गुरुवार, 14 जून 2012

अजमेर-पुष्कर रेल मार्ग : न था तो दुख, और है तो बेकार

जब तक अजमेर-पुष्कर रेल मार्ग शुरू नहीं हो रहा था तो इस बात का हल्ला था कि इसमें लेट लतीफी क्यों हो रही है और अब जब शुरू हो गया है तो तकलीफ ये है कि यह बेकार और अनुपायोगी है। कैसी विडंबना है? कैसा विरोधाभास है?
आपको याद होगा कि जब अजमेर-पुष्कर रेल मार्ग की महत्वाकांक्षी योजना पर केन्द्र और राज्य सरकार के बीच तालमेल की कमी के चलते धीमी गति से अमल हो रहा था तो यह कहा जा रहा था कि नियत अवधि से यह न केवल तीन साल पिछड़ गया है, अपितु इसकी लागत भी तकरीबन चार करोड़ बढ़ गई है। जहां 88 करोड़ लगने थे, वहां लागत 92 करोड़ को भी पार कर गई। इस रेल मार्ग का काम 1 जनवरी 2006 को शुरू हुआ था। यदि सब कुछ ठीकठाक चलता रहता तो इसको दो साल में पूरा कर लिया जाता, लेकिन लेटलतीफी के कारण इसे कुल चार साल में पूरा होने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। शुरुआत से ही इसकी राह में रोड़े आ रहे थे। सबसे पहले तो जो रूट तय किया गया, उस पर आने वाली वन भूमि मिलने में देरी हुई। वन महकमे ने पूरा डेढ़ साल खराब कर दिया। रेलवे बार-बार आग्रह करता रहा, लेकिन वन महकमे ने इसकी गंभीरता को ही नहीं समझा। केन्द्र व राज्य सरकार में समन्वय न होने के कारण भी काम ठप्प पड़ा रहा। इसके लिए राजनीतिकों को गालियां भी पड़ती थीं कि वे क्षेत्र के विकास पर ध्यान नहीं देते। वो तो बाद में केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट ने रुचि ली, तब जा कर काम ने तेजी पकड़ी और आखिर यह रूट शुरू हो गया। अब जब कि यह शुरू हो गया है तो पता लग रहा है कि ये बेकार ही है। प्रतिदिन पुष्कर-अजमेर-ब्यावर के बीच केवल साठ-सत्तर यात्री ही इसमें सफर करते हैं। पुष्कर-अजमेर के बीच करीब चार माह पहले शुरू हुए इस मार्ग की लंबाई 28 किलोमीटर है। पुष्कर के लिए ब्यावर वाया अजमेर कुल दस डिब्बों की स्पेशल ट्रेन चलाई जा रही है। अर्थात करीब छह सौ यात्री क्षमता की इस ट्रेन के केवल साठ-सत्तर लोग ही उपयोग कर रहे हैं। जाहिर सी बात है कि जब इस ट्रेन से आमदनी नहीं है तो रेलवे महकमे ने भी न तो स्टेशन पर पर्याप्त स्टाफ रखा है और न ही यात्री सुविधाओं पर कोई ध्यान दे रहा है। स्टेशन में गंदगी की भरमार है। सफाई के लिए केवल एक कर्मचारी लगाया गया है, वो भी हफ्ते में मात्र दो दिन आता है।
सवाल ये उठता है कि नियत समय से करीब चार साल बाद शुरू होने पर भी यात्री भार मात्र साठ-सत्तर है तो समय पर शुरू हो जाता तो क्या हाल होता? कोई दस-बारह ही यात्रा करते। यूं मांग तो करीब पंद्रह-बीस साल पुरानी थी, इसे शुरू करने की। बाहर से आने वाले यात्रियों को पुष्कर जाने के लिए ट्रेन की सुविधा देने के मकसद से स्थानीय राजनीतिक दल प्रयास करते रहे और बड़ी जद्दोजहद के बाद इसको मंजूरी मिली। तत्कालीन लोकसभा सदस्य प्रो. रासासिंह रावत और राज्यसभा सदस्य डा. प्रभा ठाकुर व औंकार सिंह लखावत ने भी खूब जोर लगाया। ऐसे में प्रश्न ये उठता है कि ऐसे अनुपयोगी विकास कार्यों के लिए हम आखिर क्यों जोर लगाते हैं? केवल वोटों की खातिर या फिर सरकारों के पैसा है तो उसे कहीं तो ठिकाने लगवाना है। क्या हमें पता नहीं था कि यह रेल मार्ग शुरू होने पर इसका हश्र क्या होगा? मगर मानसिकता विशेष की तुष्टि के लिए जिद कर रहे थे। इस योजना पर भी करीब एक सौ करोड़ का खर्चा आ चुका है और अब भी यह घाटे का सौदा ही साबित हो रही है, तो क्या यह हमारी ही गाढ़ी कमाई का दुरुपयोग नहीं है, जो कि हमारी जिद के कारण किया गया है और किया जा रहा है?
अजमेर-पुष्कर रेल मार्ग ही क्यों, बूढ़ा पुष्कर के जीर्णोद्धार कार्य का भी कमोबेश यही हश्र है। राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत के भगीरथी प्रयासों से करोड़ों रुपए लगा कर बूढ़ा पुष्कर पर शानदार घाट व मंदिर बना दिए गए, तो जाहिर तौर इस ऐतिहासिक कार्य के लिए उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई। होनी भी चाहिए। मगर उसका उपयोग क्या है? आज न तो वहां तीर्थ यात्री जाता है और न ही पुष्कर के पुरोहितों की वहां जा कर पूजा-अर्चना करवाने में रुचि है। एक बड़ी वजह ये है कि भाजपा शासन काल में शुरू हुए इस कार्य को कांग्रेस सरकार ने आते ही ठप कर दिया। उस प्राधिकरण पर ही ताले लगा दिए। यदि कांग्रेस सरकार इस पर ध्यान देती तो कदाचित इसका विकास भी होता और तीर्थ यात्रियों का भी पैर वहां पड़ता। मगर चिंता किसे है? विधानसभा में पुष्कर का प्रतिनिधित्व करने वाली शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ की भी इसमें कोई खास रुचि नहीं है। अब केवल संतोष यह कह कर किया जा सकता है कि चलो एक ऐतिहासिक काम तो हो गया, अभी नहीं तो बाद में आबाद हो जाएगा।
अजमेर-पुष्कर रेल मार्ग के बारे में भी इसी प्रकार का संतोष किया जा सकता है कि हमारे जनप्रतिनिधियों की प्रयासों से शुरू तो हुआ, जब इसे जब मेड़ता तक जोड़ा जाएगा और पुष्कर से हरिद्वार की ट्रेन शुरू की जाएगी तो उपयोगी हो जाएगा। प्रसंगवश हवाई अड्डे की भी बात कर लें। इसकी मांग भी बहुत पुरानी है और राजनीतिक जागरूकता के अभाव और सशक्त नेतृत्व की कमी का उलाहना देते हुए आज हमें शिकायत है कि वह शुरू नहीं हो पा रहा, मगर जैसे हालत हैं, वह भी जब शुरू होगा तो विमानों में यात्री बैठाने को ही नहीं होंगे, मगर हम कम से कम गर्व से कह तो सकेंगे कि हमारे यहां हवाई अड्डा भी है।
लब्बोलुआब अपना सिर्फ इतना कहना भर है कि विकास कार्य होने चाहिए, मगर ऐसे, जिनका लाभ वास्तव में आम लोगों को मिले, न कि वे गिनाने भर को हों व स्मारक की भांति खड़े शोभा बढ़ाएं। 

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें