मंगलवार, 7 मार्च 2017

क्या केवल हिलाल कमेटी से इस्तीफा देना की काफी होगा?

महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सालाना उर्स के सिलसिले में चांद दिखाई देने के ऐलान में बदलाव को लेकर पिछले दिनों हुए विवाद के साथ कुछ और धार्मिक व रस्मी पेचीदगियां भी पैदा हो गई हैं। इन पर दरगाह कमेटी ने अभी तक गौर नहीं किया है, मगर दरगाह से जुड़े लोग व आम मुसलमानों में उसकी खासी चर्चा है।
दरअसल हिलाल कमेटी में तीन प्रमुख सदस्य सीधे दरगाह से ही जुड़े हुए हैं, जिनमें शहर काजी व शाहजहांनी मस्जिद के इमाम मौलाना तौसीफ सिद्दीकी, अकबरी मस्जिद के इमाम हाफिज अब्दुल गफूर व सदर ए मुसरिस, दारुल उलूम मोइनिया इस्लामिया मौलाना बशीरुल कादरी शामिल हैं। बाकी के तीन बाहर के हैं, जिनमें हाफिज रमजान और मौलाना जाकिर हुसैन अशरफ, हाफिज फैयाज हुसैन मुस्लिम धर्म व रीति-रिवाज के जानकार होने के नाते हिलाल कमेटी में हैं। गौरतलब है कि इन सदस्यों ने उनके साथ बदसलूकी होने के कारण हिलाल कमेटी से इस्तीफा देने की पेशकश कर रखी है। बाहर के सदस्य अगर हिलाल कमेटी से इस्तीफा देते हैं तो दरगाह कमेटी उनकी जगह पर अन्य की नियुक्ति कर देगी, मगर अजमेर के तीन सदस्यों का केवल हिलाल कमेटी से इस्तीफा देना काफी नहीं होगा। चूंकि वे दरगाह स्थित तीन प्रमुख स्थानों के मुखिया हैं, इसी के नाते हिलाल कमेटी के सदस्य हैं। यानि कि उन्हें उन पदों से भी इस्तीफा देना होगा, तभी उनके स्थान पर नए पदासीन किए जा सकेंगे, जो कि नई हिलाल कमेटी के सदस्य होंगे। हालांकि दरगाह कमेटी हिलाल कमेटी के सदस्यों के साथ बदसलूकी को लेकर गंभीर है और सख्त कार्यवाही का आश्वासन दे रही है, ऐसे में संभव है सभी सदस्य इस्तीफे की पेशकश वापस ले लें।
एक और मसला भी चर्चा में है। वो यह कि शरियत के मुताबिक पेश इमाम के साथ बदसलूकी करने वालों की नमाज जायज नहीं होती है। अगर वे नमाज में शिरकत करते हैं तो उनके पीछे खड़े नमाजी की नमाज भी फासिद हो जाएगी। जाहिर तौर पर बदसलूकी करने वाले भी नमाज तो अदा करते ही होंगे। दरगाह कमेटी को इस पर भी गौर करना होगा कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए?
जहां तक मूल विवाद का सवाल है, इसको लेकर भी वर्ग बन गए हैं। एक ओर खादिम हैं तो दूसरी ओर आम मुसलमाल। दरगाह कमेटी व जिला प्रशासन को यह देखना होगा कि विवाद का निपटारा जल्द से जल्द हो जाए, ताकि दो वर्गों के बीच कटुता की नौबत न आए।
गौरतलब है कि हिलाल कमेटी ने 27 फरवरी को हुई बैठक के बाद चांद नहीं दिखाई देने का ऐलान किया। इस हिसाब से 1 मार्च से ही जमादिउस्सानी महीने की एक तारीख मानी जाती। चूंकि इस तारीख की बड़ी अहमियत है, इस कारण इसकी खबर तुरंत देशभर में फैल गई। मगर बताया जाता है कि 28 फरवरी को हिलाल कमेटी के पास अहमदाबाद से खबर आई कि चांद 27 को ही दिखाई दे चुका है और चांद की पहली तारीख 28 को ही हो गई है। इसी को आधार बना कर हिलाल कमेटी के सदर ने ऐलान कराया कि चांद रात 27 की ही हो गई और 28 को चांद की एक तारीख है। यानि कि ख्वाजा साहब की छठी 5 मार्च को और उर्स का झंडा 24 मार्च को चढ़ेगा। जाहिर तौर पर यह ऐलान होते ही खलबली मच गई। दरगाह से जुड़े कुछ लोगों ने शहर काजी और कमेटी सदस्यों के साथ कथित तौर पर बदसलूकी की।
-तेजवानी गिरधर
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