रविवार, 5 फ़रवरी 2012

ठेले वालों को बचा रहे हैं पुलिस कप्तान?


अजमेर के हितों के लिए गठित अजमेर फोरम की पहल पर बाजार के व्यापारियों की एकजुटता से एक ओर जहां शहर के सबसे व्यस्ततम बाजार मदारगेट की बिगड़ी यातायात व्यवस्था को सुधारने का बरसों पुराना सपना साकार रूप ले रहा है, वहीं नगर निगम की अरुचि और पुलिस कप्तान राजेश मीणा के रवैये के कारण नो वेंडर जोन घोषित इस इलाके को ठेलों से मुक्त नहीं किया जा पा रहा है।
अंदरखाने की जानकारी यही है कि निगम व पुलिस में एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालने के कारण ही ठेले वाले नहीं हटाए जा पा रहे। एक-दूसरे की देखादेखी के चलते परिणाम ये है कि लोहे का सामान बेचने वाली औरतें आज तक नहीं हटाई जा सकी हैं। लोहे के जंगले में सीमित की गई सब्जी वालियां भी यदाकदा जंगले से बाहर आ जाती हैं। खतरा ये है कि कहीं व्यापारी अपनी पहल पर खुद को ठगा सा महसूस न करने लग जाएं।
बताया जा रहा है कि पुलिस कप्तान राजेश मीणा यह कह कर ठेले वालों को हटाने में आनाकानी कर रहे हैं कि पहले निगम इसे नो वेंडर जोन घोषित करे और पहल करते हुए इमदाद मांगे, तभी वे कार्यवाही के आदेश देंगे। उनका तर्क ये भी बताया जा रहा है कि पहले वेंडर जोन घोषित किया जाए, तब जा कर ठेले वालों को हटाया जाना संभव होगा। उधर निगम भी पंगा मोल नहीं लेना चाहता, वरना अब तक तो नो वेंडर जोन के बोर्ड लगा दिए जाते। असल बात ये है कि संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में गठित समिति मदार गेट को नो वेंडर जोन घोषित कर चुकी है। मीणा के तर्क के मुताबिक उसे निगम की ओर से नए सिरे से नो वेंडर जोन घोषित करने की जरूरत ही नहीं है। पुलिस को खुद ही कार्यवाही करनी चाहिए। रहा सवाल मीणा के पहले वेंडर जोन घोषित करने का तो स्वाभाविक रूप से जो इलाका नो वेंडर जोन नहीं है, वहीं वेंडर जोन है। अव्वल तो उनका इससे कोई ताल्लुक ही नहीं है कि ठेले वालों को नो वेंडर जोन से हटा कर कहां खड़ा करवाना है। उनके इस तर्क से तो वे ठेले वालों की पैरवी कर रहे प्रतीत होते हैं।
सब जानते हैं कि अजमेर शहर में विस्फोटक स्थिति तक पहुंच चुकी यातायात समस्या पर अनेक बार सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर चिन्ता जाहिर की जाती रही है। प्रयास भी होते रहे हैं, मगर इस दिशा में एक भी ठोस कदम नहीं उठाया जा सका। जब भी कोशिश की गई, कोई न कोई बाधा उत्पन्न हो गई। इस बार अजमेर फोरम की पहल पर व्यापारी आगे आए तो उन्होंने तभी आशंका जाहिर कर दी थी कि वे तो खुद अस्थाई अतिक्रमण हटा देंगे, मगर ठेले वाले तभी हटाए जा सकेंगे, जबकि प्रशासन इच्छा शक्ति दिखाएगा। आशंका सच साबित होती दिखाई दे रही है। प्रशासनिक इच्छाशक्ति के अभाव में मदारगेट पर ठेले कुकुरमुत्तों की तरह उगे हुए हैं। कहने वाले तो यह तक कहते हैं कि पुलिस के सिपाही ठेलों से मंथली वसूल करते हैं। यदि वे ठेलों को हटाते हैं तो उसकी मंथली मारी जाती है। कदाचित यह जानकारी पुलिस कप्तान को भी हो। देखते हैं इस आरोप से मुक्त होने के लिए ही सही, क्या वे कोई कार्यवाही करते हैं या नहीं?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें