रविवार, 14 नवंबर 2021

देवनानी की लगातार जीत कोई पहेली नहीं

 


हाल ही जयपुर में अजमेर उत्तर के विधायक व पूर्व षिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी ने पत्रकारों के साथ आयोजित दीपावली मिलन समारोह में संकेत दिया कि पार्टी चाहेगी तो वे पांचवीं बार भी उनकी जीत की पहेली को हल नहीं करने देंगे। जयपुर के एक पत्रकार की ओर से इस समारोह के कवरेज में इसका जिक्र किया है। उसका षीर्शक इस प्रकार हैः- 

वासुदेव देवनानी एक शिक्षक राजनेता....सीएम गहलोत भी जिनसे जीत का राज पूछते हैं। आगे लिखा है कि देवनानी अजमेर से लगातार चौथी बार विधायक हैं और राज्य के शिक्षा मंत्री भी रहे हैं। वे राजनीति में आने से पहले उदयपुर में कॉलेज शिक्षक थे। एक बार मुंबई जाने वाली एक उड़ान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वे साथ ही थे तो सीएम गहलोत जैसे मंझे हुये राजनेता ने भी उनसे पूछा कि आपकी लगातार जीत का राज तो बताओ। भले ही यह बात गहलोत ने हास्य विनोद में कही हो लेकिन देवनानी वाकई अपने विरोधियों के लिए अबूझ पहेली बने हुए हैं। 

आगे लिखा है कि देवनानी जितने सरल दिखते हैं उतने ही गंभीर राजनेता हैं। वे हर दिन राजनीति करते हैं। उनके विरोधियों को यही बात सीख लेनी चाहिए कि राजनीति पार्ट टाइम काम नहीं है...लगातार विधायक होने पर भी विवादों से दूर रहना और अपने मतदाताओं से निरंतर संपर्क में रहना उनकी दूसरी खूबी है। अपनी संघ निष्ठ विचारधारा के प्रति पूर्णतः समर्पित हैं और बिना लाग लपेट उसका पालन करते हैं...जब शिक्षा मंत्री बने तो विरोधी रोते रहे वे पाठ्यक्रमों को सुधार कर उसमें महाराणा प्रताप को महान करके ही माने....

वे राजस्थान के एकमात्र सिंधी विधायक हैं और 70-71 की आयु में भी शाकाहारी जीवन शैली से पूरी तरह से स्वस्थ हैं। उन्होंने कहा है कि अगली पार्टी सिंधी दाल पकवान की ही देंगे। उनके पुत्र महेश भी उनसे राजनीति सीख रहे हैं और उम्मीद है वे अपने पिता का नाम रोशन करेंगे।

जहां तक देवनानी को विरोधियों के लिए अबूझ पहेली करार दिया गया है, असल में वैसा कुछ है नहीं। स्थानीय राजनीति को ठीक से समझने वाले जानते हैं कि वे लगातार चौथी बार भी कैसे जीत गए। उसमें चमत्कार जैसी कोई बात नहीं है। यह ठीक है कि वे पूर्वकालिक राजनीतिज्ञ हैं, मतदाताओं के निरंतर संपर्क में रहते हैं, जिसकी जीत में अहम भूमिका होती है। लेकिन गहराई में जाएंगे तो समझ में आ जाएगा कि जिसे अबूझ पहेली बताया जा रहा है, वह बुझी बुझाई है। बाकायदा दो और दो चार है। उनके लिए यह अबूझ पहेली हो सकती है, जिन्हें धरातल की जानकारी ही नहीं है। 

उनकी जीत का एक महत्वपूर्ण पहलु ये है कि अजमेर उत्तर की सीट भाजपा के लिए वोट बैंक के लिहाज से अनुकूल है। इसका सबसे बडा प्रमाण ये है कि जब वे पहली बार उदयपुर से आ कर यहां चुनाव लडे तब उन्हें कोई नहीं जानता था। बिलकुल नया चेहरा। स्थानीयवाद के नाम पर बाकायदा उनका विरोध भी हुआ, लेकिन संघ ने विरोध करने वालों को मैनेज कर लिया। यानि कि केवल संघ और भाजपा मानसिकता वाले वोटों ने उन्हें विधायक बनवा दिया। ऐसा जीत का राज जानने की वजह से घटित नहीं हुआ। संघ का यह प्रयोग विफल भी हो सकता था। अगर पूर्व कांग्रेस विधायक स्वर्गीय नानकराम जगतराय कांग्रेस के बागी बन कर निर्दलीय मैदान में न उतरते। उन्होंने तकरीबन छह हजार से ज्यादा वोट हासिल किए, जबकि कांग्रेस के अधिकत प्रत्याषी नरेन षहाणी भगत करीब ढाई हजार वोटों से ही हारे थे। 

