अजमेर। दुराचार की कोशिश की शिकायत उच्च अधिकारियों को करने के बाद भी कोई हल नहीं निकलने से खफा महिला रेल कर्मचारी संतोष शर्मा के मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय में ही आत्मदाह करने की कोशिश करने से जीआरपी सहित पूरा मंडल रेल प्रशासन सकते में आ गया है। विशेष रूप से राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष प्रो. लाड कुमारी जैन के अगले ही दिन मोर्चा संभाल लेने से रेलवे प्रशासन को लेने के देने पड़ रहे हैं।
इस सनसीनखेज मामले में मोटे तौर पर यह साफ नजर आ रहा है कि जीआरपी के स्तर पर आरोपियों को बचाने की कोशिश और मंडल रेल प्रशासन स्तर पर बरती गई लापरवाही की वजह से संतोष शर्मा आत्मदाह करने को मजबूर हुई। हालांकि अब जब बात निकली है तो दूर तलक जाएगी, प्याज के सारे छिलके उतार लिए जाएंगे, हर लापरवाही का हिसाब मांगा जाएगा, जैसा कि हमारे यहां आमतौर पर होता है, मगर यह स्पष्ट है कि इस मामले में आरोपियों को संरक्षण दिए जाने से ही बात यहां तक पहुंची है। राजस्थान पत्रिका के चीफ रिपोर्टर अमित वाजपेयी तो अपनी टिप्पणी में साफ तौर पर इशारा कर रहे हैं कि एक आरोपी की रेलवे के आला अफसर से रिश्तेदारी है, जिसके कारण प्रकरण की जांच किए बिना ही मामला दाखिल दफ्तर कर दिया गया, हालांकि उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया है। आरोपियों को बचाने की कोशिश का एक बड़ा प्रमाण महिला आयोग अध्यक्ष लाड कुमारी ने भी पकड़ा है। वो यह कि संतोष की ओर मामला दर्ज कराए जाने के अगले ही दिन आरोपियों की ओर से भी मामला दर्ज कर लिया गया। सुप्रीम कोर्ट की रुलिंग के हिसाब से तो आरोपियों को तुरंत ही गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए था, मगर ऐसा करने की बजाय क्रॉस केस दर्ज कर लिया गया। साफ है कि यह फंदा आरोपियों के ऊंचे रसूखात के चलते ही पड़ा। इससे पीडि़ता मानसिक दबाव में आ गई। यही घटना की वजह बना।
ज्ञातव्य है कि जेएलएन में भर्ती संतोष शर्मा का कहना है कि 14 मार्च को रेलवे में कार्यरत हैडक्लर्क भंवर लाल चौधरी और टीसी सरबजीत सिंह ने उसके साथ दुराचार की कोशिश की। इसकी शिकायत जीआरपी ब्यावर को उसी दिन कर दी। अगले ही दिन उसके खिलाफ भी रिपोर्ट होने पर संतोष ने 19 मार्च को डीआरएम को घटना से अवगत कराया। आश्वासन के बाद भी कोई न्याय न मिलने पर उसने हताश हो कर आत्मदाह की कोशिश की। जांच में गड़बड़ी का प्रमाण खुद जीआरपी एसपी वीरभान अजवानी ने भी दे दिया कि घटना के बाद उन्होंने जांच अधिकारी सुरेश महरानियां को हटा कर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार सिंह से जांच शुरू करवाई है। पाठकों को ख्याल होगा कि महरानियां पूर्व में भी चर्चित रहे हैं, मगर मीडिया वालों से संबंधों के कारण कम ही चर्चा में आते हैं।
बहरहाल, अब जब कि मामले के हर सिरे की चर्चा हो रही है तो रेलवे प्रशासन को कई सवालों का जवाब देना होगा। अहम सवाल तो ये कि आखिर क्या वजह थी कि जीआरपी थाने में आरोपियों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज होने के बाद रेलवे प्रशासन स्तर पर त्वरित कार्रवाई नहीं की गई? संतोष शर्मा के आत्मदाह करने की चेतावनी देने के बाद भी क्या वजह रही कि रेलवे प्रशासन ने उसे हलके में लिया और जांच का स्तर क्यों नहीं बदला गया? मंडल स्तर पर विशाखा कमेटी का गठन क्यों किया गया है? शिकायत के बाद भी आरोपियों को हटाया क्यों नहीं गया? महिला उत्पीडऩ जैस गंभीर मामला होने पर भी पीडि़ता संतोष शर्मा का कार्यस्थल ब्यावर ही क्यों रखा गया? स्पष्ट है कि ये ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब देने में डीआरएम मनोज सेठ को पसीने छूट जाएंगे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
