गुरुवार, 30 जुलाई 2015

नरेश सारवान वार्ड 17 से कांग्रेस के प्रबल दावेदार

अजमेर नगर निगम के आगामी 17 अगस्त को होने जा रहे चुनाव में वार्ड 17 से कांग्रेस की ओर से नरेश सारवान की प्रबल दावेदारी है। एनएसयूआई जीसीए के पूर्व अध्यक्ष और यूथ कांग्रेस राजस्थान के सचिव सारवान के पक्ष में सबसे बड़ा पहलु ये है कि वे स्थानीय हैं और लंबे अरसे से यहां सक्रिय हैं।  इसके अतिरिक्त उनके वाल्मिकी समाज के तकरीबन नौ सौ वोट हैं, जो कांग्रेस मानसिकता के माने जाते हैं। सारवान पर कांग्रेस नेता हेमंत भाटी का वरदहस्त बताया जाता है। जानकारी ये भी है कि यहां पूर्व पार्षद सुनील केन, जिन्हें कि चुनाव प्रबंधन का पूरा ज्ञान है, ने भी खम ठोक रखा है, मगर उनके साथ दिक्कत ये आ सकती है कि वे स्थानीय नहीं है। ज्ञातव्य है कि सुनील केन की पत्नी श्रीमती नीता केन इस वक्त वार्ड 15 से पार्षद हैं, मगर उनका वार्ड अब 19 हो गया है। नया वार्ड 19 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, मगर वे वार्ड 17 से दावेदारी कर रहे हैं। देखने वाली बात ये है कि टिकट लेने के मामले में सारवान और केन में से कौन बाजी मार ले जाता है।

बुधवार, 29 जुलाई 2015

नवीता जोन हैं वार्ड 50 से कांग्रेस की प्रबल दावेदार

आसन्न अजमेर नगर निगम चुनाव में सामान्य महिला के लिए आरक्षित वार्ड 50 से कांग्रेस की ओर से श्रीमती नवीता जोन की प्रबल दावेदारी उभर कर आ रही है। वे राजेश जोन की धर्मपत्नी हैं, जो कि कांग्रेस का जाना-पहचाना चेहरा हैं और उनकी धरातल पर अच्छी पकड़ है।
39 वर्षीया श्रीमती नवीता बीए पास हैं और कांग्रेस में वे पूर्व ब्लॉक उपाध्यक्ष रह चुकी हैं। वार्ड में क्रिश्चियन समुदाय के पर्याप्त वोट हैं, जिनका उन्हें पूरा समर्थन मिलने की उम्मीद है। इसके अतिरिक्त यहां कायस्थ समुदाय के भी काफी वोट हैं, जो परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ रहे हैं। यह वार्ड कांग्रेस के लिए अनुकूल बताया जाता है। ज्ञातव्य है कि वार्ड में पूरा जवाहर नगर, पूरा सिविल लाइन्स, राजस्व मंडल के आसपास और पुलिस लाइन के इलाके आते हैं। विस्तार से देखें तो वार्ड में कनक गार्डन के सामने होते हुए जवाहर रंगमंच के सामने होते हुए सावित्री स्कूल तिराहे तक बांयी तरफ के मकान, वहां से बांयी तरफ मुड़ कर पूरे सिविल लाइन क्षेत्र को शामिल करते हुए होटल खादिम, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के सामने होते हुए अम्बेडकर सर्किल तक बांयी तरफ के मकाना इसमें शामिल हैं। इसके अतिरिक्त वहां से बांयीं तरफ मुड़ कर सिंचाई विभाग, संभागीय आयुक्त कार्यालय होते हुए माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ऑफिस से पहले तिराहे तक बांयीं तरफ के सभी मकान भी हैं। इसके बाद सेंट्रल जेल को शामिल करके पुलिस लाइन चौराहे तक बांयी तरफ के मकान, वहां से चुंगी चौकी शास्त्री नगर की तरफ होते हुए लोहागल रोड पर महेन्द्र भाटी की दुकान तक बांयी तरफ के समस्त मकान भी इसी वार्ड में हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

रमेश सेनानी हो सकते हैं वार्ड 57 से कांग्रेस के दावेदार

पूर्व पार्षद रमेश सेनानी आसन्न नगर निगम चुनाव में वार्ड 57 से कांग्रेस के दावेदार हो सकते हैं। जानकारी के अनुसार उनको चुनाव लडऩे का मानस बनाने का इशारा तो मिल चुका है, मगर वे अभी जमीनी हालात का मुआयना कर रहे हैं।
सबको पता है कि सेनानी पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल खेमे से हैं और पूर्व केबीनेट मंत्री स्वर्गीय किशन मोटवानी के भी करीबी रहे हैं। उन्हें चुनाव लडऩे और लड़वाने का खासा अनुभव है। कम से कम रणनीतिक रूप से तो वे कमजोर नहीं पडऩे वाले। कभी विधानसभा सीट के भी दावेदार रहे हैं। वैसे ये वार्ड भाजपा के लिए सर्वाधिक मुफीद वार्डों में शुमार है और शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्र भी, मगर कदाचित उन्हें मौजूदा पार्षद दीपेन्द्र लालवानी के प्रति स्वाभाविक रूप से कायम एंटी इन्कंबेंसी का लाभ भी मिल जाए। इस बात की भी संभावना है कि अगर वे जीते और कांग्रेस का बोर्ड बनने की स्थिति आई तो वे मेयर पद के भी दावेदार हो सकते हैं। ज्ञातव्य है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर से सिंधी को टिकट न दिलवा पाने की वजह से उसकी एवज में किसी सिंधी को मेयर बनवाने का मानस रखते हैं। उनकी सोच है कि जब तक किसी सिंधी को पावरफुल नहीं बनाया जाएगा, तब तक भाजपा के इस वोट बैंक में सेंध मारना कठिन ही होगा।
आपको बता दें कि 8 सितम्बर 1952 को जन्मे सेनानी बी.ए. पास हैं और कांग्रेस से वर्षों से जुड़े हुए हैं। पेश से वे प्रॉपर्टी डीलर हैं, इस कारण इलाके के चप्पे-चप्पे को अच्छी तरह से जानते हैं। एक जमाना था, जब वैशाली नगर में कांग्रेस का झंडा हाथ में थामने वाला कोई नहीं था, तब से वे इस इलाके में कांग्रेस का दिया जलाते रहे हैं। वे कांग्रेस संगठन में तो कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे ही हैं, 1995 में इस इलाके से पार्षद भी रह चुके हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

रविवार, 26 जुलाई 2015

वार्ड सात में भाजपा की आस टिकी अनिल नरवाल पर

आगामी नगर निगम चुनाव में वार्ड सात सामान्य महिला के लिए सुरक्षित होने के कारण यहां भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार अनिल नरवाल को उनकी पत्नी को चुनाव लड़ाने का ऑफर है। दूसरी ओर पता चला है कि वे अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतारने की बजाय खुद वार्ड आठ से टिकट लेना चाहते हैं।
असल में यह वार्ड भाजपा के लिए आसान वार्ड नहीं है। इस वार्ड में तकरीबन 2800 मुस्लिम वोट हैं। यहां पार्टी तभी कामयाब हो सकती है, जबकि कांग्रेस मानसिकता वाले हरिजन वोटों में सेंध मारे। इसके लिए मात्र अनिल नरवाल ही सक्षम हैं। इसी कारण पार्टी चाहती है कि नरवाल की पत्नी के यहां से लड़ें, जिससे चुनाव जीतना आसान हो जाए, कई भाजपाई वार्ड वासी भी यही चाहते हैं, चूंकि वे ही नैया पार लगा सकते हैं, लेकिन अगर नरवाल नहीं माने तो यह वार्ड कांग्रेस के लिए आसान हो सकता है। एक मात्र यही वजह है कि नरवाल की पत्नी के यहां से चुनाव न लडऩे की संभावना के चलते कांग्रेसियों में खींचतान बढ़ गई है। कांग्रेस में यहां आरिफ हुसैन, पप्पू कुरैशी व मुनीर तंबोली के परिवारों में किसी महिला के चुनाव लडऩे की संभावना बताई जा रही है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

भाजपा दावेदारों ने निकाला तोड़

नगर निगम चुनाव में भाजपा ने दावेदारों पर मानसिक दबाव बनाने के लिए जो तीन अन्य दावेदारों के नाम भी आवेदन के साथ देने का नियम बनाया है, उसका दावेदारों ने तोड़ निकाल लिया है। पता लगा है कि तेज तर्रार दावेदारों ने पार्टी को वे तीन नाम सुझाए हैं, जो असल में दावेदार हैं ही नहीं, या बहुत कमजोर दावेदार हैं, या फिर उनको टिकट मिलना कत्तई असंभव है। ऐसा इसलिए क्योंकि वे वास्तविक दावेदारों पर अपनी मुहर तो नहीं लगाना चाहते। हालांकि पार्टी के बड़े नेताओं को तो पता होगा ही कि कौन-कौन दमदार दावेदार हैं, मगर वे क्यूं अपनी ओर से उन दमदार पर अपनी राय जाहिर करें।
एक और चालाकी भी की जा रही है। वो ये कि एक ही लॉबी के कुछ दावेदार पूल भी कर रहे हैं। एक-दूसरे के नाम अन्य तीन दावेदारों की सूची में दर्शा रहे हैं। ताकि गिनती की जाए तो उनके नाम ही प्रमुख दावेदारों की सूची में हों। हकीकत में सच बात ये है कि हर दावेदार को पता है कि वह कितने पानी में है, दिखावे के लिए खम ठोक कर ऐसे खड़ा होता है कि मानो उसका टिकट फायनल हो।
वैसे ये है सब बेमानी। पार्टी के नेताओं को पहले से पता होता है कि असल में कौन-कौन असल दावेदार है। उनके सामने तो दिक्कत ये होती है कि जो मजबूत हैं, उनमें से नाम किसका तय किया जाए। फोकट दावेदारी करने वालों के लिए तो कोई जगह होती ही नहीं। उससे भी बड़ा सच ये है कि दोनों विधानसभा क्षेत्रों के विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल पहले से ही लगभग तय कर चुके हैं कि किसे-किसे टिकट देना चाहिए। आखिर इतने दिन से मॉनिटरिंग कर रहे हैं। जहां तय करने में दिक्कत है, वहां जरूर दो या तीन नाम दिमाग में रखे हैं। आखिरी वक्त में हेरफेर कर लेंगे। उससे भी कड़वा सच ये है कि प्रत्याशी तय करने की हो भले ही पूरी प्रक्रिया, मगर टिकट उन्हें ही मिलेगा, जिन पर देवनानी व भदेल हाथ रखेंगे। अब तक का इतिहास तो यही बताता है। पिछले अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत की कितनी चलती थी, सबको पता है। वे केवल अपनी इज्जत बचाए हुए थे, बाकी तय सब कुछ देवनानी व भदेल ही किया करते थे। आपको याद होगा, शिवशंकर हेड़ा का अध्यक्षीय कार्यकाल। सारे टिकट दोनों विधायकों ने तय किए, हेड़ा शायद ही किसी अपनी पसंद के दावेदार को टिकट दिलवा पाए। कमोबेश वैसा ही इस बार होने की संभावना है। मौजूदा अध्यक्ष अरविंद यादव भले ही अभी खुश हो लें कि उनकी अध्यक्षता में पूरी प्रक्रिया हो रही है, मगर हिस्से में उनके चंद टिकट ही आने हैं। उन्हें भी पहले से पता है कि दोनों विधायक चाहते क्या हैं? तो उसी हिसाब से अपनी राय रखने वाले हैं। उनकी राय वहीं अहमियत रखेगी, जहां विवाद खड़ा हो जाएगा। या फिर देवनानी व भदेल के कुछ जिताऊ व पसंद के दावेदार एक दूसरे के विधानसभा क्षेत्र में लटक रहे होंगे। यानि कि समझौते में दो-तीन टिकट एक दूसरे की पसंद के देने होंगे। इस दरहकीकत को अगर आप समझ लें तो यह आसानी से समझ सकते हैं कि पार्टी ने दावेदारों से जो तीन अन्य दावेदारों नाम मांगे हैं, वे क्या मायने रखते हैं। ऐसे में यह बात कितनी हास्यास्पद हो जाएगी कि पार्टी तीन दावेदारों के नाम लिखने की औपचारिकता इसलिए करवा रही है ताकि टिकिट न मिलने पर कोई कार्यकर्ता यह नहीं कह सके कि मुझसे पूछे बिना अन्य को टिकिट दे दिया गया। इसी को राजनीति कहते हैं। नौटंकी पूरी करनी होती है, मगर टिकट उसे ही मिलता है, जिसके बारे में निर्णायक पहले से तय कर चुके होते हैं।
एक बात और मजेदार है। वो ये कि आवेदक से यह भी लिखवाया गया है कि अधिकृत प्रत्याशी का चुनाव में विरोध नहीं किया जाएगा। अब बताओ, उसके ऐसे लिखे हुए का क्या मतलब है? उसने कोई फस्र्ट क्लास मजिस्ट्रेट के सामने तो शपथ पत्र दिया नहीं है कि वह इस लिखे हुए की पालना करने को बाध्य हो? लिख कर देने के बाद भी अगर वह निर्दलीय चुनाव लड़ता है तो लड़ेगा। आप भले ही पार्टी से बाहर कर देना। वो तो आप बिना लिखवाए हुए भी करने के लिए अधिकृत हैं। मगर कहते हैं न कि दिखावे की दुनिया भी चल रही है, जबकि होता वही है जो हकीकत की दुनिया चाहती है।
-तेजवानी गिरधर
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गुरुवार, 23 जुलाई 2015

