शनिवार, 7 अप्रैल 2012

शहंशाहों के शहंशाह हैं ख्वाजा गरीब नवाज

पाक राष्ट्रपति जरदारी के अजमेर आगमन पर विशेष
दुनिया में कितने ही राजा, महाराजा, बादशाहों के दरबार लगे और उजड़ गए, मगर ख्वाजा साहब का दरबार आज भी शान-ओ-शोकत के साथ जगमगा रहा है। उनके दरबार में अनेकानेक शहंशाह, राजा व शासनाध्यक्ष हाजिरी दे चुके हैं। यही वजह है कि ख्वाजा गरीब नवाज को शहंशाहों के शहंशाह कहा जाता है।
देश के प्रधानमंत्री, राज्यपाल व मुख्यमंत्री आदि भी यहां आते रहते हैं। पाकिस्तान व बांग्लादेश के प्रधानमंत्री भी यहां आ कर दुआ मांग चुके हैं। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक क्रिकेट मैच देखने के बहाने भारत आए तो अजमेर आ कर हाजिरी दी। पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ 16 अप्रैल 2005 को यहां आए थे। पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी, पूर्व प्रधानमंत्री जमाली समेत विभिन्न प्रमुख नेता भी सूफी संत हजरत ख्वाजा गरीब नवाज की चौखट चूमने के लिए यहां पहुंचे। पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो बेनजीर 14 दिसंबर 2003 को सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह जियारत को पहुंचीं। उन्होंने पाकिस्तान की जेल में बंद अपने पति आसिफ अली जरदारी की रिहाई के लिए मन्नत मांगी। जब जेल से रिहाई मिली तो वे अपनी बेगम बेनजीर भुट्टो के साथ गरीब नवाज की दरगाह में बांधा मन्नत का धागा खोलने के लिए 1 अप्रैल 2005 को दरगाह जियारत को पहुंचे।
आइये, जरा इतिहास का झरोखा खोल कर देखें। बादशाह अकबर शहजादा सलीम के जन्म के बाद सन्1570 में यहां आए थे। अपने शासनकाल में 25 साल के दरम्यान उन्होंने लगभग हर साल यहां आ कर हाजिरी दी। बादशाह जहांगीर अजमेर में सन् 1613 से 1616 तक यहां रहे और उन्होंने यहां नौ बार हाजिरी दी। गरीब नवाज की चौखट पर 11 सितंबर 1911 को विक्टोरिया मेरी क्वीन ने भी हाजिरी दी।
ख्वाजा साहब के दरगार में मुस्लिम शासकों ने सजदा किया तो हिंदू राजाओं ने भी सिर झुकाया है। हैदराबाद रियासत के महाराजा किशनप्रसाद पुत्र की मुराद लेकर यहां आए और आम आदमी की सुबकते रहे। ख्वाजा साहब की रहमत से उन्हें औलाद हुई और उसके बाद पूरे परिवार के साथ यहां आए। उन्होंने चांदी के चंवर भेंट किए, सोने-चांदी के तारों से बनी चादर पेश की और बेटे का नाम रखा ख्वाजा प्रसाद।
जयपुर के मानसिंह कच्छावा तो ख्वाजा साहब की नगरी में आते ही घोड़े से उतर जाते थे। वे पैदल चल कर यहां आ कर जियारत करते, गरीबों को लंगर बंटवाते और तब जा कर खुद भोजन करते थे। राजा नवल किशोर ख्वाजा साहब के मुरीद थे और यहां अनेक बार आए। मजार शरीफ का दालान वे खुद साफ करते थे। एक ही वस्त्र पहनते और फकीरों की सेवा करते। रात में फर्श पर बिना कुछ बिछाए सोते थे। जयपुर के राजा बिहारीमल से लेकर जयसिंह तक कई राजाओं ने यहां मत्था टेका, चांदी के कटहरे का विस्तार करवाया। मजार के गुंबद पर कलश चढ़ाया और खर्चे के लिए जागीरें भेंट कीं। महादजी सिंधिया जब अजमेर में शिवालय बनवा रहे थे तो रोजाना दरगाह में हाजिरी देते थे। अमृतसर गुरुद्वारा का एक जत्था यहां जियारत करने आया तो यहां बिजली का झाड़ दरगाह में पेश किया। इस झाड़ को सिख श्रद्धालु हाथीभाटा से नंगे पांव लेकर आए। जोधपुर के महाराज मालदेव, मानसिंह व अजीत सिंह, कोटा के राजा भीम सिंह, मेवाड़ के महाराणा पृथ्वीराज आदि का जियारत का सिलसिला इतिहास की धरोहर है। बादशाह जहांगीर के समय राजस्थानी के विख्यात कवि दुरसा आढ़ा भी ख्वाजा साहब के दर पर आए। जहांगीर ने उनके एक दोहे पर एक लाख पसाव का नकद पुरस्कार दिया, जो उन्होंने दरगाह के खादिमों और फकीरों में बांट दिया।
गुरु नानकदेव सन् 1509 में ख्वाजा के दर आए। मजार शरीफ के दर्शन किए, दालान में कुछ देर बैठ कर ध्यान किया और पुष्कर चले गए।
अंग्रेजों की खिलाफत का आंदोलन चलाते हुए महात्मा गांधी सन् 1920 में अजमर आए। उनके साथ लखनऊ के फिरंगी महल के मौलाना अब्दुल बारी भी आए थे। मजार शरीफ पर मत्था टेकने के बाद गांधीजी ने दरगाह परिसर में ही अकबरी मस्जिद में आमसभा को संबोधित किया था। इसके बाद वे 1934 में दरगाह आए।
स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भी दरगाह की जियारत की और यहां दालान में सभा को संबोधित किया। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू व उनकी पत्नी विजय लक्ष्मी पंडित और संत विनोबा भावे भी यहां आए थे। देश की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी भी कई बार दरगाह आईं। एक बार वे संजय गांधी को पुत्र-रत्न (वरुण)होने पर संजय, मेनका व वरुण के साथ आईं और इतनी ध्यान मग्न हो गईं कि चांदी का जलता हुआ दीपक हाथ में लिए हुए काफी देर तक आस्ताना शरीफ में खड़ी रहीं। वह दीपक उन्होंने यहीं नजर कर दिया। कांग्रेस का चुनाव चिह्न पंजा भी यहीं की देन है। उन दिनों पार्टी का चुनाव बदलना जाना था। जैसे ही उनके खादिम यूसुफ महाराज ने आर्शीवाद केलिए हाथ उठाया, वे उत्साह से बोलीं कि मुझे चुनाव चिह्न मिल गया। इसी चुनाव चिह्न पर जीतीं तो फिर जियारत को आईं और एक स्वर्णिम पंजा भेंट किया। जियारत के बाद वे मुख्य द्वार पर दुपट्टा बिछा कर माथ टेकती थीं। उनके साथ राजीव गांधी व संजय भी आए, मगर बाद में राजीव गांधी अकेले भी आए। इसी प्रकार सोनिया गांधी भी दरगाह जियारत कर चुकी हैं।
एक खास बात ये है कि जब भी यहां किसी देश का शासनाध्यक्ष या राष्ट्राध्यक्ष आता है तो उसका खास इस्तकबाल किया जाता है। असल में शाही इस्कबाल का सिलसिला बादशाह अकबर के दौर से शुरू हुआ। उसी सिलसिले में पाक राष्ट्रपति जरदारी का भी शाही इस्तकबाल किया जा रहा है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

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