राज्य सरकार अपना रही है दोहरे मापदंड
राज्य सरकार किस प्रकार अपनी सुविधा के लिए मनमानी करते हुए दोहरे मापदंड अपनाती है, इसका एक ताजा उदाहरण हाल ही सामने आया है। दीपदर्शन गृह निर्माण सहकारी समिति लिमिटेड का बहुचर्चित प्रकरण तो आपको याद होगा ही। समिति को नगर सुधार न्यास एवं तत्कालीन नगर परिषद व हालिया नगर निगम द्वारा आवासीय कॉलोनी के लिए दो जगह भूमि का आबंटन किया गया था। कतिपय तकनीकी व राजनीतिक विवादों के चलते सरकार ने उसे एक झटके में निरस्त कर दिया। अब मामला न्यायालयों में लम्बित होने है, उसके बावजूद उसकी जांच कराई जा रही है। इसका क्या अर्थ निकाला जाए? क्या राज्य सरकार जांच अधिकारी को न्यायालय से भी बड़ा मान कर चल रही है?
हाल ही 17 जनवरी 2013 को जांच समिति के जाच अधिकारी सेवानिवृत्त आई.ए.एस. एम.के. खन्ना अजमेर आए। उनके आने का अजमेर नगर में ऐसा खौफ रचित किया गया था, जैसे न जाने वे अजमेर में क्या कहर ढ़ाएंगे। सरकार किस प्रकार विरोधाभासी कार्यशैलियां अपनाती है, यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि एक तरफ तो राज्य सरकार प्रशासन शहरों की ओर अभियान चलाकर उन सभी जमीनों का मय सरकारी भूमि के नियम कर रही है, जिन पर व्यक्ति अवैध रूप से काबिज हैं। इसके ठीक विपरीत पराकाष्ठा यह है कि ऐसी भूमियों, जिनका आबंटन नगर सुधार न्यास एवं तत्कालीन नगर परिषद व वर्तमान नगर निगम ने समिति से करोड़ों रुपए की राशि जमा करके भू-उपविभाजन मानचित्र स्वीकृत कर आवंटन किया, उसे निरस्त कर दिया गया। सरकार अपने ही निर्णय को लेकर कितनी सशंकित है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है सरकार ने समिति को लोहागल में आबंटित भूमि 21.01.2011 को ही निरस्त कर कब्जा न्यास हक में ले लिया गया, दूसरी ओर इसकी जांच को जारी रखे हुए है। सवाल ये उठता है कि निरस्तगी के बाद जांच का औचित्य क्या रह गया है? इसी प्रकार सरकार के आदेश पर तत्कालीन नगर परिषद द्वारा वर्ष 2000 में आनासागर सरक्यूलर रोड योजना में समिति को आबंटित भूमि को 17 जून 2011 को निरस्त कर दिया, जबकि उसके जांच अधिकारी अब भी अपनी कार्यवाही जारी रखते हुए अजमेर आकर भय उत्पन्न कर रहे हैं।
प्रशासनिक जांचों की कड़ी में संभवतया यह पहला मौका है, जबकि जिस अधिकारी द्वारा प्रकरण की पूर्व में जांच की गई, उसके फॉलो अप के लिए भी उसी अधिकारी को भेजा जा रहा है। इसके प्रथम दृष्टया दो ही कारण समझ में आ रहे हैं। उसमें एक तो यह कि जिन विभागों को जांच निष्कर्षों की पालना करने हेतु निर्देशित किया गया है, उनसे क्रियान्वित करवाने में राज्य सरकार सक्षम नहीं है। और दूसरा ये कि चूंकि जांच अधिकारी एम.के. खन्ना उप मुख्य सचिव जी.एस संधू के खासमखास हैं, इसलिए उन्हें लाभ पहुंचाने का उदद्ेश्य हो। प्रसंगवश बता दें कि खन्ना द्वारा वर्ष 2011 में भी जब जांच पूर्ण कर ली गई, तब उनको जो देय राशि भेजनी थी, उसके भुगतान का चैक डाक द्वारा नहीं भेजा गया, बल्कि आर.टी.जी.एस के माध्यम से 5 मिनट में खन्ना के खाते में हस्तान्तरित कर दिया गया। जाहिर सी बात है कि आर.टी.जी.एस. के द्वारा राशि खन्ना को दिए जाने के निर्देश संधू द्वारा ही दिए गए थे। साफ झलकता है कि ऐसा खन्ना को उपकृत करने के लिए किया गया। दूसरा उदाहरण सामने है कि 17 जनवरी 2013 को भी फॉलो अप के लिए उन्हें ही भेजकर भत्तों आदि का लाभ पहुंचाया जा रहा है।
