मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

प्रूफ रीडर एडीटर का बाप होता है!


हाल ही मैंने एक ब्लॉग में सुरेन्द्र सिंह शेखावत की जगह गलती से सुरेन्द्र सिंह रलावता लिख दिया। ऐसा कभी-कभी हो जाता है। इसे स्लिप ऑफ पेन कहा जाता है। जैसे ही ब्लॉग प्रकाशित हुआ, दैनिक न्याय सबके लिए के ऑनर श्री ऋषिराज शर्मा और श्री राजीव शर्मा बगरू ने तत्काल मेरा ध्यान आकर्षित किया। मैने भी यथासंभव जल्द से जल्द त्रुटि संशोधन करने की कोशिश की। श्री ऋषिराज शर्मा ने एक टिप्पणी भी की। वो यह कि प्रूफ रीडर इज चीफ एडीटर। उन्होंने सभ्य तरीके से कमेंट किया, हालांकि अखबार वाले आम बोलचाल की भाषा में कहा करते रहे हैं कि प्रॅूफ रीडर एडीटर का बाप होता है। वाकई ये बात सही है। कारण ये कि एडीटोरियल सैक्शन की फाइनल अथॉरिटी एडीटर के हाथ से निकले मैटर में भी अंतिम करैक्शन प्रूफ रीड करता है। उसके बाद ही अखबार छपने को जाता है। इस लिहाज से वह एडीटर से भी ऊपर कहलाएगा।

इस प्रसंग के साथ ही मुझे यकायक दैनिक न्याय को वो जमाना याद आ गया, जब भूतपूर्व प्रधान संपादक स्वर्गीय श्री विश्वदेव शर्मा सुबह उठते ही पूरा अखबार पढ़ते थे और कॉमा व बिंदी तक की गलती पर गोला कर देते थे। जिस भी प्रूफ रीडर की गलती होती थी, उसके हर गलती के पच्चीस पैसे काट लिया करते थे। न्याय में दूसरे के बाद अगल लगता कि गतलियां अधिक हैं तो तीसरा प्रूफ लेने की भी परंपरा थी। कहने का तात्पर्य है कि न्याय में शुद्ध हिंदी पर बहुत अधिक जोर दिया जाता था। वहां दो प्रूफ रीडर्स के ऊपर उनके सुपुत्र श्री सनत शर्मा हैड प्रूफ रीडर हुआ करते थे। क्या मजाल कि कोई गलती रह जाए। मेरी त्रुटि को पकडऩे वाले श्री ऋषिराज शर्मा का भी हिंदी व अंग्रेजी पर मजबूत कमांड है। उल्लेखित सभी प्रूफ रीडर्स न केवल वर्तनी की अशुद्धि दूर करने में माहिर हैं, अपितु शब्द विन्यास भी बेहतर करने में सक्षम हैं।

बात प्रूफ रीडिंग की चली है तो आपको बताता चलूं कि दैनिक भास्कर में  जब ऑन लाइन वर्किंग शुरू हुई तो सभी रिपोर्टर्स व सब एडीटर्स ने कंप्यूटर पर खुद ही कंपोज करना शुरू किया। तब प्रूफ रीडर्स हटा दिए गए थे। प्रूफ रीडर्स की व्यवस्था इसलिए हुआ करती थी कि रिपोर्टर्स की खबर को एडिट करने के बाद कंपोजिंग में टाइप मिस्टेक की बहुत संभावना रहती थी। जब ऑन लाइन एडिटिंग शुरू हो गई तो यह मान कर चला जाता है कि उसमें एडिटर ने कोई गलती नहीं छोड़ी होगी। सभी रिपोर्टर्स व सब एडिटर की कॉपी एडिट करने के दौरान मुझे अतिरिक्त सावधानी बरतनी होती थी, क्योंकि उसके बाद तो अखबार सीधे प्रिंटिग मशीन पर चला जाता था। इतनी सधी हुई एडिटिंग के अभ्यास के बाद भी मुझ से त्रुटि हो गई और मैंने शेखावत की जगह रलावता लिख दिया तो मैने अपने आप को लानत दी। क्षमा प्रार्थी हूं। कोई कितना भी पारंगत क्यों न हो त्रुटि तो हो ही जाती है, जिसे ह्यूमन एरर कहा करते हैं।

