शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

बाकोलिया जी, मदार गेट भी नो वेंडिंग जोन है


नगर निगम ने नो वैंडिंग जोन में लगाई गई गन्ने के रस की मशीनों को जब्त करने की कार्यवाही शुक्रवार को अंजाम दी। हालांकि विरोध तो हुआ, लेकिन सख्ती दिखाते हुए दौलत बाग, जेएलएन मार्ग और कलैक्ट्रेट के आसपास से छह मशीनें जब्त कर लीं। निगम के राजस्व अधिकारी प्रहलाद भार्गव का कहना रहा कि ये कार्यवाही अनवरत जारी रहेगी। किसी को भी कहीं भी मशीन लगाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। निगम की इस कार्यवाही का स्वागत किया जाना चाहिए कि उसे नो वेंडिग जोन का ख्याल तो आया। मगर सवाल ये है कि निगम को नो वेंडिग जोन घोषित मदार गेट की सुध क्यों नहीं आ रही?
यहां उल्लेखनीय है कि अजमेर के हितों के लिए गठित अजमेर फोरम की पहल पर बाजार के व्यापारियों की एकजुटता से एक ओर जहां शहर के सबसे व्यस्ततम बाजार मदारगेट की बिगड़ी यातायात व्यवस्था को सुधारने का बरसों पुराना सपना साकार रूप ले रहा है, वहीं नगर निगम की अरुचि और पुलिस कप्तान राजेश मीणा के रवैये के कारण नो वेंडर जोन घोषित इस इलाके को ठेलों से मुक्त नहीं किया जा पा रहा है। निगम व पुलिस एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं। पुलिस कप्तान राजेश मीणा यह कह कर ठेले वालों को हटाने में आनाकानी कर रहे हैं कि पहले निगम इसे नो वेंडर जोन घोषित करे और पहल करते हुए इमदाद मांगे, तभी वे कार्यवाही के आदेश देंगे। हालांकि उनका तर्क बेमानी है, मगर असल जिम्मेदारी तो निगम की है। वह चाहे तो खुद ही ठेलों का हटा सकती है। जरूरत हो तो प्रशासन से बात कर पुलिस की सहयोग ले सकती है। मदार गेट पर नो वेंडिंग जोन का बोर्ड लगा सकती है, मगर अज्ञात कारणों से चुप बैठी है। आश्चर्च है कि निगम के अधिकारियों को अन्य स्थानों के नो वेंडिंग जोन तो नजर आ रहे हैं, मगर मदारगेट की चिंता ही नहीं है। इससे संदेह होता है कि कहीं निगम के अधिकारियों व कर्मचारियों की पुलिस से कोई मिलीभगत तो नहीं है। ऐसा लगता है वे वहां की पैदा से हाथ नहीं धोना चाहते। इसे निगम आयुक्त कमल बाकोलिया को ही देखना होगा। निगम की इस नाकामी का जिम्मा आखिरकार उनका ही है। यह असफलता उन्हीं के खाते में जाती है।
इस मामले में संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा की भूमिका पर भी अफसोस होता है। वे सरकारी बैठकों में तो बहुत गुर्राते हैं और नियम विरुद्ध काम करने वालों को हड़काते हैं, मगर धरातल पर शरमा जाते हैं। माना कि वे अजमेर वासी होने के कारण अजमेर के प्रति दर्द रखते हैं और प्रयास भी करते हैं, मगर उस दर्द को दूर करने के लिए सख्त क्यों नहीं होते। नो वेंडिंग जोन घोषित करने में उनकी अहम भूमिका है, क्योंकि वे ही यातायात सलाहकार समिति के अध्यक्ष हैं। अब तो वे और पावरफुल हो गए हैं, प्रभारी सचिव का जिम्मा होने के कारण। अब तो अपनी ताकत का एक भले काम के लिए उपयोग कर ही सकते हैं। अजमेर की जनता को इंतजार है उनकी सख्ती का। उनके कागजी शेर बने रहने से अब ऊब होने लगी है।
सब जानते हैं कि अजमेर शहर में विस्फोटक स्थिति तक पहुंच चुकी यातायात समस्या पर अनेक बार सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर चिन्ता जाहिर की जाती रही है। प्रयास भी होते रहे हैं, मगर इस दिशा में एक भी ठोस कदम नहीं उठाया जा सका। जब भी कोशिश की गई, कोई न कोई बाधा उत्पन्न हो गई। इस बार अजमेर फोरम की पहल पर व्यापारी आगे आए तो उन्होंने तभी आशंका जाहिर कर दी थी कि वे तो खुद अस्थाई अतिक्रमण हटा देंगे, मगर ठेले वाले तभी हटाए जा सकेंगे, जबकि प्रशासन इच्छा शक्ति दिखाएगा। आशंका सच साबित होती दिखाई दे रही है। प्रशासनिक इच्छाशक्ति के अभाव में मदारगेट पर ठेले कुकुरमुत्तों की तरह उगे हुए हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें