शनिवार, 13 अगस्त 2016

सबसे बेहतर साबित हो सकता है महाराणा प्रताप स्मारक

पुष्कर घाटी में नौसर माता मंदिर के पास लोकार्पण को तैयार महाराणा प्रताप स्मारक अजमेर में अब तक स्थापित सभी स्मारकों से बेहतर साबित हो सकता है। इसकी एक मात्र वजह है इसकी लोकेशन। इसके सामने  दिन-रात तीर्थराज पुष्कर व अजमेर के बीच की आवाजाही रहती है। इस रूट का जुड़ाव मेड़ता व नागौर और उनसे जुड़े जोधपुर व बीकानेर मार्गों से भी है। स्मारक पर खड़े हो कर अजमेर शहर और आनासागर का सुंदर नजारा दिखाई देता है। इसकी एप्रोच भी अन्य स्मारकों की तुलना में बेहतर है। यदि अजमेर विकास प्राधिकरण ने ठीक से इसका विकास किया और बेहतर सुविधाएं जुटाईं तो यह स्मारक सबसे ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है। इसका शिलान्यास तत्कालीन न्यास सदर धर्मेश जैन के कार्यकाल में हुआ था। बीच में पांच साल कांग्रेस सरकार के दौरान किसी ने इसकी खैर खबर नहीं ली। अब भाजपा राज में इसका निर्माण पूरा किया गया है और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इसका लोकार्पण करने वाली हैं। इस बीच इस स्मारक को जिंदा रखने के लिए जैन साल में एक बार यहां आयोजन करते रहे। बन जाने के बाद इसे लोकप्रिय करने के लिए शायद जैन ही प्रयास करें। हालांकि महाराणा प्रताप भी एक बड़ी शख्सियत रहे, मगर यह इसकी लोकेशन की वजह से ज्यादा सजीव रहेगा, जिसकी सोच का श्रेय जैन को जाता है।
अन्य स्मारकों की चर्चा करें तो उनमें सबसे महत्वपूर्ण है तारागढ़ मार्ग के बीच स्थापित अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान स्मारक। ऐतिहासिक दृष्टि से यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। अजमेर के इतिहास से इसका सीधा संबंध है। इसी वजह से आने वाले समय में भी इसका महत्व बना रहेगा। यह विकसित भी ठीक से किया गया है। इसका श्रेय सीधे तौर पर अजमेर नगर सुधार न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष औंकार सिंह लखातव को जाता है, जिनकी कल्पना, कड़ी मेहनत और लगन से यह निर्मित हुआ। उनके ही प्रयासों से हर साल यहां बड़े-बड़े आयोजन होते हैं। यह लखावत के न्यास अध्यक्ष के कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि है। मगर अफसोस कि इस पर पर्यटक का पैर नहीं पड़ता। अधिकतर पर्यटक तारागढ़ स्थित मीरा साहब की दरगाह की जियारत करने को आने वाले होते हैं, जिनकी इसमें कोई खास रुचि नहीं होती। अजमेर के शहर वासी तो यदा कदा ही वहां जाते हैं।
लखावत की ही एक और सौगात है हरिभाऊ उपाध्याय नगर विस्तार स्थित दाहरसेन स्मारक। अजमेर में बड़ी तादात में बसे सिंधी समुदाय के सम्मान के लिए काफी बड़े क्षेत्र में यह बनाया गया, मगर सच्चाई ये है कि अस्सी प्रतिशत सिंधियों ने इसे देखने की जहमत नहीं उठाई है। और उसकी एक मात्र वजह ये रही कि अधिसंख्य सिंधियों को पता ही नहीं कि महाराजा दाहरसेन कौन थे? चंद साहित्यकारों को जरूर पता था कि वे सिंधुपति महाराजा थे। उनके नाम पर स्मारक बनाना लखावत की एक बड़ी सोच का परिणाम है। वहां लगातार हर साल जयंती व पुण्यतिथी पर दो बार बड़े आयोजन करवा कर उन्होंने इसे सुपरिचित तो कर दिया है, मगर आज भी इसका भ्रमण करने वाले नगण्य हैं। इर्द गिर्द बसे कुछ निवासी जरूर मॉर्निंग और ईवनिंग वॉक के लिए आते हैं। और कुछ महिलाएं स्मारक परिसर में स्थित मंदिर में पूजा अर्चना करने आती हैं। कुल मिला कर जितनी मेहनत करके लखावत ने इसको बनवाया, उसका एक प्रतिशत भी अजमेर वासी इसका लाभ नहीं उठाते। इसे अजमेर वासियों की फितरत समझ लीजिए।
एक स्मारक है पंचशील इलाके में। नाम है वीरांगना झलकारी बाई स्मारक। वहां से लोहागल, जनाना अस्पताल और जयपुर का रास्ता खुलता है। यहां भी पर्यटक नहीं आता। साल में एक बार जरूर कोली समाज के लोग यहां एकत्रित होते हैं। न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष धर्मेश जैन ने अजमेर दक्षिण में बड़ी तादात में रहने वाले कोली समुदाय के सम्मान की खातिर किया, मगर इतनी दूर है कि वे यहां पहुंच ही नहीं पाते। जैन के ही कार्यकाल में कोटड़ा स्थित पत्रकार कॉलोनी में विवेकानंद स्मारक का निर्माण शुरू हुआ। यह भी काफी सुरम्य होगा, मगर पर्यटकों को कितना आकर्षित करेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। जब डॉ. श्रीगोपाल बाहेती न्यास सदर थे, तब उन्होंने राजवी उद्यान व अशोक उद्यान बनवाये, मगर वे भी दूर होने के कारण आबाद नहीं हो पाए।
कुल मिला कर सभी स्मारकों में दर्शकों के सर्वाधिक दीदार महाराणा प्रताप स्मारक को हो सकते हैं, मगर उसके लिए जैन को ही अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। वरना अजमेर के लोग कितने टायर्ड और रिटायर्ड हैं, सबको पता है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000

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