गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

न्यास सचिव जी, क्या कोई पहाड़ टूटने वाला है?


अजमेर नगर सुधार न्यास ने नगरीय विकास विभाग से मार्गदर्शन ले कर तय किया है कि नियमन के नए नियम नहीं आने तक कृषि भूमि के पुराने प्रकरणों का पुराने नियम के तहत ही निस्तारण किया जाएगा। इसके पीछे न्यास सचिव परमेश्वर दयाल का तर्क ये है कि सरकार ने हालांकि धारा 90 बी को लेकर विवाद खड़े होने की वजह से समाप्त कर 90 ए लागू कर दी है, मगर सरकार ने अभी तक इस बारे में गजट नोटिफिकेशन जारी नहीं किया और आदेश में तीन से चार माह का समय लगने की संभावना है, इसलिए लोगों की परेशानी को देखते हुए पुराने नियम से ही नियमन किए जाने का निर्देश हासिल किया है।

माना कि न्यास सचिव ने इस बारे में अपने स्तर पर कोई निर्णय नहीं किया है व उच्चाधिकारियों से निर्देश हासिल किया है, और इस प्रकार अपने हाथ बचा लिए हैं, मगर सवाल ये उठता है कि क्या आगामी तीन-चाह माह में न्यास पर कोई पहाड़ टूटने वाला है? ऐसी क्या वजह है कि वे नए नियम आने के लिए महज तीन-चार माह का इंतजार भी नहीं कर सकते? एक ओर तो हजारों नियमन प्रकरण कई साल से लटका कर रखे हैं और संबंधित लोगों को इसके बारे में कोई भी जानकारी तक नहीं देते। वे जूतियां घिसते-घिसते तंग आ चुके हैं। तब उन्हें लोगों की परेशानी याद नहीं आई और आज इतनी जल्दी है कि इस बारे में निर्देश हासिल किए जा रहे हैं। यहां उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार की ओर से भू-रूपांतरण से संबंधित विवादित धारा 90 बी को समाप्त करने के निर्णय पर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन ने कड़ी प्रतिक्रिया करते हुए कहा था कि कांग्रेस सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में जम कर भ्रष्टाचार करने के लिए ही इसे लागू किया था। कांग्रेस ने न केवल अपने पिछले कार्यकाल, अपितु हाल के तीन वर्षों में भी इस धारा का जम कर दुरुपयोग किया और उसका लाभ भू माफियाओं को दिया गया।

जैन का तर्क ये भी था कि कांग्रेस सरकार इस का जम कर दुुरुपयोग कर रही थी, इसी कारण यह मामला हाईकोर्ट में पहुंचा। हाईकोर्ट ने 13 मई 2011 को 90 बी पर रोक लगा दी, ऐसे में कांग्रेस सरकार ने इसे हटाने का निर्णय मजबूरी में लिया है। यदि कांग्रेस सरकार इतनी ही ईमानदार है तो एक तो उसे इसे लागू नहीं करना चाहिए था और दूसरा ये कि दूसरी बार सत्ता में आते ही इसे हटा देना चाहिए था। उनके इस बयान से साफ है कि धारा 90 बी के तहत बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया और वह काफी विवादित हो चुकी थी, इसी कारण हाईकोर्ट ने उस पर रोक लगाई और सरकार को भी इसे हटाना पड़ा, ऐसे में नए नियम आने के लिए तीन-चार माह का इंतजार न करना साफ दर्शाता है कि दाल में जरूर काला है। जैन ने खुल कर यह आरोप भी लगाया कि पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान नगर सुधार न्यास ने कस्टोडियन, स्कीम एरिया में काश्तकारों के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन, आनासागर डूब क्षेत्र सहित नालों तक की जमीनों का नियमन कर दिया गया। इतने गंभीर आरोपों के बावजूद यदि न्यास हाईकोर्ट के प्रतिबंध को दरकिनार कर न्यास 90 बी के तहत नियमन करने के मूड में है, इसका मतलब जरूरी कुलड़ी में गुड़ फोड़े जाने की तैयारी हो रही है।

न्यास की नई व्यवस्था के बाद जैन की प्रतिक्रिया है कि यदि जिनके ले आउट प्लान सहित अन्य सभी कागजी कार्यवाही पूरी हो चुकी है, उसी का नियमन करेंगे, तो सवाल ये उठता है कि क्या वे मास्टर प्लान के तहत हैं? और अगर कुछ प्रकरणों को पुराने नियम के तहत नियमित करना ही है तो उनको सार्वजनिक करके उन पर आपत्तियां क्यों नहीं मांगी जातीं? एक अहम सवाल ये भी उठता है कि क्या इस बारे में न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत को जानकारी भी है? या फिर उन्हीं पर कुछ प्रभावशाली लोगों का दबाव है, इस कारण नए निर्देश हासिल किए गए हैं? कुल मिला कर मामला गंभीर है और आशंका है कि कहीं सीधे-सादे भगत इसमें फंस नहीं जाएं।

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