दूसरी बार हुआ ये कि कांग्रेस ने नया प्रयोग करते हुए गैर सिंधी के रूप में डॉ श्रीगोपाल बाहेती को चुनाव मैदान में उतारा। वे सषक्त प्रत्याषी थे, मगर सिंधीवाद के नाम पर अधिसंख्य सिंधी मतदाता एकजुट हो गए और देवनानी के पक्ष में चले गए। हालांकि यह सही है कि अधिकतर सिंधी मतदाता भाजपा मानसिकता के ही माने जाते हैं, लेकिन सिंधीवाद के चलते कांग्रेस विचारधारा के सिंधी भी देवनानी को वोट डाल आए। इतना ही नहीं, अजमेर दक्षिण के अधिसंख्य सिंधी मतदाता भी भाजपा के साथ चले गए और श्रीमती अनिता भदेल जीत गईं। गौरतलब बात ये है कि देवनानी मामूली वोटों के अंतर से ही जीत पाए थे।

तीसरी बार कांग्रेस ने फिर डॉ बाहेती में भरोसा जताया चूंकि उनके व देवनानी के बीच जीत का अंतर ज्यादा नहीं था। तीसरी बार फिर सिंधीवाद ने अपना रोल अदा किया और देवनानी जीत गए। उधर अजमेर दक्षिण की सीट भी कांग्रेस के हाथ नहीं आ पाई। चौथी बार वही रिपिटीषन। फिर गैर सिंधी के रूप में महेन्द्र सिंह रलावता को कांग्रेस का टिकट मिला। नतीजतन कांग्रेस के प्रमुख सिंधी दावेदार की पूरी टीम सचिन पायलट का विरोध करते हुए सिंधीवाद के नाम पर देवनानी के साथ हो ली। हालांकि रलावता का परफोरमेंस अच्छा था, लेकिन सिंधी अंडरकरंट देवनानी के काम आ गया। चूंकि रलावता का यह पहला चुनाव था, जबकि देवनानी के पास तीन चुनावों का अनुभव था और टीम भी सधी सधाई थी, इस कारण रणनीतिक रूप वे बेहतर साबित हुए।

यह आम धारणा है कि अगर कांग्रेस किसी सिंधी को टिकट देती तो देवनानी के लिए जीतना कठिन हो सकता था, क्योंकि उनके खिलाफ एंटी इंकंबेंसी काम कर रही थी। निश्कर्श ये है भले ही देवनानी के लगातार चौथी बार जीतने को उनकी लोकप्रियता के रूप में गिना जाए और उनकी जीत को कोई अबूझ पहेली करार दी जाए, मगर उनकी जीत की असल वजह जातीय समीकरण भाजपा के अनुकूल होने के अतिरिक्त सिंधी मतदाताओं का लामबंद होना ही है। 

जरा गौर कीजिए। उन्होंने अपनी जीत का राज खुद ही खोलते हुए कह दिया कि अगली पार्टी सिंधी दाल पकवान की ही देंगे।

अब बात करते हैं आगामी चुनाव की। जो व्यक्ति लगातार चार बार जीता हो उसे पांचवीं बार टिकट से वंचित करने का कोई कारण नजर नहीं आता। हालांकि संघ का एक खेमा देवनानी के तनिक विरोध में है, लेकिन वह उनका टिकट कटवा पाएगा, इसमें संदेह है। यदि कोई स्थिति विषेष बनी तो अपने बेटे महेष को आगे ला सकते हैं। इसका संकेत मीडिया कवरेज में दिया ही गया है कि उनके पुत्र महेश भी उनसे राजनीति सीख रहे हैं और उम्मीद है वे अपने पिता का नाम रोशन करेंगे।

आखिर में मीडिया कवरेज पर एक टिप्पणी करना लाजिमी है। वो ये कि कवरेज में यह माना गया है कि गहलोत ने जीत का राज हास्य विनोद में ही पूछा था, फिर भी टाइटल ये दिया कि वासुदेव देवनानी एक शिक्षक राजनेता....सीएम गहलोत भी जिनसे जीत का राज पूछते हैं। समझा जा सकता है षब्दों का यह खेल देवनानी को महिमा मंडित करने के लिए किया गया है। पूरे कवरेज में भाशा का झुकाव भी जाहिर करता है उसके पीछे मानसिकता विषेश काम कर रही है। 

-तेजवानी गिरधर

7742067000

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