मेयर के दावेदारों में एक और नाम शामिल

आगामी अगस्त माह में होने वाले अजमेर नगर निगम चुनाव के लिए एक ओर जहां कांग्रेस में मेयर की दावेदारी का अता-पता नहीं है, वहीं भाजपा में एक और दावेदार का नाम कानाफूसी की गिरफ्त में आ गया है। वो नाम है सीताराम शर्मा का।
सबको पता है कि वे शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के खासमखास हैं। अति विश्वसनीय। चर्चा ये चल पड़ी है कि उन्हें वार्ड तीन से चुनाव लड़ाने का मानस बनाया गया है। हालांकि प्रारंभिक तौर पर कहीं ये चर्चा नहीं की जाएगी कि वे मेयर पद के दावेदार हैं, मगर वे तुरप का आखिरी पत्ता हो सकते हैं। असल में उनका नाम इस कारण चर्चा में आया है कि मौजूदा दावेदारों को लेकर कुछ संशय बना हुआ है। यद्यपि यह तय सा है कि अगर भाजपा का बोर्ड बनता है तो देवनानी के हनुमान पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत ही मेयर के पद के सबसे प्रबल दावेदार होंगे, चूंकि उन्हें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी वरदहस्त प्राप्त है। मगर एक किंतु ये ही है कि चूंकि वे ओबीसी से हैं, इस कारण सामान्य वर्ग के दावेदार व पार्षद विरोध भी कर सकते हैं। दूसरे प्रबल दावेदार पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत पर राज्यसभा सांसद भूपेन्द्र सिंह यादव व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल का हाथ है, मगर संघ शायद तैयार न हो। तीसरे संभावित दावेदार नीरज जैन हैं, जिन पर जरूरत पडऩे पर ऐन वक्त पर देवनानी हाथ रख सकते हैं। रहा सवाल यादव के ही खास पार्षद जे. के. शर्मा का तो उनकी संभावना तब ही बनेगी, जबकि गहलोत व शेखावत को लेकर खींचतान मचेगी। उनको बाद में सभी साथ देने को तैयार भी हो सकते हैं। बात अगर सोमरत्न आर्य की करें तो वे भी खींचतान की स्थिति में जुगाड़ तंत्र का उपयोग कर मेयर पद हथिया सकते हैं।
चंद सवाल ये भी हैं। यह जानते हुए भी कि दोनों में से ही कोई एक मेयर बनेगा, क्या गहलोत व शेखावत दोनों चुनाव लड़ेंगे, क्योंकि ऐसे में एक तो मात्र पार्षद बन कर रहना होगा? कयास ये है कि अगर ऐसी स्थिति आई तो जो मात्र पार्षद रह जाएगा, वह इस्तीफा दे देगा। एक हवाई सवाल ये भी की काउंट करके चलना चाहिए कि क्या वाकई दोनों चुनाव लड़ेंगे भी?
अब बात करते हैं, सीताराम शर्मा की। ऐसी कयासबाजी लगाई जा रही है कि देवनानी ने उनको ब्लैक हॉर्स के रूप में रख रखा है। अगर गहलोत व जैन को लेकर कोई दिक्कत हुई तो वे ये पत्ता खेल जाएंगे। इसमें सुविधा ये भी है कि वे सर्वाधिक आज्ञाकारी हैं। इंच मात्र भी इधर से उधर नहीं होने वाले। जहां कहा जाएगा बैठ तो बैठ जाएंगे और जहां कहा जाएगा खड़ा हो तो खड़े हो जाएंगे। वैसे भी जो दावेदार न हो, उसे अगर मेयर बना दिया जाए तो वह इतना अभिभूत हो जाता है कि अपने आका का हर हुक्म सिर माथे रख कर चलता है। यूं गहलोत व जैन हैं तो देवनानी के ही मगर थोड़ा बहुत अपना खुद का भी वजूद रखते हैं। उनका अपना तंत्र भी है। हूबहू वही करेंगे, जो देवनानी चाहते हैं, इसमें तनिक संशय है। उसमें भी गहलोत में तो ये भी काबिलियत है कि अगर भाजपा में टोटा पड़ा तो वे कांग्रेसी पार्षद भी जुटा सकते हैं। यदि ऐसी स्थिति आई तो केवल देवनानी की हर आज्ञा मानना संभव नहीं होगा। सब कुछ एडजस्ट करके चलना होगा।
बात अब दूसरे समीकरण की। श्रीमती भदेल भी मौका तलाशेंगी कि उनकी पसंद का मेयर बने। उनके पास एक ही पत्ता है- सुरेन्द्र सिंह शेखावत। अगर उनको लेकर दिक्कत आई तो वे जे. के. शर्मा पर राजी हो जाएंगी। उनके पास एक चाल और भी बचेगी। उसे यूं समझते हैं। हालांकि निर्दलीय पार्षद ज्ञान सारस्वत समझौते के तहत देवनानी कोटे से टिकट लेंगे, मगर उनके ही पक्के हो कर रहेंगे, इस बारे में क्या कहा जा सकता है? अगर गहलोत व शेखावत के बनने में बाधा आई तो वे ज्ञान को समर्थन देकर खेल  अपने पक्ष में करने से नहीं चूकेंगी। हांलाकि अभी ये दूर की कौड़ी ही लगती है, मगर फैंकुओं को भला कौन रोक सकता है। वैसे भी राजनीति शतरंज का वो खेल है, जिसमें सब कुछ संभव है। इस कारण चतुर खिलाड़ी हर संभावना  को ध्यान में रख कर खेलता है। बहरहाल, अब देखते हैं कि चकरी घूम कर किस पर आ कर टिकती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

बुधवार, 22 जुलाई 2015

दावेदारी के लिए पहली बार हुआ सोशल मीडिया का उपयोग

ये पहला मौका है कि विभिन्न पार्टियों के नेता नगर निगम चुनाव में टिकट की दावेदारी के लिए सोशल मीडिया और बैनर-पोस्टर का धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं। इनमें से कई तो ऐसे हैं, जिन्होंने विधिवत दावेदारी से पहले ही अपने अपील वाले पोस्टर फेसबुक, वाट्स एप आदि पर जारी कर दिए हैं। जिनके पास पहले से वाट्स एप ग्रुप्स हैं, वे उनका उपयोग कर रहे हैं, तो कुछ नए ग्रुप बना कर अपने लिए समर्थन जुटा रहे हैं। इनमें से कई ऐसे हैं, या तो उनका अब तक फेसबुक अकाउंट नहीं था, या था तो उसका कुछ खास उपयोग नहीं करते थे। कुछ ने अपने-अपने वार्ड में भी पोस्टरों का प्रदर्शन किया है। कुछ दावेदार जहां सिर्फ दावेदारी में समर्थन करने की अपील कर रहे हैं, वहीं कुछ सीधे तौर पर यह जता रहे हैं कि उनका टिकट तो पक्का ही है। जाहिर तौर पर जो कंप्यूटर और सोशल मीडिया के बारे में कम अथवा बिलकुल नहीं जानते, उन्हें अपना पिछड़ापन दिख रहा है।
वस्तुत: सोशल मीडिया का यह प्रयोग टिकट निर्धारण करने वालों पर प्रभाव डालने के साथ ही अपने-अपने वार्ड में यह जताने के प्रयास भी है कि वे दमदार दावेदार हैं। इसका अर्थ ये निकालना तो ठीक नहीं कि जिसने जितना ज्यादा प्रचार किया है, वह उतना ही दमदार दावेदार है, मगर कम से कम उनकी कोशिश तो यही है कि वे इसके माध्यम से अपनी लोकप्रियता दर्शाना चाहते हैं। इसका लाभ उनको तो मिलेगा ही, जिनका टिकट पक्का हो जाएगा, क्योंकि चुनाव से पहले ही उनका प्रचार हो चुका होगा। इसका सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि अब तक किया गया प्रचार चुनाव आचार संहिता से बच जाएगा। इस खर्च के बारे में चुनाव आयोग पूछ ही नहीं पाएगा, चूंकि चुनाव खर्च की सीमा तो आचार संहिता लागू होने के बाद से मानी जाएगी।
जो कुछ भी हो, स्मार्ट सिटी बनने जा रहे अजमेर के नेता भी सोशल मीडिया फ्रेंडली होते हुए स्मार्ट बन रहे हैं, जो एक सुखद बात है। उधर कंप्यूटर डिजाइनिंग करने वाले और फ्लैक्स बनाने वालों की चांदी हो रही है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

मोहसिन खान ने की वार्ड दस से कांग्रेस टिकट की दावेदारी

अजमेर नगर निगम के आगामी अगस्त माह में प्रस्तावित चुनाव में छात्र नेता मोहसिन खान ने वार्ड दस से कांग्रेस टिकट की दमदार दावेदारी की है। वे कांग्रेस के अग्रिम संगठन एनएसयूआई व यूथ कांग्रेस में सक्रिय हैं।
मोहसिन खान की दावेदारी में उनकी पारिवारिक राजनीतिक पृष्ठभूमि भी काम कर रही है। उनके पिता मेहमूद खान पहले पार्षद रह चुके हैं और उनका कार्यकाल अच्छा माना जाता है। इलाके के लोग इससे प्रभावित हैं। मोहसिन खान की माता रफीका खान ने भी इसी वार्ड से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ा था। खान के बड़े भाई मुजम्मिल खान, जो कि  जीसीए कॉलेज के छात्रसंघ चुनाव में उपाध्यक्ष पद पर चुनाव लड़े, उन्होंने लोकेश कोठारी, दिव्येन्द्र सिंह जादौन आदि को एनएसयूआई के जिलाध्यक्ष का चुनाव जितवाने और प्रदेश युवक कांग्रेस कमेटी में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपनी दावेदारी और उसकी पृष्ठभूमि का खुलासा सोशल मीडिया पर जारी अपने पोस्टर्स में भी किया है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

मंगलवार, 21 जुलाई 2015

वार्ड 49 से कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदार हैं साकेत गर्ग

