शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

फिर उजागर हुई शहर भाजपा की गुटबाजी

एक कहावत है- देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर। महिला व बाल विकास राज्यमंत्री श्रीमती अनिता भदेल व शहर जिला भाजपा अध्यक्ष अरविंद यादव के बीच शुक्रवार को हुई हल्की नोंक-झोंक पर यह सटीक बैठती है। कहने भर को यह मामूली नोक-झोंक थली, मगर इसके अर्थ बेहद गंभीर हैं।
हुआ यूं कि अंबेडकर सर्किल पर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को श्रद्धासुमन अर्पित करने को जब भाजपाई एकत्रित हुए तो श्रीमती भदेल ने यादव से आग्रह किया कि वे इस मौके पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दि के उपलक्ष में आयोजित क्रिकेट प्रतियोगिता की भी सूचना दें, मगर यादव ने साफ इंकार कर दिया। उनकी शिकायत थी कि आपने इस प्रतियोगिता  से संगठन को नहीं जोड़ा। निमंत्रण पत्र पर शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी, मेयर धर्मेन्द्र गहलोत व स्वयं उनका नाम नहीं दिया, जबकि अजमेर विकास प्राधिकरण अध्यक्ष शिवशंकर हेडा व अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी को तवज्जो दी। इसके अतिरिक्त प्रतियोगिता में शहर के सभी साठ वार्डों को जोडऩे का आग्रह किया, मगर आपने केवल अजमेर दक्षिण के 32 वार्ड ही जोड़े। चूंकि यादव की शिकायत जायज थी, इस कारण श्रीमती भदेल कुछ कहने की स्थिति में नहीं थीं।
यह घटना कहने भर को छोटी है, मगर शहर भाजपा में कितनी खतरनाक गुटबाजी है, इसका साफ इशारा करती है। सत्ता व संगठन में तालमेल का कितना अभाव है, इसका स्पष्ट संकेत देती है। यदि श्रीमती भदेल को शहर भाजपा को विश्वास में लिए बिना प्रतियोगिता करवानी पड़ रही है, तो इसका मतलब साफ है कि उनकी संगठन से नाइत्तफाकी है। यहां यह बताना प्रासंगिक है कि यादव को शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी का पक्षधर माना जाता है, जिनका कि श्रीमती भदेल से छत्तीस का आंकड़ा सर्वविदित है। जब संगठन श्रीमती भदेल को भाव नहीं देता तो वे भला क्यों कर तवज्जो देने लगीं। उन्हें आगामी चुनाव की तैयारी करनी है, लिहाजा यह बड़ा आयोजन कर क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर रही हैं। और जब सारा जमावड़ा खुद ही कर रही हैं तो देवनानी लॉबी को क्यों जोडऩे लगीं।
असल में देवनानी व भदेल के बीच ऐसे रिश्ते हैं ही नहीं कि अपने-अपने इलाके में हो रहे कार्यक्रमों में सामान्य शिष्टाचार के नाते एक-दूसरे को बुलाएं। पार्टी मंच पर भले ही एक मंच पर दिखाई देते हैं, मगर मुंह फेर कर। इस प्रकरण में गौरतलब है कि चौंकाने वाली बात ये है कि न तो पार्टी स्तर पर दोनों के बीच सुलह की कोशिश हुई है और न ही संघ की ओर से कोई समझाइश, जबकि दोनों संघ पृष्ठभूमि से हैं।
लब्बोलुआब, इतना जरूर तय है कि दोनों संगठन पर पूरी तरह से हावी रहे हैं। यादव तो फिर भी अभी अपेक्षाकृत छोटे कद के नेता हैं, मगर उन्होंने तो प्रो. रासासिंह रावत व शिवशंकर हेडा तक को नहीं गांठा। स्थानीय निकाय चुनाव में दोनों अपनी-अपनी पसंद के ही प्रत्याशी तय करते हैं, संगठन तो सिर्फ अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए प्रचार कार्य करता है। पार्टी में इतनी गुटबाजी के बावजूद दोनों लगातार तीन बार चुनाव जीते हैं तो यह वाकई अचंभे वाली बात है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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