गुरुवार, 14 जून 2012

नसीम अख्तर ने डाला फच्चर, बाकोलिया के वजूद पर सवाल

शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर के रेलवे स्टेशन रोड स्थित किंग एडवर्ड मेमोरियल के मामले में फच्चर डालने से नगर निगम के सीईओ सी आर मीणा के गले की हड्डी तो बाहर निकल गई, मगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया के वजूद पर सवालिया निशान लग गया है। ज्ञातव्य है कि बाकोलिया ने मेमोरियल का कब्जा लेने को कहा था, मगर चूंकि इसके अध्यक्ष जिला कलेक्टर और प्रशासक उपखंड अधिकारी हैं, इस कारण मीणा कार्यवाही करने को लेकर असमंजस में थे। इसी बीच नसीम अख्तर ने बाकोलिया से बात करने की बजाय सीधे मीणा को तलब कर लिया, नतीजतन मेमोरियल को अपने कब्जे में लेने के मामले में निगम शिथिल हो गया है। एक तरह से मामले की फाइल ठण्डे बस्ते में ही डाल दी गई है।
जानकारी ये है कि मेमोरियल के कर्मचारियों ने रोजी रोटी का हवाला देते हुए शिक्षा राज्यमंत्री से गुहार की थी, इस पर उन्होंने फोन पर ही मीणा से बात की और स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल से विस्तृत चर्चा करने की कह कर फिलहाल शांत रहने की हिदायत दे दी। इससे मीणा को बड़ी राहत मिल गई, वरना उन्हें मेयर के आदेश मानने के चक्कर में प्रशासन से टकराव मोल लेना पड़ता। सब जानते हैं कि जिला प्रशासन की मेमोरियल का कब्जा निगम को सौंपने में कभी रुचि नहीं थी। जिला प्रशासन हर बार कोई न कोई बहाना बना कर इसे रोक देता था, लेकिन अब तो खुद मंत्री ने ही दखल करके हस्तांतरण रुकवा दिया है।
बेशक मंत्री का ओहदा मेयर से बड़ा है और अजमेर जिले की होने के कारण उनका भी अजमेर के विकास में दखल देने का पूरा अधिकार है, मगर उन्होंने जिस तरह बाकोलिया को दरकिनार कर सीधे मीणा से बात कर मामला लंबित करवाया, उससे बाकोलिया के वजूद पर तो सवाल उठ ही गया है। साथ ही निगम की स्वायत्तता पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया है। दरअसल निगम अपनी आय बढ़ाने के लिए मेमोरियल का कब्जा लेना चाहता है। निगम की मंशा है कि शहर के बीचों बीच स्थित इस बेशकीमती सम्पत्ति का उपयुक्त इस्तेमाल हो, जिससे निगम की आय में इजाफा हो। निगम मेमोरियल की जमीन पर फाइव स्टार होटल, पार्किंग, व्यावसायिक भवन सहित अन्य निर्माण कराना चाहता है।
जहां तक नसीम अख्तर के सीधे दखल देने का सवाल है, उनका खुद का कहना है कि मेमोरियल कर्मचारी यूनियन के पदाधिकारी उनसे मिले, इस वजह से उन्होंने मीणा से बात की थी। वैसे उनकी इस मामले में कोई रुचि नहीं है फिर भी शहर हित को ध्यान में रखकर जगह का उपयोग होना चाहिए। सवाल उठता है कि अगर शहर के हित का ही इतना ख्याल है तो यह बाकोलिया से बात करके भी हो सकता था, इस प्रकार अधिकारियों से सीधे बात करने से एक तो राजनेताओं की फूट सड़क पर आ गई है, जिसका अधिकारी वर्ग जम कर फायदा उठायेगा। संभव है नसीम व बाकोलिया के बीच कोई मतभेद हो, मगर कम से कम शहर के विकास के लिए तो मतभेदों को त्याग देना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हो सकता तो जनता ये सवाल पूछेगी कि कांग्रेस की कड़ी से कड़ी जोडऩे की दलील दे कर निगम चुनाव में उनके वोट हासिल क्यों किए थे? ताजा प्रकरण में तो साफ तौर पर ये कड़ी टूटी हुई ही नजर आती है। 

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

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