आगामी नगर निगम चुनाव में युवा नेता साकेत गर्ग वार्ड 49 से कांग्रेस टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। वे पत्रकार व एन.एस.यू.आई., अजमेर के पूर्व महामंत्री निर्मल गर्ग के पुत्र और शहर जिला कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग के भतीजे हैं। ज्ञातव्य है कि डॉ. सुरेश गर्ग की कांग्रेस में गहरी पेठ है और अपने व्यवहार से इलाके में लोकप्रिय हैं, जिसका लाभ साकेत गर्ग को मिल सकता है। वेे लोकसभा चुनाव में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट और विधानसभा चुनाव में डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के समर्थन में बड़ी रैली निकाल कर क्षेत्र में अच्छा प्रभाव दिखा चुके हैं। साकेत गर्ग के ताऊ जी कमल किशोर गर्ग जलदाय विभाग कर्मचारी संघ के अध्यक्ष रहे हैं और अजमेर अग्रवाल संघ के महामंत्री हैं, इस नाते कर्मचारियों और अग्रवाल समाज में भी पकड़ रखते हैं।
साकेत गर्ग ने एम.कॉम., सी.ए. ईन्टर, सी.एस. ईन्टर कि शिक्षा अर्जित की है और अजमेर शहर जिला कांग्रेस कमेटी, ब्लॉक उत्तर-बी के सचिव हैं। इसके अतिरिक्त पूर्व संयुक्त सचिव- एन.एस.यू.आई., अजमेर, उपाध्यक्ष- प्रगतिशील युवक संघ, अजमेर, महामंत्री- न्यू प्रिंस क्लब, अजमेर, सदस्य- पुलिस लाईन व्यापारिक संघ, अजमेर, सदस्य- राजीव गाँधी स्टड़ी सर्किल, अजमेर, अध्यक्ष-बीईंग एन्सलमाईट (एल्युमिनी एसोसियेशन, सेन्ट एन्सलम्स) भी हैं।
27 जुलाई, 1988 को जन्मे साकेत परिवार के लगभग 30 वर्षों से कांग्रेस से जुड़े होने के कारण क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। वे सोशल मीडिया में सक्रिय हैं और अजमेर के ज्वलंत मुद्दों को उठाते रहे हैं। उन्होंने अपनी दावेदारी को सोशल मीडिया के जरिए भी दमदार तरीके से पेश कर दिया है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

सोमवार, 20 जुलाई 2015

प्रताप यादव फिर मैदान में उतरने को तैयार

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रताप यादव एक बार फिर नगर निगम का चुनाव लडऩे को तैयार हैं। जाहिर है कि वे टिकट का दावा तो करेंगे ही और उनको टिकट मिलने की पूरी उम्मीद भी है, साथ ही मतदाताओं से भी अभी से अपील कर रहे हैं। सोशल मीडिया में जारी अपने संदेश में उन्होंने अपने वार्ड 6 के वासियों से कहा है कि पिछले 30 वर्ष से आपका सहयोग लगातार मिलता आया है। एक बार फिर में आपकी सेवा में कांगे्रस के लिए वोट मांगने हाजिर हो रहा हूं।
ज्ञातव्य है कि यादव वर्तमान में शहर जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं और पिछले पांच विधानसभा चुनावों में अजमेर दक्षिण से टिकट मांगते रहे हैं। भले ही उन्हें टिकट नहीं मिला, मगर उन्होंने कभी कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा। वे स्वर्गीय श्री माणकचंद सोगानी के जमाने से कांग्रेस में जिम्मेदार पदों पर रहे हैं। 30 जुलाई, 1952 को जन्मे और उपाध्याय (संस्कृत) तक शिक्षा प्राप्त यादव 1970 से कांग्रेस में सक्रिय हैं। 1978 में जनता पार्टी शासन के दौरान स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी को जेल भेजने के विरोध में अपने 170 से ज्यादा साथियों के साथ 20 दिसम्बर 1978 से 29 दिसम्बर 1978 तक अजमेर जेल में रह चुके हैं। वे 2001 ये 2003 तक अजमेर नगर परिषद के निर्वाचित पार्षद रहे और कांग्रेस के पिछले शासन काल में मनोनीत पार्षद रहे। उनकी पत्नी श्रीमती तारा देवी यादव 1990 से 1995 व 2000 से 2005 तक अजमेर नगर परिषद के सामान्य निर्वाचन क्षेत्र से पार्षद रह चुकी हैं।
असल में वे अपने इलाके में जमीन से जुड़े हुए नेता रहे हैं। कांग्रेस में वरिष्ठ व जिम्मेदार पदों पर रहते हुए भी सदैव लो प्रोफाइल रहे हैं, इस कारण उनकी जमीन पर गहरी पकड़ है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

भाजपा में देवनानी विरोधी गुट फिर सक्रिय

पिछले दो विधानसभा चुनावों की तरह आसन्न निगम चुनाव में भी भाजपा का शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी विरोधी गुट सक्रिय हो गया है। हालांकि उसे दोनों बार अलग-अलग वजह से सफलता हासिल नहीं हुई, मगर उसे लगता है कि वार्ड स्तर पर हो रहे चुनाव में वह कामयाब हो जाएगा।
असल में देवनानी के पहली बार शिक्षा राज्य मंत्री बनने के साथ भाजपा का एक गुट उनके खिलाफ हो गया था, जिसमें सिंधी-गैर सिंधीवाद का पहलु भी काम कर रहा था। 2्र्र8 के विधानसभा चुनाव में तो चूंकि सिंधी समाज पूरी तरह से लामबंद हो गया था, इस कारण देवनानी की नैया पार लग गई, हालांकि उस वक्त कुछ जोर आया और वे कम अंतर से ही जीत पाए। फिर 2013 के विधानसभा चुनाव में देवनानी विरोधी गुट ने उन्हें टिकट न मिलने में पूरा जोर लगा दिया, मगर उसे कामयाबी हासिल नहीं हुई, चूंकि मोटे तौर पर सिटिंग एमएलए को ही टिकट देने का फैसला हुआ। जब टिकट में रोड़ा नहीं डाल पाए तो उन्हें हराने की पूरी तैयारी की गई। विरोधी गुट ने बाकायदा वार्ड वार निपटाने की तैयारी की। दूसरी ओर देवनानी ने भी उसी के अनुरूप रणनीति तैयार की। लग रहा था कि विरोधी गुट की वजह से देवनानी को जीतने में दिक्कत आएगी या फिर वोटों का अंतर कम रहेगा, मगर मोदी लहर चलने के कारण सारे अनुमान धराशायी हो गए। देवनानी बंपर वोटों से जीत गए। उनके मंत्री बनने के बाद तो विरोधियों के मुंह बिलकुल ही बंद हो गए। मगर अब जबकि एक बार फिर चुनाव सामने हैं तो विरोधी गुट फिर सक्रिय हो गया है। जाहिर सी बात है कि विभिन्न वार्डों में देवनानी ने जिन कार्यकर्ताओं के सहयोग से चुनाव जीता, वे उन्हें ही टिकट देना चाहेंगे, मगर विरोधी गुट के कार्यकर्ता भी बराबर की दावेदारी करते नजर रहे हैं। यदि उन्हें टिकट नहीं मिला तो अधिकृत प्रत्याशी को निपटाने में जुट सकते हैं। यानि कि देवनानी को टिकट वितरण में तनिक परेशानी पेश आएगी। देवनानी को एक दिक्कत ये भी आ सकती है कि हर वार्ड में जिन प्रमुख कार्यकर्ताओं का उन्होंने सहयोग लिया, वे सभी दावेदारी करेंगे। हर एक कहेगा, मैने ज्यादा काम किया था। उनमें से किसी एक का चयन करना कितना कठिन होगा, ये समझा जा सकता है। यानि कि टिकट से वंचित कार्यकर्ताओं को कहीं और समायोजित करने का गणित बैठाना होगा।
यहां ये समझा जा सकता है कि देवनानी विरोधी गुट को हवा देने में कुछ बड़े नेताओं का भी हाथ होगा ही।
बहरहाल, भाजपा में वार्ड स्तर पर होने वाली ये खींचतान पार्टी के लिए भी दिक्कत पैदा कर सकती है। असल में विधानसभा चुनाव में विरोधियों के निष्क्रिय रहने अथवा भीतरघात करने का असर मोदी लहर ने धो दिया, मगर अब तो मोदी है नहीं। केन्द्र व राज्य सरकारों का परफोरमेंस भी कुछ खास नहीं है। ऐसे में यदि पार्टी में गुटबाजी कायम रही तो अधिकृत प्रत्याशियों को जीतने में पसीने छूट जाएंगे।
-तेजवानी गिरधर
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बलराम हरलानी पर है पत्नी को लड़ाने का दबाव

भाजपा नेता व अजमेर होलसेल अनाज मंडी समिति के सदस्य बलराम हरलानी पर उनके निजी समर्थक व पार्टी के कुछ कार्यकर्ता दबाव बना रहे हैं कि वे वार्ड 50 से अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतारें। असल में पहले यह मानस था कि अगर वार्ड सामान्य हुआ तो बलराम को लड़ाया जा सकता है, मगर आरक्षण के बाद वार्ड महिला के आरक्षित हो जाने के बाद उनकी पत्नी के लिए जोर दे रहे हैं। हालांकि टिकट किसे देना है, ये पार्टी ही तय करेगी, मगर उनके समर्थक बलराम को मनाने में लगे हैं कि वे अपनी पत्नी की दावेदारी पेश करें। पता लगा है कि बलराम दावेदारी पेश करने के फिलहाल मूड में नहीं हैं। वे पहले समझना चाहते हैं कि यहां से चुनाव लडऩे पर जीत की कितनी संभावना है। यदि वे सुनिश्चित होंगे कि जीत सकते हैं तभी इस प्रस्ताव पर विचार करेंगे। वे अपनी ओर से दावेदारी की इच्छा जताने के मूड में भी नहीं हैं। यदि समर्थकों ने ज्यादा जोर दिया तो हो सकता है मान भी जाएं।
प्रसंगवश आपको बता दें कि बलराम शहर की प्रतिष्ठित फर्म दुर्गा ऑयल मिल के मालिक हैं और उनकी गिनती पड़ाव के प्रतिष्ठित व्यवसाइयों में होती है। वे अजमेर होलसेल अनाज मंडी समिति के 2007 से 2012 तक उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इसके अतिरिक्त शहर भाजपा पुरुषार्थी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष व बैंकिंग प्रकोष्ठ के संयोजक भी रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर
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शनिवार, 18 जुलाई 2015

