बुधवार, 5 जनवरी 2011

शहर भाजपा अध्यक्ष के लिए पनपा एक और दावेदार

काफी दिनों तक शहर भाजपा के नए अध्यक्ष के रूप में पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत के प्रति आम सहमति के बाद उनके विकल्प के रूप में हालांकि प्रो. बी. पी. सारस्वत का नाम उभर कर आया है, लेकिन जैसे ही नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष सीडी के लंका दहन कांड से निकल कर सुंदरकांड में पहुंचे हैं, वे एक और दावेदार के रूप में माने जा रहे हैं। हालांकि सारस्वत के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने लगभग आम सहमति बना ली है, लेकिन जैन के पाक साफ साबित होने के बाद समीकरणों में कुछ बदलाव तो आया ही है।
वैसे जैन स्वयं तो अध्यक्ष बनने में कोई रुचि नहीं ले रहे, मगर समझा जाता है कि उनके समर्थक इस बात पर जोर दे सकते हैं कि उन्हें फिर से प्रतिष्ठित किया जाए। उन्होंने न्यास अध्यक्ष के रूप में अपनी प्रशासकीय क्षमता तो दिखाई ही है, संगठन में भी काम करने का लंबा अनुभव है। कदाचित पार्टी हाईकमान उनकी वरिष्ठता और संपन्नता का लाभ उठाना चाहे। हालांकि जैन एक बार मौका पडऩे पर नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रह लिए, लेकिन उनकी वर्षों पुरानी इच्छा यही है कि वे सांसद का चुनाव लड़ें। पिछले दो चुनावों में उन्होंने इसके लिए प्रयास भी किया था, लेकिन सीडी कांड की चपेट में आने के बाद उनके राजनीतिक कैरियर में बेरियर लग गया था। अब जब कि उनका पुनर्जन्म हो गया है, समझा जाता है कि वे जल्द ही सक्रिय हो जाएंगे और पहले से भी ज्यादा जोश के साथ मैदान में आएंगे। असल में वे आरोप मुक्त होने के बाद काफी उत्साहित हैं।
जहां तक शहर भाजपा अध्यक्ष पद का सवाल है, कदाचित उनकी रुचि इस कारण न हो कि इस पद से प्रतिष्ठा तो मिलती है, लेकिन है ये काफी खर्चीला। विशेष रूप से विरोधी दल का होने के कारण आए दिन होने वाले खर्च को वहन करना कुछ कठिन काम है। यूं पार्टी की सेवा तो वे वर्षों से करते रहे हैं, मगर पद पर रहने पर सेवा एक ड्यूटी के रूप में हो जाती है। और अभी तो नया चुनाव होने में पूरे तीन साल बाकी हैं। फायदा सिर्फ इस रूप में माना जा सकता है कि अध्यक्ष होने के नाते टिकट वितरण में भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। वैसे पिछले नगर निगम चुनाव में जिस प्रकार विधायकों को ज्यादा तवज्जो मिली और मौजूदा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा की जो दुर्गति हुई, उससे शहर अध्यक्ष बनना अब उतना लाभदायक नहीं माना जाता। एक बात और है, यदि लक्ष्य लोकसभा चुनाव पर हो तो व्यर्थ ही इस पद में उलझना शायद न चाहें। बहरहाल, फिलवक्त उनका नाम उभरा तो है, देखते हैं क्या होता है। उम्मीद है कि आगामी मकर संक्रांति के बाद जनवरी माह में ही नए अध्यक्ष की नियुक्ति हो जाएगी।
पुलिस कप्तान की नाक के नीचे मारपीट शर्मनाक
सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में खादिमों की महत्वपूर्ण संस्था के सदस्य की पिटाई पुलिस कप्तान के कक्ष के बाहर एक महिला द्वारा होना, उस सदस्य के लिए उतनी शर्मनाक नहीं रही, जितनी कि पुलिस के लिए रही।
मंगलवार को कलेक्ट्रेट परिसर में पुलिस कप्तान के चैंबर के बाहर हुई इस वारदात ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जब सर्वाधिक सुरक्षित जगह पर ही इस प्रकार की हरकत हो सकती है तो जिलेभर में पुलिस का नियंत्रण क्या होगा? इससे यह बात भी साफ हो गई है कि आदतन अपराधियों की तो छोड़ो, एक आम व्यक्ति में भी पुलिस का खौफ नहीं रहा कि वह पुलिस कप्तान के कक्ष के बाहर ही मारपीट को उतारु हो जाता है। मामला या आपसी रंजिश कैसी भी हो, मगर कलेक्ट्रेट में इस प्रकार की घटना होना साबित करता है हमलावरों के हौसले इतने बुलंद थे कि उन्होंने इतना तक इंतजार नहीं किया कि वे अपनी दुश्मनी निकालने के लिए कोई और स्थान चुन लें। हालांकि इस वारदात से मारपीट करने वालों का सुर्खियां पाने का मकसद तो पूरा हो गया, लेकिन पुलिस की तो नाक ही कट गई। अफसोसनाक बात ये रही कि अचानक हुए इस पूरे घटनाक्रम के दौरान पुलिस के कर्मचारी मूकदर्शक से खड़े रहे। बतातेे तो इतना भी हैं कि जैसे ही हंगामा हुआ, पुलिस कप्तान ने भी अपने चैंबर का दरवाजा खोल देखा और उसके तुरंत बाद चुपचाप अंदर जा कर बैठ गए। माना कि उन्हें खुद को कोई हाथ-पैर चलाने की जरूरत नहीं थी, लेकिन कम से कम तुरंत कार्यवाही तो कर ही सकते थे। कुल मिला कर इस पूरे प्रकरण से पीडि़त महिला ने भले ही अपने मन की पूरी कर ली हो और अंजुमन सदस्य की इज्जत तार-तार हो गई हो, मगर नए साल के पहले हफ्ते में ही पुलिस कप्तान के मिजाज से पर्दा हट गया है।

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