मंगलवार, 4 जनवरी 2011

चलो दाग तो मिट गया धर्मेश जैन का

दस करोड़ रुपए दे कर नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष बनने व उसकी भरपाई करने की बात कहने के आरोप का कड़वा घूंट पी कर पद छोडऩे को भले ही धर्मेश जैन मजबूर हुए हों, मगर आखिरकार उन पर लगा दाग सीआईडी की रिपोर्ट से धुल हो गया है। हालांकि उन्हें इसका आज तक बड़ा मलाल है कि वे किसी षड्यंत्र का शिकार हुए और अपनी ही पार्टी के राज में इस्तीफा देना पड़ा, मगर राहत की बात ये है कि अब सीआईडी ने खुद कह दिया है कि जिस सीडी में जैन के बारे में कथित बात कही गई थी, वह संदिग्ध प्रतीत होती है और सीडी बनाने वाले का पता लगाना भी असंभव है। सीआईडी ने यह भी माना है कि किसी भूमाफिया ने इधर-उधर के वार्तालापों को कांट छांट कर सीडी को तैयार किया है।
जाहिर है पार्टी की वर्षों तक सेवा करने के बाद जो इनाम मिला, वह जिस जलालत के साथ छीना गया, उसकी जिल्लत असहनीय रही होगी। अंदर से आह भी निकली होगी षड्यंत्रकारियों के प्रति। आह उनके प्रति भी निकली होगी जिन्होंने षड्यंत्रकारियों द्वारा बनाई गई सीडी का इस्तेमाल कर के विधानसभा में मुद्दा बनाया। भले ही स्वयं जैन ये स्वीकार न करें, लेकिन आह तो तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रति भी निकली होगी, जिन्होंने मामले की जांच करवाने की बजाय एक झटके में उनसे इस्तीफा मांग कर उन्हीं जलील होने को मजबूर किया। भूमाफिया कौन थे, यह तो आज तक पता नहीं लगा, इस कारण उन पर आह का क्या असर हुआ, यह भी पता लगाना असंभव है, मगर बाद में उन्हें पद से हटने को मजबूर करने वालों पर तो आह का असर साफ दिखाई दे रहा है। तत्कालीन पुष्कर विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने इस मामले पर विधानसभा में स्थगन प्रस्ताव रखा था, वे जैन की आह के कारण दुबारा विधायक नहीं बन पाए। इसी प्रकार विधानसभा में स्थगन प्रस्ताव पारित करवाने में अहम भूमिका निभाने वाले संयम लोढ़ा व माहिर आजाद भी दुबारा नहीं जीत पाए। वसुंधरा ने भी अपना बचाव करने के लिए जैन को शहीद कर दिया, वे भी आह के असर की वजह से दुबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाईं।
बहरहाल, जिस तरीके से जैन को पद से हटना पड़ा था, उससे उनका राजनीतिक कैरियर चौपट हो गया था। हालांकि बाद में भी पार्टी की सेवा करते रहने के कारण उनके पुत्र को नगर निगम चुनाव में टिकट दिया, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि उन पर लगा दाग ही उसकी हार का एक कारण बना। लेकिन अब जब कि सीडी ही संदिग्ध साबित हो गई है, उन पर लगा दाग मिट गया है और भविष्य में फिर राजनीतिक पद मिलने का रास्ता आसान हो गया है। होना तो यह चाहिए कि वसुंधरा को खुद अफसोस करते हुए जैन को फिर से किसी जिम्मेदारी वाले पद पर आसीन करना चाहिए, ताकि जो गलती हुई है, उसे रैक्टिफाई किया जा सके।
आखिर सीडी बनवाई किसने थी?
जिस सीडी की वजह से जैन को पद छोडऩा पड़ा, वह भले ही संदिग्ध साबित हो गई हो, मगर यह सवाल आज भी अनुत्तरित है कि आखिर सीडी बनवाई किसने? सीआईडी ने यह कह कर हाथ खड़े कर दिए हैं कि सीडी बनाने वालों का पता लगाना संभव प्रतीत नहीं होता है। सवाल ये भी उठता है कि सीडी सामने कैसे आई? इस बारे में अखबार वालों से जब पूछा गया तो उन्होंने स्रोत न बताने के अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए यह तथ्य उजागर नहीं किया कि उनके पास सीडी आई कैसे। अब सवाल ये उठता है कि जो सीडी विधानसभा के पटल पर रखी गई, वह कहां से आई? अब जब कि सारा मामला इस पर ही आ कर टिक गया है सीडी बनवाने वाले षड्यंत्रकारियों का पता लगाया जाए तो उन पर यह दायित्व आ गया है कि वे साफ करें कि उनके पास सीडी कैसे आई?

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