सोमवार, 25 अप्रैल 2011

सरकार के डर से न्यास ने की गुमटियां आवंटित

लोहागल रोड पर जवाहर रंगमंच के पास यातायात में बाधा बन रही गुमटियों को तोडऩे पर जो विरोध हुआ, उसे देखते हुए नगर सुधार न्यास ने आखिरकार बेदखल गुमटी धारियों को नई गुमटियां आवंटित कर दीं। इससे साफ जाहिर होता है कि प्रशासन को यह अक्ल तभी आई, जब उसके कदम का विरोध किया गया।
असल में एक तो विरोध करने वालों में कांग्रेसी पार्षद मुखर थे, दूसरा सेंट्रल यूनिवर्सिटी के शिलान्यास समारोह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और स्थानीय सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट के आने के कारण प्रशासन जानता था कि वह मुश्किल में आएगा, इस कारण ठीक एक दिन पहले ही झटपट में नई गुमटियां आवंटित कर दीं। लेकिन इससे यह तो साबित हो ही गया कि प्रशासन को अक्ल बाद में आई कि जिन लोगों को बेदखल किया गया है, उन्हें राजी किया जाना चाहिए। यह कदम पहले भी उठाया जा सकता था, मगर उस वक्त प्रशासन का सारा ध्यान केवल गुमटियां हटाने पर था। कदाचित उसे यह भी ख्याल था कि अगर तोडऩे से पहले गुमटियां आवंटित कर भी जातीं तो भी विरोध तो होना ही था, इस कारण पहले गुमटियां तोड़ीं और बाद में विरोध होने पर नई आवंटित कर दी गईं।
इस मामले में भाजपा फिसड्डी ही साबित हुई। एक तो दोनों भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल सहित शहर जिला भाजपा गुमटियां तोड़े जाते वक्त नदारद थे। उन्होंने दूसरे दिन बयान जारी कर विरोध दर्ज करवाया। इससे भी अहम बात ये है कि यदि भाजप विधायकों को ऐतराज था तो उन्हें संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में ट्रेफिक मैनेजमेंट कमेटी में जब यह निर्णय किया जा रहा था, तब विरोध दर्ज करवाना था। उस वक्त तो वे कुछ बोले ही नहीं। विधायक श्रीमती भदेल के इस बयान पर बेहद आश्चर्य होता है कि उन्हें यह ही पता नहीं कि इस प्रकार का निर्णय बैठक में लिया गया था। सवाल ये उठता है कि बैठक में वे क्या सो रही थीं। देवनानी का कहना है कि वे बैठक के बीच में ही चले गए थे, इस कारण उन्हें पता नहीं लगा। इससे साबित होता है कि उन्होंने बाद में यह जानने की जरूरत भी नहीं समझी कि बैठक में उनकी अनुपस्थिति में क्या निर्णय हुए हैं। यदि दोनों विधायक उस वक्त यह दबाव बनाते कि जिन लोगों की गुमटियां तोड़ी जानी हैं, उनको नई गुमटियां आवंटित की जाएं, तो कदाचित यह स्थिति नहीं आती। बहरहाल, ताजा प्रकरण से यह साबित हो गया कि हमारे जनप्रतिनिधि तभी जागते हैं, जब कुछ हो जाता है और प्रशासन को भी तभी अक्ल आती है, जब विरोध के सुर तेज हो जाते हैं। रहा सवाल गुमटी धारियों का तो उनके बारे में कुछ कहना ही बेकार है, क्योंकि उनकी तो गुमटी के क्षेत्रफल से दुगने क्षेत्रफल पर अतिक्रमण करने की आदत बनी हुई है।

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