शुक्रवार, 1 जून 2012

ये विद्युत अफसरों की बदमाशी नहीं तो क्या है?

डिस्काम एमडी पीएस जाट
ये तो गनीमत है कि प्रदेशभर में की जा रही बिजली कटौती में अजमेर के साथ भेदभाव को लेकर बार अध्यक्ष राजेश टंडन व विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी ने कड़ा रुख अपनाया, वरना डिस्काम तो रोजाना तीन घंटे बिजली कटौती करने जा रहा था। ज्ञातव्य है कि प्रदेश के अन्य संभागीय मुख्यालयों पर दो घंटे और अकेले अजमेर मुख्यालय पर तीन घंटे कटौती का निर्णय किया गया था। अव्वल तो सोचने विषय ये है कि जिस स्तर पर भी यह निर्णय हुआ, वहां भेदभाव की बदमाशी की किसने? क्या निर्णय करने वाले ये सोच बैठे थे कि ये मुर्दा शहर उनकी मनमानी को चुपचाप बर्दाश्त कर लेगा? या फिर यह सोच कर बैठे थे कि अगर विरोध हुआ तो कटौती में समानता ले आएंगे और नहीं तो उनकी मनमानी चल ही जाएगी? ऐसा लगता है कि महकमे के अफसर उर्स मेले के दौरान दी गई बिजली कटौती से मुक्ति को समायोजित करने के लिए ऐसी हरकत कर रहे थे, मगर उन्हें अनुमान नहीं था कि जैसे ही निर्णय होगा, उसका विरोध हो जाएगा। विरोध तो होना ही था। भीषण गर्मी में बिजली कटौती बेहद कष्टदायक होती है। उसमें भी यदि भेदभाव किया जाएगा तो उसे कौन बर्दाश्त करेगा।
इस सिलसिले में बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश टंडन की संभागीय आयुक्त से वार्ता के दौरान दी गई दी आंदोलन की चेतावनी और भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी की डिस्काम एमडी पीएस जाट से वार्ता काम कर गई। इस मसले में रोचक बात ये है कि देवनानी को जाट ने मामले को दिखवाने और अजमेर व उदयपुर की तुलना कर समान कटौती किए जाने की बात कही, यानि कि उन्हें तो पता ही नहीं कि उदयपुर में दो घंटे की कटौती की जा रही है। कैसी विडंबना है कि डिस्काम के मुखिया तक को ये पता नहीं कि कहां कितनी कटौती की जा रही है, उसकी जानकारी भी उन्हें जनप्रतिनिधि दें।
सरकारी कामकाज का नमूना देखिए कि जब संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा ने अजमेर डिस्काम के अफसरों को तलब किया और इस मामले में पर जवाब मांगा, तब जा कर वे हरकत में आए। उदयपुर के चीफ इंजीनियर के पी वर्मा एवं सर्किल इंजीनियर बाछेत राणावत से बात करने पर पता लगा कि संभागीय मुख्यालय होने के नाते वहां पर रोजाना 2 घंटे ही बिजली काटी जा रही है। है न दुर्भाग्यपूर्ण कि अखबारों के जरिए एक-एक नागरिक को पता था कि अकेले अजमेर संभागीय मुख्यालय पर ही तीन घंटे कटौती हो रही है, मगर अफसरों को एक दूसरे से बात करने पर पता लग पाया।
उससे भी अफसोसनाक बात ये है कि बिजली महकमे के अफसर आसानी से नहीं माने। जब आंदोलन की चेतावनी दी तब जा कर नरम पड़े। चीफ इंजीनियर सी के खमेसरा से तो टंडन को तीखी बहस करनी पड़ गई।
बहरहाल, इस प्रकरण से यह स्पष्ट हो गया है कि अधिकारी करना तो मनमानी चाहते थे, मगर जब दबाव पड़ा तब लाइन पर आए। इस सिलसिले में टंडन व देवनानी बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने तुरंत मसले का उठाया और जनता को राहत दिलवाई। इन दोनों सहित अन्य जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे इसी प्रकार जागरूक रह कर अजमेर पर लगा वह ठप्पा मिटाने की कोशिश करेंगे कि अजमेर वासी प्रशासन की मनमानी बर्दाश्त करने में अव्वल हैं।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

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