शुक्रवार, 18 मई 2012

टंडन के उपवास पर तकलीफ तो व्यवस्थाएं क्यों नहीं सुधारीं?

ख्वाजा साहब के 800वें सालाना उर्स की अव्यवस्थाओं को लेकर बार अध्यक्ष व प्रदेश कांग्रेस के पूर्व सचिव राजेश टंडन का एक दिन का उपवास विवाद में आ गया। विवाद इतना भर है कि प्रदेश कांग्रेस के महासचिव सुशील शर्मा ने जबरन टांग अड़ा कर यह कह दिया है कि टंडन को व्यक्तिगत रूप से आंदोलन करने का अधिकार है, लेकिन पार्टी के पूर्व सचिव की हैसियत से इस तरह के आंदोलन का अधिकार नहीं है। शर्मा की यह बात है ही बेहूदा कि टंडन को पूर्व सचिव के नाते उपवास करने का अधिकार नहीं है। कौन बेवकूफ होगा जो अपने पूर्व पद के नाते आंदोलन करेगा। पूर्व पद के नाते आंदोलन होते भी हैं क्या? रहा सवाल टंडन के पूर्व सचिव होने का तो वह ऐसा पद है, जो उनसे अब कोई नहीं छीन सकता। ऐसे में यह शर्मा की अड़ंगी ही मानी जानी चाहिये क्योंकि टंडन कांग्रेस के बैनर तले अथवा यह बता कर कि वे प्रदेश कांग्रेस के पूर्व सचिव हैं और उस हैसियत से तो उपवास कर नहीं रहे, वे तो वैसे भी निजी तौर पर कर रहे हैं।
अगर इसे शर्मा के महासचिव होने के नाते प्रदेश कांग्रेस का फरमान माना जाए तो असल बात ये है कि टंडन के उपवास करने से कांग्रेसी सरकार की ही हल्की होती है। आखिर वे हैं तो वरिष्ठ कांग्रेसी ही न, भले ही अभी किसी पद न हों। शर्मा को लगा होगा कि कहीं टंडन के साथ अन्य कांगे्रसी भी न खड़े हो जाएं। मगर असल बात ये है टंडन कांग्रेस सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि जिला प्रशासन की लापरवाही के खिलाफ उपवास पर बैठे हैं। उन्होंने इस सिलसिले में कभी कांग्रेस सरकार की आलोचना नहीं की। वे तो यही कहते रहे कि जिला प्रशासन लापरवाही बरत रहा है। इसकी शिकायत वे हाल ही उर्स मेले की तैयारियों के सिलसिले में अजमेर आए राज्य सरकार के मुख्य सचिव सी के मैथ्यू से भी कर चुके थे। उनके सामने ही अपने उपवास करने का ऐलान भी कर चुके थे। शर्मा की इस बात को ध्यान में रखा जाए कि टंडन को व्यवस्था में कमियां नजर आती हैं तो पार्टी या प्रशासन के सामने रख कर दूर कराने का प्रयास करें, तब भी टंडन कहीं गलत नजर नहीं आते। वे राजस्थान प्रशासन के सबसे बड़े अफसर को शिकायत कर चुके। जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल को नकारा बताते हुए उन्हें हटाने का आग्रह सरकारी मुख्य सचेतक डॉ. रघु शर्मा से भी कर चुके। उसके बाद भी यदि जिला प्रशासन व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं करता तो प्रशासन ही दोषी हुआ न, टंडन कैसे दोषी हो गए? प्रशासन ही क्यों कांग्रेस संगठन व सरकार भी उतने ही जिम्मेदार हैं। उन्हें टंडन की शिकायत पर गौर करना चाहिए था। तब शर्मा कहां थे। तब उन्हें यह ख्याल नहीं आया कि टंडन के उपवास से कांग्रेस सरकार की बदनामी होगी।
रहा सवाल शर्मा के यह कहने का कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद उर्स की व्यवस्थाओं पर नजर रखे हुए हैं और सरकार ने उर्स को लेकर अतिरिक्त राशि उपलब्ध कराई है तो यह सही है, मगर स्वीकृत तीन करोड़ रुपए से क्या हो सकता था? यह भी तब मंजूर की जब तीन सौ करोड़ की योजना पर खुद ही ध्यान नहीं दिया और वह अधर में लटकी गई। इज्जत बचाने की खातिर तीन करोड़ दिए। बहरहाल, जो तीन करोड़ आए, उनसे हुए कामों का परिणाम ये है कि पूरे मेला क्षेत्र में आज भी भारी अव्यवस्थाएं पसरी पड़ी हैं।
शर्मा ने टंडन के इस उपवास को सस्ती लोकप्रियता करार दिया है। इसे सही माना जाए तो कांग्रेस ने उन्हें पिछले तीन साल में दिया भी क्या है? इतने वरिष्ठ कांग्रेसी को बर्फ में लगा रखा है। वो तो वे अपने दम पर दुबारा बार अध्यक्ष बन गए, वरना कांग्रेस तो उन्हें भुला ही चुकी थी। ऐसे में अब पूर्व सचिव होने के नाते उपवास पर ऐतराज करने के क्या मायने रह जाते हैं?
असल में दरगाह की व्यवस्थाओं को लेकर कांग्रेस में ही दो धड़े से बन गए हैं। एक ओर शिक्षा मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर हैं तो दूसरी ओर अन्य। इससे पहले जब पूर्व विधायक डा. श्रीगोपाल बाहेती बोले थे तो नसीम अख्तर खेमे के चंद कांग्रेसियों ने उस पर कड़ा ऐतराज किया था। उन्होंने इसे डा. बाहेती राजनीतिक स्वार्थ करार दिया था और आरोप लगाया था कि डा. बाहेती ने सार्वजनिक बैठक लेकर लोगों को प्रशासन के खिलाफ उकसाने, भड़काने एवं गुमराह करने का काम किया है, जबकि सरकार ने पहली बार नसीम अखतर को उर्स की जिम्मेदारी सौंपी है। जाहिर सी बात है कि उन्हें तकलीफ ये रही कि जब मंत्री महोदया को जिम्मेदारी दे दी गई है तो बाहेती बीच में कैसे बोल रहे हैं। बाहेती तो चूंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी हैं, इस कारण विवाद से बचते हुए चुप हो गए, मगर टंडन ने झंडा हाथ में थामे रखा।
उधर भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष इब्राहित फखर ने टंडन के आंदोलन को समर्थन दे कर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। टंडन की हालत अन्ना हजारे जैसी हो गई है। बेचारे अन्ना बार बार इंकार करते रहे कि संघ से उनका कोई लेना देना नहीं है, मगर संघ वाले अपनी मर्जी से ही समर्थन करने लगे तो अन्ना भी इंकार नहीं कर पाए। कुल मिला कर टंडन के लिए मामला पेचीदा हो गया है। कहीं अजमेर के अन्ना के रूप में उनका नया अवतार तो नहीं होने वाला है?

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

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