रमेश चेलानी को लगा पार्षद बनने का चस्का

कहते हैं न जब तक हमने किसी वस्तु का स्वाद नहीं चखा तब तक उसके प्रति आकर्षण मात्र होता है, मगर यदि स्वाद चख लिया तो फिर शिद्दत की चाहत होती है। लगता है कि कुछ ऐसी ही हालत मनोनीत पार्षद  रमेश चेलानी की हो गई है। आपको पता होगा कि जब तक वे पार्षद नहीं बनाए गए थे, तब तक राजनीति में कुछ खास रुचि नहीं लिया करते थे। केवल सिंधी विद्यार्थियों के उत्थान के लिए शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी से जुड़े थे। उनके सेवा भाव को देखते हुए देवनानी ने उन्हें मनोनीत पार्षद बनवा दिया। अब जब निगम के नए चुनाव होने हैं तो चेलानी किसी भी सूरत में चुना हुआ पार्षद बनना चाहते हैं। उन्होंने वार्ड 57 से भाजपा टिकट के लिए एडी चोटी का जोर लगा रखा है।
बताते हैं कि उनका साथ कुछ भामाशाह भी दे रहे हैं। वे खुद तो भामाशाह हैं ही। यानि कि उनके पास संसाधनों की कोई कमी नहीं। कहने की जरूरत नहीं है कि इस वार्ड से पहला दावा मौजूदा पार्षद दीपेन्द्र लालवानी का ही बनता है। वे देवनानी के खासमखास हैं। शायद ही कोई ऐसा सार्वजनिक कार्यमक्रम ऐसा रहा हो, जिसमें वे देवनानी के साथ नजर न आए हों। उन पर किसी प्रकार का कोई आरोप भी नहीं है, ये बात अलग है कि जिन लोगों के काम नहीं हुए होंगे, वे उनसे नाराज हैं। कुछ कार्यकर्ता भी छिटके हैं। ऐसा होता ही है। जब आप किसी पद पर पहुंच जाते हैं तो अपेक्षा तो हर किसी की होती है, मगर सभी की पूरी की नहीं जा सकती। ऐसे में चंद लोग नाराज भी हो जाते हैं। लालवानी का दावा कुछ इस कारण भी कमजोर हुआ क्योंकि उन्हें संगठन में भी पद से नवाजा जा चुका है। इस कमजोरी को चेलानी भलीभांति जानते हैं। यही वजह है कि उन्होंने यहां से टिकट हासिल करने के लिए खम ठोक रखा है। वे यह भी जानते हैं कि यह वार्ड भाजपा के लिए कितना मुफीद है। यहां से भाजपा का टिकट ले लेना ही पार्षद बन जाने के समान है। अब देखने वाली बात ये होगी कि देवनानी अपने इन दोनों चहेतों में से किसे तरजीह देते हैं।
देवनानी खेमे के ही एक और दावेदार दौलत खेमानी हैं। पिछली बार उन्होंने भरपूर कोशिश की थी, मगर इस बार चुप हैं। उनके पास भी कार्यकर्ताओं की अच्छी टीम है। उनकी चुप्पी का राज क्या है, पता नहीं। कहीं वे ऐन वक्त पर किसी और चेहरे के लिए दावेदारी न कर दें? बाकी यहां वहीं प्रत्याशी होगा, जिसे देवनानी चाहेंगे।
-तेजवानी गिरधर
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देवनानी ने बांट दिए आठ टिकट?

क्या शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने अजमेर नगर निगम चुनाव के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र अजमेर उत्तर के आठ वार्डों के प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है? जाहिर तौर पर ये सवाल ही बेमानी है, क्योंकि अभी तो दावेदारों से आवेदन ही नहीं लिए गए हैं और आवेदन करने की अंतिम तारीख ही 26 जुलाई है, नाम तो उसके बाद तय होंगे। मगर किसी शरारती ने वाट्स एप पर अनेक ग्रुप्स में यह अफवाह फैलाई है, जिसका मजमून इस प्रकार है:-
निकाय चुनाव 2015
वार्ड नं. व नाम
1. तुलसी सोनी
2. धर्मेन्द्र गहलोत
3. ज्ञान जी
4. चारभुजा जी
5. तारा साहू
6. धर्मपाल जाटव
7. अंजू गौड
8. विजय साहू
देवनानी जी द्वारा उत्तर विधानसभा क्षेत्र के आठ वार्डों के प्रत्याशियों के नाम की सूची आज मीडिया में जारी कर कार्यकर्ताओं को चुनावों में जुट जाने का आहवान किया गया, जो कि कल के अखबार में आएगी।
समझा जा सकता है कि अगर इस प्रकार का संदेश होगा, तो हर कोई यकीन कर लेगा। देखिए ना, साफ कहा है कि सूची मीडिया को जारी की गई है और कल के अखबार में आएगी भी।
हमने मामले की तह में जाने की कोशिश की तो यह तथ्य उभर कर आया कि एक भाजपा कार्यकर्ता ने ही ये शरारत की है। ऐसी अफवाहें चुनाव के वक्त फैलाई जाती रही हैं, जिनसे सावधान रहना ही चाहिए। मगर शरारत करने वाले के मकसद पर विचार करें तो यह साफ दिखाई  दे रहा है, ऐसा देवनानी को बदनाम करने की साजिश के तहत किया गया है।
-तेजवानी गिरधर
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भाजपा को नहीं मुस्लिम वोटों की दरकार

ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा को मुस्लिम वोटों की दरकार नहीं रही। उसे पता लग गया है कि भले ही कुछ मुस्लिम भाजपा से जुड़े हुए हैं, बाकायदा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ तक संचालित किया जाता है, मगर मुस्लिम भाजपा को वोट नहीं देते। कदाचित इसी कारण इस बार ऐन निगम चुनाव से पहले आई ईद के मौके पर भाजपा के बड़े नेता चांद बावड़ी स्थित ईदगाह पर नमाज के दौरान आए ही नहीं। शायद इसी उम्मीद में कि जब अखबारों में ये खबर शाया होगी तो बहुसंख्यक हिंदुओं के वोटों का फायदा होगा।
वैसे अमूमन भाजपा नेता ईद के मौके पर जरूर मौजूद रहते हैं, मगर इस बार उनकी गैरहाजिरी चौंकाने वाली रही। आमतौर पर पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत, विधायक वासुदेव देवनानी, श्रीमती अनिता भदेल, शहर भाजपा अध्यक्ष अरविन्द यादव, नगर निगम के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, उपसभापति सोमरत्न आर्य आदि होते ही हैं, मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ। मजह भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के इब्राहिम फकर ही दिखाई दिए। समझा जा सकता है कि ये अनुपस्थिति यूं ही नहीं रही होगी। ज्ञातव्य है कि अजमेर में कम से कम पांच वार्ड ऐसे हैं, जो कि मुस्लिम बहुल हैं और वहां से भाजपा जीत नहीं पाती। जिन अन्य इलाकों में मुस्लिम हैं, वे भी भाजपा को वोट नहीं देते। ऐसे में उनको रिझाने की औपचारिक रस्म अदा करने से क्या फायदा?
उधर कांग्रेसियों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। शहर अध्यक्ष महेंद्र सिंह रलावता, पूर्व विधायक नसीम अख्तर, पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, मेयर कमल बाकोलिया, प्रताप यादव, कुलदीप कपूर, शैलेन्द्र अग्रवाल, सबा खान, नोरत गुर्जर, सर्वेश पारीक, शक्ति सिंह रलावता, चंद्रभान खंजन, विजय नागौरा, इंसाफ अली, राजनारायण आसोपा, नील शर्मा, कमल गंगवाल, संदीप रिचर्ड उपस्थित थे।
-तेजवानी गिरधर
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वार्ड आठ में होगा दिलचस्प मुकाबला

अजमेर नगर निगम के वार्ड आठ में दिलचस्प मुकाबला होने की संभावना है। यहां कांग्रेस व भाजपा, दोनों में ही बगावत की संभावना बनती है, इस कारण टिकट वितरण सावधानी से किया जाएगा। टिकट वितरण के बाद जो भी अधिकृत प्रत्याशी होंगे, वे कदम फूंक फूंक कर ही रखेंगे।
असल में इस वार्ड में मुसलमानों के तकरीबन 1800 वोट हैं, जो कि कांग्रेस प्रत्याशी के लिए मुफीद हैं। कांग्रेस की ओर से इमरान सिद्दीकी का नाम प्रमुखता से उभर कर आया है। यूं यहां से संजय टाक, दिलीप व पप्पू भाई भी दावेदारी कर रहे हैं। बताया जाता है कि पप्पू भाई को अगर टिकट नहीं मिला तो वे निर्दलीय खड़े हो सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी को दिक्कत हो सकती है।
उधर भाजपा में रमेश सोनी के अतिरिक्त विमल पारलेखा, कमल बाफणा, अनिल नरवाल, गगन साहू, विजय साहू व लाल जी दावेदार बताए जा रहे हैं। गगन साहू काफी सक्रिय कार्यकर्ता हैं। वार्ड में तेली समाज के काफी वोट हैं। अगर वे टिकट में रुचि नहीं लेते तो विजय साहू की मदद कर सकते हैं। पारलेचा को टिकट इस कारण नहीं मिलने की संभावना है, क्योंकि उनका देवनानी से छत्तीस का आंकड़ा है। समझा जाता है कि अगर रमेश सोनी को टिकट मिला तो पारलेचा निर्दलीय मैदान में उतर सकते हैं। कुल मिला कर इस वार्ड में बगावत या भितरघान की पूरी आशंका बताई जा रही है।
-तेजवानी गिरधर
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शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

धर्मेन्द्र गहलोत वार्ड 54 से भी कर सकते हैं दावेदारी

हालांकि अब तक की जानकारी के अनुसार अजमेर नगर निगम के पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत अजमेर नगर निगम के वार्ड दो से ही चुनाव लडऩे के मूड में हैं और उनके पास वार्ड एक में भी उतरने का विकल्प है, मगर सुना है अब उन्होंने वार्ड 54 पर भी नजर टिका रखी है, जो कि ओबीसी के लिए आरक्षित है।
असल में गहलोत की पहली दावेदारी वार्ड दो की है। वे यहां निवास भी कर रहे हैं। उन्होंने यहां अपनी सक्रियता भी दर्शा दी है। मगर चूंकि यहां अनुसूचित जाति के पर्याप्त वोट हैं, इस कारण वार्ड एक का भी विकल्प खुला रखा है। वार्ड एक में भी थोड़ी दिक्कत ये है कि वहां भी मुस्लिमों के पर्याप्त वोट हैं। हालांकि इन दोनों वार्डों में कांग्रेस मानसिकता का वोट बैंक है, मगर फिर भी ये वार्ड भाजपा के लिए सुरक्षित ही हैं। इसकी वजह ये है कि भीतरी कॉलानियों में रहने वालों में भाजपा मानसिकता के लोगों की संख्या ज्यादा है। फिर भी वे कोई रिस्क लेना नहीं चाहेंगे। हालांकि वे चुनाव मैदान में तभी उतरेंगे, जबकि उन्हें संघ की ओर से पूरी तरह से आश्वस्त किया जाएगा कि वे ही मेयर पद के प्रथम दावेदार होंगे, मगर फिर भी वे उस वार्ड से ही चुनाव लड़ेंगे, जहां से जीत सुनिश्चित हो। इसके लिए उनकी नजर वार्ड 54 पर भी है, जो कि ओबीसी के लिए आरक्षित है। गहलोत ओबीसी से हैं भी। ज्ञातव्य है कि इस नए वार्ड में पूर्व के वार्ड 26 के काफी मतदाता हैं, जहां से अब तक नीरज जैन पार्षद हैं। जैन ने वार्ड में काफी काम करवाया है, जिसका गहलोत को लाभ भी मिल जाएगा। कहने की जरूरत नहीं है कि जैसे गहलोत शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के दाहिने हाथ हैं, ठीक उसी प्रकार जैन भी उनके बायें हाथ हैं। ऐसे में अगर गहलोत वार्ड 54 से दावा करते हैं तो जैन उनका सहयोग करेंगे ही। बहरहाल, देखते हैं गहलोत कौन सा वार्ड चुनते हैं, मेयर बनने के लिए।
-तेजवानी गिरधर
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शैलेन्द्र अग्रवाल ने भी ठोकी वार्ड एक से दमदार दावेदारी

