रविवार, 18 मार्च 2012

आजम हुसैन भी मान गए कि 23 मार्च अजमेर का स्थापना दिवस नहीं


लीजिए आखिर राजकीय संग्रहालय के अधीक्षक जनाब सैयद आजम हुसैन ने मान ही लिया कि आगामी 23 मार्च को मनाया जा रहा अजमेर का स्थापना दिवस एक शुरुआत मात्र है। अजमेर की स्थापना के बारे में अगर कहीं लिखित प्रमाण मिलेंगे तो उन पर अमल करते हुए इस तिथि में फेरबदल कर दिया जाएगा। इसका सीधा सा अर्थ ये है कि अजमेर की स्थापना का दिवस अब तक ज्ञात नहीं है और यूं ही अनुमान के आधार पर यह तिथि तय की गई है। चूंकि हिंदू मान्यता के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को नव संवत्सर को आरंभ किया जाता है, इस कारण इस वर्ष नव संवत्सर की प्रतिपदा, 23 मार्च को समारोह मनाने की परंपरा आरंभ की जा रही है।
अपन ने पहले इस कॉलम में लिख दिया था कि अजमेर की स्थापना दिवस का कुछ अता-पता नहीं है। अब तक एक भी स्थापित इतिहासकार ने इस बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कहा है। अजमेर के इतिहास के बारे में कर्नल टाड की सर्वाधिक मान्य और हरविलास शारदा की सर्वाधिक विश्वसनीय पुस्तक में भी इसका कोई उल्लेख नहीं है। स्थापना दिवस मनाने के इच्छुक भाजपा नेता सोमरत्न आर्य व पूर्व मंत्री ललित भाटी ने भी खूब माथापच्ची की थी, मगर उन्हें स्थापना दिवस का कहीं प्रमाण नहीं मिला। अजमेर के अन्य सभी मौजूदा इतिहासकार भी प्रमाण के अभाव में यह कहने की स्थिति में नहीं हैं कि अजमेर की स्थापना कब हुई। सोमवार को दैनिक नवज्योति के अंक में भी इस बात का खुलासा कर दिया गया है। इसी में जनाब सैयद आजम हुसैन ने स्वीकार कर लिया कि यह तो एक शुरुआत मात्र है। उनकी इस स्वीकारोक्ति से इस बात के भी संकेत मिलते हैं कि पर्यटन विकास समिति के मनोनीत सदस्य महेन्द्र विक्रम सिंह व इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (इंटेक) के अजमेर चैप्टर के स्थापना दिवस मनाने के आग्रह के पीछे उनका ही हाथ था। संग्रहालय के अधीक्षक होने के नाते उनके पास जरूर अधिकृत जानकारियां हो सकती हैं, वरना महेन्द्र विक्रम सिंह व इंटेक को क्या पता? यदि यह कहा जाए की इस पूरे प्रकरण के मूल में आजम हुसैन ही हैं और अजमेर का स्थापना दिवस मनाने की शुरुआत का श्रेय उन्हीं खाते में जाता है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस लिहाज से वे बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने अजमेर का स्थापना दिवस मनाने की शुरुआत तो करवाई, भले ही अभी तिथि के पुख्ता प्रमाण मौजूद नहीं हैं।
सवाल उठता कि क्या इस मामले में जिला कलैक्टर श्रीमती मंजू राजपाल को अंधेरे में रख कर उनसे अजमेर का स्थापना दिवस घोषित कर लिया गया? क्या उन्हें यह जानकारी दी गई कि पुख्ता प्रमाण तो नहीं हैं, मगर फिलहाल शुरुआत तो की जाए, बाद में प्रमाण मिलने पर फेरबदल कर लिया जाएगा? क्या प्रस्ताव इस रूप में पेश किया जाता तो जिला कलेक्टर उसे सिरे से ही खारिज कर देतीं? लगता है कहीं न कहीं गडबड़ है। बेहतर तो ये होता कि जिला कलेक्टर इससे पहले बाकायदा अजमेर के इतिहासकारों की बैठक आधिकारिक तौर पर बुलातीं और उसमें तय किया जाता, तब कम से कम इतिहासकारों का सम्मान भी रह जाता और विवाद भी नहीं होता। अब जब कि दिवस घोषित कर दिया गया है, यह कसर बाकी रह ही गई कि इतिहासकार इस तिथि को मानने को तैयार नहीं हैं।
हालांकि जिला कलेक्टर की घोषणा के वक्त ही शहर के बुद्धिजीवियों में चर्चा हो गई थी कि आखिर उन्होंने किस आधार पर यह मान लिया कि अजमेर की स्थापना नव संवत्सर की प्रतिपदा को हुई थी। अपुन ने इसी कॉलम में सवाल उठाये थे कि क्या जिला कलैक्टर ने संस्था और सिंह के प्रस्ताव पर इतिहासकारों की राय ली है? यदि नहीं तो उन्होंने अकेले यह तय कैसे कर दिया? क्या ऐतिहासिक तिथि के बारे में महज एक संस्था के प्रस्ताव को इस प्रकार मान लेना जायज है? संस्था के प्रस्ताव आने के बाद संबंधित पक्षों के विचार आमंत्रित क्यों नहीं किए गए, ताकि सर्वसम्मति से फैसला किया जाता?
इसमें सर्वाधिक अफसोसनाक बात ये रही कि स्थापना दिवस की घोषणा कर दिए जाने के बाद एक भी इतिहासकार खुल कर सामने नहीं आया। गनीमत है कि दैनिक नवज्योति ने इस पर फोकस किया, तब जा कर इतिहासकारों ने अपनी राय खुल कर जाहिर की।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

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