मंगलवार, 5 मार्च 2013

डॉ. श्रीगोपाल बाहेती का दर्द वाजिब है


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कांग्रेस की संभागीय समीक्षा बैठक में पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने जब संगठन की हालत पर प्रकाश डाला तो उनका निजी दर्द भी उभर आया। उन्होंने कहा कि केवल 600 वोट से चुनाव हारे हैं, इसका मतलब यह तो नहीं है कि हम कांग्रेसी ही नहीं रहे हैं। उन्होंने कहा कि जो नए लोग पार्टी से जुड़े हैं, उनकी ताजपोशी की जा रही है, जबकि पुराने कांग्रेसियों को पूछा भी नहीं जा रहा। बूथ लेवल कमेटियों का गठन शहर कांग्रेस अपने स्तर पर कर रही है। हमारे क्षेत्रों में किसे बूथ अध्यक्ष बनाया गया? हमें जानकारी तक नहीं है। उन्होंने पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत द्वारा पार्टी कार्यकर्ता सुकरिया को थप्पड़ माने जाने की घटना का जिक्र करते हुए उस पर कायम मुकदमा वापस लेने की मांग भी की।
असल में डॉ. बाहेती का दर्द वाजिब है। वे उस जमाने से पार्टी को सींच रहे हैं, जब मौजूदा अनेक पदाधिकारी कार्यकर्ता मात्र हुआ करते थे। मौजूदा अनेक पदाधिकारी उन दिनों डॉ. बाहेती की जाफरी में रोजाना हाजिरी भरा करते थे। वहीं से उन्होंने राजनीति का कक्का सीखा और आज बाहेती को मुंह चिढ़ा रहे हैं। उनमें से एक शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ के पति हाजी इंसाफ अली भी हैं। तब बाहेती की जाफरी शहर का प्रमुख राजनीतिक केन्द्र बनी हुई थी और मीडिया को भी वहीं से फीडबैक मिला करता था। डॉ. बाहेती काफी समय तक स्वर्गीय माणक चंद सोगानी की कार्यकारिणी में महामंत्री रहे और अहम भूमिका अदा की। बाद में सोगानी जी का स्वास्थ्य अनुकूल न होने पर उन्हें कार्यवाहक अध्यक्ष भी बनाया गया। फिर नगर सुधार न्यास सदर व पुष्कर विधायक भी बने। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नजदीकी के कारण उन्हें अजमेर का मिनी चीफ मिनिस्टर कहा जाता था। बेशक राजनीति में उतार-चढ़ाव चलता रहता है, मगर आज जिस तरह से उन्हें हाशिये पर रखा हुआ है, उससे पीड़ा होना स्वाभाविक है।
उनकी इस बात में भी दम है कि वे भाजपा के वासुदेव देवनानी से मात्र छह सौ वोटों से ही तो हारे हैं। ज्ञातव्य है कि भाजपा के प्रो.वासुदेव देवनानी ने कांग्रेस डॉ.श्रीगोपाल बाहेती को 688 मतों से पराजित किया। देवनानी को 41 हजार 9 सौ 7 व बाहेती को 41 हजार 219 मत मिले। तब कांग्रेस विचारधारा के हनुमान प्रसाद कच्छावा ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बैनर पर चुनाव लड़ कर बाहेती को 1 हजार 489 मतों का नुकसान पहुंचाया। वरना डॉ. बाहेती तकरीबन साढ़े छह मतों से जीत जाते। इतना ही नहीं, मंत्री भी बनते।
खैर, हारने के बाद भी वे लगातार सक्रिय बने हुए हैं। उनकी अपनी फेन्स फॉलोइंग है। वे अब भी कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदारों में शुमार हैं। आज भी उनके यहां कार्यकर्ताओं का मजमा लगता है, मगर सांगठनिक तौर पर काबिज हुए लोगों ने उन्हें किनारे किया हुआ है। लब्बोलुआब, बाहेती की पीड़ा वाजिब है। अब देखना ये है कि प्रदेश संगठन आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उन्हें कितनी अहमियत देता है।
-तेजवानी गिरधर

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