मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

किसे मिलेगा अजमेर उत्तर का कांग्रेस टिकट?

लंबी कशमकश के बाद जैसे ही नरेन शहाणी भगत को नगर सुधार न्यास का सदर बनाया गया है, एक नई बहस शुरू हो गई है। कुछ लोगों का मानना है कि आगामी चुनाव में भगत को ही अजमेर उत्तर की टिकट मिलेगी तो कुछ का कहना है कि अब गैर सिंधी का दावा मजबूत हो जाएगा।
असल में नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष बनने के लिए अनेक दावेदार कोशिश कर रहे थे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती का नाम टॉप पर था, मगर बीस सूत्रीय कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति में उपाध्यक्ष बनाए जाने के बाद उनकी संभावना कम हो गई थी। हालांकि इसके बाद भी आखिरी समय तक उनका नाम चलता रहा। इसी प्रकार महेंद्र सिंह रलावता, डॉ. लाल थदानी, दीपक हासानी, ललित भाटी, डॉ. राजकुमार जयपाल आदि ने भी कम कोशिश नहीं की। रलावता को चूंकि शहर कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया गया, इस कारण उनका नाम कटा हुआ माना जा रहा था। दीपक हासानी का नाम इस कारण कटा, चूंकि वे गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत करीबी हैं और वैभव नाम जमीन घोटाले में घसीटा गया, इस कारण गहलोत हासानी को अध्यक्ष बना कर नई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहते थे। इसी प्रकार डॉ. राजकुमार जयपाल के नाम पर संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट राजी नहीं थे। पूर्व उप मंत्री ललित भाटी को नरेगा की राष्ट्रीय सलाहकार समिति में लेने के कारण वे भी शांत हो गए। कुल मिला कर बात यहां पर आ कर अटक गई कि सिंधी को अध्यक्ष बनाया जाए या वैश्य को। वैश्य समाज का कहना था कि यदि अध्यक्ष सिंधी को बनाते हैं तो टिकट हमें दिया जाए और वैश्य को अध्यक्ष बनाया जाता है तो हम टिकट की दावेदारी छोडऩे को राजी हैं। इसी जद्दोजहद के बीच किशनगढ़ के जाने-माने नेता रहे स्वर्गीय श्री किस्तूर चंद चौधरी के पुत्र पूर्व विधायक डॉ. के. सी.चौधरी का नाम उभरा, मगर अजमेर के वैश्य नेताओं ने उनका विरोध कर किसी स्थानीय वैश्य को बनाने का दबाव बना दिया। ऐसे में वैश्य महासभा के नेता कालीचरण खंडेलवाल का भी उभरा और उनका नाम ही फाइनल माना जा रहा था, मगर ऊपर उनकी शिकायत ये हुई कि वे संघ से जुड़े रहे हैं। ऐसे में भगत की किस्मत चेत गई।
भगत के अध्यक्ष बनने के साथ यह चर्चा आम हो गई है कि विधानसभा चुनाव में गैर सिंधी के रूप में डॉ. बाहेती को अजमेर उत्तर का टिकट देने के कारण सिंधियों में उपजी नाराजगी को दूर करने की कोशिश की गई है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि अब वैश्य समाज को खुश करने के लिए क्या कांग्रेस अजमेर उत्तर का टिकट किसी वैश्य को देगी। कम से कम वैश्य समाज का तो यही दावा है। दूसरी ओर सिंधी समुदाय का मानना है कि भले ही भगत को पार्टी की सेवा का इनाम मिला हो, मगर इससे सिंधियों का दावा कमजोर नहीं हुआ है। कांग्रेस फिर से किसी वैश्य को टिकट दे कर हारने की रिस्क नहीं लेगी। उनका मानना है कि अब भगत दो साल में अपना ग्राउंड तैयार कर लेंगे और वे पहले से ज्यादा सशक्त दावेदार हो जाएंगे। सिंधी समुदाय में भी कुछ दावेदार ऐसे हैं जो यह कह कर आगे आने की कोशिश कर रहे हैं कि भगत को तो इनाम मिल गया, मगर अब उनको चांस दिया जाना चाहिए।
अपने कप्तान चपेट में आने पर चेती पुलिस