खैर, लगे हाथ बताता चलूं कि अजमेर में प्रूफ रीडि़ंग के सिरमौर हुआ करते थे श्री आर. डी. प्रेम। उन्होंने लंबे समय तक दैनिक नवज्योति में काम किया। उनकी हिंदी, अंग्रेजी व उर्दू पर बहुत अच्छी पकड़ थी। उन्होंने राजस्थानी में कुछ गीत भी लिखे, जिनका राजस्थानी फिल्मों में उपयोग हुआ। दैनिक नवज्योति में श्री सुरेश महावर व श्री गोविंद जी ने भी बेहतरीन प्रूफ रीडिंग की। श्री विष्णु रावत की भी अच्छी पकड़ रही है। श्री वर्मा ने तो अनेक उपन्यास भी लिखे। लंबे समय से पत्रकारिता कर रहे श्री राजेन्द्र गुप्ता, जो कि वर्तमान में राजस्थान पत्रिका के हुबली संस्करण में काम कर रहे हैं, उनकी शुरुआत प्रूफ रीडिंग से ही हुई है। वे भी प्रूफ रीडिंग के मास्टर हैं। युवा प्रूफ रीडर्स की बात करें तो श्री नरेन्द्र माथुर भी प्रूफ रीडिंग के कीड़े हैं। ऐसा हो ही नहीं सकता कि उनके हाथ से निकली हुई कॉपी में कोई त्रुटि रह जाए। वे थोड़े खुरापाती स्वभाव के हैं। दैनिक भास्कर का अजमेर संस्करण शुरू हुआ तो वे पूरे अखबार में त्रुटियों को अंडर लाइन करके उसे मुख्यालय भोपाल भेज दिया करते थे। जांच के लिए वे अखबार अजमेर आते तो प्रूफ रीडर्स को बहुत डांट पड़ा करती थी। कदाचित वे यह जताना चाहते थे भास्कर जैसे बड़े अखबार के प्रूफ रीडर्स से भी बेहतर प्रूफ रीडर्स अजमेर में बसा करते हैं। उन्होंने वैदिक यंत्रालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में भी प्रूफ रीडिंग की है, जहां कि पुस्तकों में संस्कृतनिष्ट शब्दों का इस्तेमाल अधिक होता है। कुछ नाम मुझसे छूट रहे हैं, मेहरबानी करके वे अन्यथा न लें।

चूंकि सारा समय अखबार जगत में ही बिताया है, इस कारण केवल इसी फील्ड के प्रूफ रीडर्स के बारे जानकारी है। पुस्तकों के प्रकाशकों के यहां काम करने वालों के बारे में जानकारी नहीं है। इतिश्री।


-तेजवानी गिरधर

7742067000

tejwanig@gmail.com

5 टिप्‍पणियां:

  1. जनसत्ता, जागरण, हिन्दुस्तान और दो चार हिंदी दैनिक समाचार पत्रों को छोड़ दें तो शायद ही कोई बड़ा समाचार पत्र होगा जो बहुत हिंदी हिंदी लिखता होगा। अधिकांश में हिंगलिश का प्रचलन जोरों पर है, वे इसे समय की मांग कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं
    बहुत अच्छी जानकारी

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  2. यह सही है कि स्वर्गीय आर . डी . प्रेम बहुत अच्छे प्रूफ रीडर थे । एक बार मेरे से भी अटक गए । उन्होंने " अंतर्राष्ट्रीय " को सही ठहराया । मैंने उनको " अंतरराष्ट्रीय " लिखने को कहा । पर वे मानने को तैयार नहीं हुए । मैंने उन्हें अंतर्राज्यीय और अंतरराज्यीय का अंतर और अर्थ बता कर समझाने की कोशिश की । पर वे मानने को तैयार नहीं हुए । आखिर में मैंने अपने अधिकार का प्रयोग करके यह आदेश निकाल दिया कि भविष्य में दैनिक नवज्योति में International शब्द की हिंदी " अंतरराष्ट्रीय " ही जाएगी । इसके बाद ही इस शब्द का उपयोग होने लगा ।
    राजेन्द्र गुंजल

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  3. कल मैं भी एक शब्द को लेकर उलझन में पड़ गया था। लतपथ, लथपत, लथपथ इन तीनों में से कौनसा सही है ये कंफर्म करने के लिए भाषा के जानकार किशनाराम माहिया की मदद लेनी पड़ी।
    Vijay maurya

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  4. प्रूफ्रीडर हटने के बाद आज कल अखबार में गलतियां बहुत आती है
    वैसे मेरी प्रूफ रीडिंग भी बहुत अच्छी है🤣
    ऐतेजाद अहमद

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  5. sahi hai ...hamare yaha bhi court pleading drafting ko 10 10 baar padha jata hai ...fir bhi galtiya reh hi jati hai
    guljeet singh chabra

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