मंगलवार, 14 जुलाई 2015

ज्ञान सारस्वत को भाजपा में लाने की गुफ्तगू

राजनीतिक हलकों में गुफ्तगू है कि निर्दलीय पार्षद ज्ञान सारस्वत को भाजपा में लाया जा रहा है। इस पर पार्टी में बातचीत भी हुई बताई। सिद्धांतत: सहमति बनी बताते हैं। इसमें संघ की भूमिका बताई जा रही है। ज्ञातव्य है कि पिछले विधानसभा चुनाव में संघ के कहने पर ही सारस्वत ने निर्दलीय चुनाव लडऩे का मानस त्याग दिया था। अब संघ चाहेगा कि उन्हें पार्टी का टिकट दिया जाए।
असल में भाजपा के लिए यही बेहतर है कि वह सारस्वत की वापसी करवाए, वरना वे जिस वार्ड से निर्दलीय खड़े होंगे, वो तो हाथ से जाएगा ही, आसपास तकरीबन तीन वार्ड भी खिसकने की आशंका रहेगी। उधर सारस्वत के लिए भी यह उचित है कि वे फिर से मुख्य धारा में आ जाएं। निर्दलीय पार्षद रह कर तो वे केवल अपने ही वार्ड का भला कर सकते हैं, मगर यदि भाजपा का बोर्ड बनता है तो वे सत्तारूढ़ पार्टी पार्षद के नाते और लोगों का भी भला कर सकते हैं। बेशक उनके अपने खुद के समर्थक हैं, मगर उनका जनाधार अब भी संघ पृष्ठभूमि के कार्यकर्ताओं का है। ये बात अलग है कि वे शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी से किन्हीं कारणों से नाराज हैं।
बहरहाल कानाफूसी है कि जैसे ही सारस्वत को भाजपा में लाने की चर्चा हुई है, उनके कुछ समर्थक अचकचा रहे हैं। हो सकता है, इनमें वे हों, जो कि भाजपा से वास्ता नहीं रखते, मगर सारस्वत से निजी तौर पर जुड़े हुए हों। ऐसे भी हो सकते हैं जो कि अब भी देवनानी के नजदीक नहीं जाना चाहते। जाहिर तौर पर ऐसे में सारस्वत दो राहे पर खड़े हो जाएंगे, जहां एक ओर भविष्य है तो दूसरी ओर समर्थकों का मोह। देखते हैं, अब वे क्या कदम उठते हैं।
-तेजवानी गिरधर
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