अजमेर की पुलिस अपने कप्तान राजेश मीणा के एक प्राइवेट बस की चपेट में आ कर चोटिल होने पर चेती है। अब उसने रात 11 बजे तक शहर में भारी वाहनों के प्रवेश पर रोक को सख्ती से अमल में लाना शुरू कर दिया है। ज्ञातव्य है कि गत दिनों मीणा रात साढ़े आठ बजे जब अपने निवास की ओर कार से जा रहे थे, तो सामने से आ रही एक प्राइवेट बस ने उन्हें टक्कर मार दी, जिससे कार बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई और उन्हें इलाज के लिए जयपुर रेफर करना पड़ा।
उल्लेखनीय है कि रात दस बजे तक भारी वाहनों के प्रवेश पर रोक पहले से लगी हुई है, मगर पुलिस वाले ही अपनी जेबें गरम करने के लिए ढ़ीलाई बरत रहे थे। चूंकि भारी वाहन सुविधा शुल्क दे कर सुविधा हासिल कर रहे थे, इस कारण उनके तो शिकायत करने की कोई भी संभावना थी नहीं और आम लोगों को कोई मतलब नहीं था, इस कारण पुलिस वाले मौज कर रहे थे। नतीजतन प्रमुख मार्गों पर हर वक्त दुर्घटना की आशंका बनी रहती थी और यातायात प्रभावित होता था। मगर अब जब कि खुद पुलिस के ही कप्तान एक भारी वाहन की चपेट में आ गए तो पुलिस की पोल खुल गई। उसने कागजों पर बने नियमों पर अमल करना शुरू कर दिया है। यानि कि उसे आम जनता से कोई मतलब नहीं है। जब खुद के एसपी चपेट में आए तब जा कर ड्यूटी का होश आया है। पहले रात दस बजे तक रोक थी, जिसे बढ़ा कर ग्यारह कर दिया गया है। पुलिस अब इतनी सख्त हो गई है कि वह ग्यारह बजे बाद भी भारी वाहनों को रोक रही है। ऐसे में व्यापारियों को परेशानी हो रही है। उन्हें शहर के बाहर ही भारी वाहन खाली करवा कर छोटे वाहनों में सामान लाना पड़ रहा है।

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

नए न्यास अध्यक्ष भगत के सामने हैं कई चुनौतियां

तकरीबन दस साल तक लंबी राजनीतिक कवायद के बाद और अनेक दुश्मनों से संघर्ष करने के बाद हालांकि कांग्रेस नेता नरेन शहाणी भगत को न्यास अध्यक्ष का पद मिलने की अपार खुशी है, मगर सच्चाई ये है कि अब उनका रास्ता और भी कठिन हो गया है। चाहे राजनीतिक रूप से, चाहे न्यास अध्यक्ष के रूप में कामकाज की दृष्टि से, उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना है।
सब जानते हैं कि यह पद भाजपा शासनकाल में धर्मेश जैन के इस्तीफे के बाद से खाली पड़ा था। जिला कलेक्टर ही पदेन रूप से इस पद का कार्यभार संभाले हुए थे। किसी भी जिला कलेक्टर ने इस दौरान रूटीन के कामों से हट कर विकास के नए आयाम छूने में रुचि भी नहीं दिखाई। असल में न्यास के पदेन अध्यक्ष जिला कलैक्टर को तो न्यास की ओर झांकने की ही फुरसत नहीं है। वे वीआईपी विजिट, जरूरी बैठकों आदि में व्यस्त रहते हैं। कभी उर्स मेले में तो कभी पुष्कर मेले की व्यवस्था में खो जाते हैं। न्यास से जुड़ी अनेक योजनाएं जस की तस पड़ी हैं।
विकास को तरस रहा है अजमेर

