शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

स्वतंत्रता सेनानियों से ऐसी तो उम्मीद नहीं थी

गणतंत्र दिवस पर पटेल मैदान में आयोजित जिला स्तरीय समारोह में स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान किए जाने के दौरान कतिपय स्वतंत्रता सेनानियों ने पर्यटन मंत्री श्रीमती बीना काक के सामने जिस प्रकार शॉल की क्वालिटी और उससे सर्दी नहीं रुकने को लेकर शिकायत की, उससे समारोह की गरिमा पर तो आंच आई ही, खुद स्वतंत्रता सेनानियों की महान मर्यादा भी भंग हुई। हालांकि स्वतंत्रता सेनानी आजाद भारत में खुली सांस ले रहे हम सब लोगों के लिए परम आदरणीय हैं। उनका अगर दिल दुखा है तो उसमें हम भी शरीक हैं, मगर एक अदद भौतिक वस्तु शॉल को लेकर ऐतराज करने से उनकी अपेक्षाकृत कुछ निम्न स्तरीय सोच ही उजागर हुई है, जो जिला प्रशासन को जलील करने की कोशिश मात्र ही कही जा सकती है।
कैसी विडंबना है कि आजादी के आंदोलन में देश की खातिर जिन महान लोगों ने घर-परिवार की खुशी का बलिदान कर दिया, वे सम्मान के लिए प्रतीकात्मक रूप में दी गई शॉल की क्वालिटी और उसकी कीमत पर आ कर अटक गए। सम्मान सम्मान ही होता है, उसकी कोई कीमत नहीं होती। या उसे किसी कीमती वस्तु से नहीं आंका जाता। महत्व भावना का है। रहा सवाल हमारी भावना का तो यह स्पष्ट है कि वे हमारे लिए अति सम्माननीय हैं और इसी खातिर जिला प्रशासन ने उनका सम्मान करवाने के लिए पर्यटन मंत्री के हाथों शॉल भेंट करवाई। उस भावना को उन्हें समझना चाहिए था। इतना तो तय है कि कम से कम दुर्भावनावश घटिया शॉल भेंट करने की तो जिला प्रशासन की सोच नहीं थी। फिर यदि शिकायत थी भी तो उसे बाद में कभी दर्ज करवा सकते थे। और कुछ नहीं तो कम से कम मौका तो देखना चाहिए था। गणतंत्र दिवस जैसे मर्यादित समारोह के हर्षोल्लासपूर्ण रंग में भंग डालने से पहले कम से कम एक बार मन ही मन पुनर्विचार तो करना ही चाहिए था।
असल में स्वाधीनता सेनानियों के बलिदान की तो कोई कीमत ही नहीं है। वे जब आंदोलन में शरीक हो रहे थे, तब उन्हें पता थोड़े था कि देश आजाद हो ही जाएगा और आजाद देश में उन्हें सम्मान के साथ देखा जाएगा। इसे इस रूप में भी कहा जा सकता है कि वे सम्मान पाने की खातिर थोड़े ही आंदोलन में शामिल हुए थे। जान हथेली पर रख कर आंदोलन में शरीक होने वालों को तो यह तक पता नहीं था कि वे जिंदा भी रहेंगे या शहीद हो जाएंगे। इसी से साबित होता है कि उनकी भावना और समर्पण कितना उच्च कोटि का था। वहां मौजूद एक स्वतंत्रता सेनानी शोभाराम गहरवार का यह कहना नि:संदेह उचित है कि स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों पर खेल कर देश को आजादी दिलवाई। उनका यह कर्ज सरकार सोने से तोल कर भी नहीं चुका सकती। ऐसी उच्च कोटि की भावना से लबरेज महानुभावों को अदद शॉल की क्वालिटी पर ऐतराज दर्ज करवाना शोभनीय तो नहीं रहा।

1 टिप्पणी:

  1. kya prashasan itna sidha aur saral hai ki unhe achhi aur ghatiya quality main fark nahi pata? achha hota tat hi pahna diya jata, kamse kam prashasan ki bhavana(jaisa apne bataya)sahi mayane men pata chal jati. prashasan apani bhavnaon ki bandar bant kaise karti hai kam se kam apse chhupa nahin hona chahiye. swatantra senaniyon ki narajagi par comment karne ke liye kam se kam mere jaise bahu sankhyak log himmat bhi nahin juta payenge. ap dhanya hon.

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