आगामी अगस्त माह में होने वाले नगर निगम चुनाव के लिए वार्ड एक से कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ कांग्रेस नेता शैलेन्द्र अग्रवाल ने भी दमदार दावेदारी ठोक दी है। ज्ञातव्य है कि यहां पहले ही युवा कांग्रेस नेता मनवर खान कायमखानी अपनी दावेदारी जता चुके हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि शैलेन्द्र अग्रवाल पुराने और पक्के कांग्रेसी हैं। लंबे समय से सक्रिय भी हैं। एक जमाना तो ऐसा था, जब अकेले अग्रवाल ही शहर में कांग्रेस को जिंदा रखे हुए थे। आपको याद होगा कि जब ब्लैकमेल कांड के कारण युवक कांग्रेस सुप्त प्राय: हो गई थी, तब मातृ संगठन शहर कांग्रेस से भी ज्यादा सेवादल सक्रिय था और उसका नेतृत्व अग्रवाल कर रहे थे। बाद में भी वे लगातार जिम्मेदारी के पदों पर रहते हुए सक्रिय हैं। शहर व प्रदेश के अधिसंख्य बड़े नेताओं से उनका सीधा परिचय है। उनकी आवाज हाईकमान तक सुनी भी जा सकती है। मगर उनके साथ एक दिक्कत ये बताई जा रही है कि वे इस इलाके से सीधे जुड़े हुए नहीं है। यूं पुराने नेता होने के कारण उनको सभी स्थानीय कांग्रेसी कार्यकर्ता जानते तो हैं, मगर वे किसी स्थानीय पर जोर दे सकते हैं। ज्ञातव्य है कि यहां से स्थानीय कांग्रेसी मनवर खान कायमखानी दावेदारी कर रहे हैं। हालांकि वे अग्रवाल जितने वरिष्ठ तो नहीं, मगर इस इलाके में पिछले तकरीबन 25 साल से सक्रिय हैं। उनके पक्ष में एक पहलु से भी है कि इस वार्ड के कुल लगभग आठ हजार मतदाताओं में से एक हजार दो सौ अल्पसंख्यक मतदाता हैं। अब देखना ये होगा कि कांग्रेस किसको तवज्जो देती है।
-तेजवानी गिरधर
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बुधवार, 15 जुलाई 2015

निगम चुनाव में प्रत्याशियों के चयन की माथापच्ची शुरू

अजमेर नगर निगम के आगामी अगस्त माह में होने वाले चुनाव के लिए कांग्रेस व भाजपा में प्रत्याशियों के चयन को लेकर माथापच्ची शुरू हो गई है। दावेदार अपने-अपने लिए सुविधा वाले वार्ड तलाश कर रहे हैं। उन्होंने टिकट हासिल करने के लिए कमर कस ली है। दावेदार पार्टी नेताओं को देने के लिए बायो डाटा तो बना ही रहे हैं, अपने-अपने इलाकों में अपनी दावेदारी के बैनर-पोस्टर भी चस्पा कर रहे हैं। इसके लिए वाट्स एप व फेसबुक तक का इस्तेमाल किया जा रहा है।
जहां तक तैयारी का सवाल है, भाजपा इस चुनाव को लेकर आश्वस्त है, क्योंकि केन्द्र व राज्य में उनकी सरकार है। स्वाभाविक रूप से उसे सत्तारूढ होने का फायदा मिलेगा ही। भाजपा की चूंकि निचले स्तर पर पकड़ मजबूत है, इस कारण उसे पूरा भरोसा है कि जीत उसी की होगी। उधर कांग्रेस बहुत मजबूत स्थिति में तो नहीं मगर सदमे से तो उबर ही गई है। कांग्रेस इस उम्मीद में है कि डेढ़ साल के भाजपा शासन में उल्लेखनीय उपलब्धि न होने और हाल ही मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के आरोपों से घिरने के कारण मतदाता का भाजपा से मोह भंग हुआ होगा और उसका लाभ उसे मिलेगा।
असल में निगम क्षेत्र में आने वाले दो विधानसभा क्षेत्रों में यहां के विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल ने पहले से ही संभावित दावेदारों पर काम करना शुरू कर दिया था। यहां तक कि वार्डों के पुनर्सीमांकन के समय भी पूरा ध्यान दिया। इस कारण उन्हें उम्मीद है कि बोर्ड उन्हीं का बनेगा। यूं भी प्रत्याशियों की हार-जीत की जिम्मेदारी इन दोनों पर ही रहेगी, क्योंकि उनके चयन में सीधे तौर पर उनका ही दखल होगा। साथ ही भाजपा शहर अध्यक्ष अरविंद यादव के नेतृत्व में नई टीम के साथ उत्साह से भरी हुई है। दूसरी ओर कांग्रेस शहर अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता के नेतृत्व में उसी पुरानी टीम के सहारे चुनाव मैदान में उतरेगी। जहां तक अजमेर दक्षिण का सवाल है, वहां विधानसभा चुनाव में हार चुके हेमंत भाटी ने अपने स्तर पर पूरी तैयारी कर रखी है। अपने विधानसभा क्षेत्र के हर वार्ड पर उन्होंने गहरी पकड़ बना ली है और प्रत्याशियों पैनल भी लगभग तय से हैं। हालांकि अभी ये कहना मुश्किल है कि प्रत्याशियों के चयन में उनको कितना फ्री हैंड मिलेगा, मगर इतना तय माना जा रहा है कि अधिसंख्य प्रत्याशी उनकी ही राय के अनुरूप तय होंगे। देखने वाली बात ये होगी कि यहां पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल, पूर्व उप मंत्री ललित भाटी कितनी टिकट झटक पाते हैं। उधर अजमेर उत्तर में स्थिति विकट बताई जा रही है। यहां की जिम्मेदारी सीधे तौर पर शहर अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता को निभानी होगी। इसमें पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती का भी कुछ दखल होगा। वैसे बताया ये जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने अपने स्तर पर भी सर्वे करवा लिया है और टिकट वितरण की आखिरी मुहर वे ही लगाएंगे। उनके सर्व टीम को पूरा पता है कि कौन दावेदार कितने पानी में है। इसी कारण दावेदार उनकी मिजाजपुर्सी में लगे हुए हैं। सीधे पायलट के यहां भी हाजिरी भर रहे हैं।
बात अगर मेयर की करें तो चूंकि इस बार पार्षद ही उसका चुनाव करेंगे, इस कारण कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता, मगर ऐसी उम्मीद है कि  बोर्ड भाजपा का बना तो मेयर देवनानी की पसंद का ही होगा। इसकी एक मात्र वजह ये है कि अजमेर उत्तर में भाजपा को बढ़त की उम्मीद ज्यादा है। वैसे मेयर पद के दावेदारों में मुख्य रूप से पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, पार्षद जे. के. शर्मा, सोमरत्न आर्य आदि के नाम सामने आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि गहलोत पर संघ का पूरा वरदहस्त है, इस कारण वे ही सबसे तगड़े दावेदार हैं। उनके लिए बाधा सिर्फ ये है कि वे ओबीसी से हैं, जबकि मेयर की सीट समान्य के लिए है। पिछली बार भी इसी मुद्दे पर गहरा विवाद हुआ था, यह बात दीगर है कि देवनानी के दम पर गहलोत ही काबिज हुए। सुरेन्द्र सिंह शेखावत पर महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल का हाथ है। इसी प्रकार जे. के. शर्मा राज्य सभा सदस्य भूपेन्द्र यादव के आशीर्वाद से आगे बढ़ सकते हैं। ऐसा लगता है कि अगर गहलोत के ओबीसी होने का विवाद बढ़ा तो देवनानी अपने ही गुट के शर्मा पर हाथ रख सकते हैं। सभी से तालमेल बना कर चलने वाले आर्य विवाद की स्थिति में जुगाड़ मंत्र के सहारे दावेदार बन सकते हैं।
कांग्रेस की ओर से मेयर पद का दावेदार कौन होगा, इस बारे में अभी कुछ भी साफ नजर नहीं आ रहा। यूं तो विधानसभा चुनाव में चूंकि प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट अजमेर उत्तर से किसी सिंधी को टिकट नहीं दिलवा पाए थे, इस कारण उन्होंने संभावना जताई थी कि वे किसी सिंधी को प्रोजेक्ट करेंगे, मगर नई सरकार ने उस संभावना को समाप्त कर दिया, चूंकि अब मेयर का चुनाव सीधे न हो कर पार्षदों में से होगा।
इस बीच शहर के कुछ बुद्धिजीवियों की ओर से गठित हम लोग मंच के बैनर तले भी तकरीबन 15 प्रत्याशी उतारने की कोशिश की जा रही है। हालांकि उनके प्रत्याशी जीतने के लायक होंगे, इसमें संदेह है। इसी प्रकार बीपीएल पार्टी के प्रत्याशी भी मैदान में उतरने वाले हैं। ये प्रत्याशी भिन्न भिन्न वार्डों में भिन्न-भिन्न पार्टियों के प्रत्याशियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
-तेजवानी गिरधर
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मंगलवार, 14 जुलाई 2015

ज्ञान सारस्वत को भाजपा में लाने की गुफ्तगू

राजनीतिक हलकों में गुफ्तगू है कि निर्दलीय पार्षद ज्ञान सारस्वत को भाजपा में लाया जा रहा है। इस पर पार्टी में बातचीत भी हुई बताई। सिद्धांतत: सहमति बनी बताते हैं। इसमें संघ की भूमिका बताई जा रही है। ज्ञातव्य है कि पिछले विधानसभा चुनाव में संघ के कहने पर ही सारस्वत ने निर्दलीय चुनाव लडऩे का मानस त्याग दिया था। अब संघ चाहेगा कि उन्हें पार्टी का टिकट दिया जाए।
असल में भाजपा के लिए यही बेहतर है कि वह सारस्वत की वापसी करवाए, वरना वे जिस वार्ड से निर्दलीय खड़े होंगे, वो तो हाथ से जाएगा ही, आसपास तकरीबन तीन वार्ड भी खिसकने की आशंका रहेगी। उधर सारस्वत के लिए भी यह उचित है कि वे फिर से मुख्य धारा में आ जाएं। निर्दलीय पार्षद रह कर तो वे केवल अपने ही वार्ड का भला कर सकते हैं, मगर यदि भाजपा का बोर्ड बनता है तो वे सत्तारूढ़ पार्टी पार्षद के नाते और लोगों का भी भला कर सकते हैं। बेशक उनके अपने खुद के समर्थक हैं, मगर उनका जनाधार अब भी संघ पृष्ठभूमि के कार्यकर्ताओं का है। ये बात अलग है कि वे शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी से किन्हीं कारणों से नाराज हैं।
बहरहाल कानाफूसी है कि जैसे ही सारस्वत को भाजपा में लाने की चर्चा हुई है, उनके कुछ समर्थक अचकचा रहे हैं। हो सकता है, इनमें वे हों, जो कि भाजपा से वास्ता नहीं रखते, मगर सारस्वत से निजी तौर पर जुड़े हुए हों। ऐसे भी हो सकते हैं जो कि अब भी देवनानी के नजदीक नहीं जाना चाहते। जाहिर तौर पर ऐसे में सारस्वत दो राहे पर खड़े हो जाएंगे, जहां एक ओर भविष्य है तो दूसरी ओर समर्थकों का मोह। देखते हैं, अब वे क्या कदम उठते हैं।
-तेजवानी गिरधर
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शनिवार, 11 जुलाई 2015