नए न्यास अध्यक्ष भगत के लिए निजी तौर पर भले ही नया पद हासिल करने की बेहद खुशी हो, मगर इसी के साथ उन पर महती जिम्मेदारी भी आ गई है। भगत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती ये है कि एक तो उनके पास कांग्रेस शासनकाल की दृष्टि से मात्र दो साल ही बचे हैं। उसमें भी यदि आगामी चुनाव से पहले की कवायद और आचार संहिता को दृष्टिगत रखा जाए तो केवल डेढ़ साल ही धरातल पर काम करने का मौका मिलेगा। चूंकि लंबे समय से विकास ठप्प पड़ा है और लोगों के ढ़ेरों काम बाकी हैं, इस कारण जनता की अपेक्षाएं बहुत ज्यादा हैं। विकास तो दूर रोजमर्रा के कामों की हालत भी ये है कि जरूरतमंद लोग चक्कर लगा रहे हैं और किसी को कोई चिंता नहीं। नियमन और नक्शों के सैंकड़ों काम अटके पड़े हैं। पिछले सात साल से लोग न्यास के चक्कर लगा रहे हैं, मगर नियमन के मामले नहीं निपटाए जा रहे। इसका परिणाम ये है कि अपना मकान बनाने का सपना मात्र पूरा होता नहीं दिखाई देता। स्पष्ट है कि विकास अवरुद्ध हुआ है। पत्रकार कॉलोनी के लिए अरसे लंबित आवेदन उसका ज्वलंत उदाहरण हैं। वर्षों से लम्बित मुआवजा भुगतान, भूमि के बदले भूमि, रूपांतरण, नियमन आदि के हजारों मामल निपटाने के साथ विकास कार्य करवाना और वह भी कम समय में, निश्चित ही चुनौतीपूर्ण है।
भगत के लिए एक बड़ी चुनौती होगी, विकास के लिए पैसा जुटाने की। न्यास की संपत्तियों की ठीक रखरखाव के साथ भू-माफियाओं के चंगुल से न्यास की भूमि को मुक्त करवाना बेहद कठिन काम है। उसके लिए उन्हें दृढ़ इच्छा शक्ति दिखानी होगी, क्योंकि जैसे ही कोई काम शुरू किया जाता है तो अनके राजनीतिक-गैरराजनीतिक दबाव झेलने होते हैं। अब देखना ये है कि वे जनता की अपेक्षाओं पर कितना खरा उतरते हैं। जहां तक लोगों की प्रतिक्रिया का सवाल है जैसे ही भगत के नाम की घोषणा हुई, यह एक आम प्रतिक्रिया थी कि देर से ही सही मगर एक साफ-सुथरे व्यक्ति को शहर के विकास का जिम्मा सौंपा गया है। ऐसे में उम्मीद तो यही की जानी चाहिए कि उनकी नियुक्ति शहर के विकास का नया द्वार खोलेगी।
टांग खिंचाई का क्या करेंगे भगत?

