गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

न देवनानी हारे, न बाकोलिया, राजनीतिक मर्यादा हार गई



जब सत्ता थी तब मंत्री बनने से चूकी श्रीमती अनिता भदेल पूरे पांच साल शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी को तंज देती रहीं। दोनों के बीच कोई कोई विवाद होता ही रहता था। मंत्री पद का दायित्व जितना भी पूरा हो पाया हो पाया, मगर श्रीमती भदेल से भिड़ंत में काफी समय जाया हो गया। लेकिन सत्ता जाने के बाद ऐसा लगता है कि श्रीमती भदेल तो कुछ शांत हो गई हैं, लेकिन देवनानी में करंट अभी बरकरार है। श्रीमती भदेल की वजह से विवाद करते रहने के आदी हो चुके प्रो. देवनानी कभी सरकारी अधिकारियों को ढूंढ़ते हैं तो कभी कांगे्रसियों को तलाशते रहते हैं। वस्तुस्थिति तो यहां तक आने लगी है कि जिस संयुक्त सरकारी कार्यक्रम में देवनानी हों, और वहां विवाद हो, तो सभी को अटपटा सा लगता है।
यूं तो कांग्रेस के खिलाफ आए दिन कोई कोई बयान जारी करते ही रहते हैं, ताकि विपक्ष की भूमिका भी अदा हो जाए और आगामी चुनाव तक जिंदा भी रह लें। (जिंदा शब्द का संबोधन करना इसलिए उपयुक्त लगता है कि भाजपा के सभी धड़े तो उन्हें निपटाने के ही इच्छुक रहते हैं।) लेकिन बुधवार को जनगणना संदेश रैली जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रम की महत्ता का ख्याल रखते हुए उन्होंने नगर निगम के महापौर कमल बाकोलिया को लपेट लिया। यह भी नहीं देखा कि उचित मौका है या नहीं। निगम के सभी कार्यक्रमों में उनको बुलाना जायज है या नहीं, नहीं पता, मगर अचानक हुए वार से बाकोलिया पहले तो सकपकाए, मगर जब देखा कि देवनानी पीछा ही नहीं छोड़ रहे तो उन्होंने भी मिला-मिला कर देना शुरू कर दिया। ऐसी भिड़ंत तो उनकी निगम में ही उप महापौर अजीत सिंह राठौड़ तक से नहीं हुई। वैसे बाकोलिया अभी नए-नए हैं, मगर देवनानी से हुई भिड़ंत में उन्होंने जो पैैंतरे दिखाए तो सभी भौंचक्के रह गए। इस वाक् युद्ध में कौन जीता, कौन हारा, यह भी नहीं पता, मगर राजनीतिक मर्यादा जरूर हार गई। एक ओर शहर के प्रथम नागरिक तो दूसरी ओर भाजपा के शिक्षा राज्य मंत्री रह चुके नेता के बीच गाली-गलौच के बाद दोनों भले ही अपने-अपने खेमों में शेखी बघार रहे होंगे, मगर शहर वासियों का तो शर्म से सिर नीचा हो गया है। कांग्रेस भाजपा नेताओं में पूर्व में भी इस प्रकार के विवाद होते रहे हैं और राजनीतिक बयानबाजी होती रहती थी, लेकिन इस प्रकार आमने-सामने एक दूसरे के कपड़े फाडऩे की नौबत कम ही आई है।
बहरहाल, इस वाकये में भाजपाइयों के लिए खुश होने वाली बात ये है कि उनके नेता को इस बात का पूरा भरोसा है कि अगली सरकार उनकी ही होगी। तभी तो बाकोलिया को देख लेने की धमकी दे दी। ऐसा प्रतीत होता है प्रो. देवनानी उसी उम्मीद में अपने आपको वार्मअप किए हुए हैं, ताकि सत्ता जब द्वार पर खड़ी हो तो उसका ठीक से स्वागत कर सकें। इस लिहाज से तो देवनानी की वजूद कायम रखने की कवायद जायज ही कही जाएगी। वे तो अपने मकसद में कामयाब ही हो रहे हं। वैसे भी प्रेम और राजनीति में सब कुछ जायज होता है।

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