इस बार वार्ड 55 से दावेदारी करेंगे अशोक राठी

पूर्व पार्षद अशोक राठी इस बार नगर निगम चुनाव में वार्ड 55 से भाजपा टिकट की दावेदारी करने जा रहे हैं।  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े राठी ने यह वार्ड इसलिए चुना है क्योंकि वे जिस वार्ड 26 से पूर्व में जुड़े रहे हैं, उसका एक भाग वार्ड 55 से जुड़ गया है, जो कि सामान्य अब है और दूसरा भाग वार्ड 54 में शामिल किया गया है, जो कि ओबीसी के लिए आरक्षित है।
उन्हें पूरा यकीन है कि वार्ड 55 के मतदाता उन्हें भरपूर समर्थन देंगे, क्योंकि पूर्व में जब वे उपचुनाव में तीन साल के लिए पार्षद चुने गए थे, तब उन्होंने यहां भरपूर काम करवाया। उन्होंने सड़कों, नालों की मरम्मत, पानी की पाइप लाइन डलवाने, विभिन्न स्थानों पर हैलोजन लाइट लगवाना आदि के कार्य करवाये। बाद में भी लगातार संपर्क में रहे। इस कारण वार्ड में सुपरिचित चेहरा हैं और छवि भी साफ सुथरी है।
ज्ञातव्य है कि पिछले चुनाव में भी उन्होंने भाजपा टिकट की दावेदारी की थी, मगर भाजपा की अंदरूनी राजनीति के कारण वे टिकट से वंचित रह गए। इस पर वार्ड वासियों व अपने समर्थकों के दबाव में निर्दलीय चुनाव लड़ा और कुछ ही वोटों के अंतर से भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी नीरज जैन से हार गए। कांग्रेस के राजकुमार जैन तीसरे स्थान पर रहे। समझा जा सकता है कि भाजपा के कट्टर माने जाने वाले वोटों का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने निर्दलीय रह कर बांटा, तो उनकी यहां कितनी पकड़ रही होगी। इस बार फिर अपने समर्थकों के दबाव में वे भाजपा टिकट की दावेदारी करने जा रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि भाजपा उनकी क्षेत्र में पकड़ को देखते हुए उनके दावे को नजरअंदाज नही करेगी। हालांकि इस बार फिर उन्हें मौजूदा पार्षद नीरज जैन की दावेदारी से मुकाबला करना पड़ सकता है। वैसे सुगबुगाहट ये भी है कि इस बार जैन किसी और वार्ड पर भी नजर रखे हुए हैं।
बात अगर वार्ड में जातीय समीकरण की करें तो यहां तकरीबन माहेश्वरी समाज के साढ़े चार सौ वोट हैं। जैन समाज के तकरीबन 700 वोट हैं, मगर उनमें से तीन सौ बाहर रहते हैं।
जहां तक राठी के भाजपा में सक्रियता का सवाल है, वे 1977 से सक्रिय हैं। भाजपा युवा मोर्चा के पूर्व मंत्री और भाजपा नगर परिषद प्रकोष्ठ के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य व प्रकोष्ठ की अजमेर इकाई के सहसंयोजक हैं। इसके अतिरिक्त समाज पर भी उनकी गहरी पकड़ है। वे माहेश्वरी समाज, अजमेर के प्रचार मंत्री व श्री माहेश्वरी प्रगति संस्थान के उपाध्यक्ष हैं। वे हिमालय परिवार के जिला अध्यक्ष भी है, जो कि संघ का प्रकल्प है और इंद्रेश कुमार उसके राष्ट्रीय संयोजक हैं।
-तेजवानी गिरधर
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गुरुवार, 9 जुलाई 2015

निगम चुनाव में डॉ. बाहेती को मिलेगी कितनी तवज्जो?

अजमेर नगर निगम के आगामी अगस्त माह में होने वाले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों के चयन में पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को कितनी तवज्जो मिलेगी, इसको लेकर दावेदारों में खासी चर्चा है। जैसे विधानसभा चुनाव में हारे हेमंत भाटी की सहमति से काफी टिकट तय होने की संभावना है, ठीक वैसे ही विधानसभा चुनाव हारे डॉ. बाहेती को भी महत्व दिया जाएगा या नहीं इसको लेकर दावेदारों में कौतुहल है। इसी कारण कई वे दावेदार, जो कि डॉ. बाहेती से जुड़े रहे हैं, दावा तो कर रहे हैं, मगर उन्हें संशय है कि कहीं डॉ. बाहेती की वजह से उनका दावा कमजोर तो नहीं हो जाएगा।
असल में ये सवाल इस कारण उठ रहा है क्योंकि उनकी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट से इत्तफाकी कैसी है, ये सब को पता है। वे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खेमे के माने जाते हैं और उनके ही दम पर टिकट ले कर आए थे। अब उनकी पसंद से टिकट दिए जाएंगे या नहीं, इसको लेकर संशय होना स्वाभाविक ही है। दूसरी ओर कुछ का मानना है कि डॉ. बाहेती की राय को अहमियत दी जा सकती है। उसके पीछे उनका तर्क ये है कि हाल ही जिस प्रकार हाईकमान के निर्देश पर प्रदेश कांग्रेस में गहलोत लॉबी के नेताओं को स्थान दिया गया है, उससे इस बात की संभावना बनती है कि निगम चुनाव में भी गहलोत लॉबी के दावेदारों का ख्याल रखा जा सकता है। जाहिर है जो दावेदार डॉ. बाहेती से संपर्क करेंगे, वे उनकी पैरवी गहलोत लॉबी के प्रदेश स्तरीय नेताओं तक करेंगे। ये तर्क धरातल पर कितना सटीक बैठता है, ये कहना तो मुश्किल है, मगर दावेदारों के लिए आशा की किरण तो है ही। वैसे अनुमान यही लगाया जा रहा है कि टिकट निर्धारण में ज्यादा भूमिका शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता की रहेगी, भले ही अंतिम फैसला हाई कमान करे।
-तेजवानी गिरधर
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महेन्द्र तंवर हैं वार्ड 36 से कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदार

पूर्व मनोनीत पार्षद महेन्द्र तंवर आगामी अगस्त माह में होने जा रहे नगर निगम चुनाव में वार्ड 36 से कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदार के रूप में उभर रहे हैं। एक तो इस वार्ड में उनके माली समाज के पर्याप्त वोट हैं, दूसरा मनोनीत पार्षद रहने के दौरान उन्होंने जो कार्य करवाए हैं, उससे उन्हें उम्मीद है कि वार्ड के मतदाता उन्हें भरपूर समर्थन देंगे।
हालांकि वे कांग्रेस के एक सशक्त प्रत्याशी हो सकते हैं और साधन संपन्नता का भी उन्हें लाभ मिलेगा, मगर भाजपा से उन्हें कड़ी टक्कर लेनी होगी। इसकी वजह ये है कि उस इलाके में महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल का खासा दबदबा है और वहां से अब तक कांग्रेसी पार्षद नहीं बन पाया है। जाहिर तौर पर श्रीमती भदेल जिसे भी मैदान में उतारेंगी, वह उनकी प्रतिष्ठा के साथ जुड़ा हुआ होगा। यानि कि भाजपा अपना कब्जा आसानी से छोडऩे वाली नहीं है। इस वार्ड में मालियों, कोलियों व सिंधियों के वोट निर्णायक भूमिका में रहेंगे। अगर भाजपा तंवर के सामने किसी माली को मैदान में उतारती है तो ऐसी स्थिति में माली वोटों का बंटवारा होगा और सिंधी व कोली जीत-हार तय करेंगे।
जहां तक लॉबिंग का सवाल है, समझा जाता है कि प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व के साथ उनकी अच्छी ट्यूनिंग है। एमए तक पढ़े तंवर एक अरसे से कांग्रेस में सक्रिय हैं। दो साल तक शहर एनएसयूआई के उपाध्यक्ष, छह साल तक शहर युवक कांग्रेस के उपाध्यक्ष, प्रदेश युवक कांग्रेस के सचिव व भीलवाड़ा प्रभारी, शहर जिला कांग्रेस सेवादल के अतिरिक्त मुख्य संगठक, शहर कांग्रेस कमेटी में विशेष आमंत्रित सदस्य व शहर जिला कांग्रेस कमेटी में निर्वाचित कार्यकारिणी सदस्य हैं। वे अनेक सामाजिक गतिविधियों से भी जुड़े हुए हैं। वे लायंस क्लब के सचिव, जिला माली युवा संगठन के अध्यक्ष, रायल क्लब के अध्यक्ष, महात्मा ज्योति बा फूले राष्ट्रीय संस्थान, जयपुर के संस्थापक सदस्य व अजमेर युवा इकाई के अध्यक्ष और पुलिस शांति समिति सदस्य हैं। आंखों के निशुल्क ऑपरेशन, ब्लड डोनेशन, वृक्षारोपण आदि में सक्रिय भागीदारी निभाते हैं। देखने वाली बात ये है कि क्या कांग्रेस उन पर दाव खेलने को तैयार है?
-तेजवानी गिरधर
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बुधवार, 8 जुलाई 2015

शैलेष गुप्ता ने की वार्ड 2 से कांग्रेस टिकट की दावेदारी

वरिष्ठ कांग्रेस नेता शैलेष गुप्ता ने आगामी नगर निगम चुनाव के लिए वार्ड दो से कांग्रेस टिकट की दावेदारी की है। उनके दावे का दम देखिए कि पार्टी में अभी दावे की विधिवत प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है, मगर उन्होंने सोशल मीडिया यानि वाट्स ऐप व फेसबुक पर खुल कर दावा ठोक दिया है।
आइये, पहले ये देखें कि उन्होंने खुद ने क्या लिखा है:-
दोस्तों, नमस्ते,
अजमेर नगर निगम चुनाव में मैं भी कोटड़ा के आस-वाले इलाके वाले वार्ड नम्बर 2 कोटड़ा से अपनी दावेदारी कर रहा हूं। दोस्तों 20 साल बाद ये वार्ड सामान्य हुआ है। मैं आलाकमान से ये मांग करता हूं की यदि इस वार्ड में मुझ से ज्यादा कोई वरिष्ठ कांग्रेस का कार्यकर्ता, जो एक्टिव हो, टिकिट मांगता है, तो उस को देना चाहिए। 1-2 साल से यहां जो आ कर रहने लगे हों और बड़े नेताओं की चमचागिरी करते हों, उनको टिकट यदि दी जाती है तो आम कार्यकर्ताओं पर क्या गुजरेगी। आप सभी दोस्तों का सहयोग चाहिये। सभी वार्ड में लोकल को ही टिकट मिलना चाहिए।
अब मेरी बात:-
एक लिहाज से उनका दावा इसलिए जायज प्रतीत होता है कि वे इस वार्ड में ही कई साल से रहते हैं। रहते ही नहीं, सक्रिय भी हैं। इसीलिए तो उन्होंने लिखा है कि उनसे ज्यादा कोई वरिष्ठ हो तो उसे टिकट दे दिया जाए, क्योंकि वे जानते हैं कि उनसे पुराना कोई है ही नहीं। जाहिर तौर पर बीस साल बाद वार्ड सामान्य हुआ है तो वे यह चांस वे नहीं खोना चाहेंगे, वरना अब तक तो बिना किसी उम्मीद के कांग्रेस की सेवा करते रहे हैं। उनके मजमून से एक आशंका यह झलकती है कि बड़े नेताओं की चमचागिरी करने वाले नेता, जो कि एक-दो साल से ही यहां रह रहे हैं, भी यहां टिकट मांगने वाले हैं। इतना ही नहीं, वे उन पर भारी भी पड़ सकते हैं। यानि कि वे कुछ दमदार जरूर हैं, क्योंकि बड़े नेताओं के संपर्क में हैं और शैलेष गुप्ता कहीं न कहीं चमचागिरी में पीछे रह गए हैं। भाई शैलेष जी, राजनीति में कार्यकर्ता की कर्मठता की तो अहमियत है ही, मगर चमचागिरी भी तो महत्व रखती ही है। आप वरिष्ठ कांग्रेसी हैं, भला, आप क्यों पीछे रह गए? और फिर इस तरह बड़े नेताओं की चमचागिरी करने वालों का पहले से विरोध करके कहीं उन बड़े नेताओं को तो नाराज नहीं कर रहे? आपका यही बिंदास अंदाज कदाचित आपको दिक्कत देता रहा है।
खैर, आपका दावा है तो मजबूत। इसमें कोई दोराय नहीं। आप वर्षों से यहां रहते हैं, सबको जानते हैं, सब आपको जानते हैं। आपके लिए एक दिक्कत और भी है। इस इलाके के मौजूदा पार्षद कमल बैरवा भी खम ठोकते नजर आ रहे हैं, हालांकि यह वार्ड अब सामान्य हो गया है। उनका अपना वोट बैंक भी है। काम भी उन्होंने करवाया है। हालांकि नीतिगत रूप से उनको टिकट मिलना कठिन है, मगर राजनीति में कुछ भी संभव है। दूसरा ये कि अगर आप टिकट लेने में कामयाब हो जाते हैं तो भी आपको बैरवा को तो सैट करके चलना ही होगा। अगर वे निर्दलीय खड़े हो गए तो दिक्कत पैदा कर सकते हैं। एक बात और, जैसी कि कानाफूसी है, इस वार्ड से भाजपा के मेयर पद के दावेदार पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत भी ताल ठोकने के मूड में हैं। अगर उनसे आपका मुकाबला होता तो आपको भी पूरी मालिश करके मैदान में उतरना होगा। और अगर आपने उनको हरा दिया तो आपके सिर मेयर पद के दावेदार को हराने का ताज सज जाएगा।
-तेजवानी गिरधर
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मंगलवार, 7 जुलाई 2015

क्या दीपेन्द्र लालवानी रिपीट होंगे?