भगत के लिए दूसरी बड़ी मुश्किल है, अपने ही साथी कांग्रेसी नेताओं से तालमेल बैठाने की। जाहिर तौर पर जब इस पद के दावेदार सभी प्रमुख नेता थे और उन्हें यह पद नहीं मिला तो वे कितने खिंचे-खिंचे से होंगे। पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को कितनी तकलीफ हुई, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे भगत के शपथ ग्रहण समारोह तक में नहीं थे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नजदीकी के कारण अजमेर के मिनी सीएम के रूप में जाने जाते हैं। वे भी प्रमुख दावेदार माने जा रहे थे, मगर धुर विरोधी भगत को कुर्सी मिल गई तो तकलीफ होनी ही थी। उन्होंने खूब शिकायत की कि भगत ने उन्हें हरवाने में अहम भूमिका निभाई, मगर गहलोत ने फिर भी भगत को ही इनाम दिया। ऐसे में बाहेती से भगत सहयोग की उम्मीद तो दूर, उलटा फिश प्लेंटे गायब करवाने की आशंका ही ज्यादा नजर आती है। न्यास पहले ही घोटालों का अड्डा बना हुआ है। लोग फर्जी सीडी की वजह से निपेट धर्मेश जैन को अभी भूले नहीं हैं। एक तो बेदाग बने रहने की जरूरत है, दूसरा गिनाने लायक काम करने हैं। एक अखबार ने तो उनके सामने पूर्व अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत की लकीर खींच रखी है। हालांकि अन्य सभी नेता शपथ ग्रहण समारोह में आए, मगर सच्चाई ये है कि उन्हें भी तकलीफ तो है ही। इन सभी से तालमेल बैठा कर चलना आसान काम नहीं है। कुल मिला कर चुनौती बड़ी है। उससे भी बड़ी बात ये है कि उनका असल राजनीतिक कैरियर ही अब शुरू हुआ है। वे विधायक बनने का सपना पाले हुए हैं। अगर ठीक से काम किया तो ही टिकट की उम्मीद कर सकते हैं। जीतने का ग्राउंड भी तैयार कर सकते हैं। परफोरमेंस ठीक नहीं रहा तो राजनीतिक कैरियर पर फुल स्टॉप की खतरा है। इस बात को उन्हें भी अहसास है, इस कारण सावधान तो हैं, मगर देखते हैं कामयाब कितना हो पाते हैं।
बड़ी मुश्किल से हासिल किया है ये पद

सब जानते हैं कि नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष बनने की लाइन में कांग्रेस के कई नेता थे। सबसे पहले स्थान पर नाम था मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती का, मगर बीस सूत्रीय कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति में उपाध्यक्ष बनाए जाने के बाद उनकी संभावना कुछ क्षीण हो गई थी। हालांकि इसके बाद भी आखिरी समय तक उनका नाम चलता रहा। इसी प्रकार महेंद्र सिंह रलावता, डॉ. लाल थदानी, दीपक हासानी, ललित भाटी, डॉ. राजकुमार जयपाल आदि भी लाइन में थे। रलावता को चूंकि शहर कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया गया, इस कारण उनका नाम कटा हुआ माना जा रहा था। दीपक हासानी का नाम अलग वजह से कटा। चूंकि वे गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत करीबी हैं और उनका नाम जमीन घोटाले में घसीटा गया, इस कारण साफ हो गया कि गहलोत अब कोई रिस्क नहीं लेंगे। रहा सवाल डॉ. राजकुमार जयपाल का तो जाहिर तौर पर उनके लिए संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट राजी नहीं थे, क्योंकि शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर डॉ. जयपाल गुट ने काफी परेशान किया था। रलावता की ताजपोशी के बाद उनका नाम भी यूआईटी के दावेदारों की सूची से कट गया था। ललित भाटी को राष्ट्रीय स्तर पर नरेगा संबंधी कमेटी लेने के बाद उनका नाम भी सूची से कट गया। आखिरी दौर में हालांकि पूर्व विधायक डॉ. के. सी.चौधरी का नाम उभरा, मगर स्थानीय वैश्य नेताओं ने उनका विरोध कर किसी स्थानीय वैश्य को बनाने का दबाव बना दिया। ऐसे में वैश्य महासभा के नेता कालीचरण खंडेलवाल का भी उभरा और उनका नाम ही फाइनल माना जा रहा था, मगर उनकी भी कारसेवा हो गई। आखिरकार भगत का नंबर आ गया। समझा जाता है कि विधानसभा चुनाव में गैर सिंधी के रूप में डॉ. बाहेती को अजमेर उत्तर का टिकट देने के कारण सिंधियों में उपजी नाराजगी को दूर करने को भी कांग्रेस हाईकमान ने ध्यान में रखा है।
कौन हैं नरेन शहाणी भगत?