इस सनसीनखेज मामले में मोटे तौर पर यह साफ नजर आ रहा है कि जीआरपी के स्तर पर आरोपियों को बचाने की कोशिश और मंडल रेल प्रशासन स्तर पर बरती गई लापरवाही की वजह से संतोष शर्मा आत्मदाह करने को मजबूर हुई। हालांकि अब जब बात निकली है तो दूर तलक जाएगी, प्याज के सारे छिलके उतार लिए जाएंगे, हर लापरवाही का हिसाब मांगा जाएगा, जैसा कि हमारे यहां आमतौर पर होता है, मगर यह स्पष्ट है कि इस मामले में आरोपियों को संरक्षण दिए जाने से ही बात यहां तक पहुंची है। राजस्थान पत्रिका के चीफ रिपोर्टर अमित वाजपेयी तो अपनी टिप्पणी में साफ तौर पर इशारा कर रहे हैं कि एक आरोपी की रेलवे के आला अफसर से रिश्तेदारी है, जिसके कारण प्रकरण की जांच किए बिना ही मामला दाखिल दफ्तर कर दिया गया, हालांकि उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया है। आरोपियों को बचाने की कोशिश का एक बड़ा प्रमाण महिला आयोग अध्यक्ष लाड कुमारी ने भी पकड़ा है। वो यह कि संतोष की ओर मामला दर्ज कराए जाने के अगले ही दिन आरोपियों की ओर से भी मामला दर्ज कर लिया गया। सुप्रीम कोर्ट की रुलिंग के हिसाब से तो आरोपियों को तुरंत ही गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए था, मगर ऐसा करने की बजाय क्रॉस केस दर्ज कर लिया गया। साफ है कि यह फंदा आरोपियों के ऊंचे रसूखात के चलते ही पड़ा। इससे पीडि़ता मानसिक दबाव में आ गई। यही घटना की वजह बना।
ज्ञातव्य है कि जेएलएन में भर्ती संतोष शर्मा का कहना है कि 14 मार्च को रेलवे में कार्यरत हैडक्लर्क भंवर लाल चौधरी और टीसी सरबजीत सिंह ने उसके साथ दुराचार की कोशिश की। इसकी शिकायत जीआरपी ब्यावर को उसी दिन कर दी। अगले ही दिन उसके खिलाफ भी रिपोर्ट होने पर संतोष ने 19 मार्च को डीआरएम को घटना से अवगत कराया। आश्वासन के बाद भी कोई न्याय न मिलने पर उसने हताश हो कर आत्मदाह की कोशिश की। जांच में गड़बड़ी का प्रमाण खुद जीआरपी एसपी वीरभान अजवानी ने भी दे दिया कि घटना के बाद उन्होंने जांच अधिकारी सुरेश महरानियां को हटा कर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार सिंह से जांच शुरू करवाई है। पाठकों को ख्याल होगा कि महरानियां पूर्व में भी चर्चित रहे हैं, मगर मीडिया वालों से संबंधों के कारण कम ही चर्चा में आते हैं।
बहरहाल, अब जब कि मामले के हर सिरे की चर्चा हो रही है तो रेलवे प्रशासन को कई सवालों का जवाब देना होगा। अहम सवाल तो ये कि आखिर क्या वजह थी कि जीआरपी थाने में आरोपियों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज होने के बाद रेलवे प्रशासन स्तर पर त्वरित कार्रवाई नहीं की गई? संतोष शर्मा के आत्मदाह करने की चेतावनी देने के बाद भी क्या वजह रही कि रेलवे प्रशासन ने उसे हलके में लिया और जांच का स्तर क्यों नहीं बदला गया? मंडल स्तर पर विशाखा कमेटी का गठन क्यों किया गया है? शिकायत के बाद भी आरोपियों को हटाया क्यों नहीं गया? महिला उत्पीडऩ जैस गंभीर मामला होने पर भी पीडि़ता संतोष शर्मा का कार्यस्थल ब्यावर ही क्यों रखा गया? स्पष्ट है कि ये ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब देने में डीआरएम मनोज सेठ को पसीने छूट जाएंगे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
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