रविवार, 6 जनवरी 2013

मीणा व सोनवाल की तरफदारी के मायने?


एक ओर दिल्ली में युवती के साथ गेंग रेप होने पर पूरे देश के साथ अजमेर की जनता में भी उबाल आया और पुलिस व सरकार के रवैये के विरुद्ध प्रदर्शन हुए, वहीं अजमेर में पूरे पुलिस महकमे का शर्मनाक कांड उजागर हुआ मगर कोई हलचल नहीं हुई। भाजपा व उसके नेताओं ने जहां औपचारिक विज्ञप्तियां जारी कीं, वहीं आम आदमी पार्टी की नेता कीर्ति पाठक के नेतृत्व में फौरी विरोध प्रदर्शन हुआ। कांग्रेस के पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल जरूर सत्तारूढ़ पार्टी के होते हुए भी संबंधित दोषी थानेदारों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की, जो कि पूरी भी हुई। मीडिया ने तो जितना गहरा पोस्टमार्टम किया, वह अल्टीमेट था। मगर अहम सवाल ये है कि आम जनता क्या इतनी सन्न रह गई कि किंकर्तव्यविमूढ़ सी नजर आ रही है?
यह तो है तस्वीर का एक पहलु। अब दूसरा पहलु देखिए। यह सब जानते हैं कि अपराधी केवल अपराधी होता है, उसकी कोई जाति नहीं होती, उसके बावजूद कैसी विडंबना है कि एसपी राजेश मीणा व अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक लोकेश सोनवाल के समर्थन में उनकी समाज के नेता सड़क पर आ गए। बेशक विपत्ति में समाज को साथ देना ही चाहिए और यदि पुख्ता सबूत हों इस बात के कि वाकई कार्यवाही दुर्भावना के कारण की गई है तो आवाज बुलंद करने में कोई हर्ज नहीं है। मगर बिना किसी ठोस आधार के आरोपित व्यक्ति का समर्थन करना बेहद चौंकाने वाला है। होना यह चाहिए कि मीणा व सोनवाल का साथ देने वाले यह खुलासा करें कि आखिर किस प्रकार उनके खिलाफ दुर्भावना से प्रेरित हो कर कार्यवाही को अंजाम दिया गया है।

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