकसभा में भेजना की बेहतर विकल्प होगा।
पिछली बार दावेदारी चुके अजमेर नगर निगम के पूर्व महापौर धर्मेन्द्र गहलोत, मगरा विकास बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष मदनसिंह रावत, अजमेर नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, पूर्व केकड़ी प्रधान रिंकू कंवर आदि के भी दावा ठोकने के आसार हैं।
बात अगर कांग्रेस की करें तो फिलहाल यही माना जाता है कि यहां से सचिन ही चुनाव लड़ेंगे, मगर यदि प्रदेश अध्यक्ष का महत्वपूर्ण दायित्व निभाने की वजह से मानस बदला तो पूर्व जिला प्रमुख रामस्वरूप चौधरी, पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती आदि दावा कर सकते हैं। दावा अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी भी करते, मगर उन्होंने विधानसभा चुनाव में बगावत कर चैप्टर क्लॉज सा कर लिया है। वैसे भी सचिन के खिलाफ चुनाव लडऩे के उनके ऐलान के बाद उन पर कोई विचार होना असंभव सा है। विशेरू रूप से अब जब कि सचिन प्रदेश अध्यक्ष के नाते टिकट निर्धारण में अहम भूमिका निभाने वाले हैं।
-तेजवानी गिरधर