वाकई धर्मेश जैन को न्यास अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का अब तक मलाल है। वे आज तक इस्तीफे के घटनाक्रम को नहीं भूल पाए हैं। आखिर कैसे भूल सकते हैं। जब न्यास अध्यक्ष बने तो सालों की पार्टी सेवा के बाद एक सपना साकार हुआ था, मगर इस्तीफा देने के साथ सपना टूटा और जीवन का सबसे दु:खद दिन भी देखने को मिला। खुद अपनी ही पार्टी के नेताओं के षड्यंत्र का शिकार हो कर अपनी ही पार्टी के राज में पद से हटना निश्चित रूप मानसिक पीड़ा की इंतहा है। सामाजिक प्रतिष्ठ खोयी सो अलग।
अशोक गहलोत के दो साल के कामकाज पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जब उन्होंने कहा कि उनकी ईमानदारी साबित हो गई है तो सहसा यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि यही बात वे अपनी सरकार के रहते क्यों नहीं दमदार तरीके से कह पाए? वे चाहते तो इस्तीफा न देने के लिए अड़े रहते कि उन्होंने कोई भ्रष्टाचार नहीं किया है, चाहे सरकार उन्हें हटा कर जांच करवा ले। मगर पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता की वजह से मन मसोस कर रह गए। वे उन्हीं की पार्टी की नेता श्रीमती वसुंधरा राजे की तरह हिम्मत नहीं जुटा पाए। वसु मैडम को भी तो पार्टी हाईकमान ने विपक्ष का नेता पद छोडऩे को कहा था, मगर वे लंबे समय यह कह कर डटी रहीं कि विधायक उनके साथ हैं तो वे क्यों पद छोड़ें। अत्यधिक दबाव और पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना कर कंपन्सेट करने पर ही पद छोड़ा। मगर जैन साहब वैसा साहस नहीं दिखा पाए। न जाने अपने किस सलाहकार की सलाह पर तुरंत पद छोड़ दिया? काश, साहस दिखा पाते तो भले ही पार्टी उनको निकाल देती, मगर सामाजिक प्रतिष्ठा तो बची रह जाती। वैसे भी एक बार इस प्रकार जलील करने के बाद पार्टी से भविष्य में उन्हें क्या मिलना है। पार्टी ने अगर बेटे को पार्षद को टिकट दिया भी तो उससे ज्यादा तो चूस ही लिया। जिस पार्टी ने उनका जम कर दोहन किया और इतना जलील भी किया, उसी पार्टी को छाती से चिपका कर चल रहे हैं। आज कांग्रेस राज में अगर वे कहते हैं कि वे भ्रष्ट नहीं थे, तो इसका कोई मतलब नहीं है।
हां, उनकी इस बात जरूर दम है कि अजमेर को गौरव दिलाने वाले गौरव पथ का काम कांग्रेस राज में ही ठप्प हुआ है। इसी प्रकार पृथ्वीराज नगर व पंडित दीनदयाल नगर योजना को भी ठप्प कर दिया गया। उनका यह आरोप धांसू है कि कांग्रेस राज में न्यास में जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है, मगर मजा तब आता जबकि वे बाकायदा बिंदूवार यह साबित करते कि कहां-कहां पैसा खाया जा रहा है। आखिरकार वे न्यास अध्यक्ष रहे हैं, उन्हें तो पता ही होगा कि अंदरखाने में कहां-कहां घपला होता है। मगर ऐसा लगता है कि कांग्रेस पर हमला करने की गलत सलाह भी किसी गलत सलाहकार ने दी है।
इतना क्यों झल्लाते हैं देवनानी?
अजमेर उत्तर के विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी इन दिनों झल्लाते बहुत हैं। बुधवार को रीजनल कॉलेज में फाइबर टू होम सेवा के शुभारंभ के मौके पर भी वे केकड़ी विधायक रघु शर्मा के छेडऩे पर झल्ला गए। इससे पहले भी कई विषयों पर लगातार प्रतिक्रिया जाहिर करते रहे हैं, जबकि उनकी पार्टी के पदाधिकारी तक चुप बैठे हंै। बुधवार को अटके भी तो रघु शर्मा की टिप्पणी पर। जो रघु शर्मा कद के अनुरूप पद नहीं मिलने के कारण खुद जले-भुने बैठे हैं और अपनी पार्टी के मंत्रियों को नहीं बख्शते, वे भला देवनानी को कैसे छोडऩे वाले थे। असल में देवनानी को उन्होंने छेड़ा ही इस कारण कि वे जानते थे कि इससे देवनानी चिढ़ेंगे। यह बात देवनानी समझ नहीं पाए और बिफर गए। बाद में भले ही उन्हें सचिन पायलट ने शांत करवाया और रघु शर्मा ने मिठाई खिला कर राजी किया, मगर इससे यह तो साबित तो हो ही गया कि देवनानी घोर प्रतिक्रियावादी हैं। यह सर्वविदित तथ्य है कि जो चिढ़ता है, उसे लोग ज्यादा चिढ़ाते हैं। अगर यह रहस्य उजागर हो गया तो कहीं ऐसा न हो कि कांग्रेसी हर वक्त यहीं तलाशते रहें कि उन्हें कैसे छेड़ा जाए।
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