अब जरा देखिए सेवानिवृत्त आई.ए.एस. खन्ना द्वारा की गई जांच का नमूना। उन्होंने जांच का आधार नगरीय विकास विभाग के परिपत्र क्रमांक प. 3(15) ना. वि. वि. / ग्रुप-111/83 दिनांक 2.8.1983 को मानते हुए उक्त परिपत्र में उल्लेखित शर्त कि समिति अपने सदस्यों के लिए गृहों का निर्माण करवा कर आबंटित करेगी, जो कि समिति द्वारा नहीं किया गया, ऐसा उल्लेख कर आबंटन निरस्तगी की सिफारिश कर दी। एक आईएएस द्वारा की गई इस प्रकार की सिफारिश से उनकी योग्यता पर ही सवालिया निशान लग जाता है। साथ ही इस बात का इशारा भी मिलता है कि ऐसा राजनीतिक दबाव की वजह से किया गया। सिफारिश में जिस परिपत्र का उल्लेख किया गया, उसकी अवधि 31 दिसम्बर 1984 को ही समाप्त हो गई थी। उक्त परिपत्र में स्पष्ट उल्लेखित है कि उन्हीं बोनाफाइड गृह निर्माण सहकारी समितियों को ही आरक्षित मूल्य पर भूमि आबंटित की जाए, जो कि भवनों का निर्माण 31 दिसम्बर 1984 तक पूर्ण कर लेंगी, जबकि दीप दर्शन गृह निर्माण सहकारी समिति को भूमि का आबंटन ही वर्ष 2000 में नगर परिषद द्वारा किया गया है। इसके आबंटन पत्र की शर्तों में यह स्पष्ट अंकित है कि समिति अपने सदस्यों को भूखंडों का आबंटन अपने नियमानुसार करेगी। जब भूखंडों का आबंटन किया जाना है, तो बने बनाए मकानों का आबंटन समिति कहां से करेगी? साफ है कि जिस परिपत्र की अवधि ही 31 दिसम्बर 1984 को समाप्त हो गई, उसे आधार मानकर अवधि समाप्ति के बाद भी उसे ही लागू कर पक्षपात एवं द्वेषतापूर्ण कार्यवाही कर आबंटन निरस्त कर दिया गया। कोई निष्पक्ष व्यक्ति आसानी से समझ सकता है कि आबंटन के निरस्तीकरण की कार्यवाही ही अवैध है।
समिति की माधव नगर योजना की जिस 100 फीट चौड़ी सड़क को 40 फीट किए जाने का जहां तक प्रश्न है, तत्कालीन अधिशासी अभियन्ता स्वर्गीय जीत सिंह द्वारा नोटशीट पर नियमों का स्पष्ट उल्लेख करते हुए यह अंकित किया गया है कि यदि बाहरी सड़कें (माकड़वाली रोड एवं चौरसियावास रोड) यदि क्रमश: 60 फीट और 40 फीट हों तो आंतरिक सड़क नियमानुसार 30 फीट होनी चाहिए न कि 100 फीट, जबकि नगर परिषद द्वारा 40 फीट की सड़क छोड़ी गई है। नगर परिषद द्वारा भूमि के भू-उपविभाजन का मानचित्र समिति को देकर स्वयं नगर परिषद द्वारा आबंटित सदस्यों के भूखंडों के भवन मानचित्र स्वीकृत किए जाकर कई बार भूखंड हस्तान्तरण हेतु अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं। साथ ही सक्षम न्यायालय द्वारा यह आदेश देकर किसी भी प्रकार की कार्यवाही किए जाने पर स्टे दे रखा है कि प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि भूखंडों का भू-उपविभाजन मानचित्र नगर परिषद द्वारा ही समिति को जारी किया गया है। ऐसे में जांच अधिकारी अजमेर आ कर क्या कर रहे हैं? क्या वे किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत आबंटियों में भय उत्पन्न करना चाहते हैं? या फिर जांच के नाम पर अपने भत्ते पका रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर
हाल ही 17 जनवरी 2013 को जांच समिति के जाच अधिकारी सेवानिवृत्त आई.ए.एस. एम.के. खन्ना अजमेर आए। उनके आने का अजमेर नगर में ऐसा खौफ रचित किया गया था, जैसे न जाने वे अजमेर में क्या कहर ढ़ाएंगे। सरकार किस प्रकार विरोधाभासी कार्यशैलियां अपनाती है, यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि एक तरफ तो राज्य सरकार प्रशासन शहरों की ओर अभियान चलाकर उन सभी जमीनों का मय सरकारी भूमि के नियम कर रही है, जिन पर व्यक्ति अवैध रूप से काबिज हैं। इसके ठीक विपरीत पराकाष्ठा यह है कि ऐसी भूमियों, जिनका आबंटन नगर सुधार न्यास एवं तत्कालीन नगर परिषद व वर्तमान नगर निगम ने समिति से करोड़ों रुपए की राशि जमा करके भू-उपविभाजन मानचित्र स्वीकृत कर आवंटन किया, उसे निरस्त कर दिया गया। सरकार अपने ही निर्णय को लेकर कितनी सशंकित है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है सरकार ने समिति को लोहागल में आबंटित भूमि 21.01.2011 को ही निरस्त कर कब्जा न्यास हक में ले लिया गया, दूसरी ओर इसकी जांच को जारी रखे हुए है। सवाल ये उठता है कि निरस्तगी के बाद जांच का औचित्य क्या रह गया है? इसी प्रकार सरकार के आदेश पर तत्कालीन नगर परिषद द्वारा वर्ष 2000 में आनासागर सरक्यूलर रोड योजना में समिति को आबंटित भूमि को 17 जून 2011 को निरस्त कर दिया, जबकि उसके जांच अधिकारी अब भी अपनी कार्यवाही जारी रखते हुए अजमेर आकर भय उत्पन्न कर रहे हैं।
प्रशासनिक जांचों की कड़ी में संभवतया यह पहला मौका है, जबकि जिस अधिकारी द्वारा प्रकरण की पूर्व में जांच की गई, उसके फॉलो अप के लिए भी उसी अधिकारी को भेजा जा रहा है। इसके प्रथम दृष्टया दो ही कारण समझ में आ रहे हैं। उसमें एक तो यह कि जिन विभागों को जांच निष्कर्षों की पालना करने हेतु निर्देशित किया गया है, उनसे क्रियान्वित करवाने में राज्य सरकार सक्षम नहीं है। और दूसरा ये कि चूंकि जांच अधिकारी एम.के. खन्ना उप मुख्य सचिव जी.एस संधू के खासमखास हैं, इसलिए उन्हें लाभ पहुंचाने का उदद्ेश्य हो। प्रसंगवश बता दें कि खन्ना द्वारा वर्ष 2011 में भी जब जांच पूर्ण कर ली गई, तब उनको जो देय राशि भेजनी थी, उसके भुगतान का चैक डाक द्वारा नहीं भेजा गया, बल्कि आर.टी.जी.एस के माध्यम से 5 मिनट में खन्ना के खाते में हस्तान्तरित कर दिया गया। जाहिर सी बात है कि आर.टी.जी.एस. के द्वारा राशि खन्ना को दिए जाने के निर्देश संधू द्वारा ही दिए गए थे। साफ झलकता है कि ऐसा खन्ना को उपकृत करने के लिए किया गया। दूसरा उदाहरण सामने है कि 17 जनवरी 2013 को भी फॉलो अप के लिए उन्हें ही भेजकर भत्तों आदि का लाभ पहुंचाया जा रहा है।