नगर निगम चुनाव में रुचि रखने वालों के बीच इस विषय पर चर्चा आम है कि क्या भाजपा पार्षद दीपेन्द्र लालवानी को फिर से पार्टी टिकट देगी? मोटे तौर पर ये बात पचती भी है, क्योंकि फिलवक्त शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी की नजर में कोई दूसरा अच्छा विकल्प नहीं है। कदाचित यह जानते हुए किसी और ने इस दिशा में कोशिश भी नहीं की।
असल में लालवानी को इस बार टिकट नहीं मिलने की चर्चा उठी थी। कारण ये कि उन्हें शहर भाजपा की कार्यकारिणी में स्थान दिया गया था। इस पर कयास ये ही रहा कि चूंकि उन्हें फिर टिकट देने का मानस नहीं है, इस कारण अभी से संगठन में एडजस्ट किया गया है। इसी बीच देवनानी के रहमोकरम पर ही मनोनीत हुए पार्षद रेमश चेलानी का भी नाम उभरा कि वे टिकट पाने के लिए एडी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। उनकी बॉडी लैंग्वेज भी यही कह रही थी कि इस बार चुनाव की पूरी तैयारी में है। मगर बताया जाता है कि अभी उन्हें देवनानी ने ठीक से हरी झंडी नहीं दी है। उनका सकारात्मक बिंदु ये है कि वे अच्छे फंड मैनेजर हैं, मगर नकारात्मक बिंदु ये है कि वे वार्ड 57 में बाहर के कहे जाएंगे। हालांकि भाजपा व संघ की नजर में बाहरी जैसा कोई मसला नहीं रहता, वे जिसे तय करते हैं, उसे जितवाना भी जानते हैं। हालांकि अभी जद्दोजहद चल रही है। चेलानी के लिए एक विकल्प वार्ड 59 का भी है। ऐन वक्त पर कुछ भी हो सकता है।
-तेजवानी गिरधर
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सोमवार, 6 जुलाई 2015

गहलोत व लाला बन्ना के प्रभारी बनने की खबर दबी कैसे?

जैसे ही अजमेरनामा ये खबर उजागर की कि नगर निगम के पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत व पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत उर्फ लाला बन्ना को आगामी नगर निकाय चुनाव में दो भिन्न नगर पालिकाओं का प्रभारी बनाया गया है तो अजमेर की राजनीति में भूचाल आ गया। मीडिया जगत भी भौंचक्क रह गया। असल में ये खबर अजमेर के लिए इसलिए बेहद गंभीर थी, क्योंकि इससे यहां के दो दिग्गजों के राजनीतिक भविष्य पर सवाल लग रहा था। साथ ही सामान्य वर्ग के अन्य दावेदारों की किस्मत के ताले खुल रहे थे। इस कारण भाजपा खेमे में यह खबर खासी चर्चा में रही। कांग्रेसियों ने भी खूब चटकारे ले कर इस खबर को एक दूसरे को बताया। विशेष रूप से उन कांग्रेसी दावेदारों ने राहत महसूस की, जो कि इन दोनों के सामने चुनाव लडऩे के लिए दावेदारी कर रहे हैं।
यूं इस खबर पर सभी का चौंकाना स्वाभाविक ही था। कारण कि 12 जून को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अशोक परनामी की ओर से जारी इस आदेश के बारे में किसी को पता क्यों नहीं लगा? कदाचित किसी अखबार ने इसे छापा भी होगा तो ऐसे किसी कोने में जहां किसी की नजर नहीं पड़ी। सवाल उठता है कि क्या जानबूझ कर इस खबर को दबाया गया या फिर इसको मीडिया ने गंभीरता से लिया ही नहीं? सुविज्ञ सूत्रों के अनुसार भले ही किसी को कानों कान ये खबर पता नहीं लगी, मगर कम से इन दोनों नेताओं को तो पता लग ही गया था कि उनके राजनीतिक कैरियर पर बैरियर लगाने का षड्यंत्र रचा जा चुका है। इसी कारण दोनों ने अपनी और अपने आकाओं की ओर से प्रभारी पद की नियुक्ति रद्द करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। बताया यही गया है कि फिलवक्त उनकी मांग मान ली गई है, मगर इसकी आधिकारिक घोषणा प्रदेश मुख्यालय ने नहीं की है।
बहरहाल, अब भले ही दोनों को टिकट दे कर चुनाव लडऩे की हरी झंडी दे दी जाए, मगर ये सवाल ज्यादा अहम है कि आखिर जानते बूझते हुए ये कारसतानी किस स्तर पर हुई? एक ओर जहां इसमें मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे का इशारा माना जा रहा है तो शक ये भी है कि किसी शातिर खिलाड़ी ने प्रभारियों की लिस्ट बनते वक्त इन दोनों के नाम उसमें घुसड़वा दिए। सोचने का विषय ये भी है कि इन दोनों के स्थानीय आकाओं को इस करतूत की हवा तक क्यों नहीं लगी? सवाल ये भी है कि दोनों को ये झटका क्यों दिया गया, जबकि दोनों ही मेयर पद के प्रबलतम दावेदार हैं? ऐसा तो हो नहीं सकता कि प्रदेश आलाकमान को पता ही न हो। और अगर पता नहीं था तो इससे शर्मनाक बात कोई हो ही नहीं सकती। साफ है कि या तो दोनों का पत्ता साफ करने की बाकायदा रणनीति थी या फिर पार्टी ने अब तक इस चुनाव की कोई रणनीति बनाई ही नहीं है किन-किन को मेयर बनाने की खातिर मैदान में उतारना है।
एक बड़ा सवाल और भी खड़ा हो गया है। वो ये कि जब जीतने और भाजपा का बहुमत आने के बाद दोनों में से कोई एक ही मेयर बन सकता है, और दूसरे को मात्र पार्षद पद पर संतुष्ट होना पड़ेगा, तो क्या एक बार मेयर व सभापति रह चुके नेता इसके लिए मानसिक रूप से तैयार हैं? अथवा ढ़ाई-ढ़ाई साल का फार्मूला फिर अपनाया जाएगा? या फिर संघ के रुख के बाद कोई एक चुनाव मैदान में उतरेगा ही नहीं? और ये भी कि कहीं, ऐन वक्त पर दोनों की लड़ाई का कोई तीसरा तो लाभ नहीं उठा ले जाएगा? जो भी हो, मगर अब इस चुनाव में टिकट बंटने से लेकर परिणाम आने व बोर्ड बनने तक अब दोनों ही सबकी नजर में रहेंगे।
फिलवक्त दोनों के प्रभारी पद से मुक्त होने की कानाफूसी के बीच बांछें खिले हुए जे. के. शर्मा, नीरज जैन व सोमरत्न आर्य के चेहरे कुछ मायूस हो गए हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

रविवार, 5 जुलाई 2015

वार्ड एक से दमदार दावेदारी करेंगे मनवर खान

आगामी अगस्त माह में होने वाले नगर निगम चुनाव के लिए वार्ड एक से कांग्रेस की ओर से युवा कांग्रेस नेता मनवर खान कायमखानी टिकट की दमदार दावेदारी करने जा रहे हैं। उनकी दावेदारी का दम ये है कि एक तो वे इस इलाके में पिछले तकरीबन 25 साल से सक्रिय हैं और दूसरा ये कि इस वार्ड के कुल लगभग आठ हजार मतदाताओं में से एक हजार दो सौ अल्पसंख्यक मतदाता हैं।
मनजी भाई के नाम से सुपरिचित मनवर खान का व्यवसाय वार्ड के अंतर्गत आने वाले रीजनल कॉलेज के सामने मुख्य मार्ग पर तकरीबन 27 साल से है और उनका इलाके के सभी लोगों से सीधा व्यक्तिगत संपर्क है। कांग्रेस में उनकी सक्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अजमेर से पुष्कर या पुष्कर से अजमेर आते-जाते वक्त शायद ही ऐसा कोई वीआईपी हो, जिसका उनकी ओर से रीजनल कॉलेज चौराहे के पास स्वागत  न किया गया हो। 21 दिसम्बर 1968 को जन्मे मनवर खान कांग्रेस में 1991 से सक्रिय हैं। वे एनएसयूआई, युवक कांग्रेस व अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। 1995 से लेकर अब तक जितने भी नगर परिषद व विधानसभा चुनाव हुए हैं, उसमें उन्होंने सक्रिय भागीदारी निभाई है। यदि ये कहा जाए कि कोटड़ा व नौसर में उनकी टीम की वजह से ही कांग्रेस का जनाधार बना हुआ है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उनकी चुनावी तैयारी का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर एक पोस्टर भी शाया कर दिया है।
इसके अतिरिक्त कायमखानी शोध संस्थान, श्री वीर तेजा सर्वधर्म समिति व श्री रामदेव बाबा समिति, कोटड़ा आदि से जुड़ कर सामाजिक कार्य करते रहे हैं। वर्तमान में व्यवसाय के रूप में एंगलिकन एजुकेशन प्रा. लि. और रोज-आना रेस्टोरेंट का संचालन कर रहे हैं।

धर्मेन्द्र गहलोत व लाला बन्ना मेयर की दौड़ से बाहर?