मूल रूप से होटल व ब्रेड व्यवसायी श्नरेन शहाणी भगत यूं तो अरसे से समाजसेवक के रूप में जाने जाते हैं। श्री भगत का जन्म 5 अप्रैल 1961 को प्रसिद्ध समाजसेवी श्री नत्थूलाल शहाणी के घर हुआ। स्नातक तक शिक्षा अर्जित करने के दौरान ही उन्होंने अपने पैतृक व्यवसाय की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया। लक्ष्मी बैकर्स प्राइवेट लिमिटेड व लक्ष्मी होटल के प्रोपराइटर शहाणी अपने पिता की ही तरह सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर रुचि लेने लगे। वे वर्तमान में संत कंवरराम मंडल और संत कंवरराम एज्यूकेशनल सोसायटी के अध्यक्ष हैं, जिसके तहत सीनियर सेकंडरी स्कूल व धर्मशाला का संचालन किया जाता है। इसके अतिरिक्त अजमेर सिंधी सेंट्रल पंचायत के अध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य, कांग्रेस के जिला लघु उद्योग प्रकोष्ठ के अध्यक्ष, सिंधी काउंसिल ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष, पूज्य पारब्रह्म मंदिर के ट्रस्टी, संत कंवरराम हाउसिंग सोसायटी के सलाहकार, अजमेर बेकरी एसोसिएशन के अध्यक्ष, आदर्श विद्या समिति व प्रेम प्रकाश मंडल के कार्यकारिणी सदस्य और क्लॉक टावर व्यापार संघ के अध्यक्ष हैं। साथ ही श्रीनगर रोड रहवासी संघ के सलाहकार, लायंस क्लब मेन के ट्रस्टी व अजमेर जिला लघु उद्योग संघ के निदेशक हैं। सन् 2003 के चुनाव में उन्हें कांग्रेस अजमेर पश्चिम से अपना प्रत्याशी बनाया, लेकिन दुर्भाग्य से तत्कालीन विधायक श्री नानकराम जगतराय के बागी प्रत्याशी के रूप में मैदान में होने के कारण वे पराजित हो गए। उसके बाद भी वे लगातार सक्रिय बने रहे हैं।

रविवार, 11 दिसंबर 2011

आर्य कर रहे हैं पुष्कर से लडऩे की तैयारी


चौपाल पर चर्चा है कि भाजपा नेता और अजमेर नगर निगम के पूर्व उप महापौर सोमरत्न आर्य आगामी विधानसभा चुनाव में पुष्कर से भाग्य आजमाने की तैयारी कर रहे हैं। असल में वे जानते हैं कि अजमेर शहर में उनके लिए राजनीतिक कैरियर की कोई संभावना नहीं है। संगठन में कई साल से हैं और उसमें कुछ खास मजा नहीं है। वैसे भी संगठन में अध्यक्ष बनने की उनकी कोशिशें बेकार चली गईं और पूर्व सांसद रासासिंह रावत को मौका मिल गया। रहा सवाल चुनावी राजनीति से जुडऩे का तो अजमेर दक्षिण की सीट रिजर्व है और अजमेर उत्तर की सीट अघोषित रूप से सिंधियों के लिए आरक्षित। रहा सवाल नगर निगम का तो वहां चुनाव इस कारण नहीं लड़ा कि उसमें हद से हद पार्षद बन जाते अथवा चांस मिलता तो फिर से उप महापौर बन पाते। महापौर का पद तो रिजर्व था। अगले चुनाव में किसी के लिए रिजर्व होगा या फिर सामान्य, कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में आर्य ने सोचा कि इससे तो बेहतर है कि कहीं और भाग्य आजमाया जाए। सुना है कि उन्होंने पुष्कर के चक्कर लगाने शुरू कर दिए हैं। उन्हें अनुमान हो चला है कि पिछली बार भाजपा प्रत्याशी रहे भंवर सिंह पलाड़ा रावतों की भाजपा से बगावत के कारण हारने के बाद वहां रुचि नहीं लेंगे। चर्चा है कि वे अब केकड़ी में ध्यान दे रहे हैं। ऐसे में फिलहाल पुष्कर में कोई दमदार दावेदार है नहीं, यानि कि फिलहाल मैदान साफा है, सो आर्य को यहीं जमीन तलाशना ठीक लग रहा है। इसी सिलसिले में आए दिन किसी न किसी बहाने पुष्कर का चक्कर काट आते हैं। देखते हैं कि चुनाव नजदीक आने पर उन्हें किस अन्य दावेदार से मुकाबला करना होगा।

