सोमवार, 24 जनवरी 2011

कांटे की टक्कर है बजाड़ व भडाणा के बीच

जिला परिषद सदस्य के लिए आगामी 28 जनवरी को होने जा रहे चुनाव में कांग्रेस के सौरभ बजाड़ व भाजपा के ओमप्रकाश भडाणा के बीच कांटे की टक्कर है। बजाड़ को जहां कांग्रेस के सत्ता में होने व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट के वरदहस्त का फायदा मिलता दिखता है तो भडाणा को जिला परिषद पर काबिज भाजपा बोर्ड व गुर्जर आरक्षण आंदोलन में अग्रणी भूमिका अदा करने का लाभ मिलने की उम्मीद है।
जहां तक व्यक्तिगत छवि का सवाल है, दोनों ही प्रत्याशी युवा और बेदाग हैं। दोनों के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं है। ऐसे में नकारात्मक वोटिंग की कोई आशंका नहीं है। रहा सवाल दोनों के एक ही जाति गुर्जर से होने का तो तकरीबन आठ हजार गुर्जर मतदाताओं वाले इस वार्ड में प्रत्क्षत: गुर्जर आंदोलन में उग्र नेता के रूप में उभरने के कारण यह माना जा रहा है कि उन्हें गुर्जर समाज का भरपूर समर्थन मिलेगा, मगर वस्तुत: धरातल पर ठीक ऐसा ही नहीं है। भले ही कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व में आंदोलन सफल हुआ और भडाणा बैंसला के ही शागिर्द हैं, मगर समझौता होने के बाद स्थितियों में बदलाव आया है। अब बजाड़ भी यह कहने की स्थिति में हैं कि सचिन पायलट की वजह से समझौते की राह निकली, इस कारण उनके हाथ मजबूत करने के लिए उन्हें समर्थन दिया जाना चाहिए। आंदोलन के दौरान भले ही गुर्जर जाति के लोग सरकार के खिलाफ थे, मगर समझौते के बाद उनके लिए सचिन की अहमियत भी उतनी ही है, जितनी कि बैंसला की। कदाचित सचिन का महत्व इस कारण ज्यादा है क्योंकि वे आज सत्ता की गाडी पर सवार हैं और निजी तौर लाभ देने की स्थिति में हैं। अगर पायलट इसे व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से जोड़ कर घेराबंदी करेंगे तो बेशक गुर्जरों के वोट बजाड़ के खाते में दर्ज करवा पाने में सफल हो सकते हैं। वैसे भी गुर्जर आमतौर पर पंरपरागत रूप से कांग्रेसी ही माने जाते हैं।
अन्य जातियों में दस हजार मुस्लिम व चीता-मेहरात और दो हजार एससी-एसटी का परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ होने का लाभ बजाड़ को मिलेगा तो सात हजार रावत, चार हजार जाट और डेढ़-डेढ़ हजार ब्राह्मण, महाजन व राजपूतों को परंपरागत रूप से भाजपा के साथ होने का फायदा भडाणा उठा सकते हैं। गैर गुर्जर जातियों में आंकड़ों के लिहाज से भडाणा आगे नजर आते हैं, ऐसे में गुर्जर जाति के वोट निर्णायक स्थिति में हैं। जो प्रत्याशी गुर्जरों के वोट ज्यादा ले जाएगा, वह जीत के करीब आ जाएगा।
स्थानीय राजनीति के हिसाब से देखें तो बजाड़ को जहां प्रधान रामनाराण गुर्जर के साथ होने का लाभ मिल रहा है तो भडाणा को जिला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा के समर्थन का बड़ा संबल है।
एक फैक्टर और काम कर सकता है। वो ये कि अगर भडाणा ने बैंसला के नाम पर गुर्जरों को लामबंद करने की कोशिश की तो संभव है वे गुर्जरों का भावनात्मक लाभ उठा लें, मगर आंदोलन के दौरान गैर गुर्जरों में जनजीवन ठप होने की जो शिकायत रही, वह उन्हें नुकसान दे सकती है।
कुल मिला कर हार-जीत के समीकरण काफी उलझे हुए हैं और पक्के तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि जीत की ओर कौन अग्रसर है। प्रचार के मामले में दोनों ने एडी-चोटी का जोर लगा रखा है। ऐसे में फिलहाल यही कहा जा सकता है कि दोनों के बीच कांटे की टक्कर है।

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