शनिवार, 1 दिसंबर 2012

क्या है भगवंत विवि विवाद की सच्ची कहानी?


डा. जयपाल व उनके साथी
भगवंत विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रा से छेड़छाड़ के मामले में कांग्रेसी नेताओं को कठघरे में खड़ा कर के छात्रा के साथ विवि चेयरमेन अनिल सिंह के साथ की गई कथित छेड़छाड के मामले ने नया मोड़ ले लिया है। हालांकि पीडि़त छात्रा की शिकायत पर दर्ज मुकदमा अपनी जगह है और जाहिर तौर पर उसी के अनुरूप कार्यवाही होगी, मगर विवि प्रशासन ने जो पत्ता फैंका है, उससे यह साफ झलकता है कि वह सिंह व विवि के खिलाफ बन रहे मामले को डाइल्यूट करना चाहता है।
विवि कुलपति डॉ. वी. के. शर्मा ने बाकायदा प्रेस वार्ता आयोजित कर कहा कि पिछले दिनों कांग्रेस नेता व पूर्व विधायक डॉ.राजकुमार जयपाल, कुलदीप सिंह और फखरे मोइन आरोप लगाने वाली छात्रा के साथ आए थे। उन्होंने अधिकारियों पर छात्रा की फीस माफ करने के लिए दबाव डाला था। फीस माफ नहीं होने पर इस तरह की हरकत करते हुए झूठे मुकदमे में फंसाया जा रहा है। इतना ही नहीं उन्होंने जयपाल व सिंह के बीच किसी जमीन विवाद की ओर भी इशारा किया। यदि उनके बयान पर यकीन किया जाए तो लगता है कि निजी विवाद बढऩे के बाद सिंह के खिलाफ षड्यंत्र रचा गया।
उधर, पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल का बयान भी गौर करने के काबिल है कि वे छात्रा को लेकर भगवंत यूनिवर्सिटी गए थे। उन्होंने महज छात्रा की फीस माफ के लिए आग्रह किया था। किसी तरह का दबाव नहीं बनाया। मानवीयता के नाते उन्होंने छात्रा की मदद ही की है। उनके इस बयान से यह तो साफ हो ही गया कि छेड़छाड़ वाला प्रकरण अचानक सामने नहीं आया है। इससे पहले छात्रा को लेकर कोई न कोई बात हुई है। और यही वजह है कि दोनों मामले आपस में जुड़े हुए प्रतीत होते हैं। और इसी का विवि प्रशासन लाभ लेने की कोशिश कर रहा है। मगर संभव ये भी है कि दोनों प्रकरण अलग-अलग हों। वजह ये है कि कोई भी छात्रा केवल फीस माफ न करने अथवा उस पर विवाद होने पर छेड़छाड़ होने का आरोप लगा कर खुद को भी बदनाम करने की सीमा तक नहीं ले जाएगी। यह बात आसानी से गले उतरने वाली नहीं है कि वह जयपाल एंड कंपनी से इतनी प्रभावित थी कि फीस के मामले में मदद करने की एवज में उनके कहने पर वह षड्यंत्र में शामिल हो गई। जरूर दाल में कुछ काला है। इसकी पुष्टि इसी बात से होती है कि हॉस्टल की केयरटेकर वसुधा ने रविवार को अवकाश वाले दिन छात्रा को अनिल सिंह के आवास पर छोडना पुलिस जांच में स्वीकार कर लिया है। इसका उल्लेख फकरे मोईन ने भी किया है। इसके अतिरिक्त पुलिस जांच में कॉल डिटेल से भी घटना वाले दिन अनिल सिंह का अजमेर में होना साबित हो गया है। अर्थात ये तो पक्का है कि छात्रा अनिल सिंह के घर तो गई ही थी। उसके साथ क्या हुआ, यह जांच का विषय है।
कुल मिला कर विवि प्रशासन की ओर से यह कह कर कि जयपाल व सिंह के बीच विवाद था, इस कारण मामला इस रूप में आया है, संदेह उत्पन्न करता है। मान लिया कोई विवाद था, मगर छात्रा सिंह के घर क्यों गई? और उससे भी बड़ी बात ये है कि वह खुल कर सिंह पर आरोप भी लगा रही है। स्पष्ट है कि कानूनी रूप से मामला सिंह के विपरीत पड़ रहा है, भले ही उनके मातहत अधिकारी मामले को जयपाल से पूर्व के विवाद से जोड़ कर बताएं। रहा सवाल छात्रों का तो स्वाभाविक रूप से वे तो छात्रा के साथ हुई छेड़छाड़ को आंदोलित होने थे और उनका आंदोलित होना जायज है।
इस बीच अनिल सिंह के पक्ष में श्रीवीर तेजा महासभा के सामने आ जाने से मामला और गरमा गया है। महासभा के प्रदेश महासचिव श्रवणलाल चौधरी ने बताया कि सिंह को राजनीतिक षड्यंत्र के तहत फंसाया जा रहा है। कुछ राजनीतिक लोग गलत आरोप लगाकर निजी स्वार्थों को सिद्ध कर रहे हैं। इस नई घटना से यह तो पक्का है कि सिंह कोई छोटी मोटी चीज नहीं हैं। तभी तो कहीं दूर बैठे होने पर भी विवि प्रशासन व श्रीतेजा महासभा पूरी दृढ़ता के साथ भिड़ंत ले रहे हैं। सिंह के हाथ लंबे होने का संकेत इस बात से भी मिलता है कि मामला मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जानकारी में आने बाद भी अब तक पुलिस की पकड़ से बाहर हैं। यानि कि जयपाल ने रोंग नंबर डायर कर लिया है। मानवता के नाते मदद करने की एवज में बैठे-ठाले विवाद का आरोप झेल बैठे। हां, इतना जरूर है कि सिंह चाहे जितनी बड़ी चीज हों, मगर फिलवक्त तो जयपाल से टक्कर लेने के कारण संकट में पड़ गए हैं।
-तेजवानी गिरधर

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