अब जरा देखिए सेवानिवृत्त आई.ए.एस. खन्ना द्वारा की गई जांच का नमूना। उन्होंने जांच का आधार नगरीय विकास विभाग के परिपत्र क्रमांक प. 3(15) ना. वि. वि. / ग्रुप-111/83 दिनांक 2.8.1983 को मानते हुए उक्त परिपत्र में उल्लेखित शर्त कि समिति अपने सदस्यों के लिए गृहों का निर्माण करवा कर आबंटित करेगी, जो कि समिति द्वारा नहीं किया गया, ऐसा उल्लेख कर आबंटन निरस्तगी की सिफारिश कर दी। एक आईएएस द्वारा की गई इस प्रकार की सिफारिश से उनकी योग्यता पर ही सवालिया निशान लग जाता है। साथ ही इस बात का इशारा भी मिलता है कि ऐसा राजनीतिक दबाव की वजह से किया गया। सिफारिश में जिस परिपत्र का उल्लेख किया गया, उसकी अवधि 31 दिसम्बर 1984 को ही समाप्त हो गई थी। उक्त परिपत्र में स्पष्ट उल्लेखित है कि उन्हीं बोनाफाइड गृह निर्माण सहकारी समितियों को ही आरक्षित मूल्य पर भूमि आबंटित की जाए, जो कि भवनों का निर्माण 31 दिसम्बर 1984 तक पूर्ण कर लेंगी, जबकि दीप दर्शन गृह निर्माण सहकारी समिति को भूमि का आबंटन ही वर्ष 2000 में नगर परिषद द्वारा किया गया है। इसके आबंटन पत्र की शर्तों में यह स्पष्ट अंकित है कि समिति अपने सदस्यों को भूखंडों का आबंटन अपने नियमानुसार करेगी। जब भूखंडों का आबंटन किया जाना है, तो बने बनाए मकानों का आबंटन समिति कहां से करेगी? साफ है कि जिस परिपत्र की अवधि ही 31 दिसम्बर 1984 को समाप्त हो गई, उसे आधार मानकर अवधि समाप्ति के बाद भी उसे ही लागू कर पक्षपात एवं द्वेषतापूर्ण कार्यवाही कर आबंटन निरस्त कर दिया गया। कोई निष्पक्ष व्यक्ति आसानी से समझ सकता है कि आबंटन के निरस्तीकरण की कार्यवाही ही अवैध है।
समिति की माधव नगर योजना की जिस 100 फीट चौड़ी सड़क को 40 फीट किए जाने का जहां तक प्रश्न है, तत्कालीन अधिशासी अभियन्ता स्वर्गीय जीत सिंह द्वारा नोटशीट पर नियमों का स्पष्ट उल्लेख करते हुए यह अंकित किया गया है कि यदि बाहरी सड़कें (माकड़वाली रोड एवं चौरसियावास रोड) यदि क्रमश: 60 फीट और 40 फीट हों तो आंतरिक सड़क नियमानुसार 30 फीट होनी चाहिए न कि 100 फीट, जबकि नगर परिषद द्वारा 40 फीट की सड़क छोड़ी गई है। नगर परिषद द्वारा भूमि के भू-उपविभाजन का मानचित्र समिति को देकर स्वयं नगर परिषद द्वारा आबंटित सदस्यों के भूखंडों के भवन मानचित्र स्वीकृत किए जाकर कई बार भूखंड हस्तान्तरण हेतु अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं। साथ ही सक्षम न्यायालय द्वारा यह आदेश देकर किसी भी प्रकार की कार्यवाही किए जाने पर स्टे दे रखा है कि प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि भूखंडों का भू-उपविभाजन मानचित्र नगर परिषद द्वारा ही समिति को जारी किया गया है। ऐसे में जांच अधिकारी अजमेर आ कर क्या कर रहे हैं? क्या वे किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत आबंटियों में भय उत्पन्न करना चाहते हैं? या फिर जांच के नाम पर अपने भत्ते पका रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर
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