मंगलवार, 28 अगस्त 2012

गालरिया की डांट से कौन सा सुधर जाएगा निगम

फाइल फोटो- मौका मुआयना करते जिला कलेक्टर गालरिया

आनासागर झील में फैली गंदगी और कचरे से अटे पड़े एस्केप चैनल को देख कर जिला कलेक्टर वैभव गालरिया ने भले ही निगम के स्वास्थ्य अधिकारी प्रहलाद भार्गव को जम कर लताड़ पिला दी हो, मगर सब जानते हैं कि न तो निगम की कार्य प्रणाली में कोई सुधार होने वाला है और न ही निगम के अधिकारी सुधरने वाले हैं। यह तो ठीक है कि जिला कलेक्टर ने खुद मौके पर गंदगी व कचरा देख कर भार्गव को अजमेर से बाहर तबादला करने अल्टीमेटम दे डाला, मगर इससे पहले भी नालों की सफाई का मुद्दा खूब उठ चुका है। अगर नगर निगम के अधिकारियों का सुधरना होता तो तभी सुधर जाते।
असल में निगम के अधिकारियों को एक ढर्ऱे पर काम करने की आदत पड़ गई है। एक तो वे आश्वसन देने में माहिर हैं और दूसरा बाहनेबाजी  में भी अव्वल। देखिए, जब कलेक्टर ने पूछा कि झील के किनारे पर इतनी गंदगी कैसे है? यहां सफाई नहीं की जाती है क्या? इस पर भार्गव ने बहाना बनाया कि सफाई होती है, लेकिन लोग कचरा डाल जाते हैं। है न नायाब बहाना। उन्होंने भार्गव से पूछा कि नालों की सफाई हो गई थी, तो इतना कचरा कैसे एकत्रित हो गया, इस पर भार्गव ने कहा कि बरसात के पानी के साथ कचरा बह कर आया है। ऐसे में भला कलेक्टर पलट कर क्या कहते। उन्हें आखिर सख्त लहजे में भार्गव को फटकारते हुए कहना पड़ा कि दो दिन में नाला साफ हो जाना चाहिए, अन्यथा अजमेर से जाने के लिए अपना बोरिया बिस्तर बांध लो। हालांकि भार्गव ने कलेक्टर को आश्वासन दिया कि दो दिन में नाले की सफाई कर दी जाएगी। मगर सवाल ये उठता है कि जो कचरा पिछले दो माह से चल रहे इस मुद्दे के बाद नहीं हटा, वह आखिर दो दिन में कैसे हटा जाएगा?
आपको ख्याल होगा कि अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी ने पिछले दिनों नालों की सफाई को लेकर बाकायदा उलाहना देते हुए व्यंग्यात्मक लहजे में कहा था कि मेयर साहब अब तो जागो।
सब जानते हैं कि मानसून आने से एक माह पहले से ही नालों की सफाई का रोना चालू हो गया था। नगर निगम प्रशासन न जाने किसी उधेड़बुन अथवा तकनीकी परेशानी में उलझा हुआ था कि उसने इस ओर ध्यान नहीं दिया। अगर ध्यान दिया भी तो जुबानी जमा खर्च में। धरातल पर पर स्थिति बिलकुल विपरीत थी। जब आला अधिकारियों ने निर्देश दिए तो भी निगम प्रशासन ने हां हूं और बहानेबाजी करके यही कहा कि सफाई करवा रहे हैं। जल्द पूरी हो जाएगी। बारिश से पहले पूरी हो जाएगी। जब कुछ होता नहीं दिखा तो पार्षदों के मैदान में उतरना पड़ा। श्रीगणेश भाजपा पार्षद जे के शर्मा ने किया और खुद ही अपनी टीम के साथ नाले में कूद गए। हालांकि यह प्रतीकात्मक ही था, मगर तब भी निगम प्रशासन इस बेहद जरूरी काम को ठीक से अंजाम नहीं दे पाया। परिणामस्वरूप दो और पार्षदों ने भी मोर्चा खोला। ऐसा लगने लगा मानो निगम में प्रशासन नाम की कोई चीज ही नहीं रह गई। अगर ये मान भी लिया जाए कि पार्षदों ने सस्ती लोकप्रियता की खातिर किया, मगर निगम प्रशासन को जगाया तो सही। मगर वह नहीं जागा। इतना ही नहीं पूरा मीडिया भी बार बार यही चेताता रहा कि नालों की सुध लो, मगर निगम की रफ्तार नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली ही रही। यह अफसोसनाक बात है कि जो काम निगम प्रशासन का है, वह उसे जनता या जनप्रतिनिधि याद दिलवाएं। मेयर कमल बाकोलिया व सीईओ सी आर मीणा मानें न मानें, मगर वे नालों की सफाई में फिसड्डी साबित हो गए हैं। उसी का परिणाम रहा कि मानसून की पहली ठीकठाक बारिश में ही सफाई व्यवस्था की पोल खुल गई थी। निचली बस्तियों  में पानी भर गया तथा नाले-नालियों की सफाई नहीं होने से उनमें से निकले कचरे व मलबे के जगह-जगह ढ़ेर लग गये थे। इसके बाद भी निगम के अधिकारी नहीं चेते और आखिर जब जिला कलेक्टर गालरिया ने खुद हालात देखे तो उन्हें निगम के स्वास्थ्य अधिकारी भार्गव को फटकार लगानी पड़ी। सवाल अकेले भार्गव का ही नहीं है। वो तो चूंकि वे कलेक्टर के धक्के चढ़़ गए, इस कारण गुस्सा उन पर ही फूटा, मगर इसके लिए अकेले वे ही तो जिम्मेदार नहीं हैं। उनके ऊपर बैठे अधिकारी आखिर क्या कर रहे हैं?
-तेजवानी गिरधर

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