शुक्रवार, 22 जून 2012

आईपीएस ने पोत दी पुलिस के चेहरे पर कालिख

अब तक तो चोर और उठाईगिरे ही आए दिन वारदातों को अंजाम देकर पुलिस के चेहरे पर कालिख पोत रहे थे, मगर अब एक आईपीएस अफसर ने ही यह काम अंजाम दे दिया है। अपने रीडर रामगंज थाने में एएसआई प्रेमसिंह के हाथों घूस मंगवाने के आरोप में गिरफ्तार आईपीएस अफसर अजय सिंह को घर भरने की इतनी जल्दी थी कि नौकरी की शुरुआत में ही लंबे हाथ मारना शुरू कर दिया। अफसोनाक बात ये है कि उनकी कारगुजारियों की चर्चाएं बाजार में तो आम थीं, मगर अजमेर के पुलिस कप्तान राजेश मीणा ने आंखें मूंद रखी थीं। परिणाम ये रहा कि पाप का घड़ा जल्द ही फूट गया। आश्चर्य तो इस बात का है कि एक आईपीएस के मामले में एसीडी ने इतनी मुस्तैदी कैसे दिखाई। बेशक इसके लिए वह बधाई की पात्र है।
हालांकि अजय सिंह रिश्वत के केवल एक ही मामले में पकड़े गए हैं, मगर सरकार ठीक से विधिवत जांच करवाए तो पता लग सकता है कि ऐसे ही कितने और मामलों में वे तोड़बट्टा कर रहे थे। जानकारी के अनुसार आईपीएस अजयसिंह जिस मार्स बिल्ड होम एंड डवलपर्स की मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनी की जांच कर रहे थे, उसमें आरोपियों के साथ-साथ गेनर्स पर भी नजर रखे हुए थे। उनका इतना खौफ था कि कई गेनर्स अंडरग्राउंड हो गए कि कहीं उन्हें भी झूठा न फंसा दिया जाए। जाहिर सी बात है कि उनसे भी तोड़बट्टे की बातें चल रही होगी। बेहतर तो यही होगा कि केवल रिश्वत के एक ही मामले तक सीमित न रह कर उनके पास चल रही सभी जांचों की भी पड़ताल करवाई जाए। वरना इन आईपीएस अफसर ने तो ऐसी कालिख पोती है, जिसे साफ करना आसान काम नहीं होगा।
आईपीएस अजय सिंह कितने बेखौफ थे, इसका अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि वे अपने भाई हेमंत कुमार के साथ जिस गाडी में जाते हुए पकड़े गए, उसमें अवैध शराब की दो पेटियां व 47 हजार रुपए पाए गए। इस पर कानोता थाने में मामला दर्ज कर हेमंत कुमार को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
ऐसा नहीं है कि अजय सिंह की वर्दी पर यह पहला दाग लगा है। इससे पहले भी वे विवादों में रहे हैं। जानकारी के अनुसार अलवर के शिवाजी पार्क थाने में वर्ष 2009 में एक युवती ने छेड़छाड़ व मारपीट का मामला दर्ज कराया था। जांच में अजयसिंह और उनके दोस्त का नाम भी सामने आया, लेकिन इस बीच अजय सिंह का आईपीएस में चयन होने के कारण मामले में एफआर लगा दी गई थी।
इसी प्रकार अजय सिंह को प्रोबेशन पीरियड के दौरान जोधपुर कमिश्नरेट से प्रशिक्षण पूरा होने से पहले ही हटाया गया था। गत वर्ष अप्रैल में झंवर में एसएचओ लगाया गया था, मगर वहां तीन माह पूरे होने से पहले ही ग्रामीणों की शिकायत पर हटा दिया गया। अजमेर में एलआईसी अधिकारी लक्ष्मण मीणा को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी अधिकारी के बी चौधरी को वीआईपी ट्रीटमेंट देने का भी उन पर आरोप है। आरोप है कि उन्होंने अजमेर के कोटड़ा में जोधपुर के एक बुजुर्ग के भूखंड पर कब्जे के मामले में पीडि़त को एक लाख रुपए लेकर भूखंड छोडऩे केलिए धमकाया था। इसी प्रकार शांतिनगर के एक मकान को धोखाधड़ी से बेचने के मामले में जेल में रहते हुए एक आरोपी जुल्फिकार उर्फ जुल्फी पर बाहर से पावर आफ अटार्नी बनाने का गंभीर आरोप है। इसी प्रकार दहेज प्रताडऩा के एक मामले में हस्तक्षेप कर जबरन महिला थाने में मुकदमा दर्ज करवाया। उच्चधिकारियों की अनुमति के बिना ही कांस्टेबल राजाराम व जयपालसिंह को एसी का रिटर्न टिकिट देकर मुंबई में से दहेज प्रताडऩा के आरोपी रणजीतसिंह को गिरफ्तार करने भेज दिया। दोनों शातिर पुलिसकर्मियों ने मुंबई में बीयर बार, होटलों व बीच पर मौज-मस्ती कर मुकदमे से आरोपी और उसके परिवार के अन्य लोगों का नाम बाहर कराने के लिए लाखों की रिश्वत मांगी थी। बाद में आरोपी को अजमेर लाकर तीन दिनों तक एक होटल में बंधक बना कर रखा और पीडि़ता को पांच लाख रुपए दिलवा कर एक लाख रुपए कांस्टेबल ने वसूलेे। इसकी खबरें अखबारों में सुर्खियों में छपीं।
कुल मिला कर सच ये है कि पूरे पुलिस प्रशासन को उनकी करगुजारियों की जानकारी थी, मगर उसने आंखें मूूंद रखी थीं। अगर ऐसा नहीं है तो यह और भी दुर्भाग्यपूर्ण है। एक कहावत है न कि अफसर अफसर का मुंह सूंघता है। इस मामले में कदाचित ऐसा ही हो रहा था। वैसे भी आईएएस व आईपीएस लोबियों इतनी तगड़ी हैं कि एकाएक किसी आईएएस व आईपीएस के खिलाफ कार्यवाही नहीं होती। ये तो गनीमत है कि रिश्वत के ताजा मामले में पीडि़त ने एसीडी का दरवाजा खटखटाया और उसने भी पूरी मुस्तैदी के साथ कार्यवाही को अंजाम दिया, वरना अजय सिंह अब तक न जाने कितने और कारनामे करते। 

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

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