क्या अजमेर नगर निगम के पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत व अजमेर नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत उर्फ लाला बन्ना आगामी अगस्त माह में होने जा रहे अजमेर नगर निगम चुनाव में मेयर पद की दौड़ से बाहर कर दिए गए हैं? ये चौंकाने सवाल इसलिए उठ खड़ा हुआ है कि दोनों को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अशोक परनामी ने निकाय चुनाव के लिए प्रभारी बनाया है। गहलोत भीलवाड़ा जिले की मांडलगढ़ नगर पालिका व शेखावत  को नागौर जिले की मेड़ता सिटी नगर पालिका के लिए चुनाव के लिए पार्टी प्रभारी बनाया गया है। स्वाभाविक रूप से सवाल उठता है कि अगर वे इन दोनों स्थानों पर पार्टी की जिम्मेदारी निभाएंगे तो अजमेर में चुनाव कैसे लड़ पाएंगे?
ज्ञातव्य है कि अजमेर नगर निगम मेयर पद के लिए गहलोत व शेखावत को ही सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा है। कुछ सूत्र तो यहां तक दावा कर रहे थे कि गहलोत को तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर हरी झंडी तक मिल चुकी है। कहने की जरूरत नहीं है कि वे शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के खासमखास हैं और चर्चा है कि वे वार्ड दो से चुनाव लडऩे का मानस बना रहे हैं। उधर शेखावत को इसलिए मेयर पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा है क्योंकि वे महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल सहित दिग्गज भाजपा नेता ओम प्रकाश माथुर के बेहद करीबी हैं।
समझा जाता है कि दोनों को बाकायदा सोची समझी राजनीति के तहत प्रभारी बनाया गया है, वरना क्या भाजपा हाई कमान को ये पता नहीं था कि वे चुनाव लडऩे के इच्छुक हैं? कयास है कि प्रदेश अध्यक्ष परनामी ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के इशारे पर ही ऐसा किया होगा। वजह ये कि गहलोत सीधे तौर पर संघ लॉबी के शिक्षा राज्य मंत्री देवनानी के करीबी हैं तो शेखावत कथित तौर पर मुख्यमंत्री पद के आगामी दावेदार ओम प्रकाश माथुर के नजदीकी। गहलोत से वसुंधरा की नाराजगी तब से भी हो सकती है, जब उन्होंने उनके पिछले कार्यकाल में कचरे का ट्रक कलैक्ट्रेट में ला पटका था, जिससे सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। बताया जाता है कि उस वक्त देवनानी खम ठोक कर नहीं खड़े होते तो गहलोत को इस्तीफा देना पड़ जाता। बात अगर अजमेर भाजपा के भीष्म पितामह औंकार सिंह लखावत की की जाए तो वे भी दोनों से नाइत्तफाकी रखते हैं। गहलोत से देवनानी की वजह से तो शेखावत से उनके पुत्र उमर दान लखावत को कॉलेज इलैक्शन के वक्त हरवाने की वजह से। जो कुछ भी हो, दोनों को प्रभारी बनाने का ऐलान बेहद चौंकाने वाला है। जाहिर तौर पर इससे स्थानीय भाजपा में भूचाल आएगा और मेयर पद की लाइन में लगे अन्य दावेदारों की बाछें खिलेंगी। इनमें पार्षद जे. के. शर्मा, पूर्व उपसभापति सोमरत्न आर्य व पार्षद नीरज जैन शामिल हैं।
तेजवानी गिरधर
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शनिवार, 4 जुलाई 2015

भाजपा 35, कांग्रेस 25?

हालांकि मतदान के दिन तक इसका ठीक अनुमान लगाना कठिन है कि नगर निगम चुनाव में भाजपा व कांग्रेस को कितनी सीटें मिलेंगी, मगर सट्टा बाजार ने अभी से फलित निकालना शुरू कर दिया है। सट्टा बाजार कुल साठ सीटों में से 35 भाजपा को तो 25 कांग्रेस को दे रहा है। यह आंकड़ा चौंकाने वाला है। विशेष रूप से इसलिए कि वार्डों में पुनर्सीमांकन में भाजपा नेताओं की अहम भूमिका रही है। वैसे भी भाजपा को जितना प्रचंड बहुमत आज से एक-डेढ़ साल पहले केन्द्र व राज्य में मिला था, उसे देखते हुए तो ये आकलन तो भाजपा के लिए चिंताजनक होना चाहिए। मात्र पांच सीट का ही तो अंतर है। अगर कांग्रेस पांच सीट ज्यादा ले आए तो वह भाजपा के बराबर हो जाएगी। ये आकलन जरूर अजमेर शहर का प्रतिनिधित्व करने वाले दोनों मंत्रियों प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल और शहर भाजपा अध्यक्ष अरविंद यादव के लिए सोचनीय है। सोचनीय ये भी है कि आखिर माहौल में इतना परिवर्तन कैसे आ गया कि पूरी तरह से सिमट चुकी कांग्रेस भाजपा के लिए चुनौती बन कर उभर रही है। और वो भी तब जबकि भाजपा के पास यादव के नेतृत्व में नई टीम है और कांग्रेस उसी पुरानी टीम के साथ मैदान में उतरेगी, जो विधानसभा व लोकसभा चुनाव में हार का सामना कर चुकी है। इसका एक ही अर्थ है कि केन्द्र व राज्य में भाजपा का परफोरमेंस कुछ कमजोर रहा है। जनता को जो आशाएं थीं, जरूर उनमें कहीं न कहीं कमी रह गई है। इतना जल्द जनता का विमुख होना चौंकाने वाला है। हालांकि इतना जरूर सही है कि भाजपा को उसके सत्तारूढ़ होने का फायदा जरूर मिलेगा। जहां वह निचले स्तर पर छोटे नेताओं को प्रलोभन देने की स्थिति में है, वहीं प्रशासन भी उसी के कब्जे में है।
जहां तक चुनावी चौसर का सवाल है, जाहिर तौर पर दोनों दलों के अध्यक्ष उसे संगठनात्मक स्तर पर संभालेंगे ही, मगर कुछ प्रमुख नेताओं की इसमें अहम भूमिका होगी। भाजपा की बात करें तो अजमेर उत्तर में प्रो. देवनानी और अजमेर दक्षिण में श्रीमती भदेल के हाथ में कमान होगी। वे जिन प्रत्याशियों को फाइनल करेंगे, लगभग वे ही प्रदेश हाईकमान से तय हो कर आने हैं। इसी प्रकार कांग्रेस में मोटे तौर पूरी जिम्मेदारी शहर अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता पर है, मगर अजमेर दक्षिण की शतरंज बैठाने का काम काफी दिन पहले से ही विधानसभा चुनाव हारे हेमंत भाटी शुरू कर चुके हैं। देखने वाली बात ये होगी कि पूर्व उप मंत्री ललित भाटी व पूर्व विधायक डॉ.  राजकुमार जयपाल कितना हिस्सा बांट पाते हैं। उधर अजमेर उत्तर में पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती का भी प्रभाव नजर आ सकता है। माना जाता है कि भले ही प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया स्थानीय स्तर पर होगी, मगर नाम फाइनल जयपुर में ही होंगे।
रहा सवाल मेयर का तो भाजपा में पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, पार्षद जे. के. शर्मा, पूर्व उपसभपति सोमरत्न आर्य के नाम उभर कर आ रहे हैं, वहीं कांग्रेस में कौन दावेदार होगा, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, 2 जुलाई 2015

पार्षद कमल बैरवा भी ताल ठोकने की तैयारी में

अजमेर नगर निगम के मौजूदा वार्ड नंबर एक के कांग्रेस पार्षद कमल बैरवा सामान्य वार्ड नंबर दो से ताल ठोकने की तैयारी में दिखाई देते हैं। असल में जिस इलाके में वे रहते हैं, वह अब सामान्य वार्ड हो गया है। इस कारण इस बात की उम्मीद कम है कि कांग्रेस उन्हें यहां से टिकट दे। जाहिर तौर पर यहां सामान्य वर्ग के नेता ही प्रयास करेंगे। मगर बैरवा की दिक्कत ये है कि उन्होंने पूरे पांच साल जनता की भरपूर सेवा की, इसी उम्मीद में न कि उन्हें फिर से मौका मिलेगा, मगर दुर्भाग्य से वार्ड आरक्षित नहीं रहा।
 बताया जा रहा है कि वे पहले तो कांग्रेस से टिकट की गुजारिश करेंगे। अपने काम गिनाएंगे और साथ ही अपनी जीत का समीकरण बताएंगे। अगर कांग्रेस को समझ में आया तो ठीक, वरना निर्दलीय ही मैदान में उतर जाएंगे। निर्दलीय के रूप में चुनाव लडऩे के लिए उन्होंने तैयारी भी शुरू कर दी है। बाकायदा क्षेत्र के लोगों से संपर्क कर रहे हैं। उन्हें समर्थन भी मिल रहा है। हालांकि वे जानते हैं कि उनके खड़े होने पर कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी को नुकसान होगा, और इसका फायदा भाजपा प्रत्याशी को हो सकता है, मगर वे शतरंज इस प्रकार बिछा रहे हैं कि उनका सीधा मुकाबला भाजपा प्रत्याशी से हो। यदि कांग्रेस को यहां कोई दमदार और जिताऊ प्रत्याशी नहीं मिला तो उनकी चाल कामयाब भी हो सकती है। वैसे बताया जा रहा है कि फिलवक्त भाजपा की ओर से पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत का यहां से चुनाव लडऩे का मानस है। जाहिर तौर पर वे मेयर बनने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं, जिसमें संघ की सहमति बताई जा रहा है। शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी का वरदहस्त तो है ही। अब देखना ये है कि यहां होता क्या है? वैसे जो कुछ होगा, वह काफी दिलचस्प होगा।
-तेजवानी गिरधर
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http://ajmernama.com/chaupal/146103/

भाजपा के लिए एक गुत्थी : ज्ञान सारस्वत

निर्दलीय पार्षद ज्ञान सारस्वत भाजपा के लिए एक गुत्थी बने हुए हैं। आगामी नगर निगम चुनाव में वे फिर निर्दलीय ही खड़े होंगे या फिर भाजपा में शामिल हो कर टिकट लेंगे, इस पर पूरे शहर में कयास लगाए जा रहे हैं।
असल में ज्ञान सारस्वत शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के विरोधी माने जाते हैं। पिछले निगम चुनाव में उन्हें भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय खड़े हो गए। जीते तो सर्वाधिक वोटों से। चूंकि उनका वार्ड देवनानी के विधानसभा क्षेत्र में आता है, लिहाजा वहां भाजपा की हार से देवनानी की किरकिरी हुई। उनसे वरदहस्त प्राप्त वरिष्ठ भाजपा नेता तुलसी सोनी बुरी तरह से जो हारे। हालांकि जब डिप्टी मेयर के चुनाव हुए तो उन पर भाजपा में शामिल होने का भारी दबाव था, कांग्रेस भी उनका साथ देने को तैयार थी, मगर उन्होंने तय कर लिया कि रहेंगे निर्दलीय ही। खैर, जब विधानसभा चुनाव आए तो वे देवनानी को हराने के लिए ताल ठोक बैठे, मगर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दबाव में पीछे हट गए। अब सवाल ये उठ खड़ा हुआ है कि क्या सारस्वत फिर निर्दलीय ही लड़ेंगे या फिर संघ के कहने पर भाजपा उनको टिकट ऑफर करेगी?
वैसे पार्षद बनने के लिए उन्हें भाजपा के टिकट की जरूरत है नहीं। उन्होंने वार्ड में इतना काम किया और अपना व्यवहार बनाया है कि वे अपने बूते ही फिर से जीत कर आएंगे, ऐसी मान्यता है। इतना ही नहीं, उनका असर आसपास के वार्डों में भी है। अगर निर्दलीय लड़े तो उन वार्डों में भी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस कारण भाजपा के लिए यह मजबूरी हो सकती है कि उन्हें टिकट दे कर शांत करे। अब ये देवनानी पर निर्भर करेगा कि वे क्या रणनीति अपनाते हैं। वे भी सारा नफा नुकसान आंक कर ही निर्णय करेंगे। जहां तक सारस्वत का सवाल है, वे खुद अपनी ताकत से वाकिफ हैं। यानि कि टिकट लेने के साथ ही जीतने पर कुछ और हासिल करने की उम्मीद पालेंगे। हो सकता है कि मेयर पद की दावेदारी ठोक दें। और अगर अजमेर दक्षिण की विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने साथ दिया तो और अधिक ताकतवर हो जाएंगे। कदाचित इसी कारण से देवनानी उनको टिकट देने में रुचि न दिखाएं।
हालांकि सारस्वत को राजनीतिक रूप से बहुत चतुर-चालाक नहीं माना जाता, इस कारण उनसे बहुत बड़े गेम की आशा नहीं की जा सकती। मगर कांग्रेस चाहे तो कुछ सीटें कम रहने पर उन पर कुछ और निर्दलियों के सहारे मेयर का गेम खेल सकती है। हालांकि अभी ये कयास मात्र है, मगर एक समीकरण तो है ही।
वैसे इतना पक्का बताया जा रहा है कि सारस्वत टिकट मिले या न मिले, चुनाव लड़ेगे जरूर और समझा ये ही जा रहा है कि भाजपा उन्हें ऑफर देगी। हाल ही उनकी ओर से सोशल मीडिया पर जिस प्रकार वार्ड के मतदाताओं का आभार जताया गया, वह चुनावी रणभेरी का ही संकेत है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000