रविवार, 5 दिसंबर 2010

क्या दोषी बीएलओ को बचाने का विचार है?

नगर निगम चुनाव में मतदाता सूचियों में बड़े पैमाने पर लापरवाही और गड़बड़ी के मामले में बड़े अधिकारी तो बड़ी सफाई से बच और जिन बीएलओ को दोषी माना गया था, उनके खिलाफ भी कार्यवाही होती नहीं दिखाई दे रही है। स्वयं रिटर्निंग ऑफिसर व एडीएम सिटी जगदीश पुरोहित इस बात को स्वीकार रहे हैं कि दोषी पाए गए बीएलओ के खिलाफ 30 नवंबर तक कार्यवाही करने के लिए संबंधित विभागों को कहा गया था, लेकिन अब तक उनके पास कार्यवाही की सूचना नहीं आई है। यानि खुद प्रशासन ही इस मामले में कोई ज्यादा रुचि नहीं ले रहा।
वस्तुत: मतदाता सूचियों में गड़बड़ी इतनी बड़ी थी कि अनुमानत: पचास हजार मतदाता वोट देने से वंचित रह गए थे। तकनीकी रूप से भले ही प्रशासन इस कारण बच रहा था कि उसने तो बाकायदा समय-समय पर लोगों को चेताया, मगर सवाल ये था कि जिसने पिछलेे लोकसभा चुनाव में वोट दिया था, वह भला क्यों जा कर देखेगा कि उसका नाम मतदाता सूची में है या नहीं। इस मामले में राजनीतिक दलों को भी जिम्मेदार माना जा रहा था कि उन्होंने ध्यान क्यों नहीं दिया, जबकि प्रशासन हर स्तर पर उनको विश्वास में लेकर काम कर रहा था। खैर, इस मामले को लेकर एक-दो दिन तो बड़ा हंगामा हुआ और अखबार वालों ने भी पूरे के पूरे पेज रंग दिये, मगर बाद में मामला ठंडे बस्ते चला गया। मामला था भी बेहद गंभीर। इतने सारे वोटों के नहीं पडऩे से कई नेताओं के जीवन में अंधेरा आ गया। शुरू-शुरू में तो बड़े अधिकारियों पर भी सरकार की टेढ़ी नजर थी, लेकिन बाद में यह सोच कर कि मेयर तो कांग्रेस का बन ही गया है, सरकार के स्तर पर भी ढ़ील दे दी गई। मीडिया बार-बार मामले को उछाल रहा था, इस कारण मजबूरी में ही सही, मगर सरकार की ढ़ील का फायदा उठा कर प्रशासन ने बीएलओ को ही बली का बकरा बनाने की सोची। असल में धरातल पर तो वे ही दोषी थे, क्योंकि मतदाता सूचियां बनवाने का काम सीधे तौर पर उन्होंने ही किया था। स्वयं रिटर्निंग ऑफिसर इस कारण दोषी थे कि भले ही सीधे तौर पर उन्होंने कोई गड़बड़ी नहीं की, मगर यह सवाल तो था ही कि उन्हीं के देखरेख में इतनी बड़ी लापरवाही कैसे हो गई। बहरहाल उन्होंने तो जल्द से जल्द जांच कर अपनी रिपोर्ट कलेक्टर राजेश यादव को सौंप दी, जिसे आधार बना कर दोषी 23 बीएलओ के खिलाफ कार्यवाही के निर्देश संबंधित विभागों को जारी कर दिए। जबकि होना यह चाहिए था कि सरकार को इस मामले में प्रशासन को ही सीधे कार्यवाही के अधिकार देने थे, ताकि लंबी प्रक्रिया से न गुजरना पड़े। लोग प्रकरण को भूल जाएं, इस कारण कार्यवाही कर सूचना देने के लिए भी लंबा समय दे दिया गया। प्रशासन के इस ढ़ीले रवैये का विभागीय अधिकारियों ने भरपूर फायदा उठाया और नियत तारीख निकल जाने के बाद भी कार्यवाही की सूचना प्रशासन को नहीं दी। ऐसे में खुद एडीएम सिटी का यह कहना कि अब तक उनको सूचना नहीं मिली है, साबित करता है कि वे भी इसमें कितनी रुचि ले रहे हैं।
और सबसे बड़ी बात ये कि यदि कार्यवाही हो भी गई तो पचास हजार मतदाताओं को वोट के अधिकार से वंचित रखने वालों को फांसी और आजीवन कारावास तो होगा नहीं, हद से हद मात्र 17 सीसी को ही अमल में लाया जाएगा। इतना बड़ा जुर्म करने वालों के लिए ये दंड भी कोई दंड है? ऐसी धाराओं के तो कर्मचारी आदी हो चुके हैं। देखते हैं कि दोषी पाए गए बीएलओ को कितनी बड़ी सजा होती है, ताकि भविष्य में कोई बीएलओ आम जनता के मताधिकार पर कुठाराघात करने से कांपे।

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