शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

वरिष्ठों का तो ख्याल करना ही होगा भगत जी


शहर के नसीराबाद रोड पर नौ नंबर पेट्रोल पंप से शताब्दी स्कूल तक बनने वाली सिक्स लेन सड़क के नगर सुधार न्यास की ओर से आयोजित शिलान्यास समारोह में शहर के तीन दिग्गज पूर्व विधायकों को तरजीह न देने पर उनका नाराज होना स्वाभाविक ही है। माना कि आज वे किसी महत्वपूर्ण पद पर नहीं हैं और संयोग से नए नेता कमल बाकोलिया, नरेन शहाणी भगत व महेन्द्र सिंह रलावता क्रमश: मेयर, न्यास अध्यक्ष व शहर कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान हैं, मगर इससे वरिष्ठ नेताओं की अहमियत कम नहीं हो जाती। केवल इतना ही नहीं कि वे वरिष्ठ हैं, आज भी उनका अपना वजूद है। वरिष्ठ होने के बाद वे कूड़ेदान में नहीं पड़े हैं, आज भी उनकी शहर में चलती है। शहर में ही क्यों, जयपुर-दिल्ली तक में उनकी चलती है। उतनी ही, जितनी पहले चलती थी। आज भी पुराने नेता और मंत्री उनको पूरा सम्मान देते हैं। कदाचित भगत, बाकोलिया व रलावता से ज्यादा। माना कि वर्तमान में अजमेर के सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट का तीनों नए नेताओं पर वरदहस्त है, मगर केवल उनके दम पर फूल कर कुप्पा होना ठीक नहीं है। भले ही पूर्व विधायकों की पायलट के सामने खास अहमियत नहीं हो, मगर नए नेताओं से तो ज्यादा वजूद रखते हैं। ऐसे में अजमेर में उनको नजरअंदाज करना अखरेगा ही। यह दीगर बात है कि पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती व डॉ. राजकुमार जयपाल ने खुल कर ऐतराज जाहिर नहीं किया, मगर पूर्व उप मंत्री ललित भाटी तो बिंदास हैं, उन्होंने जता दिया कि इस प्रकार नजरअंदाज करना गलत है। अब चूंकि कार्यक्रम न्यास की ओर से आयोजित किया गया था, तो उसकी जिम्मेदारी भी न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत की थी। हालांकि भाटी की शिकायत पर भगत ने अपने अफसरों को हिदायत दी कि आइंदा ख्याल रखें, मगर सच बात ये है कि ख्याल रखने की जिम्मेदारी खुद भगत की ही है। अफसर तो जाहिर तौर पर उसे ही सलाम करेंगे, जो कि वर्तमान में पोस्ट पर है। जो पोस्ट पर नहीं हैं, मगर दमदार हैं, उनका ख्याल तो भगत को ही रखना होगा। जीवन डोलर हींडा है, खासकर राजनीति तो है ही। इसमें जिसकी आज बारह बज रही है, उसकी कभी साढ़े छह भी बजेगी और जिनकी आज साढ़े छह बज रही है, उनकी बारह भी बजेगी। ऐसे में समारोह में मंच पर तीनों पूर्व विधायकों को न बुलाना भगत की भूल ही है। उन्हें कम से कम इतना तो समझना ही होगा कि जो आज मंच के सामने बैठे हैं, वे कभी फिर उनके बाप बन सकते हैं। बने न बनें, मगर उनकी मंच पर बैठने की आदत अभी गई नहीं है। उम्मीद है भगत आइंदा ख्याल रखेंगे। ताजा घटना से बाकोलिया व रलावता ने भी सीख ली ही होगी।

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