सिनोदिया हत्याकांड : अब जगी उम्मीद

किशनगढ़ के कांगे्रस विधायक नाथूराम सिनोदिया के पुत्र भंवर सिनोदिया की हत्या के मामले की जांच और कोर्ट की प्रक्रिया में आई तेजी से अब जा कर उम्मीद जगी है कि हत्याकांड के आरोपियों को सजा मिल जाएगी। इससे पूर्व तो हालत ये थी चर्चाओं में इस कांड को लगभग दफन सा माना जा रहा था।
दरअसल सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक के बेटे की हत्या अर्थात हाई प्रोफाइल केस होने के बावजूद मीडिया ने कुछ दिन की सक्रियता के बाद चुप्पी सी साध ली थी। सीधी सी बात है कि मीडिया को इसमें कुछ चटपटा मसाला मिलने की उम्मीद नहीं थी, इस कारण इस पर ज्यादा गौर नहीं किया। और यही वजह रही कि जांच एजेंसियों पर कोई दबाव नहीं रहा और वे भी सुस्त ही बैठी रहीं। यदि सक्रिय थीं भी तो दैनिक प्रगति से मीडिया को दूर रख रही थी। इसके विपरीत चूंकि पूर्व जल संसाधन मंत्री महिपाल मदेरणा के मामले में सीधे सरकार तक आंच आ रही थी और मामला महिला से जुड़ा होने के कारण चटपटा था, इस कारण मीडिया खुद ही रोज उसे गर्माए हुए है। स्वाभाविक सी बात है कि किसी की टोपी उछालनी हो तो मीडिया क्रीज से एक कदम आगे बढ़ कर खेलता है। जाहिर तौर पर ऐसे में जांच एजेंसियों पर भारी दबाव बन गया और वे भी मामले की तह तक जाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं।
बहरहाल, सिनोदिया हत्याकांड के मामले में पुलिस की ढिलाई और मीडिया की बेरुखी से जवान बेटे की हत्या के कारण सदमे में रहे कांग्रेस विधायक नाथूराम सिनोदिया अफसोस तो हुआ ही होगा। जाहिर तौर पर उन्होंने सरकार पर भी दबाव बनाया होगा। कदाचित उसी वजह से अब जांच में तेजी आई है और कोर्ट भी दैनिक प्रगति पर काम कर रहा है। मीडिया भी अब प्रतिदिन की प्रगति रिपोर्ट प्रकाशित कर रहा है। ऐसे में अब उम्मीद की जा सकती है कि मामले का पूरा पर्दाफाश होगा और दोषियों को सजा मिलेगी।

देवनानी व भदेल के टकराव से उबरने में जुटी भाजपा



फिर से रिंग मास्टर की भूमिका में आने लगे हैं लखावत
अजमेर। शहर के दोनों भाजपा विधायकों प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल के बीच आए दिन होते टकराव से भट्टे बैठी शहर भाजपा को दोनों से उबारने की कोशिशें लगातार जारी हैं। पहले दोनों की पसंद के दावेदारों को दरकिनार कर बीच का रास्ता अख्तियार कर प्रो. रासासिंह रावत को अध्यक्ष बनाया दिया गया। इसके बाद शहर भाजपा युवा मोर्चा के मामले में भी दोनों विधायकों की सिफारिश को एक तरफ रख कर देवेन्द्र सिंह शेखावत को अध्यक्ष बना दिया गया और अब शहर भाजपा महिला मोर्चा अध्यक्ष पद भी उनकी राय को ठेंगा दिखा कर जयंती तिवारी को दिया गया है।
असल में भाजपा का आम कार्यकर्ता इन दोनों विधायकों की आपसी रंजिश से बेहद त्रस्त रहा है। दोनों के टकराव के चलते पार्टी अपने लगभग जीते हुए प्रत्याशी डॉ. प्रियशील हाड़ा को मेयर नहीं बनवा सकी। हालांकि अपने-अपने पार्षद प्रत्याशियों के लिए काम करने से बोर्ड में भाजपा का बहुमत तो बन गया, मगर मेयर का चुनाव भाजपा हार गई। दोनों के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई के चलते लोकसभा चुनाव में भी श्रीमती किरण माहेश्वरी को हार का मुंह देखना पड़ा था। तब पार्टी साफ तौर पर देवनानी बनाम एंटी देवनानी गुट में बंटी हुई थी। इसका परिणाम ये हुआ कि संगठन पूरी तरह से सक्रिय नहीं हुआ और जहां दस हजार वोटों की बढ़त की उम्मीद थी, वह मात्र 2 हजार 948 पर सिमट गई। दक्षिण में तो हालत बेहद खराब हुई। वहां विधानसभा चुनाव में हासिल की गई 19 हजार 306 मतों की बढ़त तो सिमटी ही, उलटा 2 हजार 157 मतों से मात खानी पड़ी। कुल मिला कर पार्टी हाईकमान को यह समझ में आ गया है कि इन दोनों की खींचतान के कारण नुकसान हो रहा है। ऐसे में जब शहर अध्यक्ष का नाम तय करने का मौका आया तो काफी जद्दोजहद के बाद गुटबाजी का समाप्त करने के लिए रावत को फाइनल कर दिया गया। हालांकि अब भी पार्टी देवनानी व भदेल के गुटों में बंटी हुई है और इन दोनों से पूरी तरह से उबर नहीं पाई है, लेकिन धीरे-धीरे इन दोनों के वर्चस्व से संगठन को मुक्त करने की कोशिशें जारी हैं। उसी सिलसिले में शहर भाजपा युवा मोर्चा के मामले में देवनानी गुट के नितेष आत्रे व भदेल गुट के गौरव टांक को हाशिये पर रख कर देवेन्द्र सिंह शेखावत को अध्यक्ष बना दिया गया। अजमेर भाजपा के भीष्म पितामह औंकार सिंह लखावत के दखल से हुई नियुक्ति पर देवनानी गुट ने जितना उबाल खाया, वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। शेखावत का विरोध करने के लिए पार्टी अनुशासन को तार-तार कर दिया गया। आज भी मोर्चा दो गुटों में ही बंटा हुआ है। इस तरह की गुटबाजी से खता खायी भाजपा ने एक बार फिर महिला मोर्चा के मामले में तीसरे विकल्प का रास्ता अख्तियार कर लिया। देवनानी गुट की पार्षद भारती श्रीवास्तव और भदेल गुट की हेमलता शर्मा को दरकिनार कर जयंती तिवारी के नाम पर ठप्पा लगा दिया गया है। हालांकि प्रत्क्षत: गुट देवनानी व भदेल के ही कहलाते हैं, मगर वस्तुस्थिति ये है कि अब एक तरफ देवनानी हैं तो दूसरी ओर भदेल व अन्य सभी। अर्थात भाजपा का एक बड़ा धड़ा देवनानी के खिलाफ है, मगर इसके बावजूद पार्टी के कुछ समझदार नेता भदेल को भी ज्यादा भाव नहीं देना चाहते, इस कारण जहां देवनानी की राय को दरकिनार करते हैं, वहीं भदेल को भी सब्र रखने की सीख देते हैं। इसकी वजह ये है कि देवनानी किसी भी सूरत में भदेल की ओर से सुझाये गए नाम पर सहमति देने को राजी नहीं होते। वे ज्यादा हंगामा न कर सकें, इस कारण दोनों की ओर से सुझाए गए नामों की बजाय तीसरा विकल्प तलाशा जाता है। ताजा प्रकरणों से यह भी पूरी तरह से साफ होने लगा है कि जो लखावत प्रदेश के बड़े नेता होने के बाद भी एक समय में शहर में टांग नहीं अड़ा पा रहे थे, अब वे सीधा दखल करने लगे हैं। यानि कि वे फिर से रिंग मास्टर की भूमिका में आने लगे हैं।