शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

मुस्तफा के सवालों का ये जवाब नहीं बाकोलिया जी

अजमेर नगर निगम में कांग्रेस के मनोनीत पार्षद सैयद गुलाम मुस्ताफा चिश्ती ने अपनी ही पार्टी के मेयर कमल बाकोलिया के खिलाफ मोर्चा खोल कर कुछ अहम सवाल खड़े किए हैं। इस पर बाकोलिया ने प्रतिक्रिया में यह कह कर अपना पिंड छुड़वाने की कोशिश की है कि कांग्रेस के पार्षद को यदि कोई शिकायत है तो वह पार्टी के मंच पर आकर अपनी बात रख सकता है, जिलाध्यक्ष एवं प्रदेशाध्यक्ष को बता सकता है। इस तरह से विरोध करना सही नहीं है। कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया देते हुए नेता प्रतिपक्ष नरेश सत्यावना ने तो मुस्तफा को पार्टी से ही निकालने की मांग कर डाली है।
पार्टी अनुशासन की आड़ में बचने के लिए दोनों ने भले ही इस प्रकार की प्रतिक्रियाएं दी हों, मगर मुस्तफा ने जो सवाल उठाए हैं, वे जस के तस अब भी मुंह बाये खड़े हैं। बेशक बाकोलिया की पार्टी अनुशासन और पार्टी मंच की बात में दम है, मगर उन्होंने जिन सवालों के जवाब देने से बचना चाहा है, असल में वे आम आदमी के सवाल हैं, जिनका जवाब उन्हें सार्वजनिक मंच पर ही देना चाहिए। अहम सवाल तो ये उठ खड़ा हुआ है कि कांग्रेस के मनोनीत पार्षद को उनसे सार्वजनिक मंच पर सवाल करने की आखिर नौबत ही कैसे आई? जाहिर है कि जब निजी तौर पर उठाए गए सवालों को उन्होंने नजरअंदाज किया होगा, तभी कोई पार्षद पार्टी की मर्यादा को लांघ कर उनसे मुंहजोरी करने को मजबूर हुआ होगा। इसका इजहार खुद मुस्तफा ने भी दिया है कि बाकोलिया से जनहित में साधारण सभा आयोजित करने का आग्रह कई बार किया लेकिन उन्होंने उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया।
ज्ञातव्य है कि राजस्थान नगर पालिका अधिनियम के तहत बोर्ड की साधारण सभा की बैठक 60 दिन के भीतर होनी चाहिए, जिसे कि बाकोलिया पूरी तरह से नजरअंदाज कर रहे हैं। मुस्तफा ने साफ आरोप लगाया है कि निगम में तीन साल में तीन बार ही साधारण सभा का आयोजन किया, जबकि नियमानुसार 20 बार साधारण सभा का आयोजन होना था। इस सिलसिले में उनकी दलील है कि तत्कालीन भाजपा सरकार ने मेड़ता एवं माउंट आबू नगर पालिका अध्यक्ष को इसलिए निलंबित कर दिया था कि दोनों ने एक माह के भीतर नियमित साधारण सभा का आयोजन नहीं किया था। इसी दलील को आधार बना कर उन्होंने मेयर के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग कर डाली है।
मुस्तफा की इस मांग में दम इस कारण है कि समय पर साधारण सभा आयोजित नहीं होने पर जनहित में किए जाने वाले कार्य प्रभावित हो रहे हैं। इसका खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ रहा है। प्रमुख रूप से खांचा भूमि, अमानत राशि रिफंड, नक्शे पास कराना, दुकानों की लीज अवधि आदि महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय नहीं हुए हैं। इसके अतिरिक्त करोड़ों के सफाई ठेका व अन्य घोषणाओं के फैसले साधारण सभा में होने चाहिए थे। निगम में लोग काम के लिए चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन किसी के भी काम नहीं होने से उनमें निगम के प्रति नाराजगी देखी जा सकती है। मुस्तफा का ये भी आरोप है कि जब से मेयर बाकोलिया ने पदभार संभाला है, तब से जनता से जुड़े मुद्दों पर निर्णय नहीं हुए। महज बजट बैठकें ही आयोजित की गई हैं। निगम में जनता से चुने प्रतिनिधियों को महत्व नहीं दिया जा रहा है। इस वजह से कई पार्षदों में रोष है। निगम में वर्तमान व्यवस्था के खिलाफ समय आने पर कई पार्षद सामने आएंगे। मुस्तफा ने विपक्ष को भी लपेटने में गुरेज नहीं किया और उसको आइना दिखाते हुए कहा कि निगम में विपक्ष अपनी सक्रिय भूमिका नहीं निभा पा रहा है। इसका खामियाजा जनता को उठाना पड़ रहा है।
लब्बोलुआब मुस्तफा ने जिस तरह जनता के हित में सवाल उठाए हैं, वे पूरी तरह से जायज हैं, जिनके उत्तर देना बाकोलिया की जिम्मेदारी है। आज भले ही मुंह फेर लें, लेकिन कल जब पार्टी जनता की अदालत में जाएगी तो वह भी इसी तरह से मुंह फेर सकती है।
-तेजवानी गिरधर

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