मंगलवार, 16 सितंबर 2014

रामनारायण को मिला स्थानीयता व सहज सुलभता का फायदा

बेशक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की कड़ी मेहनत और लगातार मॉनिटरिंग की बदौलत कांग्रेस को नसीराबाद उप चुनाव में जीत हासिल हुई है, मगर यदि स्थानीय समीकरणों की बात करें तो कांग्रेस के रामनारायण गुर्जर को उनके स्थानीय होने व सहज सुलभ व स्वच्छ छवि का होने का लाभ मिला है। दूसरी ओर पूरे चुनाव में कहीं पर भी ये नहीं लगा कि भाजपा की श्रीमती सरिता गैना चुनाव लड़ रही हैं। उनकी बॉडी लैंग्वेज में भी वह शिद्दत नहीं थी। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के आदेश पर भाजपा की यह चुनाव लड़ रही थी। सरिता गैना के बारे एक आम राय यह नजर आई कि अगर वे जीत गईं तो उन्हें अजमेर कहां ढूंढऩे जाएंगे।
अपुन ने पहले ही लिख दिया था कि रामनारायण गुर्जर को स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के उत्तराधिकार के साथ सहज-सरल स्वभाव का लाभ मिलेगा। उन्हें बाबा के साथ लंबे समय तक राजनीतिक यात्रा करने का अनुभव है। उन्हें नसीराबाद का बच्चा-बच्चा जानता है। स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के छह बार के विधायक काल के दौरान उन्होंने न जाने कितने लोगों के निजी काम किए। जाहिर तौर पर उनका नसीराबाद के स्थानीय लोगों से सीधा अटैचमेंट रहा है। इसका फायदा उन्हें मिलना ही था।
जहां तक अन्य स्थानीय समीकरणों का सवाल है, निर्दलीय प्रत्याशी कालूराम चौधरी के नाम वापस लेने पर सरिता गैना ने राहत की सांस ली। हालांकि भारतीय आम जन पार्टी के विजय सिंह रावत मैदान में डटे रहे, और उनके कुछ नुकसान पहुंचाने की आशंका थी, मगर  वे मात्र 792 मत ही हासिल कर पाए। जागो पार्टी के प्रत्याशी इदरीस मोहम्मद पठान के दुर्घटना में निधन होने के बाद कांग्रेस ने राहत महसूस की, मगर फिर भी उन्हें 1469 मत मिल गए। प्रमुख जातीय समीकरण की बात करें तो गुर्जर को अपनी जाति के अतिरिक्त मुस्लिम व अनूसूचित जाति का भरोसा था तो भाजपा प्रत्याशी सरिता गेना को जाटों के अतिरिक्त परंपरागत रूप से भाजपा के साथ रहे रावतों पर आसरा था। बताया यही जा रहा है कि गुर्जरों ने जितना लामबंद हो कर वोट डाला, उतना जोश जाटों व रावतों में नहीं देखा गया।
इस चुनाव में सचिन की मेहनत तो रंग लाई ही, कांग्रेसियों का उत्साह भी काम कर गया। वे उत्साहित इस वजह से थे कि लोकसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस का मतांतर आश्चर्यजनक रूप से कम हो गया था। हालांकि पूरे संसदीय क्षेत्र में जाट को 1 लाख 71 हजार 983 की लीड मिली, लेकिन नसीराबाद में लीड घट कर 10 हजार 999 मतों पर सिमट गई। प्रचंड मोदी लहर के बाद भी लीड कम होने को मुकाबला करने का आधार माना गया।  वे उत्साहित इस वजह से भी थे कि केन्द्र व राज्य की भाजपा सरकार का चंद माह का परफोरमेंस कुछ खास नहीं रहा, विशेष रूप से महंगाई पर काबू न कर पाने की वजह से आम आदमी की अच्छे दिन आने की उम्मीद पर पानी फिरा। इसके अतिरिक्त गुर्जरों में बाबा की इस सीट को फिर हथियाने का जोश रहा। इसी वजह से अपुन ने लिखा था कि उपचुनाव में लहर की तीव्रता बरकरार न रही तो कांग्रेस व भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला होगा। वही हुआ। हार और जीत का अंतर मात्र 386 रह गया।
कुल मिला कर बाबा की परंपरागत सीट पर उनके ही उत्तराधिकारी ने फिर से कब्जा कर लिया है।
एक नजर जरा, इतिहास पर भी डाल लें
अजमेर जिले की नसीराबाद विधानसभा सीट पर पूर्व में गुर्जर व रावतों का वर्चस्व रहा है। स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर 1980 से 2003 तक लगातार छह बार जीते। बाबा के सामने लगातार तीन बार रावत समाज के मदन सिंह रावत खड़े किए गए, मगर जीत उनकी किस्मत में थी ही नहीं, हालांकि मुकाबला हर बार कड़ा ही होता था। परिसीमन के तहत पुष्कर व भिनाय विधानसभा क्षेत्र के कुछ हिस्सों को शामिल किए जाने के कारण यहां का जातीय समीकरण बदल गया। तकरीबन 25 हजार जाट मतदाताओं के मद्देनजर 2008 में पूर्व जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट को उतारा गया, मगर वे बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के राजनीतिक उत्तराधिकारी श्रीनगर पंचायत समिति के पूर्व प्रधान महेन्द्र सिंह गुर्जर से महज 71 वोटों से हार गए। इसके बाद दिसम्बर 13 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रो. जाट पर फिर दाव खेला, जो कि कामयाब हो गया। उन्होंने पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर को  28 हजार 900 मतों से पराजित किया। सांवर लाल को 84 हजार 953 मत मिले, जबकि महेन्द्र सिंह गुर्जर को 56 हजार 53 मत। हालांकि उसमें कांग्रेस विरोधी लहर की ही अहम भूमिका थी।
-तेजवानी गिरधर

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